ई केहेन प्रेम (कहानी)

लेखक- डा० पद्मनाभ मिश्र
नई दिल्ली स्टेशन पर जखन सुमन जी अयलाह तऽ अपेक्षाकृत बेसी भीड़ छल. ओना तऽ वैशाली ट्रेन बिहार जेबाक लेल सबसँ महत्वपूर्ण ट्रेन होइत छैक मुदा आई आन दिन’क अपेक्षा आओर बेसी भीड़ छल. स्कूल कालेज मे गर्मी छुट्टी काल्हिए शुरु भऽ गेल छल. गर्मी छुट्टी सुमन जी’क लेल सेहो छलन्हि आ ओ अपन पैत्रिक स्थान जाइत छलाह. मुदा सुमन जी’क लेल कोनो बेसी परेशानी नहि छलन्हि. दू महीना पहिने ट्रेन रिजर्वेशन भऽ गेल छलन्हि. भीड़ सँ हुनका केवल ताबय धरि परेशानी छलन्हि जाबय धरि अपन कोच एस-६ मे बैसि नहि जाथि. राधिका से ओएह ट्रेन सँ जेबाक लेल टिकट लेने छलीह आ बाद मे वरुण’क प्रोग्रम से बनि गेलन्हि. क्रमशः तीनो लोकनि मिलि अपन अपन गाम जेबाक लेल एस-६ मे बैसि गेल छलैथि.

Dr. Padmanabh Mishra
लेखक- डा० पद्मनाभ मिश्र, बनैनियाँ सुपौल शिक्षा- बी.टेक, एम. टेक. पी०एच०डी. ईलेक्ट्रनिक्स इन्जिनीरिँग मे, अभिरुचि: मैथिली साहित्य




ओना तऽ प्रत्येक गर्मी छुट्टी मे सुमन जी गाम जाइत छलाह. किओ पुछन्हि तऽ ई नहि कहैथ जे गाम जा रहल छथि. ओ इहो नहि कहैथ जे अपन बुढ़ दादा-दादी सँ भेँट करबाक लेल जाइत छथि. अपितु हुनका ई कहबा मे नीक लागन्हि जे ओ आम खेबाक लेल गाम जा रहल छथि. जाबय धरि पटना मे छलाह ताबय धरि प्रत्येक मास गाम पहुँचि जाथि मे दिल्ली तँ दिल्ली छल. साल मे एक्के बेर गाम जाइत छलाह. इएह प्रत्येक गर्मी’क छुट्टी मे. कोसी कात मे बसल हुनकर गाम मे गर्मी कम से लागन्हि आ आम खेबाक मौका अलग सँ. दुनियाँ दोसर भाग मे आम’क महत्व शायदे एत्तेक भऽ सकैत अछि. देश प्रदेश सँ लोक केवल आम खेबाक लेल गाम जाति छथि. केवल एतबे नहि किछु लोक तऽ एहेन होइत छथि जे जाइत छथि कोनो काज सँ आ नाम आम’क लगा दैत छथि. नवकनियाँ केँ नैहर एहि लेल जेबाक छन्हि जे हुनका आम खेबाक छन्हि. धिया पुता अपन मामा गाम एहि लेल जेताह जे हुनका आम खेबाक छन्हि. नवकनियाँ सासूर’क जिम्मेदारी वा अपन माँ बाबूजी सँ भेँट करय नहि जेतीह, धिया-पूता लोकनि पढ़ाई लिखाई छोड़ि मामा गाम मे मस्ती करय नहि जेताह ओ सब लोकनि आम खेबाक लेल जेताह. जे नवकनियाँ आम’क समय मे नैहर नहि जा सकलीह हुनकर सासूर’क लोक उलहन दऽ दैत छन्हि, "हिनका माए बाप केँ आमक गाछ अछि ? जे आम खेबाक लेल जेतीह?". कोनो वर के विवाह सँ पहिने आम’क गाछ एक कसौटी होइत अछि. मतलब ई जे अमूक वर केँ एत्तेक कलमी आम छैक आ एत्तेक बीजू. कुल मिलाँ केँ प्रत्येक लोकक अपन अपन स्वार्थ मुदा बीसाइत आम’क सिर पर. नहि जानि आम खेबा’क बहाना सँ कतेक स्वार्थ’क पूर्ती भेल अछि. आम’क सिर बिसाबैत ओ हजारोँ स्वार्थी लोक मे सुमन जी एकटा अभिन्न आदमी छलाह जे अपन स्वार्थ’क पूर्ती’क हेतु आमक सिर बिसेलैथि.

