राजीव लालजी के अखबारक चोरी आ बदलैत समाजिक परिवेश (एकटा पत्र)

राजीव लालजी के अखबारक चोरी आ बदलैत समाजिक परिवेश (एकटा पत्र)
बंगलोर
दिनांक- जनवरी 02, 2008.
बुधवार

प्रिय राजीवजी,
नमस्कार,
कुशल रहैत अहाँक कुशलताक कामना करैत छी. काल्हि सs बहुत रास बात भेल. बहुत किछु मुद्दा पर विचारक आदान-प्रदान भेल. लागल जेना हम एक दोसर के बहुत दिन स चिन्हैत छी. अहाँक रचना पढ्लहूँ “अखबारक चोरी” बहुत किछु सोचय के लेल प्रेरित कयलक. रचनाक साथ-साथ ओहि पर पाठकगण सभक टिप्पणी सेहो पढ्लहूँ. डा. पद्मनाभ मिश्रजी लिखलथि जे एहि स हुनका खुशी आ संगे-संगे दुखःक अनुभूती सेहो भेलन्हि. आश्चर्य लागल से कोना. गौर सs पढ्लहूँ त पता चलल जे दुःख एहि बात के जे अहाँक अखबारक चोरी भ जायत छल आओर अहाँ अपन आदतानुसार भोर के अखबार नहि पढि पाबैत छलहूँ. आ खुशी एहि बात के जे एहि बहाने अहाँ एकटा उत्कृष्ट रचना के सृजन कयलहूँ. ई पढि के श्रीमान संतोष झाजी के अपन अखबारक चोरी मोन पडि गेलन्हि. मुदा बातक सुन्दरता देखियौ जे श्रीमान एस. एम. झाजी के अपन पडोसीक बलजोरी मोन पडि गेलन्हि जे ओ हुनका स प्रतिदिन हुनकर अखबार लय के कहैत छलन्हि जे “पढ्ने के बात देते है.” कहय के तात्पर्य ई जे एहि बहाने सभ के अपन-अपन दुःख के स्मरण भय गेलन्हि. मुदा सभ स ज्यादा आश्चर्य एहि बात के भेल जे परम आदरणीय खट्टर काका अपन स्वभावक अनुरूप अपन हास्य-व्यंग स भरल टिप्पणी दर्ज नहि कयलथि.
मुदा हमरा स पुछू त हमरा सुःख सs बेसी दुःख केर अनुभूती भेल. कियैक जे पाठकगण के अपन आ अहाँक दुःखक ध्यान त रहलन्हि मुदा ओहि ठाम किछु मूलभूत बात बिसरि गेलथि. ओ ई बिसरि गेलथि जे अहाँ बलजोरी कय के गरीब अखबारबला के पाँच टका काटि लेलियैक जेकर कोनो दोष नहि रहैक. एहि के संगे-संग ओ किछु आओर यथार्थक बात बिसरि गेलथि जाहि पर अपनेक ध्यान सेहो नहि गेल. अखबारक चोरी त एकटा बहाना अछि एहि लाथे किछु आओर विषय पर अपनेक ध्यान आकृष्ट करय चाहैत छी. जे एहि रचना मे अपनेक दृष्टी स ओझल भय गेल. एहि घटनाक्रम मे अहाँ एहि विषय पर गौर केलियैक की जे ओ व्यक्ति एहन कर्म कियैक करैत छल. कोन एहन विवशता छैक जे मानव के एहन कर्म करय के लेल विवश क दैत छैक. बात सिर्फ दू-चारि टका के नहि छैक. बात छै बदलैत मानवीय मूल्य के आ बदलैत समाजिक परिवेश के. हमर विचार मे एहि बात के दू तरह स व्याख्या कयल जा सकैत अछि.
पहिल ई जे बढैत बेरोजगारीक समस्या आ दोसर मानवीय सोच पर। कहय के लेल हम बहुत जल्दी दुनिया के एकटा आर्थिक महाशक्ति बनय के लेल जा रहल छी. विकासक प्रतिबिम्ब सेंसेक्स अपन आदतक अनुरूप नव-नव ऊँचाई के छूने जा रहल अछि. महानगर मे छोट-छोट दोकान के बदला मे एक स एक सुपर मॉल खुलि रहल अछि. गाम आ की शहर कोई छूटल नहि अछि जेतय एक स एक विशाल अट्टालिकाक निर्माण नहि भ रहल होयत. मुदा ई ज्व्लंत प्रश्न अछि जे की एहि विकासक धारा जन-जन तक पहुँचि रहल छैक. गरीब आओर गरीब भेल जा रहल अछि. एकटा अध्ययन के मुताबिक 2% व्यक्ति कुल वैश्विक सम्पत्ति मे 50 प्रतिशत केर मालिकाना अधिकार राखैत छैथ. विकासक एहि धारा मे निम्न वर्गक लोग केर की हिस्सेदारी छैक ई एकटा ज्वलंत मुद्दा छैक.

