इजोरिया राति- कुन्दन कुमार मल्लिक

प्रिये, आई की भेल,
जे अहाँ एतेक मोन पडि रहल छी,
अहाँ’क स्मृति मोन बेकल कs रहल अछि,
आई इ इजोरिया राति में की भेल,
एकर शीतलता कतय चलि गेल,
हमर देह किएक एहि में जरि रहल अछि,
एकर तपिश में हम दग्ध भs रहल छी,
दूर कतओ कोनो प्रेयसी विरहा गाबि रहल अछि,
ओकर आवाज टीस बढा रहल अछि,
हवा’क सरसराहट अहाँ’क आभास कराबैत अछि,
लागल जेना अहाँ हमरा अपन अंक में लय रहल छी,
अहाँ’क कतेक बात मोन पडैत अछि,
मोन पडैत अछि अहाँ’क कजरायल आँखि,
जाहि में डूबि केँ दुनियादारी बिसरि जायत छलहुँ,
साँझ में चौखटि पर अहाँ केँ देखिते,
दिन भरिक थकान बिसरि जायत छलहुँ,
फेर बैसा केँ अपन आँचर सँ घाम पोछनाय,
अहाँ’क ओ प्रेम भरल गप,
अहाँ’क उ रुसनाय आ हमर मनौनाय,
हाथ पकडिते अहाँ केँ हाथ झटकि देनाय,
फेर अपन गात सँ सटाबिते अहाँ’क लजौनाय,
तेखने कोनो आवाज तन्द्रा भंग कयलक,
आ हमरा कल्पना सँ यथार्थ में आबिते,
बुझायल जेना केओ जमीन पर पटकि देलक,
अहाँ सँ दूर एहि शहर में,
एक अहाँ’क स्मृतिये टा अछि जे,
सदिखन हमरा संग अछि,
जे एहि दूरी’क आभास नहिं होमय दैत अछि,
प्रिये जल्दीए हम घुरि आयब आ,
तेखन इ इजोरिया राति अपन आनन्द राति होयत।

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[नोट- एहि कविता में सम्पादन सुझाव आ शीर्षक दय के लेल तीन गोटे केँ विशेष सहयोग रहल। जाहि में छथि श्री पद्मनाभ मिश्र "आदि यायावर" (बंगलोर), श्री केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी" (बंगलोर)श्री राजीव रंजन "अमरजी" (नई दिल्ली)। तीनू गोटे केँ हार्दिक धन्यवाद।]
- कुन्दन कुमार मल्लिक,
ग्राम- बलियारी, डाक- झंझारपुर,
जिला- मधुबनी (बिहार)- ८४७४०४
ई-मेल-
kkmallick@gmail.com
सम्पर्क-+९१-९७३९००४९७० (बंगलोर)

7 comments:

सुभाष चन्द्र said...

Kundan jee,
yahi barshat ke mausam mein kiyak sabhak deh mein agan lagabait chhi ? kateko lok appan gam aa appan priyatama sa door yahi aagi mein jari rahal chhaith.. yekhan gam ghar dis badhi aanaye suru v gail chhai, aakash kari dekhait chhai, sab ke ijoria rait ke intzar chhain... dekhb kiyo ehi ke padhi ka gam dis nahi vida v jaith.
apnek kawita bahut prasansniya achhi.. bahuto ke aapan marm sa jural lagtain... ehna kichu aar rachna ke intzar achhi....
subhash chandra
13A, CB Block
Shalimarbagh, new delhi 88

करण समस्तीपुरी said...

अति-सुंदर !
श्रृंगार रस'क सौंदर्य पूर्ण भाव के सबल अभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम शब्दाबली अनुपम बिम्ब सों मिलि कविता के अद्वितीय बना रहल अछि ! आजु'क साइबर युग में एहन प्रेम कतय ? कविता में विद्यापति'क "चानन भेल बिसम सर.." के प्रभाव आ बिहारीलाल'क रति-वर्णन'क आभा बुझि पडैत अछि! मुदा एकरा पढ़ला उपरांत हमरा एक टा अंदेशा घेर लेलक ! आब अहाँ ई कहू जे, ई अपने'क कल्पना थिक वा अनुभूति ???
जे होमय मुदा अछि ई बड सुंदर !! अहाँ'क ई कविता पर हम्मर प्रतिक्रया,
"हम जानते ता इश्क न करते किसी के साथ !
ले जाते दिल को ख़ाक में इसी आरजू के साथ !!"
ब्रहम बाबा शीघ्र अहाँ'क ई तपिश दूर करथि !
शुभ कामना !!!

