बेगरता

बेगरता
 
 
[प्रस्तुत कहानी के उद्देश्य जे मैथिली कतओ से नीरस भाषा नहि, आ एकर प्रयोग केवल साहित्य लेखन के लेल नहि अपितु दांपत्य जीवन के रोमांस के लेल सेहो कयल जा सकैत अछि। जौं एहि वास्तविक संस्मरण से हम एको नव दंपति के मैथिली बाजय के लेल प्रेरित कऽ सकी तऽ हमर प्रयास सार्थक रहत। -राजीव रंजन लाल]

"हौ बरहम बाबा, हमरो करा द' वियाह" के गाना गबैत गबैत जखन पूरा थाकि चुकल छलौंह, तखने बरहम बाबा के सुझि पड़लनि जे आब नेना के बेसी परेशान नहि करबाक चाही। जखन बरहम बाबा के खुशी तब कोन बाधा। से हमर वियाह तय भ' गेल। पता नहि कोन खुशी अंदरे-अंदर मोन के प्रफुल्लित करय लागल। घुरि फिर दस बेर घर फोन क' पापा से, माँ से, छोट भाई से बात केलिअए जे ई सपना त' नहि थीक। आह! ई त' सत्ते हमर विवाह ठीक भ' गेल। जानी नहि, मोन कोन तरंग में तरंगित होमय लागल। कहियो माँ से पुछिए जे केहन छैक कन्या देखय में त' कहियो हुनक बोली-वाणी के बारे में टेबिअए जे माँ कि कहैत अछि। कनेक लाजो होय आ कनेक जिज्ञासा सेहो होय। कहियो अपना के सँभारे के कोशिश करिअए जे एना पुछब त' माँ कि कहत आ फेर कनेक काल में वैह स्थिति जे होमय बाली कन्या के बारे में सभटा जिज्ञासा मुँह पर लाज मिश्रित भ' के आबि जाय। बहुत कोशिश कयला पर एतबे पता चलल जे कन्या सुशील आ सुभाषिनी छथिन्ह।

 

सुशील छैथ से त' विवाहक बाद जीवन निर्वाह में सहायक आ एकटा गुण, मुदा हुनक सुभाषिनी भेनाय हमरा मोन के बेचैन करय लागल जे एक्के बेर कनियो जे हुनक बोली कान में पड़ि जेतय त' हमहुँ सँतुष्ट भ' जेतौं। कल्पना में एक-दु दिन बीतल। हुनक काल्पनिक बोली मोन के अंदरे-अंदर गुदगुदा के चलि जाय। एहि व्यस्त जीवन में जे प्राणी के प्रेम के परिभाषा नहि बुझल ओकरा विद्यापति के चौमासा आ बारहमासा सब में अद्वितीय रस बुझा पड़ल। प्रेम के ठेकान नहि, वियोग सताबय लागल। कि भ' गेल हमरा से बुझल नहि। कहियो एहन लाग' लागय जे हुनक फोन आयल छैक आ ओ पुछि रहल छथि जे राजीव के छथिन्ह, हुनका से बात करबा के अछि। मोन आह्लादित भ' जायत छल। कथा ठीक भेला के चारि दिनक बाद हमर छोट भाई फोन केलक जे "अहाँ हुनका से बात किएक नहि क' रहल छी, से ओ लड़की भ' के अहाँ के कोना फोन करती। ओ कहैत रहथिन जे अहाँ के भैया के हमरा से बात करय के मोन नहि छैन्ह की?" आह! कटि के दु फाँक होमय लागल हमर हृदय, जे हमर प्रिया हमरा लेल बेचैन छैथ आ हमरा निठाह नीरस मनुक्ख जेकरा एकर परिवाह नहि। दुर जो, हमहुँ ई बुझि नहि सकलौं जे वो हमर भावी पत्नी थीक आ हुनके संगे जीवनक निर्वाह केनाय अछि हमरा। जौं बात करय के हिम्मत नहि पड़ि रहल अछि त' जिनगी कोना काटब। हिम्मत कएल जे आय फोन करबय अपन होमय वाली अर्धागिंनी के। फेर डर भेल जे माँ आ पापा की कहथिन। सभ टा हिम्मत ठामहि घुसरि गेल आ पहिने पापा से हरी झंडी के जुगार में लागि गेलौं। खखसि के त' नहिए बाजि सकैत छलिअए जे हमरा अपन होमय बाली पत्नी से बात करय के इच्छा अछि, तखन घुमा के पुछलिएन जे "पापा अहाँ बात केने छलिएक की कन्या से?"। ओ सोझे कहलखिन जे हाँ, बड्ड बेस, सब सँ बातचीत करय में, मान देबय में, कोनो दिक्कत हुनका नहि बुझा पड़लनि। आब हम बात आगाँ कोना बढ़ाबी?

