मिथिला ! अपन मिथिला !

मिथिला ! अपन मिथिला !
फ़ुइसक घर,
घरक चार पर लतडल कदीमा आ सजमईन,
भीतर सीक पर टांगल दही,
दलान पड कूट्टी खाइत बडद,
गणु झाक खीस्सा सुनबैत बुढहा,
खढियान मे राखल धानक बोझ,
भीति पर लीखल कोहबर,
आंगन मे लिखल अडिपन,
सामा-चकेबा,बगीया, पुडिकिया, तिलकोड,
पोखडि मे माछ आ मखान,
आर कतेक रास बात,
मिथिला, अपन मिथिला, अपन मैथिलि, अपन मैथिल !

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...