जलकुम्भी, (धारावाहिक उपन्यास)अँक-२ भाग-१

एखन धरि अपने लोकनि पढलहुँ वर्षा’क अमोल आ रँजीत सँ जानपहचान. पहिने रँजीत केँ खराप बुझनाय, अमोल केँ बहुत नीक बुझनाय. ओकर बाद रँजीत’क गुण’क विश्लेषण, रँजीत’क अपन गाम मे अपन कथा केँ ठुकरा देनाई, विमल’क मुम्बई आगमन आ हुनकर वर्षा सँ आमना सामना ओकर बाद रँजीत’क गाम पर तहलका आब आगू पढू:

रँजीत अपन परिवार’क लेल एक उद्धार्कर्ता बनल छलाह. परिवार’क प्रत्येक सदस्य केँ हुनका सँ कोनो ने कोनो अपेक्षा जरूर छलन्हि. कोनो व्यक्तिक उदार व्यक्तित्व कारणेँ दोसर व्यक्ति हुनका सँ बेसी आत्मीयता जोड़ि लैत अछि. आत्मीयता सँ सँबँध मजबूत होइत अछि. सँबँन्ध मजबूत भेला पर दोसर व्यक्ति उदार चरित्रवाला’क उपर मे अधिकार जँतबे लागैत छथि. आ अधिकार भेला पर अपेक्षा आओर बेसी बढ़ि जाइत अछि. रँजीत उदार व्यक्ति छलाह. जतेक कमबैत छलाह ओहि मे सँ बेसी सँ बेसी घर केँ पठा दैत छलाह. बाबूजी लेल अलग सँ, भौजी लेल अलग सँ, भाए लोकनिक लेल ते प्रत्येक महीना. रँजीत एखनि धरि नियमित रुप सँ पैसा मनीआर्डर करैत छलाह. ओएह पैसा सँ प्रत्येक लोकनिक कामना पूरा होइत छलन्हि. इएह पैसा सँ गाम मे हुनकर पिता आ भाए लोकनिक बाहरी खर्चा चलैत छलन्हि. खाए जोगर तऽ अनाज उपजिए जाइत छलन्हि.

रँजीत’क बारे मे पूरा बुझला’क बाद प्रत्येक लोकनि हुनका उपर मे अपन अधिकार’क प्रयोग करय चाहैत छल. अधिकार माँग यदि सँतुलित नहि हो तऽ ओहि मे विकार उत्पन्न होइत अछि. विकार सँ इर्ष्या द्वेष इत्यादि’क भावना जे पूरे सम्बन्ध केँ जड़ि सँ हिला दैत छैक. रँजीत’क परिवार’क लोक अपन अधिकार’क माँग कऽ सकैत छलैथ. ओ सीधे सीधे रँजीत सँ कहि सकैत छलैथ जे वर्षा सँ हुनकर सम्बन्ध हुनका लोकनि केँ नीक नहि लागैत छन्हि. मुदा हुनका लोकनिक रँजीत’क उपर मे अधिकार’क सोच आ कार्य सन्तुलित नहि छलन्हि. तेँ रँजीत के छोड़ि देबय चाहैत छलैथ. बल्कि रँजीत केँ अपन परिवार सँ अघोषित रुप सँ अलग कऽ देबय चाहैत छलैथ. रंजीत सँ आब ओ लोकनि कोनो तरह’क सहायता नहि लेताह. हुनका सँ एकोटा पैसा नहि लेताह, सब लोकनि मिलि इएह विचार कयलन्हि.

