आफिस लऽग'क पहिल ट्रैफिक सिगनल (कहानी)

लेखक: डा० पद्मनाभ मिश्र


आई आफिस सँ ठीक समय सँ निकललहुँ. पिछला दस घँटा सँ अफिसे मे छलहुँ. एखन साँझ’क साढ़े सात बजे धरि पार्किँग मे लोक’क आवाजाही मे कोनो कमी नहि भेल छल. बँगलोर मे इएह बात नीक थीक, बँगलोर कखनो सुतैत नहि अछि. खैर, एखन साढ़े सात बजल छल आ एखन सुतबाक कोनो प्रयोजन नहि भऽ सकैत छल. ओना पिछला दस घँटा सँ करैते की रही? सुतले तऽ रही. किओ आफिस’क बारे मे नीके परिभाषा देने छथि, "आफिस एक एहेन जगह होयत छैक, जतय जीवन’क भागग-भाग सँ दूर, लोक दू टा स्वाइप’क बीच मे चैन’क नीन्द सुतैत अछि". किनको उपर मे ई परिभाषा लागु हो चाहे नहि हो हमरा उपर मे ई अक्षरशः सत्य थीक. कहियो लन्च’क समय मे कोनो काज सँ चलि जाइत रही मुदा आई ओकरो मौका नहिँ भेटल. तेँ आइयो दस घँटा अरामे भेल. पार्किँग सँ विदा भेलहुँ तऽ धीरे-धीरे ओन्गहीँ टुटल जा रहल छल. आई भोरे भोर आयल छलहुँ आ नहेबा’क समय नहि भेटल छल. अपन गँध अपने लागि रहल छल, मुदा एहि गँध मे जीबाक आदत पड़ि गेल अछि. गँध रहओ वा किछु आओर, बँगलोर’क भागा-दौरी मे किछु नहि रुकैत छैक. जिन्दगी चलैत रहैत छैक बे-रोकटोक. आ चलबाके चाही ने? जिन्दगी बनबे कएल अछि चलबाक लेल. रुकि गेल तऽ बुझि लिऔक मृत्यु. अपन जिन्दगी’क इएह फलसफा केँ विचारैत बहुत वेग सँ सरपट जा रहल छलहुँ कि जल्दी सँ जल्दी ट्रैफिक मे पहिल सिगनल पर पहुँचि जाए. पहिल सिगनल’क बाद मे बँगलोर अपन प्राकृतिक गतिक सँ चलय लागैत छैक. मोन मे छल जे सिगनल पर पहुँचय सँ पहिने अपन रफ़्तार’क मजा लऽ ली, इएह मोन मे रहय. फेर ओकर बाद तऽ अनुशासन मे आबैये पड़त. वेग सँ समय दूरी जल्दी कटि जाइत छैक आ हमर आफिस लऽग’क पहिल ट्रैफिक सिगनल आबि गेल.

Dr. Padmanabh Mishraलेखक- डा० पद्मनाभ मिश्र, बनैनियाँ सुपौल. कतेक रास’क बात’क शुरुआत असगरे कएने छलैथि मुदा हिनकर कहबाक छन्हि "लोग आते गए और कारवाँ बनता गया". हिनका सपना देखबाक विशेष शौक. एक सपना देखने छथि जे भविष्य मे १००० हजार मैथिली ब्लोगर.

ई एक सँग हिन्दी, अन्ग्रेजी, आ मैथिली तीनो मे महारथ हासिल करबाक कोशिश मे बहुत किछु अनकठल काज केने छथि. गलती करबा मे कोनो अशौकर्य नहि छन्हि, गलती केँ दोहरेबा मे सेहो कोनो दुःख नहि. हिनकर कहनाय छन्हि, "केरा के धुकि रहल छी कहियो ने कहियो पाकबे करत". फिलहाल नाकामी केँ बिल्कूल नकारैत अपन काज जारी रखबाक कोशिस. हिनकर असगरे चललाक बाद हिनका २२ टा लेखक सँग भेटलन्हि आ परिणाम अछि लगभग १०० तरह’क साहित्य सृजन.

