हम छी मोहम्मद सगीर !

- करण समस्तीपुरी

गामक परिवेश मे एकटा अलगे अल्हड़पन होइत छैक . जौं गाम हम्मर रेवा खंड सन हो, फेर "वृन्दावन बिहारी लाल की जय" ! हम्मर सगरो बचपन अप्पन ललित ललाम गामक आनंद-उल्लास मे बीतल. विनोद-प्रियता लडिकपने से स्वभाव मे समायल छल ताहि पर मनोनुकूल बाल-वृन्दक संग. फकरा मे सेहो कहल गेल छैक, "जहाँ लड़िकाक संग तहां बाजे मृदंग ! जहाँ बुढ़बाक संग तहां खर्चाक तंग !!’ धीरे-धीरे गामक चौपालक अघोषित स्थायी सदस्यता सेहो भेंट गेल. एम्हर, साहित्य (ख़ास के खट्टर ककाक ) के अध्ययन से हम्मर विनोद-प्रियता मुखर हम किछु -किछु वाक्-पटु होएत गेलहुँ. बाद मे गुण गामक युवक-मंडलीक अगुआ बनबा मे बड काज आएल. हम्मर मंडलीक एक टा बड़ पैघ विशेषता छल जे अहि मे देह्गर पहलवान से के दिमगगर शैतान, सब तरहक लोक छल. यात्रीजीक "नवतुरिया" जेकां हमरो सबहक मंडली गाम-घरक सब तरहक बात-व्यवहार मे तुलल रहैत छल. तें गामक बूढ़ वृद्ध जिम्मेदार लोकनि सेहो हमरा सबहक मौन मान्यता देने छलाह. हमरा पर ख़ास कय के, गाम मे आबय वाला अरियात, बरियात, पाहुन, कुटुम सभहक स्वागत सत्कार से 'के आन गाम मे बरियात मे जा अप्पन गामक झंडा गाड़य के जिम्मेदारी सेहो छल. तहन सुनु एक टा गप.
हमरा घरक बगल मे एक टा लड़की के विवाह छल. विवाहक तैय्यारी मे हम नवतुरिया मंडलीक संग मस्त छलहुँ. बरियात से, बाबू हौ! मज़फ्फरपुर जिला सँ आबि रहल छल. तैय्यारियो तेहने. एम्हर दरवाजा परहक सभ टा ओरियान ' गेल छलैक जे बांचल छलैक ओहि मे सभ लोक तर-ऊपर भए रहल छलथि. तखने बरियात-आगमनक सूचना भेटल. साथे मास्टर ककाक करकगर आवाज़ आएल, सुनए छहक हौ ! चल'-चल' !! आब ओम्हर देखहक ! एम्हर पंडित जी हमरा बुझा के कह' लागलथि, हे बौआ ! मिथिलाक सौरभक ध्यान रखिहक. रंग-रहस नीक छैक मुदा कुनो गड़बड़ नहि होय. पंडित जी कें भरोस दिआ बरियातक स्वागत मे जनवासा दिस जाय वाला हांज मे हमहुँ शामिल ' गेलहुँ. रे तोरी के... बरियात के त' किछु कहल नहि जाए! गाड़ी-छकरा से भरल मैदान उप्पर बड़का ठकुरबारी के दलान मे गच-गच करैत लोक. ओहि मे मौरी पहिरने बैसल दुलहा दुलहा के घेरने आधुनिक बरियात मे आयल किछु अत्याधुनिका. आहि रौ बा ! ओहि चित्रित आधुनिक परिधान मे चमकैत अत्याधुनिका के देखिते हमरा लोकनि कें ' होशे बहरा गेल. ताहि पर से लगन के मातल जुआन ' जुआन अधबूढ़ सबहक सेहो नजरि चकोर जेंका दूल्हा के घेरने चान सन चमकैत चेहरा के निहाराय मे भीड़ गेल. मौका ' बड गुदगुदाबय वाला छल. कहलो जाएत छैक जे सोन से बेसी सौंदर्यक चोर होएत अछि. आब चुनौती छल जे एहन रजनीगंधा सबहक साथे बरियात के मर्जादक संग द्वार कोना लगाएल जाए. बरियातक सभ सँ आकर्षक टुकड़ी मे चांदी सन चमकैत उज्जर-उज्जर दाढी-केश वाला एक गोट बाबाजी सेहो छलथि. स्वाइत बलौकिया रजनीगंधा सबहक सौरभ रक्षाक