Kumar Padmanabh said...

कुन्दन जी;
हम टिप्पणी दू भाग मे दऽ रहल छी.
पहिल नजर मे कविता बढ़ियाँ लागल. खासतौर पर जे अहाँक मोन मे भाव छल ओ पाठक तक पूर्ण रुप सँ पहुँचल. अहाँक भावना सँ पाठक बिल्कूल ओहिना रु-ब-रु भेलाह जेना अहाँ खुदे सोचैत छी.
टिप्पणी’क दोसर बात हम एक आलोचक के तौर पर दऽ रहल छी (ओना हम स्वीकर करैत छी जे कतेक रास बात एखन ओतेक मेच्योर नहि भेल अछि जे आलोचना एखन शामिल काएल जाए).
आ आलोचना ई अछि जे एकटा उम्र होइत छैक जखन अहाँक कविता मे वर्णन भावना प्रत्येक यूवक मे उठैत छन्हि आ ओहेन बात कहनाय कोनो पैघ बात नहि.
अहाँक सृजनशील साहित्य विधा केर हम कायल छी. मुदा एहि रचना मे प्रतीत नहि भऽ रहल अछि.
दोसर रचना’क प्रतीक्षा रहत.

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

आदरणीय गजेन्द्रजी,
धन्यवाद। अहाँ'क द्वारा भेजल शब्दावली निःसन्देह हमर मैथिली शब्द ज्ञान केँ बढाबय में सहायक सिद्ध होयत। एहिना अहाँ लोकनि सँ मार्गदर्शन'क आशा रहत।

@ पद्मनाभजी,
अहाँ'क किछु बात सँ हम सहमत नहिं छी। यथा जे एखन "कतेक रास बात" में आलोचना के लेल कोनो स्थान नहिं। यदि हमरा लोकनि एहिना आलोचना सँ मुँह चोरबैत रहब तs कहियो स्तर में सुधार नहिं होयत। ताहि लेल एहि मंच पर आलोचना के स्थान देनाय अनिवार्य आ संगहि-संग इएहो जे कोनो तरहक आलोचना शिष्टता आ शालीनता के परिधि में होए।
एहि बात के हम स्वीकार करैत छी जे एहि रचना में स्तरीयता के दृष्टिकोण सँ सुधार'क आवश्यकता अछि आ एकटा बात आओर जे प्रेम'क वर्णन सेहो पद्य विधा में आबैत छैक।
अपन नव रचना पोस्ट कय देने छी ओहि पर अपनेक टिप्पणी'क प्रतीक्षा रहत।
अपनेक-
कुन्दन कुमार मल्लिक

Kumar Padmanabh said...

कुन्दन जी हम अपनेक बाद सँ १००% सहमत छी. एहि मे कोनो दू राय नहि. अहाँक कविता हमरा नीक लागल. यदि अहाँ कविता खराप लागल होयत तऽ हम प्रकाशित नहि करितहुँ. हमर टिप्पणी केँ केवल एकटा सलाह बुझल जाए एकरा अन्यथा नहि लेल जाए.

राकेश कुमार मल्लिक said...

बुझायत अछि जे हमरा सँ पहिने तोरे विवाह करबेनाय आवश्यक भ' गेल अछि। जानि के खुशी भेल जे साहित्यक क्षेत्र मे सेहो प्रयासरत छै।
@पद्मनाभजी,
अहाँ अपन पहिल टिप्पणीक समर्थन मे हमरो हस्ताक्षर ल' लिअ।

ALOK MALLICK said...

wah,aahan ta kamal ka gailaun..ataii nik raspaan bahut din baad karaii lel bhaital...umeed je ahaan aiihnaa rasak ganga bahbaiit rahab

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...