मुदा रँजीत के छोड़ि देने बाँकी खर्चा कोना चलत से हुनका सब केँ सोच मे दऽ देलकन्हि. रँजीत केँ मजा चखेबाक लेल ओ लोकन्हि रँजीत सँ पैसा लेनाई बँद करय चाहैत छलाह आ ओकर बाद पैसा कतय सँ आयत से बुझल नहि छलन्हि. विमल रँजीत केँ मुम्बई मे नजदीक सँ देखने छलाह. तेँ हुनका तामस बेसी छलन्हि. विवाहित छलाह आ पत्नी कतेक दिन सँ कहैत छलन्हि जे रँजीत’क उपर मे बेसी अपेक्षा नहि राखबाक लेल. ओ हुनका कहैत छलीह जे दिल्ली जा केँ कम सँ कम प्राइअवेटो नौकरी देखबाक लेल मुदा ओ रँजीत के पालनहार मानि आइ तक बात टालैत छलाह. रँजीत सँ अपेक्षाकृत बेसी तमसायल विमल आब तय कऽ नेने छलाह जे पत्नी’क बात मानबेटा मे भलाई अछि.

सब किओ मिलि आब तय कयलन्हि जे विमल आब दिल्ली जेताह आ दिल्लीए सँ रँजीत केँ चिट्ठी लिखताह जे आब ओ नौकरी करय लागल छथिन्ह तेँ हुनका आब पैसा’क कोनो जरूरत नहि. सब किओ इएह निर्णय लेलन्हि जे कोनो तरहेँ रँजीत केँ बुझि मे नहि आबय जे गाम मे हुनकर आ वर्षा’क सँबँध’क बारे मे किनको बुझल छन्हि.

जेना निर्णय भेल, विमल दिल्ली दिस विदाह भेलाह. गामक किछु लोक गुट बना केँ दिल्ली जाइत छल. ओहि गुट मे शामिल भऽ गेलाह. जेनेरल के टिकट कटा ट्रेन मे खेबा’क लेल चुड़ा मुरही लऽ दिल्ली दिस विदा भेलाह. मोन मे छलन्हि के एक दू दिन मे नौकरी भेट जेतन्हि. कोनो अनपढ़ गँवार नहि छथि. मैट्रिक सेकेन्ड डिविजन सँ पास छथि.


एहि उपन्यास’क दोसर अँक शुरु भऽ गेल अछि. पहिल अँक मे कहानी’क भूमिका बान्हल गेल छल. तेँ ओतेक इन्टेरेस्टिँग नहि छल. आब जखन वास्त्विक कहानी’क उतार चढाव होयत, वास्तविक जीवन आ मानवीय सँबँध’क तोल-मोल होयत तऽ कहानी सहजेँ नीक लागय लागत. पाठक लोकनि सँ हमर आग्रह जे टिप्पणी जरूर दी—पद्मनाभ मिश्र