जिम्मेबारी हुनके वृद्ध कांध पर छलैन्ह. तें हमर नवतुरिया भ्रमर वृन्द के ओहि दिस मंडराइत देखि बड खिसियावथि. खैर जलवासा परका विध-व्यवहार संपन्न भेला उत्तर बरियातक द्वार लगाई के तैय्यारी शुरू भेल. बैंड बजा फटक्काक शोरक बीच खिचरियाएल बरियात सरियात ताहि बीच चीटी जेंका ससरैत किछु छोटकी-छोटकी गाड़ी. ओहि ठाम एकटा गाड़ी मे सभटा रजनीगंधा के समेट दाढ़ी वाला बाबा अपने चौकीदार जेंका बैस गेलाह. संयोग से गाड़ी के प्रतिराक्षाक ड्यूटी हमरे देल गेल. आब की कहू !! जलवासा से ' के द्वार लगाई धरि बूढा बाबक मिथिलाक चिरपरिचित मधुरी-वाणी मे ततेक खिसियाएल जे बेचारे धोती से बहार होमय लगलाह. एहि विध नीके-सुखे द्वार लागि गेल. ओम्हर परिकामनिक विध होमय लागल एम्हर बरियातक स्वागत. भाई, कोनो तरहक कसर नहि रहि जाइक. बरियात मजफ्फरपुर जिला सँ आयल छैक ! सभ, सभ दिस लागि गेल हम एकनिष्ठ उहे बूढा बाबा के सेवा मे समर्पित भए गेलहुँ. मानू शिष्टाचार श्रद्धा के साक्षात् अवतार !! एकदम विनम्र भए कातर स्वर मे बाबा से रास्ताक गप्प पर क्षमा-याचना सेहो कएल. बाबा हम्मर अगाध विनम्रता पर प्रसन्न भए माफी दैत कहलाह कि कोनो बात नहि, अरियात-बरियात मे एतेक चलैत छैक. फेर ' हम दुगुन्ना श्रद्धा से बाबा के सेवा मे जुमि गेलौंह. बाबाक आगू हम कोनो बारिक के पहुँचए नहि दियैक. एम्हर बाबा के मुंह सँ शब्द बहराय, ओम्हर हम ' के ठाढ़. आब धीरे-धीरे बाबा के प्रसन्नता सातम आकाश पर चढ़ल जाइक. एहि बीच बाबा कहलाह जे हम पूरी-कचौरी नहि, चिउरे-दही खाएब. बर बेस ! हुनक पात पर चिउरे-दही सजा देल गेल. बेचारे भोग लगाबय के मंत्र पढ़ए लगलाह. ता धरि हम कुनो बारिक सँ कचौरी के चंगेरा छीनि आनल बाबा के एक गोट कचौरी लिअ' के आग्रह कएल. बाबा हम्मर आग्रह मानि लेला हम कहल जे बाबा ! इ कचौरी अहाँ हमरे हाथ स' खाऊ ! जा धरि बाबा हाँ-हाँ करताह हम कचौरी तोरि बाबाक मुंह मे ठुसि देल. बाबा मुस्कियाएत मुंह वाला ग्रास चिबाबैत प्रसन्नतापूर्वक हम्मर नाम पुछलाह. हम कहल जे नाम नहि पुछू. मुदा बाबा फेर जोर दिअ' लगलाह. ताहि पर हम किछु संकोच के अभिनय करैत कहल जे हम छी, "मोहम्मद सगीर ! अरौ बाप रौ बाप !! हम्मर मुंहक बात खतमो नही भेल कि बाबा पर एकदम से वज्रपात ' गेल !! आब बेचारे के मुंहों वाला कौर घोंटल जाए उगलल जाए. एकदम सर्द. हम चुप-चाप ओहि ठाम स' ससरि गेलहुँ. बाबा उठि के एकगोट कोना धए लेलाह. बांकी बरियात खा पीके जनवासा पहुंचल तब बाबा रहस्योद्घाटन केलाह, जे सबहक धर्म भ्रष्ट भए गेल अछि. सब बरियतिया के भरि राति निन्न नहि भेल. केओ गंगा स्नान से शुद्ध होमय के विचार करथि ता केओ गोबर-बालू लए प्रायश्चित करब सोचथि. बरियात मे आएल पंडित जी रातिये भरि मे एहि समस्या के समाधान अर्थ कतेक रास प्रमाण प्रस्तुत केलथि. भिनसर भेने बरियात मे दू मत छल. एक मत