जिन्दगी

जिन्दगी एहिना छूटैत जायत अछि
जेना बान्हल मुठ्ठी सँ रेत
जेना निकलल रही कोनो यात्रा पर
आओर छूटैत जायत अछि बाग, बगीचा, खेत
पल-प्रतिपल छूटि रहल अछि
जेना टुकली’क रंग हाथ में
सभ दिन दैत अछि नव रंग जिनगी केँ
किछु खुशी आ किछु दुख साथ में
प्रतिपल जेना होय एकटा नवका गीत
देखा रहल अछि हर क्षण कोनो नव स्वप्न
जिन्दगी किछु सिखाबैत अछि हमरा
कतेक किछु बतबैत अछि हमरा
फेर एना कियैक भेल
एतेक सभ किछु होयतहु
लागैत अछि किछु अधुरा जेकाँ
किछु अछि जे बुझितहु नहिं बुझि पाबैत छी
किछु अछि जे हम समझि नहिं पाबैत छी
सदिखन आस जेकाँ रहैत अछि
प्रश्न’क जेना नदी बहि रहल अछि
सभ बेर एहि ‘किछु’ पर आबिके अटकि जायत छी
प्रश्न’क जवाब ताकैत-ताकैत भटकि जायत छी
सदिखन मोन खाली-खाली लागैत अछि
जेना किछु भेटनाय बाँकी अछि
आब बाट तकैत छी एक घूँट सिनेह केँ
आ पिऔनिहार होय हमर अपने
जिन्दगी!

- सुश्री शिल्पा अग्रवाल

अनुवाद- कुन्दन कुमार मल्लिक

(नोट- इ रचना मूलतः हिन्दी में सुश्री शिल्पा अग्रवाल, रुडकी, उत्तराखण्ड, ई-मेल- shill_urmi_active@yahoo.co.in केँ द्वारा लिखल गेल अछि। हुनक अनुमति सँ एहिठाम ओकर मैथिली रुपान्तरण प्रस्तुत कय रहल छी। एहि रचना केँ मैथिली स्वरुप दय के लेल किछु परिवर्त्तन कयने छी जे मूल रचना में नहिं अछि। हमर इ प्रयास केहन लागल ओहिपर अपनेक सभहक टिप्पणी'क प्रतीक्षा रहत।)

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