नहि जानि केहेन ई भाषा अछि

कवि- श्री ज्ञान रँजन झा
University of Minnesota
Minneapolis, USA

श्री ज्ञान रँजन झा’क सम्प्रति मिनेसोटा विश्वविद्यालय, मिनियापोलिस, अमेरिका मे कम्प्यूटर विज्ञान’क पी०एच.डी’क छात्र छथि. २००६ मे IIIT Hyderabad बी.टेक केने छथि आ २००७ धरि हमरा सँग सोफ्टवेयर प्रयोगशाला, इन्फोसिस मे कनिष्ठ अनुसँधानकर्ता’क रुप मे हमरा सँग कार्य केने छथि. साहित्य क्षेत्र मे हिनका बहुत रुचि छन्हि. आ मधुशाला’क तर्ज पर एकटा सामान्तर मधुशाला’क रचना केने छथि. एकर अलावा बहुते कविता आ छन्द’क रचना केने छथि. मैथिली भाषा’क कहियो औपचारिक रुप सँ पढ़ाई नहि केने छथि मुदा हमरा सँ उधार लऽ केँ खट्टर काका’क तरँग डेढ़ दिन मे पढ़बाक रिकार्ड स्थापित केने छथि. हिनका कतेक रास बात’क लेल लिखबाक प्रेरणा एक सप्ताह पहिने देने छलहुँ आ अपन रचना काल्हि हमरा पठा देलैथि. कतेक रास बात’क फ्रेमवर्क मे श्री ज्ञान रँजन झा एकटा फिट कन्डिडेट छथि.
वास्तविक रुप सँ हिनकर अभिरुचि पेन्टिग मे सेहो छन्हि आ हमर किताब’क लेल मुख्य पृष्ठ’क डिजाइन हिनके स्केचिँग सँ भेल अछि.

--डा० पद्मनाभ मिश्र



कतओ बिहारी कतओ पहाड़ी
कहि कहि करै अछि उपहास सब नर नारी
बिल्कूल अपन आँङन मे हमरा नहि,
समता केर आशा अछि,
नहि जानि केहेन ई भाषा अछि।

प्रेम शुन्य अछि सबटा सम्बोधन,
राष्ट्र धर्म भऽ गेल आलोचन,
बिसरि गेल अछि पुरजन परिजन,
दऽ रहल के ई दिलाशा अछि,
नहि जानि केहेन ई भाषा अछि।

कखनहुँ वर्ण पर कखनहुँ वर्ग पर,
नित्य नव कलह केर रचना पर,
जनसाधारण के उकसा केँ,
प्रतिपल करैत तमाशा अछि,
नहि जानि केहेन ई भाषा अछि।

बिसरि गेल छी स्नेह देखाएब,
मिलिजुलि सँग खेलब खायब,
बरसि रहल अछि विष द्वेश चहुँदिस,
नहि अनुराग’क कोनो आशा अछि,
नहि जानि केहेन ई भाषा अछि।

देव कृपा अछि जे मुखबाणी,
ताहि सँ किएक करैछी मनमानी,
बाजब किएक नहि मधुर वचन हम,
इएह विचित्र जिज्ञासा अछि,
नहि जानि केहेन ई भाषा अछि।

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...