हारिल चिड़ै जकां हरकारि क' आनल गेल छी हम

राहुलक गाम छैन्‍ह लोहना। सकरी आ झंझारपुर के बीच मे पड़ैत छैन्‍ह। हुनक पिता राज मैथिली के अग्निजीवी लेखक पंक्तिक लोक छलाह। खूब खिस्‍सा-पिहानी लिखलनि। हमरा लोकनि जहिया लिखा-पढ़ी मे सक्रिय भेलहुं, ता धरि ओ सभ सुस्‍त भ' गेल छलाह। कतबो खोंचारियनि, ने पुरान बात बतबतथि आ ने नब कोनो कबित्त सुनबितथि। हम लोहना खूब जाइ। राहुल दड़‍िभंगा आएल रहथि, त' परिचय भेल रहए आ बाद मे पारिवारिक भ' गेल रही। हुनकर दीयाद-बाद सभ सं आत्‍मीयता भ' गेल रहए। ओइ समय मे खूब उकाठी करी। ई गप 95 धरिक कहि रहल छी। लोहना मे ओहि साल कि अगला साल आकि ओइ सं पछिला साल - राहुलक ग्रुप हमरा सम्‍मानित सेहो कएने रहए। तखन नीक लागल छल, बाद मे लाज लागैत रहए जे लिखलहुं त' किछ नइ मुदा उकाठी पर पुरस्‍कार भेट गेल। 2004 मे प्रभात खबरक देवघर संस्‍करण में काज कर' गेलहुं त' राहुल कें सेहो बजौलियनि। ओ एलाह आ खूब मोन लगा कर काज कर' लगलाह। अखनो धरि देवघरे मे छथि। 2005क अप्रैल मे आब' लागल रही, त' ओ एकटा कागद पकड़ौलनि। एतेक बरखक बाद आइ ओकरा पढ़‍ि पएलहुं। लागल जे अहूं सभ के सुनाबी।
प्रिय अवि'
हारिल चिड़ै जकां
हरकारि क' ल' आनल गेल रही
अपन मुट्ठी भरि हिस्‍सक के
दोग-सान्हि मे दबा-नुका
एगो अलबटाह बाटक ओरियाओन लेल

बहुत-बहुत बात
शायद कहल नै जा सकैए'
आंगिक भाव आ मुहेंठक गीरह कें तोड़‍ि
किछु बात मुदा जानल जा सकैए

दुनिया बहुत पैघ छै
बहुत रास राहुल-मज्‍कूर/ ठहनाइत रहै छै बाघे-बोने
मुदा
बाघ-बोन सं हारिल चिड़ै कें
हरकारि क' अनबाक ब्‍योंत त' कियो-कियो करै छै

अहांक हाथ मे
बांचल ऐ' बहुत-बहुत रंग
बहुते देश-दुनिया रंगा सकैए आइ स'
मुदा, मोनक रंग त' कहियो कहियो रंगाइ छै अवि'

अविनाश स' अवि' आ भैया तकक
रास्‍ता ओहिना त' नै ने बनै छै
लहेरियासराय स' पाटलिपुत्र आ देवनगरी धरिक
यात्रा कनी मोन त' राखी

तोहरे भाषा मे अवि'
अपन त' यैह दुनिया-जहांन
चाहे एत' डोली
चाहे ओत'

अंतहीन बालुकापिंड बनबैत
अहांक हाथ
सरेआम होयबाक चाही...
टेढ़-मेढ़ एकपे‍ड़‍िया,
खेसारी आ मड़ुआ रोटी
शायद कांटा-चम्‍मच सं
नै खायल जा सकै-ए

हारिल चिड़ै जकां
हरकारि क' आनल गेल छी हम...

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...