लुका-पाती

Rajeev Ranjan Lallजे गाम में रहल छैथ हुनका मोन हेतैन दिवाली में जलै बला लुका पाती। कपडा के गोला के तार सँ कसि के बनाओल जायत छैक ओकरा आ तखन मटीया तेल में डुबा कऽ आगि लगा के गामक धिया पुता सौंसे गाम इजोरिया केने रहै छैथ। एहि ब्लोग में हम लिख रहल छी अपन पहिल लुका पाती खेलै के संस्मरण।

तखन हम छठा किलास में छलहुँ आ नित दिन बोरा लऽ के महावीर थान (स्थान) जायत रहियऽ। ई महावीर थान छल हमर गामक राजकीय प्राथमिक विद्यालय, जेकर एक कोना में बजरंग बली के मंदिर भेला सऽ एहन नाम पडल। सतमा क्लास मात्र के विद्यार्थी बेंचबला छलैथ। दिवाली सऽ एक दिन पहिने किछु संगी अप्पन अप्पन लुका लऽ के आयल छलैथ आ बोरा तर मे नुकौने छलैथ। वर्ग के बीच में होय बला अंतराल में आय इएह गप्प चर्चा में छल जे केकर लुका कतेक पैघ आ कसगर छैक। तखनि धरि हमर लुका नहि बनल छलै, से हम कनि विशेष ध्यान देने छलियैक जे कोना की योजना बनतैक। स्कूल में चर्चा इहो छलैक जे कोन कोन दुकान में लुका के मट्टी तेल में बोरै के कते पाइ लै छैक। कियो के कहब छल कि गोसइयाँ ओतय आठ अन्ना में दु घंटा मटिया तेलक ड्राम में बोरऽ दैत छैक। कियो के जे मनसूखबा ओतय बारह आना लऽ के ठगै छैक। आँखिक सोझ में डुबौने रहय छैक आ बाद में निकालि के राखि देत छैक। खैर, छुट्टी भेल।

दिवाली के दिन भोरे में हम बाबूजी सँ कहलियेन जे हम अखनि धरि लुका नहि बनौलिए यऽ। जल्दी करय पडतै नहि तऽ मटिया तेल में बोरै के लेल बेसी समय नहि भेटतैक। बाबूजी विशेष ध्यान नहि देलखिन आ कहलखिन जे बाजार में सौंसे बनल बनायल बिकैत छैक, ओतऽहि सऽ कीन लिहैं। अपना तरफ सँ धरफरा के ११ बजे बाजार जा के दु टा लुका कीन के आनलिएक, एकटा अपना लऽ आ एकटा अपन छोट भाई के लेल। उहो हमरा कीनैत देखि मारि केने छल। दुनु लुका के गोसइयाँ ओतय मटिया तेल में बोरि एलियेक। मटिया तेल में पच्चीसो लुका पहिने से भरल छल।

साँझ भेला पर लुका आनि लेलियेक आ आब इंतजार छलै असली खेल के। लक्ष्मी पूजन भेल। दलान से भगवती-घर तक सनठी जरा के फेरल गेल। अन्नधन लक्ष्मी घर आऊ, दलिद्र बाहर जो के फकरा पढल गेल। घर बाहर दिया आ डिबिया जराओल गेल। हमहुँ दुनु भाई अपन लुका जरेलौं। छोटका भाई छ:- सात सालक छल, से बाबूजी के विशेष चिन्ता छलैन्ह। हम तऽ बुझु देह हाथ छोडि के लुका भाँजय लागलियेक। ओहन मजा आय धरि फेर नहि भेटल। लुका सँ लहकैत आगि आ ओकर चारू बगल में फतिँगा सब उडि उडि जलय जाय रहल छ्ल। गामक गली गली में छौडा-माडऽर लुका पाती भाँजय लागल। दीपावली लुकावली में परिणत भऽ गेल छल। तखने बाबूजी के ध्यान हमर छोटका भाई सँ हटि गेलैक आ ओकर लुका भाँजय के क्रम में तार सऽ खुलि गेलै आ ऊपर जा के ओकर गरदनि पर खसि परलै। गरदन के किछु हिस्सा झुलस गेलैक। पर किछु देर में सभ किछ शांत भऽ गेलैक।

ओहि दिनक बाद फेर लुका भाँजय के सौभाग्य तऽ नहि भेटल मुदा ओहन दिवाली के मजा फेर घुरि के आयत से संदेह। आय गामो घर में पटाखा के आवाज में लुका के रोशनी नुका गेल छैक आ ओतेक उत्साह बाल वृंद में देखै में नहि भेट रहल अछि, जेहन महावीर थान में छलैक। आब महावीर थान सेहो अनुदानक अभाव में जरजर भऽ गेल छै आ बजरंग बली के छोटका मंदिर चंदा जुटा के बहुत विशाल भऽ गेलैयऽ। पटाखा बला बच्चा के माय बाप आब अपन बच्चा के गामक प्राइवेट अंग्रेजी स्कूल में पढवैत छथि आ बोरा उघै के जरूरत कोनो विद्यार्थी के नहि रहि गेल छैक।

गामक परिदृश्य सऽ लुका पाती जरूर लुप्त भऽ गेल मुदा हमरा लेल दीवाली माने अखनो लुका पाती छैक।

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...