कोशिश करय छी…

काननाय अछि अपमान !
तैं अहाँ आगू कानय से डरय छी !
किएक तs हमर आदत अछि,
अप्पन दर्द सँ निपटय के !
किएक तs हम दुश्मन'क सामना करय छी,
मुदा ओकरा उन्नीस ने बुझय छी !!
सब दुश्मन भs जायत अछि,
किएक तs, हम अप्पन लड़ाई,
अपने बल लडैत छी !
तेखन सँ,जेखन पहिल बेर,
लडलहुँ टोल'क संगी सँ,
किएक तs, तेखन हम,
जनमि के ठाढ भेल छलहुँ!
आ जनमि के ठाढ़ भेल छलहुँ,
एकटा अपंगता'क साथ !



केशव करण जी, जे करण समस्तीपूरी नाम सँ लिखैत छैथ, कतेक रास बात’क एकटा मजबूत स्तम्भ छथि. साहित्य मे मास्टर डीग्री छन्हि मुदा सोफ्ट्वेयर कम्पनी मे कार्यरत छथि. बँगलोर मे ओ कादम्बनी क्लब’क सदस्य छथि आ कतेको कवि सम्मेलन मे अपन कविता सँ लोकक वाहवाही लुटने छथि. कतेक रास बात हुनका अपन परम्परागत हिन्दी साहित्य सृजन सँ मैथिली साहित्य सृजन करबाक प्रेरणा देलकन्हि. पहिल नजर मे कतेक रास बात’क असली उद्देश्य सार्थक देखना जा रहल अछि- पद्मनाभ मिश्र



गरीबी !!!!
जेकरा बिसरबा'क चेष्टा कयलहुँ,
आ की भेटल, से के बुझत ???
के बुझत हम्मर जी सँ बेसी,
कडुआ स्वाद !
किनकर जी होयत,
हमरा सs बेसी कठोर ?
किए तs, जिनगी सदिखन,
हमरा सs लडैत रहल !


आ हमहूँ जी'अ के बदले,
मरनाई सिखैत गेलहुँ !!
किएक त, हम बनि गेलहुँ,आदमी !
आदमी !!!
बिना लडिका बनने !
किएक तs, हम जे देखल से देखल,
मुदा आब केओ ने देखय,
तैं कोशिश करय छी !
काननाय अछि अपमान !
तैं अहाँ आगू कानय से डरय छी !!

करण समस्तीपुरी

7 comments:

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

एहिना लडैत रहू आ आगू बढैत रहू। इ सदिखन मोन राखब, "न दैन्यं, न पलायनम्"।
एकटा विचारोत्तेजक प्रस्तुति।
शुभकामना।

Kumar Padmanabh said...

बढ़ियाँ कविता. आ ओहु सँ बढ़ियाँ कुन्दन जी’क टिप्पणी. पहिल पँक्ति --काननाय अपमान थीक एकटा उर्जावान शब्द लागैत अछि जकर नीक जगह पर प्रयोग काएल गेल अछि.

एहि बेर सँ हम कवि परिचय सेहो देबाक प्रयास कऽ रहल छी.

आदि यायावर

करण समस्तीपुरी said...

श्रीमान कुंदन जी आ पद्मनाभ जी के धन्यवाद देनाई ता हमरा लेखे छोट मुंह बड बात छी, किएक जे अहीं लोकनि हम्मर प्रेरणास्रोत छी !! आ जहाँ तक कुंदन जी'क टिपण्णी'क सवाल अछि त एक बात साफ़ कहय चाहब जे एक बेर कुंदन जी कोनो विनोद-वार्ता'क क्रम में कहने छलथि , "न दैन्यम न पलायनम !!" आ सांच कही त ई कविता हुन'क उहे वाक्य से प्रेरित अछि !!
विशेष सभ पाठक आ लेखक लोकनि'क नमस्कार !!!