 

हम – "हमरा हुनक मोबाइल नम्बर चाही छल।"

पापा – "की बात से?"

हम – "........"

पापा – "किछु पूछबा के छलौ की?"

हम – "हम्म...हाँ......नहि, पुछबा के त' किछु नहि छल। बस नम्बर लेबाक छल।"

पापा – "हमरा लग त' हुनक माँ के मोबाइल नम्बर अछि, जौं चाही त' एकरे लिखा दैत छियौक। ओना कि पुछय के छलौह तोरा?"

हम (घबराबैत) - "नहि, हमरा की पुछय के रहत, बस...ओनाही नम्बर रहय के चाही।"

 

तखने पापा के की फुरेलनि से नहि बुझी, लेकिन वो माँ के हाँक दैत कहलखिन जे "देखियौ त' राजीव की कहि रहल अछि" आ ओ मम्मी के फोन धरा क' चलि गेलखिन। हमरा बुझायल जे हमर धरायल गट्टा छुटल आ उसाँस भेल। आब मम्मी से ओतबे पैरवी के जरूरत छलय।

 

मम्मी – "कि भेलओ तोरा, कि पुछय छलही कनिया के विषय में पापा से?"

हम – "कहाँ किछ, खाली फोन नम्बर माँगने छलिएन हुनका से..."

मम्मी – "किनकर फोन नम्बर?"

हम – "हुनकर घरक फोन नम्बर तोरा बुझल छौ?"

मम्मी – "फोन नम्बर त' छहिए, लेकिन तोरा कोनो बात आ कि शंका...कि बात करय के छौ?"

हम (लजायत) - "बात की रहतय, ओ छोटका (भाई) कहय छलइ जे हुनका हमरा से गप्पक सेहनता, तैं पुछलियौ...जे कि करी हम। बात करी की नहि करी?"

मम्मी – "अरौ छौड़ा, अखन सिद्धाँतो नहि भेलए य' आ तों बात करय लेल धरफड़ायल छी"

हम – "नहि, ओ त' ओनाही कहलियौ...जे हुनकर मोन छैन्ह त'..."

मम्मी – "आ तोहर मोन कि कहैत छौ?"

 

एतबा बाजि मम्मी के हँसी लागि गेलय आ हमर खुशामद शुरु भ' गेल, जे हमरा बात करय दे हुनका सँ।

 

मम्मी – "तोरे कनिया छथुन्ह, पुछि के देखही, जे हुनका गप्प करय में आपत्ति नहि त' बात कर, एहि में पापा से कि पुछय छलही"

 

बुझायल जेना पिंजड़ा के कोनो तार टूटि गेल होय आ दिन भरि पिंजड़ा में भागय के सपना देखैत एम्हर से ओम्हर चक्कर काटय बला सुग्गा के खुजल आकाश में उड़य के रस्ता भेट गेल होय। उत्साह आ उत्तेजना में साँस तेज भ' गेल छल। दुपहरिया से साँझ इंतजार में आ इ दुविधा में कटल जे कोन समय बात केनाय उचित रहतय। कखनो होय जे अखने बात क' ली, फेर होय जे नहि राति में वो असगर रहती तखन बात करब। राति के इंतजार विकट बुझायल आ सांझ के राति बुझि फोन केलिएन। इ हुनक माँ के मोबाइल नम्बर छलैन्ह से आशा छल जे हुनक माँ उठेती हमर कॉल के। मोन में दस तरह के गणना करैत जे कि कहबय आ कि नहि आ कॉल केलौं। रिंगक आवाज सँगे दिलक धड़कन सेहो बढ़ि गेल। ओम्हर माँ जी के बदले ओ अपने फोन उठेलेथ। एम्हर हमर करेजा धकधकाएत जे कोना की कहिअए, आ ओम्हर हमर नाम ओ मोबाइल में पहिने से जोगि लेने छलखिन। से "चिड़ै के जान जाय, नेना के खिलौना" बला परि भ' गेल। हमर सभटा गणना फेल भ' गेल आ मुँह में बकार नहि। ओम्हर हुनको किछु बाजय में नहि बनलैन जे कि बाजी। बुझु जे कनेक देर ल' नेटवर्क गायब भ' गेल होय, मोबाइल के त' नहि पर हमरा सभक। एहि तंद्रा के तोड़ैत हम बाजलिएन-

