गोली-बन्दूक थोडे बुझैत छैक

- करण समस्तीपुरी

"छौंरी पतरकी गे........ गोरिया खेतबा के आरी.... काहे मारे गजब पिहकारी.... !!" गोर दक-दक भरल-पुरल शरीर, माथ पर जटा, हाथ मे डिबिया लेने आ तोतर आवाज मे इएह गीत के तान छोडैत घर से बथान पर जाएत जटा झा के प्रति पता नहि कोना हमरा मोन मे लगाव उत्पन्न भए गेल. जटा झा के वयस हमरा से इएह कोनो सात-आठ साल बेसी रहल होयतन्हि आ हुनक घर से बथानक बाट मे हम्मर घर एखनहु अवस्थित अछि. ओना त’ जटा झा के ई विशेषता छैन्ह जे ओ कखनो अप्पन मुंह बंद कए नहि चलैत छथि. भन्ने आवाज मे तोतर लागौक मुदा गीत के तान नहि मद्धिम होअ' देता. नित्य सांझ के दूर से आबैत जटा झा के छौंरी पतरकी.... के अलाप सुनैते हम अप्पन दलान पर चलि आबि आ आँखि से ओझर भेला उपरांतो हुनक सुर-लहरी ओही ठाम ठार भए सुनय के प्रयास करैत रहैत छलहुँ. धीरे धीरे समय बदलैत गेल, गीत बदलैत गेल मुदा जटा झा के अंदाज नहि बदलल. हाँ, हुनक माथक जटाक जगह कटिनगर केश लए लेलक, डिबियाक जगह हाथ मे लालटेन आबि गेल, गोरकी पतरकी के जगह गोरी है कलाइयाँ आ छत पे सोया था बहनोई आबि गेल मुदा जटा झाक ठेठी मे कोनो परिवर्तन नहि ! कालांतर मे वर्ग-प्रोन्नति परीक्षा मे बराबर फेल होएत-होएत जटा झा सतमा क्लास मे हम्मर सहपाठी बनि गेलथि. फेर त’ नियम सँ प्रातः दस बजे स्कूल जाए लेल बजाबो खातिर नित्य प्रति हमरा ओही ठाम आबि जाथि आ तेकर बाद दुन्नु गोटे साथे स्कूल जाई आ आबि ! स्कूलक परीक्षा मे जटा झा केँ हम्मर कॉपी देखि क’ लिखय के पूर्ण छूट छलन्हिये, अप्पन प्रश्न-पत्र के निपटा हम स्वयं अप्पन हाथ सँ सेहो हुनक कॉपी मे लिखी दियैक. तैं जटा झा सतमा सँ ल’ क’ नवमा क्लास धरि बेरोक-टोक पास होएत चलि गेलाह. शिक्षक-वृन्द सेहो जटा झाक सफलताक रहस्य सँ अनभिज्ञ नहि छलाह ! खैर पढाई लिखाई के गोली मारू आ सुनु एक गोट मजेदार गप्प !


बात अछि जखन हम सभ नवमा क्लास मे छलहुँ ! दशहरा मे गाम मे नाटकक आयोजन भेल छल. जटा झा ओरे सौं गीत-नाटक के अंध प्रेमी छलाह ! साओनक झूला मे मंदिर पर होमय वाला नाटक मे तेरहों राति जाइथ. राजा भरथरी स’ ल’ के सुल्ताना डाकू धरि कतेको नाटक के संवाद हुनका मुंह-जवानी रटल छलन्हि. आ जखन अप्पन तोतराह बोली मे ओ संवाद के भाव आ अभिनय के साथ बाजब शुरू भए जाथि त’ केहन सँ केहन गंभीर व्यक्ति के हंसी छुटी जाइक ! तखन दशमी मे नाटक के बात सुनि जटा झाक ख़ुशीक ठेकान नहि रहल. चट पता केलथि जे नाटकक आयोजक आ निर्देशक के छथि आ फट अप्पन अभिनय क्षमता के परिचय दए नाटक मे पाट प्राप्त करय के जोगार मे भीर गेलाह. निर्देशक महोदय सेहो सोचलाह कि जटा झा त' स्वयं जीवंत कॉमेडी छथि त' किए नहि कुनो सीन मे हिनक स्टेज पर चढा के दर्शक के गुदगुदैल जाय ! मुदा जटा झा के कहब जे बिना लिखल संवाद भेंटने हम अभिनय कोना करब ? से हुनका एक गोट कागज़ पर चारि लाइन लिख के देल गेल जे इएह थीक अहांक संवाद ! फेर जटा झा ओकरा मोन लगा के रटय लगलथि ! आ रोज राति मे ओकर रिहर्सल करए लेल ससमय निश्चित स्थान पर पहुँचि जाइथ. एहि तरहे नाटकक राति सेहो आबि गेल. आई जटा झाक जनम भरि सँ संचित अभिलाषा पूरय बला छलैन्ह. बेचारे सांझ मे भगवती के प्रणाम क’ अप्पन सफलता के कामना कय नाटक स्थल पर पहुँचि गेलाह ! झट द' एस्नो पावडर पोतवा के तैय्यारो भ' गेल्लाह. आब इंतिजार छलैन्ह त ओहि दृश्य के जाहि मे स्टेज पर हुनक एंट्री छलैन्ह. ओना जटा झा अप्पन प्रदर्शन के प्रति पूर्ण आश्वस्त छलाह. देखैत देखैत ओ दृश्य सेहो आबि गेल. डाकू सुरजन सिंह ओहि मार्ग स’ जाए बला सभ लोक के लुटी रहल छल. जे दिअ' मे आना-कानी कराए तेकरा खूब कए मारि रहल छल. टखने जटा झाक जोरदार एंट्री भेल.


