अवगति- सुभाष चन्द्र

- सुभाष चन्द्र
कोना कही, हाथ मे हमर काँच नहि
मुदा जे देखल ओ हमर चेहरा नहि
काल्हि फूजल खोलने रही घरक खिडकी
मुदा बसातक झोका एम्हर आएल नहि
आयल छल एकटा बिहारि बदलाव के
गाछ स’ सुखायल पात टूटल नहि
नहि जानि कोन मद मे लिखि देल
निहारय छी अहाँक चॆहरा जखन नशा चढैत नहि
लोक कहैत अछि आइयो एकरा कमाल
मुदा हमरा एकर अवगति नहि

4 comments:

Anonymous said...

subhash jee ke ek ta nik rachna. Marm ukeraba mein safal. umeed achhi aaro rachna padhbak lel bhetat.

Amit Kumar
New Delhi

करण समस्तीपुरी said...

प्रिय सुभाष जी,
कतेक दिन पर अपनेक रचना देख' में आएल! धन्यवाद !! आ आगा जे कहय चाहैत छी वैह खातिर अग्रिम माफी !!! हमरा अपनेक एहि प्रस्तुति मे निम्न तथ्य हाथ लागल !!!!
* ग़ज़लक शैली मे पद्य विधाक विकास !
* आदि सों अंत धरि ओझराएल कथ्य !
* कतहु-कतहु जबरदस्ती घोसियाएल शब्द !
* असम्बद्ध विम्ब विधान !
आश अछि जे रचना गायब नहि होएत ! आ अगिला रचना उत्कृष्टताक संघ शीघ्रे आएत !!

सुभाष चन्द्र said...

sh. keshav jee,
apnek salah sirodharya. kathay ke ojhrahot ke jaldi sojhrebak prayatn karait chhi. shes ke agila rachna mein durust karbak purjor kosis karab.
rachna kono halat mein gayab nahi hait, ekar swasti.

Kumar Padmanabh said...

सुभाष जी आ केशव जी;

हमर विचार अपने लोकनि सँ कनिएँ भिन्न अछि. सँक्षेप मे कही तऽ साहित्य के कोनो गलती नहि मुदा भाषा’क किछु उलटफेर भेल अछि. विशेष जानकारी’क लेल हमर ई-मेल देखल जाए

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