असमंजस

असमंजस

हमर एकटा मित्र छैथ
हमर बहुत नजदीक,

मुदा हमरा स एकटा दूरी लेने खास,
गढैत रहैत छथि नव-नव परिभाषा,
दैत रहैत छथि नया रूप सभ के,

अपन जरूरत के हिसाब सs,
अपन आवश्यकता के अनुरूप,
आई काल्हि ओ किछु परेशान छैथ्,
अपन एकटा महिला सहकर्मी के लेल,

भेटल छलथि काल्हि,
कहि रहल छलथि अपन मन केर व्यथा,

मुदा ओ एकरो करय छथि परिभाषित,
अपन आदत के अनुरूप,
अपन स्वभाव के अनुसार,

कखनो कहैत छथि,
एकरा जीवन के एकटा खूबसूरत जरूरत,
तs कखनो एकटा उपभोग केर वस्तु मात्र,

हम अपने हैरान छी, परेशान छी,
कियैक नहि समझि पाबैत छियन्हि हुनका,

की हमर ई मानसिक कमजोरी छी,
अथवा ओ अपने छैथ एकटा अबूझ पहेली.

(नोट- ई रचना मूलत: वर्ष 2003 मे हिन्दी मे लिखने छलहू. कहल जायत छैक जे कोनो भाषा अपना आप मे एतेक कंजूस होयत छैक जे अपन सुन्दरता कहियो दोसर भाषा के नहि दैत छैक. ई रचना हम समर्पित करैत छी प्रिय “राजीव लाल जी” के जिनक प्रेरणा सs पहिल बेर मैथिली मे किछु लिखय के प्रयास कय रहल छी. स्वभाविक अछि जे बहुत रास गलती भेल होयत. अपनेक लोकनि सS हमर आग्रह जे अपन प्रतिक्रिया के माध्यम सs अपन विचार भेजू जाहि सs हमरा प्रेरणा भेटट आओर आगू एहि स बढिया किछु आओर लिखय के प्रयास करब. कविता लिखनाय तs हमर बस के बात नहि अछि आ नहि कहानी मुदा ई हमर प्रयास रहत जे समय-समय पर किछु आलोचना, समालोचना सभ अपनेक सेवा मे प्रस्तुत करी.)

प्रणाम-
क़ुन्दन कुमार मल्लिक.
ग्रुप सनोफी-एभेंटिस,
बंगलोर (भारत)
दूरभाष- +91-9740166527.
E-mail- kkmallick@gmail.com
kundanmallick@yahoo.com

5 comments:

शैलेन्द्र मोहन झा said...

कुन्दन जी,
आई हम अन्हांक कविता कम सं कम दस बेर पढलौं तहन बुझना में आयल. एकटा प्रखर कवि अपन विचार के किछु अहि प्रकार सं प्रस्तुत करैत छथि जे पढनिहार के, कविता पढला के बाद कनिक दिमागी कसरत करय परैत छनि. अपनेक कविता बड्ड नीक लागल.

शैलेन्द्र मोहन झा

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

शैलेंन्द्रजी,
धन्यवाद. ई अहाँक महानता आ मैथिली प्रेम अछि जे अहाँ हमरा प्रखर कवि कहि के सम्बोधित कयलहूँ. मुदा सच ई छैक जे कविता वा कहानी लेखन हमर वश के रोग नहि अछि. हमर विशेष रुचि आलोचना एवँ समालोचना अछि.

चलु आब एहि रचना पर किछु प्रकाश दैत छी. वस्तुतः ई रचना हम अपन कॉलेजक एकटा सहपाठी के ध्यान मे राखि के लिखने छलहुँ. ज़ेना हम पहिने स्पष्ट कय चुकल छी जे ई मूलतः हिन्दी मे लिखल गेल छल. कोनो रचनाकार जेखन कोनो रचना के जन्म दैत छैक तेखन ओकरा मोन मे जे आबैत जायत छैक ओ लिखि दैत अछि आओर हमर विचार अछि जे रचनाकार के एहि बात के पूर्ण रूपेण स्वतंत्रता होयबाक चाहि जे ओ अपन सामाजिक मर्यादा मे रहैत अपन सोचक सीमाविहीन आकाश मे घुमि सकय.
मुदा ईहो एकटा अकाट्य सत्य छैक जे कोनो रचना अपन पूर्णता पर तेखन पहुँचैत अछि जेखन ओकर पाठक वर्ग ओकर रचना के अपना रुप मे प्रस्तुत करैत छैक. आओर ओहि के लेल यदि पाठक लोकनि के कनि दिमागी कसरत करS पडय ओहि स पैघ सौभाग्य कोनो रचनाकार के लेल नहि भs सकैत छैक.

अहाँक जवाबक प्रतीक्षा रहत.

धन्यवाद-
कुन्दन कुमार मल्लिक

Kumar Deepak said...

good concern u have shown thru this poem.good keep it up.

Santosh Kumar said...

kundan ji dhanyabad apanek kabita bahut hi sunder aor ajuk adhunik samayak jawan achhi bahut satya jani parait achhi

Rajeev Ranjan Lal said...

असमंजस शीर्षक देखि के पता नहि कोना दिमाग में एकटा गाना चलय लागल:

"असमंजस में पिया हम तार देने छी,
अहाँ आबु ने किया पहाड़ भेल छी...
असमंजस में, अहाँ आबू ने।"

हँसुआ के वियाह, खुरपीक गीत जकाँ हम ई की कहय लागलौं। हाँ, तऽ अहाँ के जे असमंजस अछि से कनेक अलग लागल। नीक आ कि बेजाय, से अखनो तक नहि फरिछा सकलौं मोन में आ एहि कारण से एकरा नीक मानि रहल छी।
कुन्दन जी के कहब जे रचनाकार के लेल ई हर्ष बला बात जे पाठक के दिमागी कसरत हुअए। हमरा ई बात कतओ से धँसल नहि। कि जानि बुझि के कोनो तथ्य के भ्रामक वा जटिल बनेनाय हर्षक बात कहल जेतय। साहित्य आ गणित में अखनो अंतर छैक आ दुनु के अलग स्थान आ महत्व। गणितो में जटिलता के समाधान ताकय के प्रयास रहैत छैक, जटिलता आनय के नहि। एहि में अहाँ के मोने मोन खुश भेनाय कि अहाँ के कविता दिमागी कसरत के वस्तु अछि...पाठक वर्ग के मानसिक स्तर के कम कऽ के आँकैत अछि। आ हमर सलाह अहाँ के हमेशा से रहत जे पाठक के अहाँ अपना से ऊपर मानि के चलियौक। अहाँ के दृष्टिकोण एक से अधिक भऽ सकैत अछि अहाँक अपन लेखन के लेल, लेकिन ओकर सीमा छैक आ अहाँ दस टा पाठक के दृष्टिकोण के परितर कहियो नहि कऽ सकब। कारण अहाँ के लेखन के उच्च स्तर के नहि, पाठक वर्ग में ओकर स्वीकार्यता के छैक।

नीक लेखन अछि आ अपन मित्रक ऊहापोह बला मानसिकता के अहाँ अपन प्रयोग से प्रस्तुत कयलौं। सराहनीय आ एकरा आगाँ बढ़ाबैत रहु।

सादर,
राजीव रंजन लाल

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