गरिमा आओर पलास

कथा, भाग-१: लेखक एवम मोडेरेटर: केशव कर्ण (समस्तीपूरी)
गरिमा एखन ऑफिस सँ अएले छलीह. चाह’क केतली गैस पर चढा क' वर्षा मे भीजल केश के सुखाबए लागलीह. फेर चाह आ रेडियो ल'क' बालकनी मे आबि गेली. आल इंडिया रेडियो पर 'बरखा बहार आयी रस की फुहार आयी' बाजि रहल छल. सामने फिल्ड मे पलासक फूलक उज्जर धप-धप चद्दर बिछल छल. गरिमा सोचए लागलीह, हुनको पलास त' हुनक हर ख़ुशी ले अहिना आंखि बिछेने रहैत छल. एक बेर गरिमा कहने छली जे हुनका आमक अंचार बड़ पसंद छैन्ह आ पलास अगले क्षण ताख पर राखल शीशा वाला बोइयामक एक हिस्स एक्के बेर मे पार क' देने रहथि. भन्ने एहि फेर मे बोइयाम खसि क' टूटल, हुनक हाथ कटल आ माताजी के डांट सेहो सुनाए पड़ल. गरिमा’क कैमरा वाला मोबाइल फ़ोनक बड़ शौक छलैन्ह. सांझे मे हुनका एक गोट सरप्राइज गिफ्ट भेंट गेलन्हि. डिब्बाक भीतर एक सोनी एरिक्सन मोबाइल फ़ोन’क अलावे एक गोट पुर्जी जहि पर पिंक स्केच पेन से लिखल छल "इट्स माय प्लीजर" - पलास! फेर त' विद्यार्थी जीवन मे मासक बाँचल दिन कोना गेल से त' पलासे के मोन छैन्ह कि हुनका सँ एक बेर "आज कल तुम शेव क्यूँ नहि करते ?" पुछए वाली गरिमा कें.
एहि कहानी’क पहिल भाग सँ मैथिली साहित्य’क इतिहास मे एक अध्याय आओर जुड़ि गेल. एहि सँ पहिने कहियो एहेन नहि भेल छल जे एक कथा केँ कएक लेखक मिलि जुलि केँ लिखने हो. प्रत्येक लेखक केर अलग भावना. कथा’क पहिल भाग लिखताह किओ एक लेखक, दोसर भाग मे उठा पटक करताह केओ दोसर लोक, उत्कर्ष पर चढेताह किओ तेसर आ नहि जानि अन्तिम लोक अपन सोच सँ कहानी केँ बिल्कूल अलगे अन्त दऽ दैथि. सब मिला केँ प्रत्येक लेखक के अपन भावना’क हिसाब सँ कहानी मोड़ लेत आ पाठक केँ एक रुचिगर कथा पढ़बाक लेल भेटतन्हि.हमरा बुझने आन दोसरो वेबसाइट पर एहेन प्रयोग’क सुरुआत काएल जायत मुदा केशव जी’क लिखक एहि कथा-क मैथिल साहित्य’क इतिहास मे सम्मान’क सँग विद्यमान रहत.

आदि यायावर



पलास आ गरिमा बचपने सँ संगी छलथि. स्कूल, कॉलेज, प्रतियोगिता परीक्षाक तैय्यारी आ फेर इंटरव्यू. बचपन से तरुनाई धरि जिनगीक सफ़र मे हर कदम पर पलास गरिमा के साथे छलथि. मुदा एतहि से दुन्नु लोकनिक रास्ता अलग भ' गेल्लैन्ह! गरिमा सफल भए सी. पी. डबल्यू. डी. मे नौकरी करए ईलाहाबाद चलि गेलीह आ पलास असफल भए अप्पन गाम ! किछु दिन धरि त' फ़ोन, एस.एम.एस. मेल आ चैट के दौर सकुशल चलैत रहल. मुदा ई दूरी दुन्नु लोकनिक आओर करीब आनि देल्कैन्ह. साल बितैत-बितैत पारिवारिक सहमति सँ दुन्नु लोकनि परिणय सूत्र मे बंधि गेलथि. पलास अल्लाहाबाद आबि गेलथि. गरिमाक जिनगी कें त' मानु जे खुशी के पाँखि लागि गेल होए. मुदा फेर शुरू भ' गेल टकराव, एक पुरुषक अहम् आ एक नारीक स्वाभिमान’क !

 

जे कहानी’क अगिला भाग लिखबाक लेल टिप्पणी द्वारा सूचित करु. पहिने आऊ पहिने पाऊ सिद्धान्त लागू रहत.



कथा'क      प्रथम भाग ।  दोसर भाग  । तेसर भाग  ।  चारिम आ अंतिम भाग



अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...