जिजिविषा- सुभाष चन्द्र

जिजिविषा

यदि लागितै सही दाम,
त' क' लैतहुँ अपना केँ नीलाम,
हमर सर-सम्बन्धी अहाँ के अधिकार अछि,
खूब करु हमरा बदनाम,
हम खाली सोहारी के भूखल छी,
नहि चाही इज्जत, नहि चाही नाम,
पहिलुका प्रसंग नहि बताउ,
करय दिअ हमरा आराम,
तइयो, फेर हम नव शुरुआत करब,
बुझल अछि की हैत ओकर परिणाम,
फेर नहि आबै, एहि अँगना मे,
दर्दक टीस स' भरल कोनो सिसकी,
बिहाडिक तेज झोंका सेहो,
आबैत अछि गाछक काज,
एखन भले मझधार में छी,
मुदा लहरि पर लिखब अपन नाम।

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कवि- सुभाष चन्द्र, जन्म- 28 अप्रैल, 1980। पिता- श्री विघ्नेश झा, ग्राम- हरिपुर मझराही टोला, प्रखण्ड- कलुआही, जिला- मधुबनी (बिहार)। वर्ष 2003 मे ल. ना. मि. विश्वविद्यालय, दडिभंगा सँ हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठा। पिछला पाँच साल सँ पत्रकारिता क्षेत्र मे सक्रिय। एक गोट हिन्दी कहानी संग्रह "मुफ्त की चाय" प्रकाशनाधीन। सम्प्रति हिन्दी पाक्षिक पत्रिका "प्रथम इम्पैक्ट", नई दिल्ली मे कार्यरत। सम्पर्क मोबाइल सँ- +91-98718 46705 आ इ-मेल
subhashinmedia @gmail.com




साजिश
अहाँ संग जे दूरी छल,
ओ हमर मजबूरी छल,
आँखि फूजल रहल मरला पर,
इच्छा एकटा अधूरा छल,
अहाँ हमर बात नहि मानल,
जे सभ सँ जरुरी छल,
सूरज डूबल तहन,
जहन साँझ मे देरी छल,
जिनगीक नाव डूबेबाक,
त' हुनक पुरा तैयारी छल।

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