ट्रेन अपन वेग सँ जा रहल छल. सुमन जी घर सँ खाना आनने नहि छलैथ तेँ ट्रेन’क पेन्ट्री पर आशा छलन्हि. ट्रेन’क खाना हुनका अपेक्षाकृत बेसी नीक लागैत छलन्हि तेँ चिकेन पराठा आर्डर कए देलथिन्ह. राधिका आ वरुण अपन आदत अनुसार दालि भात तरकारी खेलथिन्ह. राधिका तऽ बढ़िये सँ खाना खेलीह मुदा वरुण केँ नहि तऽ दालि भात तरकारी वा नहिएँ चिकेन परोठा मे कोनो विशेष रुचि छलन्हि. राधिका हुनका खाना खेबाक क्रम मे काएक बेर टोकल्कन्हि मुदा हुनका उपर मे कोनो विशेष फर्क नहि पड़लन्हि. हमेशा’क तरह वरुण अनठेने छलैथ. राधिका’क आग्रह हुनकर अपन जिद्द के सोझाँ मे नहि चलि सकल. अन्त मे राधिका तमसा के कहने छलथिन्ह, "रात को भूख लगेगी तो कुछ नही मिलेगा". वरुण तैयो स्तब्ध छलैथि. आ हुनकर बाडी लैन्गूएज एहेन कहैत छल जे ओ खेबा पीबा मे बहुत शौकीन किस्म के लोक छथि आ ट्रेन’क ई गन्दा खाना मे हुनका कोनो अभिरुचि नहि छन्हि. मुदा राधिका बाडी लैन्गूएज एहेन कहैत छल जे नहि खायब तऽ पछताएब. सुमन जी केँ होइत छलन्हि जे राधिका बिना मतलब के वरुण’क आव भगत करैत छथि. जिनका भूख लागतन्हि ओ अपने खेताह ओहि मे राधिका के जिद्द सँ कोन फायदा?. मुदा ओ एहि मे राधिका के कोनो गलती नहि दैत छलाह. हुनका लागैत छलन्हि जे वरुणे नाटक कऽ रहल छथि. आ राधिका स्त्री जाति होयबाक कारणे सबहक चिन्ता अपने उपर नेने छलीह.