"हम बंगलौर से राजीव रंजन लाल बाजि रहल छी, हमरा अहाँक माँ से बात करबा के छल।"

"माँ स'", ओ आश्च्रर्य होयत कहली।

"हाँ, माँ जी स'" – हमर सभटा गणना त' माँ से बातक शुरुआत करय के छलैक, से अपने मोने ई बात मुँह पर आबि गेलय।

"मम्मी, ये तुमसे बात करना चाहतें हैं" – ओ हिन्दी में बाजली माँ स'।

"हम क्या बात करेंगे, फोन तुमसे बात करने के लिए किए हैं" – हमरा पाछाँ से माँ के आवाज स्पष्ट सुनायी पड़ल।

"लो ना, तुम बात कर के देखो, शायद कुछ पूछना हो तुमसे...तुम फोन लो" – ई कहैत ओ फोन माँ के द' देने छलखिन।

"गोर लागय छियेन्ह माँ जी" – हमरा मुँह से बहरायल। माँ जी से बात करय में कनेक बेसी सहज छलहुँ आ अपन तेज होयत धड़कन के कनेक थाम्ह देलिअए।

"आयुष्मान होउ, चिरँजीवी होउ, दीर्घायु होउ, सदा सुखी रहु बेटा...की हाल-चाल...कहु ना की कहबा के छल?" – एक्के ठाम ओ एते बात कहि देलैथ।

आब हमर लाज कने कने विला गेल छल आ कनेक दृढ़ता आबि गेल छलय य' बात करय में, से हम पुछलिएन "हम हुनका से गप्प क' सकैत छी"।

पहिने एकटा खामोशी, फेर ओ पुछली – "अहाँ अपन पापा से पुछलिएन एहि विषय में...ओ केना की सोचैत छथि। हमरा कोनो आपत्ति नहि बेटा, लेकिन अपन सभक समाज त' अहाँके बुझले अछि...नव कथा आ कांच माटिक बरतन एक्के जकाँ, से अपन पापा-मम्मी से सलाह क' लियौक। बाद-बाँकी त' बेटा एहि दिन ल' हम कते कबुला गछने छी जे अपन धी जमाय के खुशी खुशी संग रहैत देखी। हमर त' सभ मनोकामना पूर्ण होमय जा रहल अछि।"

माँ जी के चिंता स्वाभाविक छल आ हमरो हुनक बात से नीक अनुमान भेल अपन संस्कृति आ संस्कार के। पापा फेर से बीच में आबि गेल छलैथ। पापा से अनुमति भेटनाय त' निश्चिते छल मुदा हमरा अपन मुँह से अनुमति माँगनाय असंभव काज बुझायल। से हम चटे माँ जी के कहलिएन -

"हम पपे से नम्बर लेने रहिएक, मुदा मम्मी से एहि विषय में बात भेल, जे हमरा हुनका से गप्प करय के अछि। मम्मी ई बात पापा के कहि देने हेतैक अखन धरि।"

हुनक माँ निश्चिंत होयत बाजली – "हम अहाँ सभ के बहुत समय लेलौं, अहाँ सभ बात करु।" ई कहैत ओ ओतय से चलि गेली आ फोन हुनक हाथ में छलैन्ह आब।

