हुनका आ हमरा मे
अंतर अछि एतबा
ओ परहित चाहैत छथि
हम आत्महित चाहैत छी।
हुनका आ हमरा मे
मतभेद अछि एतबा
ओ राष्ट्रहित चाहैत छथि
हम स्वहित चाहैत छी।
बड मोसकिल अछि
दू पीढि़क मध्य
ओ काज चाहैत छथि
हम नाम चाहैत छी।
जहन कखनो निर्णय केल जाइत अछि
देशक तकदीर
ओ आदर पाबैत छथि
हम कुर्सी पाबैत छी।
4 comments:
धन्यवाद सुभाषजी ! कविता बड़ सुगम बनि पडल अछि आ निहित भाव के अभिव्यक्त करवा में पूर्ण सफल सेहो अछि. सुन्दर ! अति-सुन्दर !!
Ati uttam lekhni subhash ji.... Shabd ke dawara ahan je sansar ke srijan kelaun se khoob neek bain padal achhi...
वाह वाह के कहे आपके शब्दों के बारे में जीतन कहे उतन कम ही है | अति सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद् आपको असी पोस्ट करने के लिए
कभी फुरसत मिले तो मेरे बलों पे आये
दिनेश पारीक
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