हाँ त बात चलैत छल अखाबारक चोरी के. अहाँ के त खाली अखबार चोरी भेल. हमरा एहिठाम एक गोट कहानी मोन पडि रहल अछि जे हिन्दी के सुप्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका “हंस” मे प्रकाशित भेल छल. ओहि मे एकटा भद्र महिला प्रतिदिन अपन बाडी स होय बला फूलक चोरी स व्यथित छलीह. जाहि कारणे हुनका फूल कीनय परय छलन्हि. हुनका लागयत छलन्हि जे फूल ओ कीनयत छलीह ओ हुनकर अपने बाडीक प्रतीत होयत छलन्हि. एक दू बेर ओ फूलबाली स पूछबो कयलथिन्ह मुदा ओ कहलक ओ अपने बहुत रास फूल लगौने अछि. फेर की छल अहिँ जेकाँ एक दिन ओ सोचि लेलथि जे किछु बीति जाय मुदा आई ओ चोरक पता लगौबे करतिह. मुँह अन्हारे जागि क एकटा कोना मे नुकाय के ओ चोर के बाट जोह लागलथि. एखन भोर होय मे किछु समय बाकी रहय. कनिकाल के बाद ओ देखैत छथि जे पडोसक एकटा वृद्ध सज्जन नुका के हुनकर फूल तोडि रहल छन्हि. ओ सकपका गेलीह जे कोना ओ ओहि सज्जन के किछु कहतिह, कियैक त ओ ओहि सज्जन स नीक जेकाँ परिचित छ्लीह आओर हुनकर बहुत सम्मान करैत छलीह. कोनो तरहेँ ओ साहस जुटा के हुनकर आगाँ अयलीह आ पुछलखिन्ह जे ई अहिँ छी जे सभ दिन एहिठाम स फूल चोरि करयत छी. ओ सज्जन ढृढ आत्मविश्वास स स्वीकार कयलथि आ बजलाह हाँ आओर करब. ओ भद्र महिला स्व्यम सकपका गेलीह, हुनक आत्मविश्वास देखी कय. ओ पुछ्लीह जे से कियैक, कोन एहन बात अछि जे अहाँ एहन सज्जन पुरूष के एहन कर्म करय के लेल बाध्य कय देलक. अपन बेटा-पुतोहू स उपेक्षित ओ वृद्ध बजलाह जे अपन छोट-मोट जरुरत के पुरा करय के लेल हुनका लग आओर कोनो दोसर साधन नहि छन्हि. ओ महिला हतप्रभ भय एकटक हुनका देखय लगलीह.
आब कहू की ई बदलैत मानवीय मूल्य केर परिचायक नहि अछी। यदि अहाँ एहि कथा केर रचनाकार जेकाँ कहानी के एहि पक्ष पर ध्यान दैतियैक त कहानी केर स्वरुप किछु अलग होयतैक।

ई त भेल पहिल स्वरूप स कहानी के व्याख्या। यदि एकर दोसर स्वरुप देखल जाय त ई अछि जे कतबो किछु भ जाय मुदा मानव त एतेक कमजोर त नहि भेल अछि जे ओ अपन जीवन-यापन केर लेल एतेक निकृष्ट कर्म करय के लेल प्रेरित भ जायत.

बहुत बात भेल. आब पत्र के विराम दय रहल छी. एहि पर अपनेक जवाबक प्रतीक्षा रहत. विशेष अगला पत्र मे.
धन्यवाद-
कुन्दन कुमार मल्लिक
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव,
ग्रुप सनोफी-एवेंटीस,
बंगलोर (भारत)
दूरभाष- +91-9740166527
E-mail- kkmallick@gmail.com
kundanmallick@yahoo.com
(नोट- एहि पत्र पर एहि ब्लॉगक स्थापित रचनाकार जेना डा. पद्मनाभ मिश्र, शैलेन्द्र मोहन झा, खट्टर कका आ स्व्यम राजीवजीक टीका-टिप्प्णीक प्रतीक्षा रहत। कियैक जे एहि क्षेत्र मे हम नवसिखुआ छी आ अहाँ सभ हक दिशा-निर्देश पाबि हमर लेखन मे सुधार आयत.)

3 comments:

Kumar Padmanabh said...

कुन्दन जी;

प्रयास'क लेल धन्यवाद. जे सपना हमरा लोकनि २००४ मे देखलहुँ ओ आब पुरा होइत मालूम भ' रहल अछि. हमरा लोकनिक पहिल रचना अपने एतय देखि सकैत छी. सम्भवत: इन्टरनेट पर मैथिली भाषा'क पहिल रचना थीक. जहिया सँ राजीव जी सँ परिचय भेल एहि मे चारि चाँद लागि गेल अछि.

आब उचित समय आबि गेल अछि जखन अपना सब मिलि इन्टरनेट पर मैथिली भाषा'क पहिल पत्रिका शुरु करी. अपनेक डा. पद्मनाभ मिश्र

Rajeev Ranjan Lal said...