जे बाबा के धोखा भेलन्हि यै  दोसर मत जे सरियतिया सभ जानि-बुझि के अपराध कएलक अछि. हाँ, ' भिनसर जखन बरियातक जलपान का निमंत्रण देल गेल ' रातुका गप्प उठल. बूढा बाबा विरोध अभियान के नेतृत्व करैत एकदम आक्रामक भेल छलाह. एम्हर कन्यागत के ज्ञात भेलन्हि त'  अपने घोर सैद्धांतिक ! कहलाह जे हम सम्पूर्ण खानदान जन्मजात वैष्णव, हमरा परिवार मे किन्नहुँ सम्भव नहि थीक. उपर से जे मुसलमानक नाम बतावल जा रहल अछि से नामक कुनो मुसलमान युवक ता हमरा गाम मे ऐछे नहि. तें ब्रह्माजी सेहो आबि के कहताह हम नहि मानि सकैत छी. गामक आन-आन प्रतिष्ठित लोक सेहो समधि के बुझाएल जे कुनो गलतफहमी अछि. गामक सभसे प्रतिष्ठित मुसलमान सेहो एहि बातक प्रमाण देलक. फेर सभ बरियात मानि जे बाबा के कुनो ग़लतफ़हमी भेलैन्ह हए, जलपान- भतखाई सबहक न्योत स्वीकार कए लेल. मुदा बूढा बाबा अप्पन बात पर अडिग रहलाह कहलाह जे हम तोरा सबहक देखा देबजे के छैक मुसलमान. हम प्रातःकालीन समस्त कार्य-कलाप मे जानि बुझि के अनुपस्थित छलौंह. तें बूढा बाबा के तखन मोहम्मद सगीर नहिये भेंटल. मुदा जलपान सेहो नहि केलथि. सांझ मे भतखाई के बेला भेल. बरियात सभ बैसल. बूढा बाबा के सेहो पित्त ठंडा भेलैन्ह. उहो भतखाई मे बैसलाह. बारिक मंडली मे फेर हमहू शामिल छलौंह. आगू आगू भात वाला छल पाछू से हम दालिक बाल्टी लेने. हमरा देखते बूढा बाबा सभके आगाह करए लगलाह जे इहे अछि मोहम्मद सगीर ! खैर, जहिना भात वाला बाबाक पात पर भात देलक हम दालि दिअ' लेल उद्धत भेलौंह कि बाबा तमसा के कहलाह जे नहि चाहि दालि ! फेर हम केकरो दालि थमा के तरकारी आनल. बाबा के पूछल. बाबा फेर तमसा के कहलाह जे नहि चाही तरकारी !! फेर हम दोसर तिमन के आएल. बाबा के फेर आग्रह कएल, ता धरि पूरा पांति मे गुल-गुल होमय लागल जे चोर पकरा गेल. आब कन्यागत कि बजताह ?? मोहम्मद सगीर ' मोर्चे पर धराएल !!! एकगोट प्रौढ़ बरियाती के उत्तेजना आब सहल नहि गेल. तमकि के हमरा दिस उठलाह कहलाह इहे अछि मुसलमान ! पहिने ता सभ भौचक्क फेर एकगोट समवेत ठहक्का…. !! सब सरियाती किछु बरियाती जे हम्मर वास्तविकता से भिज्ञ छलथि हँसैत-हँसैत दोबर होमय लगलाह ! हा..हा...हा....हा..... !!!! बाबा के जेखन हम्मर वास्तविकता ज्ञात भेल ता बेचारेक संघ मे अप्पन दाढ़ी खजुआबए के सिवा दोसर कोनो चारा नहि छलैन्ह. आइयो हमरा घटना स्मरण कए कखनो हंसी ता कखनो अप्पन शैतानी पर क्षोभ सेहो होएत अछि. एक बेर कुंदन जी हम्मर गप्प सुनि एकरा लिपिबद्ध करबाक प्रेरणा देलथि. कतेक आलास प्रयास के बाद घटना अहाँ लोकनिक समक्ष प्रस्तुत अछि. नहि जानि एहि मे किछु साहित्यिक वा सामाजिक तत्व समाहित अछि कि नहि मुदा आब अहाँ लोकनि कहू जे केहन लागल मोहम्मद सगीरक गप्प ???



-करण समस्तीपुरी

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...