स्टेशन पर’क हरियर दुबि आ लाल गुलमोहर

लेखक-आदि यायावर
(१)
रेखा केँ नइँ जानि किएक मोन भऽ गेलनि जे स्टेशन पर जा केँ कनि काल’क लेल बैसल जाए. किछुए दिन’क गप्प अछि फेर तेँ ओ एहि स्टेशन केँ छोड़ि के चलि जेतीह, आ तकर बाद फेर सँ एतय एबाक कोनो प्रयोजन नहिँ. पछिला तीन साल ओ कोन तरहेँ काटने छलीह से वैह टा जानैत छथि. सरकारी क्वाटर सँ स्टेशन पहुँचबा मे मात्र तीन मिनट’क समय लागैत छलनि. घरे पर बैसि ओ की कऽ सकैत छलीह. बहुत सँ बहुत टी.वी. आन कऽ केँ ओ कोनो सिरीयल’क रीपीट टेलीकास्ट देखि सकैत छलीह. टीवीयो देखबा मे आब कोनो मोन नइँ लागैत छलनि. जल्दी सँ एहि नरक सँ छुटकारा भेटनि तऽ जा केँ गंगा नहा लेतीह.
नरायनपूर-मुरली स्टेशन. बहुत दिन पहिने सरकार नरायनपूर आ मुरली दुनू गाम केँ खुश करबाक क्रम मे एकर नाम नरायनपूर मुरली स्टेशन राखि देने छल. एहि स्टेशन पर एक दिस सँ मात्र तीन टा ट्रेन आबैत छल, तेँ कुल मिला केँ दिन भरि मे मात्र छओ टा ट्रेन’क आवाजाही छल. सलवार सूट केँ फेरि साड़ी पहिर बिना कोनो मेक-अप केने ओ स्टेशन पहुँचि गेलीह.

रेलवे स्टेशन हमर हृदय’क करीब रहल अछि. बचपन मे लागैत छल जे छोटा बाबु दुनियाँ सबसँ पैघ आफिसर होइत छैक. बचपन मे इच्छा छल जे पैघ भऽ केँ ट्रेन’क गार्ड बनब, जिनकर ईशारा सँ हजारो टन वाला ट्रेन अपने चलि दैत छैक. कतेको बेर हम सुपौल जिला’क अन्तर्गत सरायगढ़ रेलवे स्टेशन पर गुलमोहर’क गाछ निहारि चुकल छी. प्रस्तुत कथा, बचपन मे स्टेशन पर पसरल प्राकृतिक छटा सँ उत्पन्न प्रेम’क प्रतिक्रिया मात्र थीक. आशा अछि २०१० मे लिखल पहिल कथा केँ दर्शक लेखक पसन्द करताह.



स्टेशन ओहि लगपास’क सब सँ सुन्दर स्थान छल. रेखा केँ दूरहि सँ स्टेशन’क बाउन्ड्री’क कतार मे गुलमोहर’क गाछ देखा पड़लनि. लाल लाल फूल सँ आच्छादित पचासो टा गाछ एहि वीरान स्टेशन केँ आवश्यकता सँ बेसी मनोरम बना रहल छल. लग एला पर कोयली आ कौआ दुनू’क अवाज सुना पड़लनि. साँझ होमय वाला छल आ दोसर चिड़ै चुनमुनी जे ओहि सबटा गुलमोहर’क गाछ मे अपन खोता लगने छल अपन अपन खोता मे वापस आबि रहल छल. चिड़ै चुनमुनी’क कोलाहल सँ लागि रहल छल जे ओ अपन-अपन खोता केँ बिसरि गेल अछि आ "ई हमर" तऽ "ओ हमर" कहबाक क्रम मे वाद विवाद कऽ रहल अछि. बीच बीच मे कोयली’क कूक बाँकी कोलाहल केँ दबा दैत छल. लगभग तीस फीट चाकर प्लेटफार्म’क आधा भाग सीमेन्ट’क आ दोसर आधा दस फीट हरियर हरियर दुबि सँ भरल छल. दुबि वाला भाग मे किछु किछु दुरि हँटि हँटि केँ लकड़ी’क बेन्च छल. ट्रेन एबा मे एखन एक घँटा छल आ सबटा बेन्च बिल्कूल वीरान छल. मुख्य स्टेशन परिसर’क लऽग मे एकटा चाह’क आ दू टा पान’क दोकान छल. चाह’क दोकानदार अपन कोयला वाला चुल्हा केँ दोकान’क आगू मे राखि आगि पजारि रहल छल. एहि सँ निकलल धुआँ स्टेशन परिसर’क प्राकृतिक सुन्दरता’क लेल उपयुक्त नइँ छल. मुदा एक छोर पर ठाढ़ भेल रेखा जखन अपन नजरि एक किलोमीटर नम्हर प्लेटफार्म पर देलथिन्ह तँ मुँह सँ हठाते निकलि गेलनि, "अद्भूत, विहँगम, अतिसुन्दर". रेखा बी.ए. पास केने रहथि आ साहित्य मे आनर्स. साहित्य आ कला’क प्रेमी रहैथ. अद्भूत आ विहँगम शब्द हुनकर साहित्य प्रेम केँ उजागर करैत छलनि. साहित्य प्रेमी केँ प्राकृतिक सुन्दरता सँ बेसी आओर की चाही.
प्लेटफार्म पार कऽ केँ ओ प्रतीक्षा कक्ष गेलथि. ओतय मात्र तीन टा यात्री बाट ताकि रहल छल. दोसर दिस टिकट काउन्टर छल जाहि पर लिखल छल, "यह खिड़की ट्रेन आने के एक घँटा पहले खुलती है और पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". बहुत देर धरि ओ सोचैत रहलीह जे ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने टिकट खिड़की किएक बन्द भऽ जैत छैक. पुनः याद एलनि जे स्टेशन पर मात्र चारि टा कर्मचारी नियमित रुप सँ कार्य करैत छैक. स्टेशन मास्टर यानी बड़ा बाबु जक्शन पर रहैत छैक आ सप्ताह मे मात्र दुइ दिनक लेल एहि स्टेशन पर आबैत छैक. रेखा’क पतिदेव रमेश जे असिस्टेन्ट स्टेशन मास्टर’क (मतलब छोटा बाबु) पद पर तैनात छलाह नियमित रुप सँ क्न्ट्रोल रुम, बुकिन्ग काउन्टर, आ सिगनल’क जिम्मेदारी सम्हारैत रहैत छलाह. आ बाँकी एकटा खलासी आ एकटा चपरासी. छोटा बाबु’क जिम्मेदारी बहुते महत्वपूर्ण छल. दोसर कर्मचारी नइँ रहबाक कारणेँ ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने खिड़की बन्द कऽ केँ ओ सिगनल डाउन करबाक लेल चलि जैत छलाह.
रेखा’क पति रमेश बहुत दिन सँ कहैत छलनि जे भोर साँझ केँ स्टेशन पर आबि जेबाक लेल. एतेक सुन्दर आ मनोरम स्थान दोसर ठाम नइँ भेट सकैत छलनि. स्थान ठीके बहुत मनोरम छल. भोर आ साँझ केँ प्राकृतिक सुन्दरता कनि आओर बेसी बढ़ि जैत छल. नइँयोँ जानि बुझि के, मुदा दिमागक एक कोनटी मे हुनका ई गप्प बैसल छलनि जे स्टेशन सन दिब्य स्थान पूरे ईलाका मे नइँ. टिकट काउन्टर फुजि गेल छल. वेटिँग रुम’क एक छोर सँ रेखा केँ खिड़की’क दोसर कात अपन पति’क व्यस्त मुँह देखा पड़ि रहल छलनि. किछुए काल मे लोक’क आवाजाही बढ़ि गेल. टिकट काउन्टर पर लाइन लागि गेल. रेखा वेटिँग रुम’क सार्वजनिक बेन्च पर बैसि अपन अतीत’क बारे मे सोचय लागलीह.