सुमन जी केँ पिछला समय याद आबय लागलन्हि. राधिका हुनका सँ कतेक प्रेम करैत छलीह. ओना तऽ आई काल्हुक समय मे कोनो दोसर आदमी केँ फुर्सते नहि भेटैत छन्हि. मुदा कनियोँ फुर्सत भेला पर राधिका हुनकर कतेक ख्याल राखैत छलीह. मुदा जहिया सँ वरुण राधिका’क जीवन मे प्रवेश कयलन्हि सब किछु बदलि गेल. राधिका’क वरुण सँ नजदीकी सुमन जी केँ फुटलो आँखि नेहि सोहाइत छलन्हि. कएक बेर सुमन राधिका सँ पुछि चुकल छलाह जे की ओ हुनका सचमूच के प्रेम करैत छथि. आ प्रत्येक बेर राधिका हुनका उत्तर दऽ देने छलीह, जे ओ एखनो सिर्फ सुमने जी टा सँ प्रेम करैत छथि. सुमन जी राधिका सँ कएक बेर पुछि चुकल छलाह जे हुनका कोनो प्रोब्लेम नहि हेतन्हि, ई जानि के जे ओ आब हुनका सँ नहि बल्कि केवल वरुण सँ प्रेम करैत छथि. मुदा प्रत्येक बेर राधिका’क इएह जवाब छलन्हि जे किछुए दिनक बात अछि ओ वरुण सँ दूर भऽ जेतीह. राधिका’क ई बीच वाला खेल सुमन जी केँ बिल्कूल नहि पसन्द आबि रहल छलन्हि. आ नहि जानि राधिका वरुण मे कोन एहेन चीज देखैत छलीह जे सुमन जी सँ दूरी बना लेने छलीह. मुदा कोनो दोसर फैसला लेबय सँ पहिने ओ देखय चाहैत छलाह जे राधिका’क झूठ’क सीमा की अछि?. राधिका केँ ओ पूरा टाइम देबय चाहैत छलाह जे बात मे हुनका कोनो अफसोस नहि रहि जान्हि. ओ राधिका’क "किछुए दिन" केँ देखय चाहैत छलैथ जे ओ दिन आयत जहिया ओ वरुण सँ बहुत दूर भऽ जेतीह. वा पूर्ण रुप सँ आस्वस्थ होमय चाहैत छलाह जे एहेन दिन कहियो एबो करत वा नहि. हुनका मोन मे एक सय बात चलैत छलन्हि मुदा ओ किछु बाजलाह नहि.
अमावाश्याक अन्हरिया राति मे ट्रेन खटर खटर के आवाज करैत तीव्र वेग सँ जा रहल छल. ट्रेन वेग मे कखनो एक दिस झुकि जाइत छल तऽ कखनो दोसर दिस. पटरी जोड़ पर कखनो जोर सँ आवाज होइत छल तऽ कखनो सर्रर.. सँ निकलि जाइत छल. बाहर सँ आबैत टटका हवा सँ गर्मी’क बिल्कूल अनुभव नहि होइत छलन्हि. कखनो दूर कोनो गाम मे बिना बिजली’क खपरैल घर मे जरैत लाल्टेन पर सुमन जी’क ध्यान चलि जाइत छलन्हि. कखनो खिड़की सँ कोनो भगजोगनी कम्पार्टमेन्ट मे घुसि जाइत छल अ कनि देर इम्हर उम्हर केलाक बाद फेर सँ बाहर चलि जाति छल. कखनो छोटका सन स्टेशन पर कोनो छोटका सन स्टेशन मास्टर बड़का सन ग्रीन लाइट के देखबैत छलाह आ जाबय धरि सुमन जी एहि दृश्य केँ नीक जेकाँ देखतथि ताबय धरि ओ स्टेशन बहुत पाछू छुटि जाइत छल. चलैत ट्रेन सँ श्टेशन के देखनाई सुमन जी केँ बच्चे सँ नीक लागैत छलन्हि. विशेष रुप सँ श्टेशन मास्टर’क ग्रीन लाइट.
बाहर देखैत देखैत ओ मूल बात केँ बिसरि जाति छलाह. मुदा जखने वरुण दिस ध्यान जाइत छलन्हि मोन फेर सँ तामसेँ घोर भऽ जाइत छलन्हि. वरुण हिनका दिस टटकी लगा केँ देखैत छलाह मुदा तामसेँ सुमन जी हुनका दिस देखतो नहि छलाह. कखनो कखनो राधिका हिनका दिस देखैत छलीह तऽ सामान्य सन मुस्की इहो दऽ दैत छलाह. ओ कोनो भी कीमत पर राधिका’क मोन नहि दुखबे चाहैत छलाह. मोन मे एत्तेक उपराग भेलाक बादो राधिका’क केँ आभाष होमय नहि देबय चाहैत छलाह जे हुनकर हृदय’क स्थिति की छन्हि. तेँ नहिँ चाहितोँ हुनका मुँह पर मुस्की आबि जाइत छलन्हि. राधिका’क मुँहपर सुमनजी’क मुस्की सँ सँतुष्टि’क भाव आबैत छलन्हि. प्रतिपल सुमन जी केँ ओ सन्तुष्टि बेमानी लागैत छलन्हि, मुदा अन्हरिया राति मे कोनो दोसर उपायो नहि छलन्हि.

गाड़ी ओहिना अपन वेग सँ जा रहल छल. बाँकी यात्री मे हँसी ठहाका होइत छल, मुदा राधिका, वरुण आ सुमन जी स्तब्ध छलैथि. खिड़की लग मे राधिका बैसल छलीह आ हुनकर बगल मे वरुण आ गैलरी’क दोसर दिस साइड वाला नीचला बर्थ पर सुमनजी असगरे बैसल छलाह. सुमनजी’क ध्यान अन्हार राति मे खिड़की लग बैसल राधिका’क दिस जखन गेलन्हि तऽ राधिका’क पैघ पैघ आँखि बिजुली सन चमैक जाइत छलन्हि. गौर वर्ण, चाकर चेहरा आ अनन्त दिस ताकैत पैघ पैघ आँखि. शैम्पू काएल केश हुनकर गाल पर आबि जैत छलन्हि मुदा किछुए देर मे मई महीना’क बयार फेर सँ आबि केँ वापस लऽ जाइत छलन्हि. आँखि मे कोनो भाव नहि छलन्हि. बिल्कूल निरीह आ नीरव. मुदा सुमन जी केँ ओ दृश्य बढ़ियाँ लागैत छलन्हि. बिल्कूल कञ्चन, कमनीय, कल्पना लोक मे विचरण करए वाला.