हम – "एकटा अनजान रिश्ता से शुरु क' रहल छी से हमर पहिल नमस्कार स्वीकार करू, ई नमस्कार शायद आखिरी हेतैक अपना दुनु के बीच।"

हुनका किछु नहि फुरेलनि जे की जवाब देती, हुनक स्वप्नो में नहि छलैन्ह जे गप्पक शुरुआत एना हेतैक। हुनका धारणा छलैन्ह जे हम बंगलौर में रहय बला हाय-हेल्लो से शुरूआत करबय, से नमस्कार के जवाब में ओ गुम्म छलैथ।

हम – "हमरा बुझल नहि जे हम अहाँ से कोना बात करी वा एकरा कोना आगाँ बढ़ाबी, लेकिन हमरा ई पुछबा के छल जे अहाँ से हम मैथिली में बात करी की हिन्दी में।"

हुनका ई भनक छलैन्ह जे हमरा मैथिली नीक लागैत छैक से वो कहली

"आय धरि मैथिली बेसी बाजय के मौका त' नहि भेटल, से मैथिली ओते नीक नहि, तखन हम कोशिश करय लेल चाहैत छी...जौं गलत बाजी त' अहाँ के सही करय पड़त।"

ई पहिल स्पष्ट वाक्य छल जे हमर कान में गेल आ हम मुग्ध भ' गेलौं। एहि वाक्य में कतेको भाव छिपल छल हमरा लेखे...श्रद्धा, विश्वास, समर्पण, प्रयास, संस्कार, लज्जा....सभ किछु त' रहबे करय। ओतबे नीक मैथिली के टहँकार जे हम वाक्य खत्म होयत कहलिएन-

"अहाँ के मैथिली मिथिला में रचल बसल संस्कार के परिचायक अछि, स्वाभाविक अछि...हमर मैथिली त' टँगटूट्टा मैथिली छैक जे पढ़ि के सीखल गेल अछि। हमर मैथिली में भाव नहि, शब्द मात्र अछि। अहाँ केर मैथिली सुनि के हमरा मोन निचैन भ' गेल कि हम जौं अहाँ से मैथिली में बाजी त' हम धन्य होयब आ एहि से अहाँ से हमर आग्रह रहत जे हम सब मैथिली में बाजी।" आगाँ ओही में जोड़लिअए

"घर सँ बाहर त' मैथिली के साफे चलन नहि से जौं हम अहाँ से मैथिली में नहि बाजि सकलौं त' हमर मैथिलीक सेहनता हमरा अंदरे मरि जायत, ऊहो ई जानि के जे हमर पत्नी के हमरा से बेसी नीक मैथिली आबैत छन्हि। तखनो अहाँक विचार, कोनो निर्णय सोचि के लेब आ जाहि में खुशी होय से कहब। हमर शौक हमर जिद्द नहि थीक।"

"जरुर बाजब, नहियो आयत त' हम सीख लेब। अहाँ के खुशी की हमर खुशी नहि?" ओ मेंही आवाज में बजली। "मैथिली के हमरो सेहनता, मुदा हमरा ई हमेशा डर रहल जे हम मैथिली बाजि सकब की नहि। आब हमरो बाजय लेल भेटत।"

पता नहि हमरा कोन धन भेट गेल। बिहाड़ि जकाँ मोन उधियाबय लागल। खुशी के ठेकाना नहि छल। अखनो मिथिला जानकी आ भारती के जननी छैक? ई प्रश्नक उत्तर हमरा अपन कनिया रूप में भेटत से हमरा कोनो अनुमान नहि छल। अंदर के खुशी के दबाबैत हम बाजल -

"कोन तरह के बात करी से हमरा नहि बुझल, कहियो लड़की सभ से गप्प करय के मौका नहि लागल से अहीं किछु कहु।"

ओ कहली – "हमरो ई पहिले बेर अछि से जेना अहाँ तेना हम। हम की कही?"