(२)

रेखा एक मध्यमवर्गीय मुदा प्रगतिशील परिवार सँ छलीह. हुनकर बाबुजी एक साधारण किरानी’क नौकरी सँ अपन मेहनत आ अपन मेधा’क बुता सँ आई केन्द्रीय सँस्थान मे आफिसर पद पर तैनात छलाह. बहुत कमे होइत छैक जे परिवारिक जीवन यापन करैत लोक अपन पढ़ाई लिखाई आगु जारी राखैत छैक. मुदा ओ डीग्री लैत गेलाह आ आई किरानी सँ आफिसर बनि गेलाह. दू टा बेटी छलनि आ एकटा बेटा. अपने गाम’क सरकारी स्कूल मे पढ़ने छलाह मुदा धिया पूता केँ कोनवेन्ट स्कूल मे अन्ग्रेजी मीडियम सँ पढेलाह. बेटी सब बेटा सँ बेसीए तेज छलनि.
समय बीतला पर जखन रेखा ग्रैजुएशन कऽ लेलीह तऽ हुनका रेखा’क विवाह’क चिन्ता सतबे लागलनि. रेखा सुन्दर, सुशील, गृह कार्य मे दक्ष, आ कान्वेन्ट एजुकेटेड छलीह. आधुनिक समाज मे एक योग्य कन्या’क सबटा गुण नेने. रेखा अपन विवाह’क पुरा जिम्मेदारी अपन बाबुजी पर सौँपि देने छलीह. हुनका विश्वाश छलनि जे ओ जे करताह से नीके.
रेखा केँ अपन बाबुजी’क केवल एकेटा चीज पसन्द नइँ छलनि. हुनकर बाबुजी चहैत छलथिन जे वर सरकारी नौकरी करए वाला होमय. रेखा’क मोन छलनि जे लड़का प्राइवेट नौकरी करए वाला आ मेट्रोपोलिटन सिटी मे स्थापित होएबाक चाही. जतय हुनकर बाबुजी सरकारी नौकरी केँ स्थाई, पेन्शन देमए वाला, मेडिकल आ अन्य अनगिनत सुविधा देबय वाला आ बिना कोनो छुट्टी’क समस्या वाला बुझैत रहथिन, प्राईवेट नौकरी केँ ओ अस्थाई, आवश्यकता सँ बेसी मेहनत’क डिमान्ड वाला, दरमाहा’क अतिरिक्त कोनो अन्य सुविधा नइँ देबय वाला, कखनहुँ निकालि देबय वाला, आ सबसँ बेसी अप्रतिष्ठित लागैत छलनि.
एक दिन रेखा आ हुनकर बाबुजी मे सरकारी आ प्राईवेट नौकरी मुद्दा पर बहस भऽ गेल छलनि. रेखा कहने छलथिन, "प्राइवेट नौकरी मेहनत करए वाला’क लेल अछि, सरकारी नौकरी कामचोर’क लेल. प्राइवेट नौकरी मेधावी लोक के दिन दुना राति चौगूना हिसाब सँ आगू बढ़बैत छैक. अन्त मे प्राईवेट कम्पनी मे काज करए वाला लोक स्मार्ट आ सरकारी नौकरी करए वाला अन-स्मार्ट होइत छैक".
हुनकर बाबुजी’क जवाब छलनि, "सरकारी नौकरी बिना सँघर्ष केने नइँ भेटैत छैक. बहुत मेहनत आ लगन चाही. जे लोक मेहनत नइँ करय चाहैत छथि ओ प्राइवेट दिस चलि जैत छथि. तेँ असल कामचोर तऽ प्राइवेटे वाला होइत छैक..."
रेखा’क जवाब छलनि, "सरकारी नौकरी करए वाला एगारह बजे आफिस आबैत छैक, ठीक पाँच बजे फेर वापस. भगवान मनुष्य केँ काज करबाक लेल बनौने छैक. काज करबाक मतलब होइत छैक चलैत रहब. रुकि गेनाइ बुझु मृत्युक प्रतीक. नीको लोक सरकारी नौकरी मे एलाक बाद ओहने भऽ जाइत छैक. एहेन लोक आलसी आ समाज आ देश’क प्रगति मे बाधक होइत छैक. आ एखन धरि हम सरकारी नौकरी मे अनैतिक काज भ्रष्टाचार’क गप्प नइँ केने छलहुँ."
दुनू लोकनि अपन अपन जगह ठीक. आम आ लताम मे कोन नीक आ कोन खराप से व्यक्ति विशेष पर निर्भर करैत छैक. आमक अपन महत्व मुदा एकर मतलब कथमपि नइँ जे लताम खराप फल छैक. दोसर गप्प जे रेखा’क बाबुजी, "रेखा’क गप्प" सँ सहमति छलाह. मुदा समाजे एहेन छल जे सरकारी नौकरी केँ बेसी महत्व दैत छल. रेखा’क गप्प हुनका नीक लागनि मुदा ओ कहियो मोन नइँ बना सकलाह जे रेखा’क विवाह एक प्राईवेट नौकरी करए वाला व्यक्ति सँ कऽ देल जाए.
रेखा पढ़ल लिखल आधूनिक कन्या छलीह. ओ एहेन समाज मे रहैत छलीह जतय लड़की’क जीवन सँगी हरदमे हुनकर माँ बाप’क पसन्द सँ होइत छलैक. ओ अपन बाबुजी केँ आदर्श मानैत छलीह आ हुनका सँ बहुत प्रेम करैत छलीह. प्रेम एक मजबुरी’क नाम सेहो थीक. ओ अपन बाबुजी सँ एतेक प्रेम करैत छलीह जे अपन जीवन सँगी केहेन हो तकर फैसला अपना पर नहि मुदा अपन बाबुजी पर छोड़ि देने छलीह.
किछु समय’क बाद रेखा’क विवाह हाजीपूर मे पदस्थापित, एम.एस.सी. फर्स्ट क्लास मे पास, रेलवे मे असिस्टेन्ट स्टेशनमास्टर पद पर कार्यरत रमेश सँ भऽ गेलनि.
विवाहोपरान्त, रमेश’क क्वालिफिकेशन हुनका नीक लागलनि. व्यक्त्वि सँ प्रभावित से छलीह. सब किछु नीक लागलनि, मुदा एकटा गप्प हरदम खटकैत रहलनि. हुनका सरकारी नौकरी पसन्द नइँ छलनि. दोसर गप्प जे रमेश’क मेधावी कैरियर देखि, आ मेहनत करबाक ऊहि देखि, हुनका होइत छलनि जे यदि ओ कोनो सोफ्टवेयर कम्पनी मे नौकरी करतथि तऽ हुनकर तरक्की खुब भेल रहतनि. कोनो भाजेँ मोन मारि केँ ओ जीवन यापन करैत छलीह. मुदा तखन तऽ हद भऽ गेलनि जखन रमेश’क ट्रान्सफर एकटा गाम घरक छोटका स्टेशन नरयणपूर-मुरली मे भऽ गेलनि.
रेखा’क सँगी लोकनिक विवाह बँगलोर’क सोफ्टवेयर इन्जीनियर, तऽ पुणे’क बहुराष्ट्रीय कम्पनी मे काज करय वाला लड़का सँ भेल छल. हाजीपूर धरि ठीक छल, मुदा नारायणपूर मुरली मे "छोटा बाबुक" पद हुनकर कोनो दुखःद स्वपनो मे नइँ आयल छलनि.

