नियति- (सुभाष चंद्र)

- सुभाष चंद्र
बहुत किछु देखि कय हम
आँखि मूनि लैत छी
बहुतो के पुकार केँ
अनसुना कय चलि जाइत छी
मौनक गप्प बाहर नहि निकलि जाए
अंत:करण मे दबा लैत छी
किएक
सच
देखबा, सुनबा आ कहबाक अंजाम
अखबारक पहिल पन्ना पर
कतेको दिन देखि चुकल छी
नियति सेहो किछु एहने सन भ गेल
स्वयं केँ ऑन्हर, बहिर आ बौक मानि
घर सँ बाहर निकलैत छी।

4 comments:

करण समस्तीपुरी said...

वाह... चलू बापू के तीनू बानर के आत्मसात त केने छी... निहित व्यंग्य कविता के जोरगर बना रहल अछि. धन्यवाद !

अभिव्यक्ति said...

better to write in own language than other language
excellent sir

vijay kumar said...

bhawpurn kavita..........bahut nik

Movers and Packers Bangalore Online said...

Very informative post! Best Movers and Packers in Bangalore Online

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...