विस्थापित


कवियत्री- सुश्री कामिनी कमायनी


बड्ड दिन भेलए
देस कोस सँ दूर,
मोन जेना भसिआएल बूढ़ सन
हेराए गेलए,
किओ ककरो कल्लोल कए
कि गाम मोन पड़ल,
मुदा कोन गाम
ठाम की,
कतेको गाम आ शहरि मे भटकैत दिन,
एक दिन उदास पुछैत चित सँ,
जन सँ कि वित्त सँ,
पूर्ण भेल रिक्त की
लज्जा विहीन मोन
शँकित तमसाएल,
पदार्थ, दर्शन व
उतरल ओझराएल मोन,
आँखि सँ फुटैत अछि शोणित के धार,
जुग जुग के विस्थापित हम
फिरैत छी बोने बोन
मनुक्ख’क बोन वा कि तृष्णा’क बोन॥

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...