(३)
नरायणपूर आ मुरली दू अलग अलग गाम छल. दुनू गाम’क अलग पँचायत, अलग मुखिया आ अलगे व्यवस्था, मुदा एकेटा रेलवे स्टेशन. दुनू गाम मे मिडिल स्कूल केँ छोड़ि बाँकी कोनो सरकारी आफिस नइँ. दुनू गाम मे रमेश जे एम.एस.सी. प्रथम श्रेणी सँ पास छलाह, हुनका सँ बेसी किओ पढ़ल लिखल नइँ. कोनो भी लोक’क तीन दृष्टि सँ सम्मान भेटैत छैक. पहिल जे ओ लोक केहेन छथि, हुनकर व्यक्तित्व केहेन छनि. दोसर ओ कतेक पढ़ल लिखल व्यक्ति छथि. तेसर जे ओ कोन पद पर काज करैत छथि. दुनू गाम मिला केँ रमेश सँ बेसी नइँ तऽ किओ पढ़ले लिखल छल, नइँयेँ हुनका सन किनको व्यक्तित्वे छलनि आ दुनू गाम’क एक मात्र सरकारी आफिस (रेलवे स्टेशन) मे ओ सर्वोच्च पद पर कार्य कऽ रहल छलाह. तेँ दुनू गाम’क लोक हुनकर एत्तेक सम्मान करैत छलनि जे दोसर ठाम रमेश सोचियो नइँ सकैत छलाह. गाम मे कोनो भोज’क आयोजन हो, रमेश केँ पहिल निमन्त्रण पड़ैत रहनि. भगवानो’क पूजा’क मुख्य अतिथि वैह रहैत छलाह. गाम घर मे कोनो परिवारिक झगड़ा भऽ गेल हो तऽ रमेश’क फैसला सर्वमान्य रहैत छल. किनको अपन धिया-पूता’क कैरियर सम्बन्धी सलाह मशविरा’क लेबाक हो रमेश लऽग लोक हाजिर भऽ जैत छलनि.
रमेश एत्तेक सम्मान’क उम्मीद नइँ करैत छलाह. गाम’क लोक मे आपस मे इर्ष्या द्वेष बहुत सामान्य गप्प छल. मुदा रमेश’क के देल गेल ओ एहेन सम्मान छल जे दबाव मे नइँ मुदा प्राकृतिक रुप सँ लोक’क बिल्कुल हृदय सँ निकलल सम्मान छल. इर्ष्या इर्ष्या केँ जन्म दैत छैक, द्वेष सँ द्वेष बढ़ैत छैक, आ एक प्रेम, दोसर प्रेम केँ बढ़बैत छैक. गाम’क लोक सँ भेटल प्रेम सँ रमेश भाव विह्वल भऽ जाइत छलाह. ओ वैह उत्साह सँ जवाब दैत छलथिन. जहिना लोक हिनका सँ प्रेम करैत छलनि, इहो दोसर लोक सँ ओहिना प्रेम करय लागलथिन. किछु परिवार’क तऽ अभिन्न अँग बनि गेल छलाह. कखनो कखनो सोचैत छलाह जे लोक पाइ किएक कमाबैत छैक? अपन आ अपन परिवार’क लालन पालन लेल, अपन मोन’क सँतुष्टि’क लेल. एहि सरकारी नौकरी मे हुनका एत्तेक दरमाहा भेट जैत छलनि जाहि सँ ओ अपन परिवार’क जिम्मेदारी आ अपन भविष्य केँ सुरक्षित कऽ सकैत छलाह. नरायनपुर मुरली मे खर्चे की होएत छैक. खेबा पीबा’क बाद मे सबटा पैसा बचिए जैत छैक. तरकारी तीमन तऽ गाम’क लोक एत्तेक दऽ दैत छलनि जे आई धरि कहियो कीनबाक काजे नइँ पड़लनि. दुध दही एत्तेक सस्ता आ शुद्ध. एक लोक’क काज पड़ला पर दस लोक बिना कहने उपस्थित भऽ जैत छलनि. मोन मे होइत छलनि जे ओ धन्य छथि जे हुनकर ट्रान्सफर एहि गाम’क रेलवे स्टेशन पर भऽ गेलनि.
मुदा हुनकर पत्नी रेखा’क अलगे सोच छलनि. हुनकर सँगी सहेली सब पैघ शहर मे स्थापित छल. कहियो कहियो हुनका लोकनि’क फोन आबैत छलनि. बँगलोर आ पुणे’क गप्प सुनि केँ ओ हतोत्साहित भऽ जैत छलथिन. सोचैत छलथिन, हुनकर उम्रे कतेक भेल छनि. पचीस वर्ष मे तीन महिना कमे. ओ सोचैत रहथिन, जे ई यैह उम्र थीक जाहि मे लोक शौपिँग माल घुमैयऽ, जाहि मे लोक मल्टिप्लेक्स मे सिनेमा देखैय’, साँझ मे हाथ मे हाथ दऽ सड़क पर घुमैय’, रेस्टौरेन्ट मे खाना खैय’, कोनो काफी’क दोकान पर बैसि, एक कौफी केँ डेढ़ घँटा मे पीबैय’. जाहि उम्र मे लोक नवविवाहित जीवन’क उत्साह’क चरमोत्कर्ष पर रहैत छैक ओहि मे गाम’क झगड़ा’क निपटारा मैँयाँ जेकाँ करैत छैथ. एहेन उम्र जाहि मे प्रति-पल बदलैत महानगर’क मायावी बदलाव’क गवाह बनैत छथि, ओहि उम्र मे ओ गाम’क गोहाली सँ निकलल धुआँ सँ तृप्त होइत छथि. ओ अपना आप केँ जहिया कहियो अपन सखी-सहेली लोकनि सँ तुलना करैत छलथिन मोन अवसादित भऽ जैत छलनि.

(४)