राधिका केँ बाँकी सहयात्री सँ कोनो बातचीत नहि भऽ रहल छल. राधिका देखबा मे बहुत सुन्दर आ नवयूवती छलीह आ बाँकी सहयात्री मे कोनो दोसर स्त्री नहि छल. बाँकी लोक कोनो सुन्दर यूवती सँ फराके रहला मे बुद्धिमानी बुझैत छलथिन्ह. सुन्दर यूवती सँ बात केला सँ नहि जानि दोसर लोक की बुझत. राधिका पढ़ल लिखल छलीह आ ओएह कम्पार्टमेन्ट मे बाँकी लोक कोन कोन मसला पर बात करैत छलाह मुदा राधिका ओहि मे हिस्सा नहि लैत छलीह. तेँ दोसर ग्रूप सँ हिनका लोकनि के कोनो बातचीत नहि भऽ रहल छलन्हि. नहि जानि बाँकी लोक की बुझत. तेँ एखनि धरि बाँकी लोकनि हिनका तीनो लोकनि सँ कोनो बातचीत नहि केने रहैथि. शायद सुमन जी केँ सेहो नीके लागैत छलन्हि. ओ खुदे नहि चाहैत छलाह जे कोनो आन लोक राधिका सँ बात करय. तेँ ओहि कम्पार्ट्मेन्ट के बाँकी लोक हिनका तीनो लोकनि केँ फुटा देने छलन्हि. ई ओएह राधिका छथि जे अपन कालेज मे कोनो भी वाद विवाद प्रतियोगिता केँ छोडैत नहि छलथीन्ह बल्कि ओहि मे अव्वल रहैत छलीह. मुदा नहि जानि किएक एखन रियल टाइम डिसकशन मे हिस्सा किएक नहि लऽ रहल छलीह. राधिका अपन जीवन’क बेसी समय दिल्ली मे बिताओने छलीह. हमेशा सँ स्त्री पुरुष के बराबरी के अधिकार’क वकालत करैत एलीह मुदा एहेन मौका पर हुनका की भऽ जाइत छन्हि से नहि जानि. स्त्री पुरुष के बराबरी के अधिकार वाला यूरोपीयन बात मे नहि जानि कोना भारतीय स्त्री’क मूल्य समाहित होइत छल. बात एतबी टा नहि छल. हिनका तीनो लोकनि मे सेहो बातचीत नहि भऽ रहल छलन्हि. शायद तीनो लोकनि मे तीनो लोकनि एत्तेक नजदीक भेलाक बावजूदो एहेन लागैत छल जे कोनो जान पहचान नहि छलन्हि. कखनो कखनो अपन मूल्य आ अपना आप केँ चिन्हबाक लेल शाँति’क जरूरत होइत अछि. भीड़ मे बजला सँ लोक अपना आप के बिसरि जाइत छथि. शाँति भेटला पर आ चुप रहला पर लोक अपना आप सँ बात करैत अछि आ इएह काज ई तीनो लोकनि सेहो करैत छलथिन्ह.

ट्रेन तीव्र गति सँ अन्हरिया केँ चीरैत भागि रहल छल. हिनका तीनो लोकनि केँ ध्यान तखने भँग भेलन्हि जखन हिनकर ध्यान ट्रेन’क बाँकी सहयात्री भँग केलथिन्ह. हिनका लोकनि केँ एक सज्जन पुछल्थिन्ह, "अब रात ज्यादा हो गई है अब बिस्तर लगा लेते हैँ". तीनो लोक एक्के सँग स्वीकृति दऽ देलथिन्ह.

