बाढि पर एक कवि- डॉ. गंगेश गुंजन

"दु:खे टा चारु कात छै आ जी रहल- ए लोक
ताकैत आसरा कोनो दुःख पी रहल- ए लोक !
घर-द्वारि दहि गेलैक सब बच्चा टा छै बांचल
रेलवेक कात, बाट-घाट जी रहल- ए लोक !
सांझो भरिक खोराक ने छैक अगिला फसलि धरि
जीबा लए ई लाचार कोना जी रहल- ए लोक !

कवि- डॉ. गंगेश गुंजन,
74- डी, कंचनजंघा अपार्टमेंट,
सेक्टर- 53, नोएडा- 201 301


सबटा गमा क' जान बचा आबि त' गेलय
आब फेकल छुतहर जेकाँ हद जी रहल- ए लोक !
जले पहिरना, बिछाओन जले छैक ओढना
जबकल गन्हाइत पानि-ए खा पी रहल - ए लोक !
सब बर्ष जकां एहि बाढि मे कारप्रदार
रिलीफ नामें अपन झोरी सी रहल किछु लोक !
चलि तँ पडल- ए जीप- ट्रक - नावक से तामझाम
आब ताही आसरा मे बस जी रहल- ए लोक !
कहि तं गेलाह- ए परसू- ए दस टन बंटत अन्न
एखबार- रेडियो भरोसी जी रहल- ए लोक !
घोखै तँ छथि देश मे पर्याप्त अछि अनाज
सडओ गोदाम मे, उपास जी रहल- ए लोक !
उमेद मे जे आब आओत एन जी ओ कतोक
द' जायत बासी रोटी, वस्त्र, जी रहल- ए लोक !
अछि कठिन केहन समय ई राक्षस जकाँ अन्हार
किछु भ' रहल अछि तय , तेँ त' जी रहल- ए लोक !

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...