रमेश केँ देखबा मे आएल जे सदिखन उत्साहित रहय वाली रेखा क्रमशः उदास रहय लागलीह. पहिने तऽ ओ रमेश केँ अपन ट्रान्स्फर’क लेल चरियाबैत रहैत छलीह, मुदा बाद मे ओ कहनायो छोड़ि देलथिन. रमेश केँ गाम’क लोक सँ बहुत प्रेम भेटलनि, मुदा जाहि प्रेम’क आशा नइँ अपितु जरुरत रहनि ओ प्रेम दिनानुदिन कम होइत गेलनि. जखन बाँकी कोनो समाधान नइँ भेटलनि तऽ ओ एक दिन रेखा केँ आश्वासन देलथिन जे ट्रान्सफर करबाक लेल यथासम्भव प्रयास करताह.
दुनियाँ मे कोनो एहेन चीज नइँ, जे प्रयत्न केला सँ सम्भव नइँ हो. कनि भाग-दौड़ आ किछु पैसा खर्चा भेलाक बाद रमेश’क ट्रान्सफर’क आर्डर आबि गेलनि. हुनकर नव पोस्टिँग कलकत्ता मे भेलनि. रेखा’क हेराएल खुशी पुनः वापस आबि गेलनि. रेखा के भेलनि जे नइँ बँगलोर आ पुणे तऽ कम सँ कम कलकत्ता तऽ एहि नरायनपूर-मुरली सँ नीके होएत. कलकत्ता’क नाम तऽ महानगरे मे आबैत छैक. बल्कि किछु प्रसँग मे कलकत्ता बँगलोर सँ नीके. जतय महानगर’क प्रत्येक अवयव कलकत्ता मे उपस्थित छैक ओ बँगलोर सन महग नइँ छैक. वैह शौपिँग माल, वैह मल्टिप्लेक्स, मेट्रो ट्रेन, विक्टिरिया पैलेस, एसप्लैनेड’क मारकेट आ चौबीस घँटा चहल पहल. ट्रान्सफर’क आर्डर सुनि हुनकर मोन रोमान्चित भऽ गेलनि.
रेखा आब सामन्य रहय लागलीह. रमेश’क देख-भाल नीक सँ करय लागलीह. हुनका कखनहुँ कखनहुँ मोन मे कचोट होएत छलनि जे हुनके खातिर रमेश केँ एतेक फेरा लागि गेल छनि. नइँ तऽ ओ कतेक बढ़ियाँ सँ एडजस्ट भऽ गेल छलैथ. मोने मोन ओ रमेश केँ आओर बेसी प्रेम करए लागलीह. रमेश’क कोनो बात काटैक हुनका हिम्मत नइँ होएत छलनि.
एहि प्रत्येक बदलाव केँ रमेश मोने मोन अनुभव कऽ रहल छलाह. हुनको नीक लागैत छलनि. मुदा महानगर’क बात सोचि ओ डरा जैत छलाह. एतय एक लोक’क जरुरत भेला पर एक दर्जन लोक उपस्थित रहैत छल. कलकत्ता मे दिन भरि रेखा एकसरि बैसल रहतीह. किओ अप्पन लोक बात करबाक लेल नइँ भेटतनि. तबीयत केहनो रहनि काज करैये पड़तनि. एहि गाम मे छोटा बाबु सन क्लर्कियल नौकरी कैरतो हुनकर एत्तेक इज्जत रहैत छलनि जे कलकत्ता मे पैघ सँ पैघ आफिसर केँ नइँ भेट सकैत छल. एतय प्रत्येक पावनि त्योहार केँ रेखा आ रमेश बहुत नीक सँ मनबैत छलैथ. गाम पर किनको घर मे भगवानो’क पुजा बिना हिनका लोकनि’क उपस्थिति’क सम्पन्न नइँ होएत छलनि. ओतय करोड़ो लोकक बीच मे ओ लोकनि बिल्कुल हेराएल रहताह. रमेश जतेक सोचैत छलथिन हुनका ओतेक डर लागैत छलनि. हुनका एक्के टा चीज मोन केँ प्रसन्न करैत छलनि, रेखा’क अति उत्साहित सुन्दर आ दिव्य मुखमण्डल. विवाहित जीवन एक अघोषित समझौता’क नाम थीक, हुनका आब नीक सँ बुझि मे आबि रहल छलनि.

(५)
