कहय के अछि अहाँ सँ,
एना ने रहू !
चुप-चाप की छी बैसल,
किछु त कहू !!
बीतल पहर,
सांझ आयल नजर !
ई छी जिनगी'क गाड़ी,
आ जग के'र डगर !!
बौरायल सवारी,
बाट बिसरल अनाड़ी !
ने अछि केकरो आशा,
अपन बल करू !
चुप-चाप की छी बैसल,
किछु त कहू !!
नहिं बैसू बनि के पत्थर,
छथि भाव देने ईश्वर !
वैह भाव के दी'अ स्वर,
अभाव नहिं करू !!
चुप-चाप की छी बैसल,
किछु त कहू !!
ई छी काल'क तराजू,
आ किस्मत के पलडा !
कोनो दिस हल्लुक,
कोनो दिस तगरा !!
अछि अपने पर निर्भर,
जे किछु भs रहल अछि,
मरू भीतरे-भीतरे,
कि हँसी के सहू !
चुप-चाप की छी बैसल,
किछु त कहू !!
- करण समस्तीपुरी