खोँता आ घर

- कुन्दन कुमार मल्लिक
जॆठक दुपहरिया,
चोँच मे खर-पात दबौने,
उडैत एकटा चिडय,
अँफसिआयैत,
कनेक टा खोता के लेल,

व्यवसायिक व्यस्तता आ किछु निजी समस्या बहुत दिन सँ लेखनी पर लगाम लगा देने छल। त' सोचलहुँ जे आई अपन जन्मदिन पर पाठक बन्धु लोकनि केँ लेल किछु नव प्रस्तुति लय के आयल जाय। कविता केहन लागल से जरुर लिखब।
- कुन्दन कुमार मल्लिक



दलान मे बैसल,
देखि रहल छलहुँ,
ओकर अंतहीन प्रयास,
एहिना तs हमहुँ दौडैत रहैत छी,
हमहीं कियैक,
कतॆको एहॆन हॆताह,
दौडैत-भागैत आ अँफसिआयैत,
एहि शहर स’ ओहि शहर,
एकटा घरक लेल,
कैंचा जोडति एक-एकटा,
अपन पेट काटि के,
किछु के माथ पर छत भेटि जाय छन्हि
त’ किछु टूटि जायत छथि,
इ सपना नेने।

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