Anonymous said...

kavita bahut nik lagal,
Muda ekta baat janai chhi?
Garib janam lelon se hamar dokh
nahi- Garib mari jayab se hamar dokh bhel.
Ahi me hamhu apna ke sanai chii,
Nai Pachhu kanloun aa ne kakhno kanai chhi.
Sirf ahan sabhak kavitak baat herai chhi.
Dhanyabad.
Rajesh R Jha
rajesh90ranja@gmail.com

vijay jha said...

bahut nik bahut badhiya
ati sunder kavita
jatek prasansha otabe kum
bahut bahut dhanybad

Rajiv Ranjan said...

नमस्ते केशव जी,
माफ़ी चाहैत छि जे कोनो तरहे हमरा स जानो-अनजानो गलती भ गेल हुए.
हमर मेल पता छि:- amarjidas@gmail.com

अहांक कविता बढिया अछि एहि में कोनो संदेह नहीं कियाक कि,जाही कविता के कुन्दन जी बढिया कहलैत से त खराब भैये नय सकैत अछि.
मुदा जहां तक हमर टिप्पनी के सवाल अछि हम बस एतबै कहब चाहब जे निचा लिखल लाईन लिख के कविता के स्वाद खराब क देलियेय.

"आ हमहूँ जी'अ के बदले,
मरनाई सिखैत गेलहुँ !!
किएक त, हम बनि गेलहुँ,आदमी !
आदमी !!!"
पद्मनाभ मिश्र लिखलैत कि पहिल लाईन बहुत ही ओजपुर्ण अछि. लेकिन ई लाईन ओकरा समाप्त क देलक. जखन अहां सबखन आ सब दिन मरिये रहल छि आ ई कहियो जे हारैय के अनुभव क रहल छि. तखन त अहां झुठे लरि रहल छि या अपना मोन के झुठे बहला रहल छि.
एकटा बात हम अपना विसय मे कहैत छि हमरा करैला के भरुआ आ भुजिया बड निक लगैत अछि. एकरा मतलब ई नही अछि जे हमरा करैला मीठ लगैत अछि.
जीवनक स्वाद भलहि खराब होय लेकिन ओहियो मे एक तरहक स्वाद त अछि.
"तै मरनैय छोरी जीनैय सिखु, और लरैत लरैत आदमी बननैय सिखु"
अगर आदमी लरनैय नही सिखतै त कि मंगल,चन्द्रमा आ ई कम्पुटर भेल रहैत.
हम अहांके नही जनैत छि मुदा आहांक विचार स अवगत भ रहल छि,चुकि ई कम्पुटर अछि.

बेस अगिला पत्र में

अहांक
अमरजी

करण समस्तीपुरी said...

बड नीक, अमरजी !
सब से पहिने त अपने'क कोटिशः धन्यवाद ! हमरा आस नै छल की ई कविता पर एहन नीर-क्षीर विवेचन भेंटत !
जतय धरि अन्तिम्हा लाइन'क प्रश्न थिक, त हम्मर प्रयास आशावादिता सों मुंह मोरबा'क नै अछि!आ नै पालो पटकी रहल छी ! जिनगी से हम हार नै मानै छी ! जिनगी से हार मानितौं तहन त एक्के बेर मरी जयेतौं वरन हम त वो सब सिखैत गेलौह जे सब जिनगी सिखाबैत गेल ! सम्बंधित पांति में हम्मर कहब ई छल, जे देश-काल में पैर पसारने गरीबी एक टा एहन बीमारी छी जे मनुख'क असमय परिपक्व बना दैत अछि आ ओकरा लरिकपन जे जिनगी'क सबसे बेसी आनंदमय अवस्था होएत अछि ओही से बंचित रहय पडैत अछि !

"किएक त, हम बनि गेलहुँ,आदमी !
आदमी !!!
बिना लडिका बनने !" ....

से, बचनपन बचायेबा'क कोशिश ...

एक बेर फेर धन्यवाद !!!

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