सब किओ अपन वेग कम करैत ट्रैफिल लऽग पहुँचि रहल छल. मुदा हम अपन ओएह सामान्य वेग सँ दू टा गाड़ी’क बीच मे जा केँ खटाक सँ रुकलहुँ. दाहिना कात मे आँखि गेल, देखलहुँ ओएह सुन्दरी केँ, जिनककर पाछु हम पिछला छओ महीना सँ पड़ल छी. सुन्दर वरण मुँगा सन लाल ग्रीनो लाइट मे अपन उपस्थिति’क सिगनल सब केँ दऽ दैत छलीह. बँगलोर’क पैसा’क बहैत धार मे बिल्कूल भारतीय सुन्दरता ओढने एहेन यूवती’क दर्शन यदा-कदा सम्भव होइत छैक. जतय पैसा’क धार बहैत छैक ओतय सुन्दरता’क कमी नहि रहैत छैक, प्राकृतिक सुन्दरता हो चाहे नहि हो, मेक सँ सुन्दर किनको बना देल जाइत छैक. मुदा हमर सुन्दरी सन प्राकृतिक सुन्दरता बँगलोर मे भेटनाय मुश्किल. मुदा बँगलोर’क ट्रैफिक मे ओ एना गायब भऽ जायत छलीह, जेना गदहा’क माथ सँ सिँह. रुकला’क बाद ट्रैफिक सिगनल पर ध्यान देलहुँ आ बुझि मे आयल अगिला तीन मिनट धरि एहि सुन्दरी’क रुप सँ अपन पसाहैल आँखि केँ तृप्ति भेटत. कोनो बेसी साज श्रृँगार नहि केने रहैथि मुदा चिक्कन-चुनमुन जरुर लागि रहल छलैथि. एक बेर मोन फेर हीन भावना सँ ग्रसित भेल. मोन मे अफसोस भेल जे भगवान एहेन कोन सँयोग केने छथि जे जहिया हिनका सँ भेँट होइत अछि हम बँगलोर’क ट्रैफिक मे घाम सँ महँकैत प्रस्तुत होइत छी.

हमरा लऽग आबैत अपन कनखी नजरि सँ ओ देख नेने छलीह आ ससरि केँ सिगनल के कनि लऽग आओर चलि गेलीह मुदा हमरा सँ दूर भऽ गेलीह. हमरा बुझल नहि छल जे ओ हमर सुरत देखि केँ पड़ा गेल छलीह वा शरीर’क दुरगन्ध सँ. हमरा लोकनि तऽ उपर सँ बनि केँ आयल छी तेँ एहि मे बदलाव कोनो सम्भव नहि. मुदा अपना आप केँ साफ सुथरा रखबाक लेल प्रयास कऽ सकैत छी. परफ्यूम से कीनि केँ राखि सकैत छी. लाखोँ के शरीर अछि बकायदा इन्स्यूर्ड आ ओकरा मेन्टेन रखबाक लेल दू सय बीस टाका मे एकटा परफ़्यूम कीनि इस्तेमाल तऽ काइये सकैत छी. ओ हमरा सँ बकायदा दूर भऽ गेल छलीह, मुदा हमहुँ कोनो छोट खिलाड़ी नहि रहल छी. एखन नव-नव जवान भेलहुँ यऽ आ हमरो हृदय मे भावना हिलकोर लऽ रहल अछि. मोन भेल कहि दी,"ऐ छम्मक छल्लो कहाँ जा रही हो, जरा सुनो तो सही". मुदा गाड़ी सँ भरल सिगनल लऽग’क ट्रैफिक हमरा अपन अनुशासन मे रहबाक प्रेरणा दैत छल. मुदा उत्साह जखन चरम पर होइत छैक तऽ अनुशासन बेमानी मानल जाइत छैक आ नियम केँ तोड़बा मे किनका आनन्द नहि होइत छैक. यदि किओ नियम केँ तोड़बे नहि करैथि तऽ बँगलोर मे ट्रैफिक’क समस्या खत्म नहि भऽ जाए. मोन भेल चलु मस्ती काएल जाए. पुनः सुन्दरी’क सँग कहिया भेटत से नहि जानि. मोन मे भेल लऽग मे जा केँ कनी देह मे देह सटा देल जाए. मुदा देह सटेला’क बाद मे केहेन प्रतिक्रिया होयत तकर कोनो पता नहिँ. हाथ पैर टुटत, वा काज धन्धा छोड़ि घर बैसय पड़त.


एहि कथा’क बाँकी हिस्सा हमर पोथी "भोथर पेन्सिल सँ लिखल" मे देल गेल अछि.
पोथी’क बारे मे विशेष जानकारी आ कीनबाक लेल प्रक्रिया निम्न लिन्क मे देल गेल अछि. http://www.bhothar-pencil.co.cc/ .
मैथिली भाषा’क उत्थान मे योगदान करु. पोथी कीनि साहित्य केँ आगू बढ़ाऊ.

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