हमरा किछु नहि फुरायल, सोचलौं जे कोनो गंभीर बात नहि कयल जाय आ सिनेमा में हुनक रूचि पुछलिएन। फेर बात आगाँ निकललय आ हमरा बेसी किछु फुरायल नहि से अनाड़ी जकाँ कहलिअए जे "हम सब बाद में गप्प करब। आब राखय छी।"

जवाब में ओ चुप्प रहि गेलखिन आ हम फोन काटल। फोन त' राखि देलऔं, मुदा मोन ओही भवसागर में भसियाएत छल। तुरंत मम्मी के फोन केलिअए ई सूचित करय के लेल जेना हमरा कोनो पुरस्कार भेटि गेल होउ। आब बहाना के तलाश छल जे आगाँ कोना बात करी। हुनका से एक बेर गप्प करय के बेगरता त' समाप्त भ' गेल छल मुदा कान तरसि रहल छल हुनक बात सुनय के लेल। दोसर दिन अपन छोट बहिन-भाई सभ के फोन क' कहलिअए जे भाभी से गप्प भेलौ तोहर सभक। जबरदस्ती ओकरा सभ के उकसेलिए जे बात क' ले अपन भाभी से। एकटा प्रयोजन त' ई साबित करय के छल जे हमरा जे सोन हाथ लागल से अनमोल छथि आ दोसर जे ओही बहाने हमरा हुनका से फेर बात करय के मौका लागत जे कोना कि बात भेल। ओम्हर ओ दिन भरि इंतजार में छलीह जे हम कखन हुनका फोन करबय। हमरा ऑफिस से अयला पर मौका लागल आ हुनका फोन केलिएन। ओ पुछली "नाश्ता भेल?"

फोन करय के ताक में नाश्ता के सुध त' नहि छल मुदा हुनक जिज्ञासा मोन के संतुष्टि प्रदान कएल जे हमरो लेल कियो थिकीह जिनका ई चिंता जे हम कोना जी रहल छी। जिनका हमरा से मतलब। जिनका लेल हम प्रधान। हमर जवाब सेहो प्रश्न छल – "अहाँ के किछु नाश्ता भेल?"

"ऊँहुँ" – हुनक जवाब छलैन्ह। "अहाँ ऑफिस से आयल छी, किछु जरूर से खा लिय', भूख लागि गेल हएत।"

बातक क्रम जे शुरु भेल त' खतम लेबाक नामे नहि। हम हुनका "सोना" कहि पुकारिए आ ओ हमरा सोना कहैथ। सोना के पर्याय जे हम अहाँक गहना आ अहाँ हमर गहना। दु-तीन दिनक बाद सिद्धाँत भेल। सिद्धाँतक उपरांत ओ फोन कयलीह जे हमर नाम हुनक नाम सँ जुड़ि गेल छैक आ आब हुनका हमर इंतजार जे हम कहिया हुनका स' विवाह क' अपन जीवनसँगिनी बना रहल छी। अजीब प्रसन्नता मोन के भेटल। मोन भेल जे चिल्ला क' आकाश स' कही जे हम आय बहुत खुश। हमरा छोट छोट बात में हुनक ध्यान आबय लागल आ हम एकदम से हुनक पाश में जकड़ि गेलौं। भोर उठिते हुनका फोन केनाय, ऑफिस से लंच टाइम में कॉल केनाय। सांझ में हुनकर जिज्ञासा के फोन एनाय जे नाश्ता भेल की नहि। आब त' ई जीवनक्रम से जुड़ल बात भ' गेल छैक। एक बेर हुनक मुँह से बहरेलनि "हमर सोना, हमरा से जँ एतय गप्प करब त' अहाँ के अपन काज प्रभावित हैत आ अहाँ बाद में हमरा दोष देब जे हम अहाँ के बरबाद क' देलौं।"

"अहाँक सोना त' आब बरबाद भ' गेल अछि। आबो एहि में कोनो शक की?" – हमर जवाब छल।

"हमरा से बात नहि करू जाऊ, हम अपन सोना के बरबाद नहि करय चाहय छी।" – ओ हँसैत जवाब देलीह।

"अहाँ के रहल भ' जायत अपन सोना से बात कयने बिना? हमरा त' अपन सोना से विरह असह्य भ' जेतैक।" – हम कनमुँह जकाँ करैत जवाब देलिएक। फेर कहलिएक – "जाऊ, जौं अहाँ के इएह मोन त' हम नहि करब बात अहाँ स'"।

"ठीके हमर सोना हमरा से बात नहि करत...?" – ओ बच्चा जकाँ कहलीह।

"हाँ, अब वियाहे दिन बात करब" – हम कनेक नखरा करैत कहलौं।

- "जौं हमर सोना के प्रण टूटि गेल त'?"