रेखा वेटिँग रूम’क कोनटी वाला बेन्च पर बैसल ई सब गप्प सोचि रहल छलीह. गाड़ी आबए मे मात्र पाँच मिनट छल. रेखा केँ देखा पड़लनि जे रमेश टिकट वाला खिड़की केँ बन्द कऽ चुकल छलाह. रेखा’क ध्यान फेर सँ ओहि खिड़की’क उपर मे लिखल लाईन पर चलि गेलनि, "यह खिड़की गाड़ी आने के एक घँटे पहले खुलती है और गाड़ी आने के पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". ओ देखि रहल छलीह जे सिगनल’क चाभी लऽ रमेश स्टेशन परिसर सँ निकलि चुकल छलाह. यात्रीगण सब प्लेटफार्म पर ट्रेन’क बाट ताकि रहल छल. सबक किओ रमेश दिस आशा’क नजरि सँ देखि रहल छल, मानु रमेश’क हाथ मे सिगनल देबा’क चाभी नइँ, अपितु समुचा ट्रेन’क चाभी हो, जेना ट्रेन रमेश’क ईशारा पर चलैत हो.
किछुए देर मे रमेश सिगनल दऽ केँ लाल-हरियर रँग’क लालटेन लऽ केँ ठाढ़ छलाह. छोट स्टेशन’क इएह नीक गप्प. छोटा बाबु सर्वे सर्वा. टिकट काटबा’क हुनके जिम्मेदारी, सिगनल डाउन करबाक हुनके जिम्मेदारी, आ लाल हरियर झँडा आ लालटेन देखेबाक हुनके जिम्मेदारी. बेसी जिम्मेदारी निर्वाह केला सँ बेसी सम्मान भेटैत छैक. यैह कारण छल जे मुरली-नारायणपूर दुनू गाम’क लोक अपन स्टेशन पर’क छोटा बाबु केँ बहुत सम्मान करैत छलनि.
ट्रेन आबि चुकल छल. पान वाला’क दोकान’क आगू मे राखल कोयला’क चुल्हा सँ धुआँ निकलनाई बन्द भऽ गेल छल. ओहि चुल्हा सँ आगि दह-दह कऽ केँ जरि रहल छल. चाय बेचय वाला छोटू जोर जोर सँ चीकरि रहल छल, चाय, चाय, चाय. झाल मुरही वाला ट्रेन सँ निकलि प्लेटफार्म पर आवाज लगा रहल छल, "बारह मासाला तेरह स्वाद, झाल मुरही की है अनोखी बात". रेखा देखलनि ट्रेन सीटी दऽ रहल छल आ स्टेशन सँ नहुँए नहुएँ ससरि रहल छल. जे यात्री उतरि चुकल छल ओ बारी बारी सँ रमेश केँ "प्रणाम छोटा बाबु!" कहि क्रमशः बाहर जा रहल छल. ओहि मे सँ एकटा आदमी रमेश सँ बात करय लागल. हुनका देखि किछु आओर लोक रुकि गेल. किछुए देर’क बाद ओतय दस बारह लोक’क जमघट लागि गेल. सब किओ मिलि रमेश केँ गोला बना केँ घेरि नेने छल. रेखा दुरहिँ सँ लोक सभ’क बात सुनबाक कोशिश कऽ रहल छलीह.
ओहि मे सँ एक आदमी बाजि रहल छल, "ई कोना भऽ सकैत छैक, लागैत अछि किओ अहाँ के "किछु" कहि देलक अछि, हमरा एक बेर नाम बताऊ, अहाँ के अनुचित कहए वाला केँ थूक फेकि केँ चाटय पड़तनि". दोसर लोक कहैत छलनि, "जे यदि हमरा सँ कोनो गलती भऽ गेल होमय तऽ कहु". तेसर लोक कहैत छलनि जे "मेम साहेब केँ कोनो दिक्कत भेल हो त कहल जाए, हम सब मिलि केँ समस्या’क समाधान कऽ देबनि". रमेश’क सब लोकनि केँ एक्केटा जवाब छल, "एतय रेखा’क तबीयत नीक नइँ रहि रहल छलनि तेँ हम ट्रान्स्फर करा रहल छी.