दिल्ली पहुँचितहिँ दू-तीन दिन आराम करबा मे बीति गेलन्हि. ओकर बाद नौकरी ताकबा’क शुरु केलन्हि. मोन भेलन्हि दू-तीन दिन मे नौकरी तऽ भेटिए जायत. पहिने रँजीत के चिट्ठी लिखि देल जाए. रँजीत केँ एकटा नीक चिट्ठी लिखि देलाह. चिट्ठी मे उपराग नहि देने छलाह. मुदा ई साफ साफ लिखल छल जे आब हुनका रँजीत’क पैसा सँ कोनो सरोकार नहिँ. आब ओ खुदे नौकरी करय वाला छथि. खुदे आब ओ गाम पर प्रत्येक महीना पैसा मनीआर्डर करताह.
लोक’क कहबा’क अनुसार एकटा बायोडाटा बना लेलाह. जतय जाथि लोक पुछन्हि कतेक उमर छन्हि आ कतेक दिन’क काज’क अनुभव छन्हि. आई तक कोनो नौकरी नहि केने छलाह. तेँ अनुभव’क नाम पर शुन्य. उम्र छलन्हि पैँतिस साल. अधिकतम लोक हुनका नौकरी देबा सँ मना कऽ दैत छलन्हि. आ जे किओ दैतो छलन्हि ओ साढ़े तीन हजार टाका महीना’क दरमाहा पर. दिल्ली मे तऽ कम सँ कम पन्द्रह सय टाका एकटा रूम’क किराया मे लागि जेतन्हि. ओकर बाद की खेताह आ की गाम पर मनीआर्डर करताह. किछु जे जान पहचान के लोक छलन्हि ओ कहैत छलन्हि जे चारि हजार टाका महीना सँ कम पर नौकरी नहि करबाक चाही. ओ बहुत तरहक लोक सब सँ भेँट कयलन्हि. हुनका देखय मे भेटलन्हि जे कोना गाम’क लोक दिल्ली सँ कमा केँ एला’क बाद गाम मे भारभीस दैत छलथिन्ह आ कोना एकटा रुम मे छओ गोटे गुजर बसर करैत छथिन्ह. प्रत्येक नौकरी करय वाला व्यक्ति भोर मे घर सँ आठ बजे चलि जैथि चारि टा सोहारी खा केँ आ चारि टा सोहारी आ आलू’क भूजिया बान्हि केँ. राति’क आठ बजे फेर सँ घर वापस. होइत छलन्हि जे ई केहेन दिल्ली अछि जाहि मे लोक’क मुँह सँ एत्तेक बात सुनि चुकल छथि मुदा एत्तेक कमेबाक बादो दिन मे दालि भात तरकारी नसीब नहि होइत छन्हि. किछुए दिन मे दिल्ली जे हुनकर प्रत्येक समस्या केर समाधान करय वाला छलन्हि हुनका लेल खुदे समस्या बनि गेलन्हि. दिल्ली आयल छलाह कमेबाक लेल मुदा एखन होइत छलन्हि जे दिल्ली मे हिनकर खुदे गुजर बसर भऽ जान्हि ओएह टा काफी.

उम्हर रंजीत केँ विमल केर लिखल चिट्ठी भेटलन्हि. मालूम भेलन्हि जे विमल जे गाम मे इम्हर उम्हर भटकैत रहैत छलाह से आब दिल्ली मे कमेबाक लेल चलि गेल छलाह. भेलन्हि जे गाम मे रहि केँ विमल केँ कूपमण्डूकता धरि नेने छलन्हि. दिल्ली जा केँ दुनियाँ देखबाक भेटतन्हि तऽ दालि भात’क मोल बुझि पड़तन्हि. एतबी नहि किछुए पैसा आबि गेला सँ हुनकर अपन व्यक्तिगत परिवार’क भविष्य उज्ज्वल भऽ जेतन्हि. तेँ विमल’क ई दिल्ली जेबा’क फैसला हुनका बहुत नीक लागलन्हि. बल्कि मोन मे जे एक ठाकी चिन्ता छलन्हि ओ दूर भऽ देल छलन्हि. अति उल्लासित रँजीत विमल केँ चिट्ठी मे प्रत्यूत्तर देलथिन्ह जाहि मे ओ अपन उल्लास केँ नुका नहि सकलाह.

विमल केँ जखन ओ चिट्ठी भेटलन्हि ताबय धरि हुनका एकटा नौकरी भेट गेल छलन्हि. दरमाहा छलन्हि अढ़्तीस सय टाका प्रति मास आ ओवर टाइम अलग सँ. दिल्ली सँ निराश भेल विमल खूब ओवरटाइम करैथि. बाँकी लोक सँ सम्पर्क कटि गेल छलन्हि. दिल्ली मे एकटा पूर्ण बिहारी जीवन जीबए लागल छलाह. एहेन बिहारी जीवन जाहि मे दालि भात तरकारी केवल रवि दिनक भोजन मे भेटन्हि, एकटा रूम मे चारि टा लोक रहैत छलाह. अधिक सँ अधिक ओवर टाइम भेटबाक प्रयत्न मे रहैत छलाह.