-  "तखन अहाँ जे सजा दिअय हमरा मंजूर"

- "सोचि लियअ सोना, हम जे कहब से अहाँ के करय पड़त"

- "हम कहाँ भागि रहल छी"

हुनकर हँसी अचानके बंद भ' गेलनि आ ओ कनेक गंभीर होयत कहलखिन – "सोना, हमरा एकटा वचन दियअ जे अहाँक प्रेम हमरा प्रति सदिखन एहिना बनले रहत आ हरिमोहन झा लिखित पाँच-पत्र जकाँ एकर ह्रास नहि होयत।   हमर सोना हमरा वचन दियअ।"

"हम वचन देलौं" – हमहुँ गंभीर भ' गेल रहऔं। ओही गंभीरता के भंग करैत फेर हम कहलिएक "जे अहाँ के नहि रहल गेल आ अहाँ फोन केलौं त'?"

"कहु की चाही, सोना सौंसे अहीं के अछि, अहाँ के किछु कहय पड़त। अहाँ आदेश दियअ सोना हमर।" – हुनक स्वर में कतेक रस एक साथ मिश्रित छल से हम फरिछा नहि सकलौं। हमर मुँह कनेक काल धरि चुप्प भ' गेल। एहन बहुतो बेर भेल छल जे हुनक जवाब हमरा आश्चर्य में डालि देने छल। तंद्रा तोड़ैत हम कहलिएन –

"सोना, जौं पहिने अहाँ हमरा फोन कयलौं, त' अहाँ के रोजे हमरा याद दिलाब' पड़त जे सोना हमरा से बात करू।"

"ठीक" – ओ तुरंत उत्तर देलखिन्ह।

केहुना हम मोन के मारल आ दु घंटा धरि बरदाश्त कयल। फेर हमरा नहि रहल गेल आ बाजी हारैत हम हुनका फोन केलिएन। एक बेर, दु बेर...तेसर बेर माँ जी फोन उठेलैथ। कहलथिन जे अहाँक सोना पता नहि कखन से कानि रहल छथिन्ह आ ओहि दुआरे फोन नहि उठा रहल छलीह। फोन हाथ में लैत ओ बाजलीह – "सोना, हमरा से अपराध भेल से माफ करू....हम कोन मुँहे अपन सोना के अपना से बात नहि करय लेल कहलौं से नहि जानी। सोना हमरा माफ करू।"

कतय हम ई सोचैत रही जे बाजी हारि गेल छी आ ओ ई देखैत पुलकित भ' जेती। मगर ई की, प्रेमक परिभाषा पहिल बेर बुझा पड़ल। सभटा पहेली सन, सभटा अद्भुत...

आब बेगरता अछि जे कते जल्दी वियाह होय आ हमर सोना हमरा लग सीता बनि के आबैथ आ हमर घर अयोध्या बनि जाय।

 

 

राजीव रंजन लाल, बंगलौर
संपर्क - 09342574820, rajeevranjanlall[at]gmail.com

राजीव लालजी के अखबारक चोरी आ बदलैत समाजिक परिवेश (एकटा पत्र)

राजीव लालजी के अखबारक चोरी आ बदलैत समाजिक परिवेश (एकटा पत्र)
बंगलोर
दिनांक- जनवरी 02, 2008.
बुधवार

