लाचार

कवि - श्री सुभाष चन्द्र

ओकरा बह्लेबक लेल

ओकरा लग अओर किछू नै छले

ओही दू गोट

घिन्चायल तिरआइल

हद स फाजिल चुसल

दू उरोजक सिवाय

जकराबेर बेरी ओ ठुंसी देत छल ओकर मुंह में

चाहे इच्छा व अनिच्छा

चाहे ऊ कनैत होई

रोटीक लेल

अथवा

कोनो खिलोनक लेल

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...