(६)

ई पहिल बेर छल जखन रमेश अपन ट्रान्सफर’क गप्प गाम’क लोक केँ कहने छलथिन. रेखा बाँकी लोक केँ रमेश सँ बात करैत देखि चुकल छलीह. ओ प्रत्येक लोक हुनकर ट्रान्सफर सँ आश्चर्यचकित छल. हुनका लोकनिक प्रतिक्रिया मे आग्रह कम आ अधिकार बेसी छल. रेखा केँ भेलनि जे ओ लोक एहेन मुँह बनौने छल जे रमेश हुनका लोकनि केँ पुछने बिना अपन ट्रान्सफर किएक करा लेलैथ. रेखा केँ खराप लागलनि. अपन जिद्द केँ सर्वथा उचित ठहराबे लागलथिन. मोन मे भेलनि जे देहात’क लोक असभ्य होइत छैक. कोनो भी दोसर लोक’क व्यक्तिगत जीवन मे टाँग अड़ेबाक आदत रहैत छैक.
रमेश रेखा’क मुड केँ निहारि चुकल छलाह. जखन बाँकी लोक सब चलि गेल, तखन रेखा’क मोन बहलेबाक’क लेल कहलथिन, "देखु ने गुलमोहर’क गाछ केहेन लागि रहल छैक, एक्को टा पात नइँ देखा रहल छैक, सगरे फुले-फुल, मुदा किछुए दिन’क बाद एहि मे पतझड़ आबि जायत. नइँ पाते रहत आ नइँए फुले".
"हाँ से ईहो गुलमोहर’क गाछ हमरे लोकनिक ट्रान्सफर बाट ताकि रहल छैक, अन्यथा आब तऽ पतझड़’क टाइम आबि गेल छैक", रेखा’क जवाब छलनि.
तपाक सँ रमेश कहल्थिन, "अहाँ मुड बहुत रोमान्टिक लागि रहल अछि".
"नइँ एहेन कोनो बात नइँ छैक. हम पछिला एक घँटा सँ प्लेटफार्म केँ निहारि रहल छलहुँ. प्लेटफार्म पर आधा भाग मे हरियर हरियर दुबि आ कात लागल अनगिनत गुलमोहर’क गाछ. ई हरियर आ लाल’क समावेश निष्ठूर-सँ-निष्ठूर लोक केँ कवि बना दऽ सकैयऽ", रेखा अपन बात केँ कतेको तरीका सँ साबित करबाक चेष्टा केलथिन.
रमेश’क हाजिर जवाब छल, "ई किलोमीटर धरि पसरल हरियर दुबि आ कात लागल गुलमोहर’क गाछ, आई कतेको दिन सँ छल, मुदा आई पहिल बेर अहाँ अनुभव केलहुँ, तेँ हम कहैत छी, आई अहाँ बहुते रोमान्टिक मुड मे छी"
रमेश देखलथिन जे रेखा लजा गेल छलथिन. गप्प एतहि नइँ रुकि जाए ताहि लेल कहलथिन, "रोमान्टिक’क मतलबे प्रकृति-प्रेम सेहो होइत छैक, अहाँक प्रकृति प्रेम हमरा नीक लागल"

(७)

