नवयुगक कनिया


- मणिकांत मिश्रा "मनीष"
आबि गेली कनिया, बैसली पीढी पर,
लाउ यै दीदी चंगेरा, परिछू लक्ष्मी करु घर,
काल्हि स' घर मे बाजत डंका,
जखन पहिरती कपडा जेना विपाशा आ मल्लिका,
गामक छौंडा सन घुमय जेती हटिया,
आउट ऑफ शहर मे चलेती गाडी, दुपहिया आ चारिपहिया,
घर मे बैसल शुरु करतीह ट्रेडिंग,

एहि मंच पर मणिकांत मिश्रा जीक इ पहिल रचना छी। 17 वर्षीय मणिकांतजी एहि मंच पर सभ सँ कम वयस के रचनाकार छथि। अहाँ श्री अमृत नारायण मिश्रा जीक पुत्र छी आ गाम अछि बेलौंचा, थाना- लखनौर (मधुबनी)। सम्प्रति अहाँ दिल्ली मे रहि इग्नू सँ स्नातकक छात्र छी।
सम्पर्क- 093134-16829


बौआ केर अभिलाषा छल कनिया होयत लर्निंग,
दलान पर बैसल ससुर सन्यासी सोचि रहल छलथि किछु होय टर्निंग,
ईश्वर स' प्राप्त हमरा इ ब्लेसिंग,
होई इंड हिनक इ कहानी,
वरदान पूरा भेल, कनिया खतम भ' गेलीह,
बौआ बजलाह इनडिंग-इनडिंग हमर जीवनक कहानी,
पडोसी सभ देमय लगलाह बोल भरोस,
बौआ बजलाह दिन मे चौबीस बेर करय छलीह फोन,
हमरा स' दूर रहि करल छलीह बैंक बैलेंस,
आबि गाम त' दय छलीह चिठ्ठा,
हम पुछय छलियन्हि चूडा लेब वा दस्तावेजक गिठ्ठा,
बाजय छलीह हमरा लेल छी सभटा,
आउ रोपी ओल, एहि दुनिया मे छैक संतानक मोल,
नहि भेल एगो संतान, बैंक बैलेंस ल' जायत केओ आन,
बौआ बजलाह खतम भ' गेल हमर शान।

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...