चादर बिछा केँ सुमन जी सेहो सुति रहल छलाह. राधिका हुनका बीच वाला बर्थ पर सुतय लेल कहल्थिन्ह आ राधिका खुद साइड मे नीचा वाला बर्थ पर सुति रहलीह. मुदा हुनका नीन्द नहि आबैत छलन्हि. अपन ध्यान अपन सहपाठी दिस लगेबाक प्रयास करैत छलथिन्ह मुदा बारम्बार ध्यान वरुण’क गतिविधि पर टिक जाइति छलन्हि. जहिया सँ वरुण राधिका’के जिन्दगी मे आयल तहिया सँ हुनकर दुनियेँ बदलि गेलन्हि. नहि जानि राधिका वरुण मे कोन एहेन चीज देखैत छलीह जे सुमन जी सँ दूरी बना लेने छलीह. फुसियोँ के आँखि मुनि केँ सुमन जी अपना आप के बहलेबाक प्रयास करैत छलाह जे नीन्द आबि जान्हि मुदा एना सम्भव नहि भेलन्हि. कम्पार्टमेन्ट मे एक बुजूर्ग सहयात्री जोर सँ फोँफ काटैत छलाह जाहि सँ हिनकर सुतबाक प्रयास हरदम असफल भऽ जान्हि. एक बेर हुनकर सुतबाक प्रयास सफल भेले छलन्हि कि ओएह बोगी मे दूर मे कोनो बच्चा कानि उठल. ओ फेर सँ उठि गेलाह.

आब ओ सोचि नेने छलाह जे ओ सुतबका प्रयास नहि करताह. ओ केहुनी भरेँ कनपट्टी केँ हाथ पर टिका केँ ओ अन्हरिया राति मे आँखि खोलि के खिड़की’क बाहर देखबाक प्रयास करैत छलाह. बारम्बार करऽट लैत छलाह. अन्हरिया राति मे ओएह अनन्त दिस ताकैत छलाह. बीचला बर्थ पर सुतल रहला सँ पँखा’क गरम हवा टा लागन्हि मुदा रहि रहि केँ बाहर’क बयार आबि जान्हि आ हिनकर अनन्त दिस ताकनाई सफल भऽ जान्हि. इएह क्रम मे नहिँ जानि कखन हिनकर आँखि लागि गेलन्हि.

सुमन जी सुतल रहलाह. कतेको स्टेशन पर गाड़ी रुकल, कतेक छोटका स्टेशन पर छोटका सन स्टेशन मास्टर बड़का सन ग्रीन लाइट देखबैत पाछू छुटि गेलाह. कतेक बेर बाहर’क बयार हिनका छुबि केँ चलि गेलन्हि. कतेक बेर राधिका उकासी केलीह. कतेक जोर सँ बुजूर्ग सहयात्री फोँफ काटैत रहि गेलाह मुदा ओ सुतल रहलाह. हुनकर नीन्द तखने खुजलन्हि जखन वरुण’क आवाज कान मे सुनाई पड़लन्हि. वरुण राधिका सँ कहि रहल छलाह जे हुनका जोर सँ भूख लागल छन्हि. सुमन जी के बुझल छलन्हि जे ई वरुणमा राति मे नाटक जरूर करत. साँझ मे हुनका कतेक कहल गेल छलन्हि जे खा लिअ मुदा ओ किनको नहि सुनलाह. सुमन जी किछु नहि बजलाह.