कुन्दन जी,
अहाँ जे अपना के नवसिखुआ कहि के बचाव करय लेल चाहैत छी से हमरा कतओ से उचित नहि बुझा रहल अछि। हमरा कोनो प्रमाण नहि भेट रहल अछि जे अहाँ के नवसिखुआ कहि सकी। अहाँ मीनूजी केर रचना में टिप्पणी कयलहुँ जे कविता में मात्राक गणना बहुत जरूरी। जे मनुक्ख एहि बारीकी के बुझैत होय ओकरा तऽ नवसिखुआ कहनाय तऽ उचित नहि छैक।

आब आबैत छी अहाँ के समालोचना पर...

पहिने धन्यवाद जे अहाँ लेखन के एहि विधा के मैथिली के लेल प्रयोग में आनि रहल छी। ओना तऽ ई हमेशा से कहल जायत अछि जे कोनो चीजक निर्माण हमेशा कठिन आ नीक से नीक वस्तु में भांगठि तकनाय बहुत आसान थीक, लेकिन हम एहि ठाम ई कहय लेल चाहब जे हमरा सभ के आत्मचिंतन के लेल ई बहुत अनिवार्य जे हम सभ आलोचना-समालोचना के विधा के सम्मान दी। ई निश्चित रूपेन मैथिली के सम्मानजनक मानक तक पहुँचाबय के प्रयास करत।

जहिना अहाँ के आलोचना एक विधा अछि ओतय व्यंग्य सेहो एक विधा आ ओकरा हमेशा गंभीरता से लेबय के जरूरत नहि। किएक तऽ बहुतो गोटा एहन छैथ जिनका पूर्ण हास्य से मनोरंजन होयत छैक तऽ किछु छैथ जिनका गंभीर लेखन पढ़य के हिसक। हमर अखबारक चोरी एकटा हास्य संस्मरण छल जाहि में हम खुद फँसि गेल छलहुँ जे कोना एकर अंत करी। हमर अंतर्मन में जे बात छल से लिखी आ कि जे दृष्टिगोचर भेल से। दुविधा से उबरैत हम एहि बात के लिखने छी जे हम ओ कथित चोर (जे कि चोर नहि परिस्थिति के मारल अछि अहाँ के परिप्रेक्ष्य में) के डाँटैत भगेलिएक। हमरा ओकर भगाबय के एकमात्र कारण जे हमरा ओकर दोष कम आ ओकर परिस्थितिवश जनित लोभ बेसी बुझायल। जौं हम ओकरा मारि के कहानी के अंत कयने रहितिएक तऽ शायद अहाँ के दिमाग के कहानी के दोसर पक्ष के उजागर करय के विचारो नहि अबितैक।

ओना, हमरा ई अफसोस रहत जे हम अहाँक अनुसार एकटा नीक रचना लिखैत लिखैत चूकि गेलिएक। आर एहि बात से हम प्रसन्न जे अहाँ आब हमर सभक बीच छी हमरा सभ के महान बनाबय के लेल।

सुस्वागतम कुन्दन जी, अपन कटाक्ष हमेशा प्रकाशित कयल करब, जे हमर सभक लेखनी के धार बनल रहय।

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

राजीवजी,
अपन पत्र'क सन्दर्भ में अहाँ'क जवाब पढैत दुष्यंत कुमार'क एकटा शेर मोन परि गेल,

जिन पत्ते पर हमने तकिये रखे,
वही पत्ते हवा देने लगे!

लागैत अछि जे अपने'क हमर पत्र पर किछु विशेष ध्यान नहिं देलियैक। हमर पत्र'क उद्देश्य अहाँक रचना पर आलोचना करय सs बेसी किछु विशेष मुद्दा पर अपनेक ध्यान आकृष्ट करनाय छल। ई बात हम अपन पत्र में पहिने स्पष्ट कय देने छलहुँ। यदि अहाँ फेर सs एहि पत्र के पढि त उम्मीद अछि जे अहाँ'क बहुत रास प्रश्नक जवाब भेट जायत। हमर ई उद्देश्य कथमपि नहिं छल जे हम ओकर बचाव करी। अपन पत्र में हम एहि बात के उल्लेख कयने छी जे एखन मानव एतेक कमजोर नहिं भेल जे अपन जीवन-यापन'क लेल ओकरा एहि तरह'क रास्ता अपनाबय पड्त।

पत्र'क मूल उद्देश्य छल अहाँक अखबार'क चोरी के बहाने बदलैत मानवीय मूल्य आ समाजिक परिवेश पर किछु आत्म-मंथन कयल जाय। एहि सन्दर्भ में किछु खास विषय पर अपने'क ध्यान आकृष्ट करय के प्रयास कयने छलहुँ।

मुदा लागैत अछि जे हमर ई प्रयास फलीभूत नहिं भेल। अनुरोध अछि जे एक बेर फेर सs नव दृष्टि में एहि रचना पर ध्यान देल जाय।

अपनेक-
कुन्दन कुमार मल्लिक
बंगलोर (भारत)
सम्पर्क- +91-9740166527

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...