प्रिय राजीवजी,
नमस्कार,
कुशल रहैत अहाँक कुशलताक कामना करैत छी. काल्हि सs बहुत रास बात भेल. बहुत किछु मुद्दा पर विचारक आदान-प्रदान भेल. लागल जेना हम एक दोसर के बहुत दिन स चिन्हैत छी. अहाँक रचना पढ्लहूँ “अखबारक चोरी” बहुत किछु सोचय के लेल प्रेरित कयलक. रचनाक साथ-साथ ओहि पर पाठकगण सभक टिप्पणी सेहो पढ्लहूँ. डा. पद्मनाभ मिश्रजी लिखलथि जे एहि स हुनका खुशी आ संगे-संगे दुखःक अनुभूती सेहो भेलन्हि. आश्चर्य लागल से कोना. गौर सs पढ्लहूँ त पता चलल जे दुःख एहि बात के जे अहाँक अखबारक चोरी भ जायत छल आओर अहाँ अपन आदतानुसार भोर के अखबार नहि पढि पाबैत छलहूँ. आ खुशी एहि बात के जे एहि बहाने अहाँ एकटा उत्कृष्ट रचना के सृजन कयलहूँ. ई पढि के श्रीमान संतोष झाजी के अपन अखबारक चोरी मोन पडि गेलन्हि. मुदा बातक सुन्दरता देखियौ जे श्रीमान एस. एम. झाजी के अपन पडोसीक बलजोरी मोन पडि गेलन्हि जे ओ हुनका स प्रतिदिन हुनकर अखबार लय के कहैत छलन्हि जे “पढ्ने के बात देते है.” कहय के तात्पर्य ई जे एहि बहाने सभ के अपन-अपन दुःख के स्मरण भय गेलन्हि. मुदा सभ स ज्यादा आश्चर्य एहि बात के भेल जे परम आदरणीय खट्टर काका अपन स्वभावक अनुरूप अपन हास्य-व्यंग स भरल टिप्पणी दर्ज नहि कयलथि.
मुदा हमरा स पुछू त हमरा सुःख सs बेसी दुःख केर अनुभूती भेल. कियैक जे पाठकगण के अपन आ अहाँक दुःखक ध्यान त रहलन्हि मुदा ओहि ठाम किछु मूलभूत बात बिसरि गेलथि. ओ ई बिसरि गेलथि जे अहाँ बलजोरी कय के गरीब अखबारबला के पाँच टका काटि लेलियैक जेकर कोनो दोष नहि रहैक. एहि के संगे-संग ओ किछु आओर यथार्थक बात बिसरि गेलथि जाहि पर अपनेक ध्यान सेहो नहि गेल. अखबारक चोरी त एकटा बहाना अछि एहि लाथे किछु आओर विषय पर अपनेक ध्यान आकृष्ट करय चाहैत छी. जे एहि रचना मे अपनेक दृष्टी स ओझल भय गेल. एहि घटनाक्रम मे अहाँ एहि विषय पर गौर केलियैक की जे ओ व्यक्ति एहन कर्म कियैक करैत छल. कोन एहन विवशता छैक जे मानव के एहन कर्म करय के लेल विवश क दैत छैक. बात सिर्फ दू-चारि टका के नहि छैक. बात छै बदलैत मानवीय मूल्य के आ बदलैत समाजिक परिवेश के. हमर विचार मे एहि बात के दू तरह स व्याख्या कयल जा सकैत अछि.
पहिल ई जे बढैत बेरोजगारीक समस्या आ दोसर मानवीय सोच पर। कहय के लेल हम बहुत जल्दी दुनिया के एकटा आर्थिक महाशक्ति बनय के लेल जा रहल छी. विकासक प्रतिबिम्ब सेंसेक्स अपन आदतक अनुरूप नव-नव ऊँचाई के छूने जा रहल अछि. महानगर मे छोट-छोट दोकान के बदला मे एक स एक सुपर मॉल खुलि रहल अछि. गाम आ की शहर कोई छूटल नहि अछि जेतय एक स एक विशाल अट्टालिकाक निर्माण नहि भ रहल होयत. मुदा ई ज्व्लंत प्रश्न अछि जे की एहि विकासक धारा जन-जन तक पहुँचि रहल छैक. गरीब आओर गरीब भेल जा रहल अछि. एकटा अध्ययन के मुताबिक 2% व्यक्ति कुल वैश्विक सम्पत्ति मे 50 प्रतिशत केर मालिकाना अधिकार राखैत छैथ. विकासक एहि धारा मे निम्न वर्गक लोग केर की हिस्सेदारी छैक ई एकटा ज्वलंत मुद्दा छैक.