सुमन जी केँ होइत छलन्हि जे राधिका राति के अनठा देतीह. ओ वरुण केँ छोड़ि देतीह. ओ बहाना मारतीह जे भोर मे किछु जलखई कऽ लेब. मुदा जे देखलैथि ओ हुनका अधनीना सँ पूर्ण जगा देलकन्हि. राधिका उठि चुकल छलीह. वरुण हुनकर लऽग मे बैसल छलाह. राधिका बिना लाइट जलौने बैग मे किछु ताकि रहल छलीह. हुनका लोकनि केँ होइत छलन्हि जे सुमन जी सुतले छलाह. मुदा ओ तऽरे आँखि सब किछु देखि रहल छलैथ. राधिका स्टील’क एकटा टिफिन निकालैथि. ओहि टिफिन मे किछु खेबाक लेल सामिग्री छल. वरुण पड़ि रहलाह. राधिका हुनका चम्मच सँ खुआ रहल छलीह. वरुण’क मुड़ी राधिका’क कोरा मे छलन्हि. एखन वरुण एक्को बेर नहि मना करैत छलाह जे हुनका नीक नहि लागैत छन्हि. गटागट सब किछु अन्दर केने जा रहल छलाह.
अन्हरिया राति केँ चीरैत ट्रेन तीव्र वेग सँ जा रहल छल. बीच वाला बर्थ पर अनठेने सुमन जी सब किछु देखि रहल छलाह. हुनका राधिका’क उपर मे कोनो विश्वास नहि रहि गेल छलन्हि. राधिका’क बात’क कोनो मोल नहि. राधिका अपन घर सँ वरुण’क खेबाक लेल बना के आनने छलीह. ई बात हुनका सँ नुकौने किएक छलीह. राधिका केँ जँ वरुण एत्तेक प्रिय लागैत छलन्हि तऽ ओ एक्के बेर मे मानि किएक नहि लैत छलीह. किएक हुनका आश्वासन पर आश्वासन दैत छलीह. हुनकर ध्यान फेर सँ ओहि दुनू लोकनिक दिस गेलन्हि. राधिका चम्मच लऽ केँ वरुण’क खाना वरुण’क मुँह मे देने जा रहल छलीह. एखनो धरि वरुण’क माथ राधिका’क कोरे मे छलन्हि. राधिका रहि रहि केँ सुमन जी’क दिस टोहि लऽ लैथि जे कहीँ हो न हो ओ जागल हेताह. मुदा सुमन जी एना अनठेने छलाह जे राधिका पूर्ण आस्वस्थ छलीह जे सुमन जी सुतले छथि. मुदा तऽरे आँखे सुमन जी सब किछु देखि रहल छलाह. ओ देखलैथ जे राधिका’क खुलल शैम्पू काएल केश वरूण’क माथ पर आबैत छलन्हि. वरुण केश’क ओहि लट केँ अपन कँगूरिया आँगूर मे गोल गोल फँसबैत छलाह आ ओकर बात नहुँए नहुँए खीचैत केश केँ खोलि दैत छलाह. एना केला पर राधिका हुनका अगिला चम्मच खाना देबा सँ पहिने मुस्किया दैत छलीह. राधिका केँ वरुण’क नौटँकी पर कोनो एतराज नहि छलन्हि.

मानवीय सम्बन्ध’क तेसर पहलू, यदि पाठक लोकनि’क भावना ई कहानी उठा-पटक’क सँग आ हमर कल्पना’क उड़ान सँग उड़ान भरने होमय तऽ टिप्पणी द्वारा सूचित करी. पाठक लोकनिक टिप्पणी हमर कल्पना’क उड़ान केँ आओर ऊँचाई देत, हमर इएह सोचब अछि. टिप्पणी जरूर दी




आब सुमन जी सँ बर्दाश्त नहि भऽ रहल छलन्हि. हुनकर कोँढ़ फाटय लागलन्हि. ओ सोचय लागलाह, वरुणक राधिका’क जीवन मे एला सँ पहिने हुनकर जीवन कतेक बढ़ियाँ छल. राधिका एहिना हुनका लेल स्पेशल खाना बना केँ आनैत छलीह आ सुता केँ अपन कोरा मे हुनकर माथ लऽ के चम्मच सँ खुआबैत छलीह. तऽरे तऽर हुनका मुँह सँ आवाज निकललन्हि, "ई वरुणमा जे नऽ करय". मोन मे बहुत तामस उठि रहल छलन्हि. मोन मे होइत छलन्हि जे चीकरि केँ राधिका केँ पुछैथ जे इएह थीक अहाँक आश्वासन. इएह थीक अहाँक सप्पत. मोन होइत छलन्हि जे जा केँ वरुण’क गाल पर जोर सँ एक चाँटा मारैथ आ भगा दैथि हुनका. फेर होइत छलन्हि ई अन्हरिया राति मे चलैत ट्रेन मे कोनो सीन क्रिएट करय सँ बढ़ियाँ अछि जे सब हिसाब भोरे सुति केँ लेल जाए.
फेर कखनो मोन मे होइत छलन्हि जे राधिका केँ लऽग मे जाकेँ कहैथ, "अहाँ हमरा बुरबक बुझैत छी?, बहुत दुनियाँ हमहुँ देखने छी, अहाँ हमरा सँ नुका केँ वरुण’क लेल अलग सँ खाना बना के आनने छी, कोरा मे सुता के हुनका खुआ रहल छिअन्हि तकर मतलब हमरा नहि बुझल अछि?".


एहि कथा’क बाँकी हिस्सा हमर पोथी "भोथर पेन्सिल सँ लिखल" मे देल गेल अछि. पोथी’क बारे मे विशेष जानकारी आ कीनबाक लेल प्रक्रिया निम्न लिन्क मे देल गेल अछि. http://www.bhothar-pencil.co.cc/ .
मैथिली भाषा’क उत्थान मे योगदान करु. पोथी कीनि साहित्य केँ आगू बढ़ाऊ.

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...