गप्प करैत करैत रेखा आ रमेश घर गेलैथ. गाम’क लोक अपन अपन गाम. मुदा साँझे मे रमेश’क ट्रन्स्फर’क चर्चा आगि जेकाँ पसरि गेल. जे सुनए ओ दस लोक केँ आओर सुनाबैथ. सब किओ एक्के बात कहैत छलथिन "बहुतो छोटा बाबु एलैथ आ गेलैथ मुदा रमेश बाबु सन किओक नइँ. एहेन मिलनसार लोक भेटनाई मुश्किल. गाम मे एना रीति गेलैथ जेना एहि गाम’क लोक होइथि." सब किओ ई जरुर कहैथ जे "हुनका जरुर किओ किछु अनुचित कहि देलकनि वा किछु अनुचित कऽ देलकनि".
रमेश कोन कारण सँ ट्रान्सफर करा लेलैथ से भोर भेने धरि समुचा गाम मे चर्चा’क विषय बनि गेल. आरोप प्रत्यारोप’क अनगिनत दौर चलल. कोनो एहेन लोक नइँ बचल छल जिनका उपर मे आरोप नइँ लागल हो. पैघ परिवार मे एक दोसर केँ दोषी साबित करय लागल, पुरान दुश्मनी वाला दू परिवार एहि मौका केँ भजेबाक कोशिश करए लागल आ दुनू गाम’क छुटभैया नेता लोक दोसर गाम केँ दोषी बताबे लागल. स्त्रीगण लोकनि, "मेम साहेब केँ के की कहने छल" तकर लेखा जोखा लगाबय लागलीह. सब किओ अपन स्तर पर काज करैत छल, आ रमेश केँ एहि बात’क पूरा समाचार भेटि रहल छलनि.
गाम’क पढ़ल लिखल आ प्रगतिवादी नवयूवक आपस मे तय केलथिन जे रमेश सँ गाम’क दिस सँ माफी माँगि लेल जाए. लगभग एक दर्जन एहेन यूवक’क टोली स्टेशन पर जाकेँ रमेश सँ अधिकारिक रुप सँ माफी माँगलकनि. मुदा नवयूवक’क एहि टोली सँ पहिने सैकड़ो लोक माफी माँगि चुकल छल. दोसर किओ आओर रहितैक तऽ कोनो आओर बात, गाम मे पढ़ल लिखल यूवक’क बहुत मूल्य होइत छैक आ रमेश ओहि मूल्य केँ नीक जेकाँ चीन्हैत रहैथ. तेँ हठाते ओहि टोली केँ निराश करए नइँ चाहैत छलाह. बिना मामला केँ तुल देने कहि देलैथ जे ओ ट्रान्सफर रोकबाक दर्खाश्त दऽ देताह. ई बात सेहो दुनू गाम मे पसरि गेल. गाम’क सब लोक एहि बात पर हठाते विश्वास नइँ केलनि. समाज दू मत मे विभाजित भऽ गेल. किछु लोक’क मत छलनि जे रमेश कोनो बात सँ आहत छलाह तेँ ट्रान्सफर करा लेलैथ. दोसर लोकनिक मत छलनि जे रमेश आई धरि कहियो फुसि नइँ बाजल छथि, तेँ ट्रान्सफर रोकेबाक गप्प सत्य थीक.
विश्वास-अविश्वास, उम्मीद-निराशा, कचोट-उत्साह’क आपाधापी मे ओ दिन आबि गेल जहिया रमेश केँ हमेशा’क लेल ई दू-गाम’क बीच वाला स्टेशन छोड़ि केँ जेबाक छलनि. एगारह बजे’क गाड़ी सँ ओ पूरे समान आ पत्नी सँग विदा होएबाक लेल तैयार छलाह. गाम’क लोक एखनो दू मत मे विभाजित छल. किछु लोक एखनो धरि सोचैत छलाह जे रमेश रुकि जायत. ट्रान्सफर नइँ भेल छनि. एहेन सोच जाहि मे कल्पना’क उड़ान बेसी आ यथार्थक धरातल कम. कल्पना’क बाते अलग, कोनो बात’क कल्पना करबा मे मालगुजारी नइँ लागैत छैक..
कल्पना’क उड़ान जतेक नीक लागैत छैक ओतबी कष्टदायक यथार्थ’क धरातल होइत छैक. एखन यथार्थ ई छल जे एगारह बजे’क ट्रेन प्लेटफार्म पर आबि चुकल छल. रमेश आ राधा ट्रेन मे बैसि चुकल छलैथ. गाम’क एहेन लोक जे यथार्थता’ केँ पहिने स्वीकार कऽ नेने छलैथ, रमेश’क लेल किछु ने किछु आनने छल. जे बेसी काल धरि कल्पना सवारी करैत छलाह ओ दौड़ि के गाम गेलाह आ रमेश’क लेल किछु ने किछु उपहार आनि नेने छलाह. हरियर दुबि पर ठाढ़ गार्ड सीटी बजा देने छल. ट्रेन अपन सीटे बजेलक आ नहुएँ नहुएँ ससरे लागल. लोक सब एखनि धरि रमेश केँ पोटरी थम्हा रहल छलाह. रमेश चाहियो केँ किनको मना नइँ कऽ पाबैत छलाह. किओ अदौरी, किओ कुम्हरौरी, किओ अम्मट, किओ पौती किओ मौनी. जेहेन लोक तेहेन उपहार. दूर ठाढ़ किछु स्त्रीगण लोकनि आधा छिधा घोघ तऽर सँ नोर पोछैत छलथिन. रमेश’क आँखि डबडबा गेलनि. बगल मे बैसल रेखा हुनकर भीजल पीपनी देखि नेने छलीह. अपन दाहिना हाथ सँ हुनकर बामा मुट्ठी पकड़ि नेने छलीह.
रमेश देखलैथ जे रेखा’क मुँह पर आशा’क अनन्त किरण पसरल छल. हुनकर ललाट आई सबसँ बेसी दैदीप्यमान लागैत छल. मोन मे एक सँतुष्टि भेलनि जे अपना लेल नइँ तऽ कम सँ कम रेखा’क लेल खुश रहबाक चाही. आखिर ट्रान्सफरो तऽ हुनके लेल करौने छलथिन. ओ खुश भऽ गेलैथ, मुदा क्षणिक देर’क लेल. गाम’क हजार लोक’क देखभाल वाला जिन्दगी छोड़ि ओ कलकत्ता’क काटि खा जेबा वाला एकाकी जिन्दगी रमेश केँ पहिल बेर असुरक्षित लागय लागलनि. हरियर दुबि आ लाल गुलमोहर’क छटा पाछु छुटि चुकल छल. रेखा’क हाथ एखनो धरि हुनकर हाथ पर छलनि. प्रत्येक स्पर्श एक सँदेश नुकाएल रहैत छैक. रेखा’क स्पर्श मे आश्वासन आ कृतज्ञता’क सँदेश छल. ट्रेन नरायणपूर-मुरली’क सीमा सँ बाहर निकलि चुकल छल. रमेश एक बेर फेर सँ रेखा’क ललाट पर सँतुष्टिक भाव पढ़बाक भरिसक प्रयत्न करय लागलाह.

