- सुभाष चन्द्र
कोना कही, हाथ मे हमर काँच नहि
मुदा जे देखल ओ हमर चेहरा नहि
मुदा जे देखल ओ हमर चेहरा नहि
काल्हि फूजल खोलने रही घरक खिडकी
मुदा बसातक झोका एम्हर आएल नहि
मुदा बसातक झोका एम्हर आएल नहि
आयल छल एकटा बिहारि बदलाव के
गाछ स’ सुखायल पात टूटल नहि
नहि जानि कोन मद मे लिखि देल
निहारय छी अहाँक चॆहरा जखन नशा चढैत नहि
लोक कहैत अछि आइयो एकरा कमाल
मुदा हमरा एकर अवगति नहि
मुदा हमरा एकर अवगति नहि