हाँ त बात चलैत छल अखाबारक चोरी के. अहाँ के त खाली अखबार चोरी भेल. हमरा एहिठाम एक गोट कहानी मोन पडि रहल अछि जे हिन्दी के सुप्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका “हंस” मे प्रकाशित भेल छल. ओहि मे एकटा भद्र महिला प्रतिदिन अपन बाडी स होय बला फूलक चोरी स व्यथित छलीह. जाहि कारणे हुनका फूल कीनय परय छलन्हि. हुनका लागयत छलन्हि जे फूल ओ कीनयत छलीह ओ हुनकर अपने बाडीक प्रतीत होयत छलन्हि. एक दू बेर ओ फूलबाली स पूछबो कयलथिन्ह मुदा ओ कहलक ओ अपने बहुत रास फूल लगौने अछि. फेर की छल अहिँ जेकाँ एक दिन ओ सोचि लेलथि जे किछु बीति जाय मुदा आई ओ चोरक पता लगौबे करतिह. मुँह अन्हारे जागि क एकटा कोना मे नुकाय के ओ चोर के बाट जोह लागलथि. एखन भोर होय मे किछु समय बाकी रहय. कनिकाल के बाद ओ देखैत छथि जे पडोसक एकटा वृद्ध सज्जन नुका के हुनकर फूल तोडि रहल छन्हि. ओ सकपका गेलीह जे कोना ओ ओहि सज्जन के किछु कहतिह, कियैक त ओ ओहि सज्जन स नीक जेकाँ परिचित छ्लीह आओर हुनकर बहुत सम्मान करैत छलीह. कोनो तरहेँ ओ साहस जुटा के हुनकर आगाँ अयलीह आ पुछलखिन्ह जे ई अहिँ छी जे सभ दिन एहिठाम स फूल चोरि करयत छी. ओ सज्जन ढृढ आत्मविश्वास स स्वीकार कयलथि आ बजलाह हाँ आओर करब. ओ भद्र महिला स्व्यम सकपका गेलीह, हुनक आत्मविश्वास देखी कय. ओ पुछ्लीह जे से कियैक, कोन एहन बात अछि जे अहाँ एहन सज्जन पुरूष के एहन कर्म करय के लेल बाध्य कय देलक. अपन बेटा-पुतोहू स उपेक्षित ओ वृद्ध बजलाह जे अपन छोट-मोट जरुरत के पुरा करय के लेल हुनका लग आओर कोनो दोसर साधन नहि छन्हि. ओ महिला हतप्रभ भय एकटक हुनका देखय लगलीह.
आब कहू की ई बदलैत मानवीय मूल्य केर परिचायक नहि अछी। यदि अहाँ एहि कथा केर रचनाकार जेकाँ कहानी के एहि पक्ष पर ध्यान दैतियैक त कहानी केर स्वरुप किछु अलग होयतैक।

ई त भेल पहिल स्वरूप स कहानी के व्याख्या। यदि एकर दोसर स्वरुप देखल जाय त ई अछि जे कतबो किछु भ जाय मुदा मानव त एतेक कमजोर त नहि भेल अछि जे ओ अपन जीवन-यापन केर लेल एतेक निकृष्ट कर्म करय के लेल प्रेरित भ जायत.

बहुत बात भेल. आब पत्र के विराम दय रहल छी. एहि पर अपनेक जवाबक प्रतीक्षा रहत. विशेष अगला पत्र मे.
धन्यवाद-
कुन्दन कुमार मल्लिक
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव,
ग्रुप सनोफी-एवेंटीस,
बंगलोर (भारत)
दूरभाष- +91-9740166527
E-mail- kkmallick@gmail.com
kundanmallick@yahoo.com
(नोट- एहि पत्र पर एहि ब्लॉगक स्थापित रचनाकार जेना डा. पद्मनाभ मिश्र, शैलेन्द्र मोहन झा, खट्टर कका आ स्व्यम राजीवजीक टीका-टिप्प्णीक प्रतीक्षा रहत। कियैक जे एहि क्षेत्र मे हम नवसिखुआ छी आ अहाँ सभ हक दिशा-निर्देश पाबि हमर लेखन मे सुधार आयत.)

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...