14 comments:

मनोज कुमार said...

बड नीक लागल।

करण समस्तीपुरी said...

लेखक अपन शैली मे अद्भुत विस्तान केने छथि. कथा मे मनोवैज्ञानिक चित्रण हिनक विशेषता छैन्ह ! एहि कथा मे फेर एक बेर स्त्री आ युवा मनोविज्ञानक सुग्राह्य चित्रण केने छथि. कथाक प्लाट किछु लम्बा भ' गेल छैन्ह मुदा सरस.... बिलकुल कटरीना कैफ जेना ! लेखक वर्णनात्मकताक मोह नहि सम्हारि सकलथि... मुदा वर्णन कतओ उबाऊ नहि अछि. मुद्रण दोष एहि रचना मे अपेक्षाकृत कम अछि मुदा अंत मे, "रमेश आ राधा ट्रेन मे बैसि चुकल छलैथ..." पढि हमरा त' भेल जे रमेश "रेखा" के छोरि "राधा" के हाथ पकरी लेलथि कि... ? फेर आगे पढला उत्तर बुझाएल कि ई "प्रिंटर्स डेविल" थीक.

यायावरजीक लेखनी निर्बाध चलैत रहैंह.... शुभकामना ! जेहने 'शार्ट स्टोरी" छल ओहने "शार्ट कमेन्ट" !! धन्यवाद !!!

Kumar Padmanabh said...

करण समस्तीपुरी’क टिप्पणी सँ धन्य भऽ गेलहुँ. धन्यवाद ओरकुटो केँ भेटबाक चाही जाहि कारण सँ हम हुनका सम्पर्क मे एलहुँ. केशव जी अहँ सँ हमरा बहुत किछु सीखबा’क मौका भेटय’. हमर कथा मे अहाँक ओएह योगदान अछि जेना भारतीय क्रिकेट मे कोच’क. कोच अदृश्य रहैथ छथि मुदा हुनकर योगदान कोनो भी खिलाड़ी सँ बेसी. अहाँक बिनु हम आई एतय धरि नहि पहुँचि सकतहुँ. आशा अछि भविष्य मे एहने स्नेह भेटैत रहत. अहाँक निम्न टिप्पणी नीक लागल :

"कथाक उपसंहार मे लेखक किछु संशयात्मक भए गेल छथि, जहिना रमेश कलकत्ता प्रवासक ल के... कि ओतय महानगरीय सुविधा मे रेखा प्रसन्न रहती कि महानागारक एकाकी जीवन काटि खाओत हुनका....! कथा आद्योपांत पढबा मे त' बड़ नीक लागैत अछि मुदा लेखक कहे कि चाहैत छथि से कनेक अस्पष्ट अछि.... अथवा कनेक बेसी शास्त्रीय भ' गेल अछि ! एना लागि रहल अछि जे कथाक एक अध्याय त' ख़तम भेल मुदा कथा एखन जारिए अछि ! कथाक अंत मे किछु सुदृढ़ सन्देश सेहो नहि भेंट रहल अछि.... सिबाए कि संसार परिवर्तनशील अछि आ व्यक्तिगत जिम्मेदारी प्रथम !"

Manish Mishra said...

Kahani "अद्भूत, विहँगम, अतिसुन्दर"

Padmnabh bhaiya pahine t hom ahank likhal comment k samrthan karait chhi,
Dosar karan Bhaiya mail k madhyam san kahane chhalaith Kahani - Kavita k sange comment seho padhbak lel, jahi san aantrik rupe bad kichhoo bhet rahal achhi.

aagrah je ahina appan sahity k bhavna k prakat k k gulmohar phool san kahani padh bak maika di.

ZEAL said...

wow !..Gajab likha hai !

पूनम श्रीवास्तव said...

keshav ji ,aapka aalekh padha,lekin
imaandaari se khain to kuchh samajh me aail kuchh na samajh painee.aage thoda hindi me bhi likhih t padhe me
tani aasani rahi.
poonam

सञ्जय झा said...

JAI HO....VERY GOOD.
WILL BE CONTINUE

prakash said...

katha me dwandak chritan nik lagal. gam me ekno bhrat ke atma basait achai. muda khata ke kichu aga bha ka samapta hobak chahi. kalkatta prawas ke warna rahatai ta nik hoitai. ona dhanyawad . nik prayas

Shabad shabad said...

यह कौन सी भाषा है....जरा हमें भी बता दो....
थोड़ा समझ आ रहा है....कुछ नहीं भी......

Unknown said...

yaavar jeek rachna attu sunar..aano lekhan liknik prastuti manoram achhi...apan matribhasha lel ehina sabh mili pryas kari..dhanyabad.

प्रेम सरोवर said...

Karan bhai,Tohar ta kauno jabaab naikhe.Raur post padh ke aisan lagela jaise sukhal khet mein pani.
Aapne ta aap saras bani okra sath humro ke saras banawe khatir humra blog par raur nimantran ba. Tani saj dhaj ke aib.Sab logan ke nigah raue par tikal ba.Bara niman lagal.Dhanyavad.

abhilash said...

bahut din ke bad maithili pad ka bahut nik laga .. bahut nik likhal gel gel ya ..
hum aaha sab ke ek website site ke bare me bata rahla chi jata aaha sab maithili geet download ka sakya chi
http://www.indiansongsblog.com/search/label/maithili%20mp3%20song
ek ber jarur dekhu .

yatindra choudhary said...

बड नीक लागल।

PurpleMirchi said...

Thanks for you knowledge sharing Valentine's Day Gifts Online with all of us.

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...