डाकू सुरजन सिंह : अरे कौन है ? मालुम नहीं इस रास्ते से जो भी जाता है वो पहले सुरजन सिंह को चढाबा चढाता है !

जटा झा : अरे ! मारुम त' है ! मगर आपको मारुम नहीं कि हम त गरीब ब्रह्मण हूँ ! पूजता हूँ त' खाता हूँ नै त भुखरे सो जाता हूँ !!

डाकू : अरे बदजात ! सुरजन सिंह से जवान चलाता है ! चल जो भी है रख इधर !

जटा झा : भए हमरा पास त' एहे एगो पोथी आ एगो रोतकी (लोटकी) है. लो, अगर एहे र’ के आपका पेट भर जाए त' ख़ुशी से रे रो ! रेकिन याद रखो एगो गरीब बाभन का करपाना तुमको पड़ेगा !!

डाकू : अरे मुर्ख ! तुम्हारी आह तो मुझे बाद मे लगेगी ! ले पहले मेरी बन्दूक की आह संभाल !

एते कहि सुरजन सिंह अप्पन डाँर मे खोसल बन्दूक खींचि जटा झा पर तानि देलक.


बेचारे जटा झा लागलथि चिचिआबय. आ ले लूत्ती ! आब देखाला ना ताब फटाक स’ स्टेज सँ कुदि पडलथि. बेचारेक पैर माइक के तार मे ओझारयल आ झाजी अगिला पांतिक दर्शक सभक बीच मे धराम स’ खसलथि ! लोक सभ त’ हँसैत हँसैत पेट पकडि लेलक आ एम्हर जटा झा लोर-झोरे भरल लगलथि आयोजक आ निर्देशक कें गरियाबे ! लोक पुछलकन्हि जे एना किए केलियैक त' बेचारे कनैत-कनैत कहलाह जे देखलियैक नहि ओ बुरि डकुबा के केना फट द' बन्दूक तानि देरकै से .... ! ई त' जानि के हमरा अहाँ सभ फांसी पर चढेलहुँ ! एखन जौं स्टेज स’ कुदि के जान नहि बचाबितौंह त' सार गोरिये ने मारि देत रहे..... लोक सभ कहलकन्हि जे जाऊ पंडी जी, ई त ड्रामा ने छैक. मुदा जटा झाक तर्क सेहो कुनो कमजोर नहि छल. कहलाह जे ई त हम अहाँ ने बुझई छि़यैक जे ई ड्रामा छैक. जौं ओ सार डाकुबो ई बात बुझितैक तहन बन्दूक थोड़े निकालितई... आ कनेक देर ले मानि लेल जाऊ जे ओहो बुझि जेत्तैक जे ड्रामा छैक मुदा गोली बन्दूक बुझई छैक जे ई ड्रामा छैक ?? एखन जौं गोली छूटि जैतै तहन त' हम्मर प्राण गेल्ले छल....


हा..... हा....... हा ....... हा........... हा.........

जटा झा के ई जवाब पर तेहन ठहक्का बजरल जे नाटक मे मशगूल पात्र आ दर्शक सभ चौंक उठलाह ! लोक सभ हँसैत हँसैत कहे लागल कि जटा झा भारी बुरि छथि. मुदा हम आई सोचै छी जे गामक बुरिबक जटा झा के सेहो ई गप्प बुझल छलैन्ह जे गोली बन्दूक नाटक आ खेल नहि बुझैत छैक... काश ई बात आई देश, प्रान्त, भाषा जाति आ धरमक नाम पर खूनक होरी खेलय बला आतंकवादी आ अत्याचारी सेहो बुझैत जे गोली बन्दूक अप्पन पराया नहि बुझैत छैक तहन फेर बाते कि... काश ई बात जौं ई व्याभिचार के प्रश्रय दिअ' बला धर्म आ समाजक ठेकेदार तथाकथित नेता लोकनि बुझि जैतैथ तहन त' धरतीये स्वर्ग भए जाएत... मुदा ई सभ जटा झा जेकाँ बुरिबक थोड़े छैथ कि हिनका पता रहतन्हि जे गोली बन्दूक किछु नहि बुझैत छैक.......... आ पाठक लोकनि ! एक बात सुनि लिअ' ! ई गप्प पढ़ी अहाँ सभ हमरा पर गोली बन्दूक नहि तानब... किए त हम अहाँ बुझई छिईक मजाक मुदा गोली बन्दूक थोड़े बुझैत छैक !!

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...