मुदा राति मे सुतय काल मे अपन स्थिति पर खुदे दया लागय लागन्हि. अपन वर्तमान जीवन केँ अपन एक मास पहिलुका जीवन सँ तुलना करय लागैथि. कतय गाम मे भोर सुति के उठैथि चाय भेटि जान्हि ओकर बाद सात-आठ सोहारी’क जलखई भेटन्हि. दिनक खाना मे दालि भार तरकारी आ भूजिया मे कोनो भाँगठ नहि होइन्हि. समय समय पर माछो भेटि जान्हि. गाम’क एत्तेक लोक सब सँ बातचीत. एतय तेँ खाना के तऽ कोनो बाते नहि किओ एहेन लोक नहि भेटन्हि जिनका सँ पेट भरि बात करताह. मोन मे होइत छलन्हि जे हुनकर एहि नार्किक जीवन’क लेल सिर्फ रँजीत जिम्मेदार छथि. मुदा रँजीत केँ मजा चखेबा’क लेल ओ दिल्ली मे नौकरी जारी राखय चाहैत छलाह. मोन मे होइत छलन्हि जे रँजीत केँ जखन चिट्ठी भेटतन्हि तऽ बुझि मे एतन्हि जे परिवार’क सब किओ रँजीते टाक आशा पर नहि जीवैत छथि. विमल ओ सब किछु कऽ सकैत छथि जे रँजीत कऽ रहल छलाह.

मुदा रँजीत’क उल्लासित चिट्ठी जखन भेटलन्हि तऽ हुनकर प्रत्येक योजना पर पानि पड़ि गेलन्हि. सोचने छलाह जे रँजीत केँ अपरतिव लागतन्हि. ओ विमल केँ प्रत्यूत्तर लिखि कहतन्हि जे भाइजी हमरा सँ कोन गलती भेल अछि से कहु. अहाँ गाम जाउ. यदि हमर मनीआर्डर कम होइत अछि तऽ हम बेसी कऽ केँ पठाएब. हुनका होइत छलन्हि जे भऽ सकैत अछि जे रँजीत छुट्टी लऽ केँ दिल्ली आबि जैथि आ हुनका सँग कऽ केँ गाम लऽ जैथि. गाम मेँ सबसँ माफी मँगताह. मुदा स्थिति दोसरे छल. रँजीत, विमल’क एहि प्रयास सँ बहुत उल्लासित छलाह. बहुत खुश छलाह.

विमलक प्रतिक्रिया दू दिस जाति छलन्हि. बुझि मे नहि आबैत छलन्हि जे कोन बात वास्तविकता मे सत्य छलन्हि. एकटा सोच छलन्हि जे भऽ सकैत अछि जे हो न हो ओ लड़की हिनका सिखाबैत छन्हि जे विमल केँ दिल्ली गेने हुनका कपार पर सँ परिवार’क बोझ उतरि जेतन्हि. फेर दुनू लोकनि विवाह कय खुब मओज मस्ती करताह. दोसर सोच छलन्हि जे रँजीत सचमुचे बदलि गेल अछि. बम्बई जा केँ घर परिवार’क महत्व केँ बिसरि गेल छथि. आ नहुएँ नहुएँ परिवार सँ पूरे तरह सँ अलग भऽ जेताह. ओहि दुनू मे सँ कोन बात सत्य छल ताहि पर विमल निर्णय नहि लऽ पाबि रहल छलाह. कोनो एहनो आदमी नहि छलन्हि जिनका सँ ओ बात कऽ सकैत छलाह. मोन मे अटकल बात केँ उगलि सकैत छलाह. कखनो कखनो अपन कनियाँ याद आबए लागैत छलन्हि. मुदा इएह सब सोचैत सोचैत ओ सुति जाइत छलाह. आ भोर भेने हुनका फेर सँ अपन नौकरी पर जाए पड़ैत छलन्हि. नौकरी पर एत्तेक काज छलन्हि जे किछु दोसर चीज सोचबाक कोनो टाइम नहि छलन्हि. राति मे बिछाओन पर पड़ल रहैत छलाह आ रँजीत केँ कोसैत रहैत छलाह.

6 comments:

Gajendra said...
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करण समस्तीपुरी said...

अपने'क ई प्रयास प्रशंसा'क सीमा से ऊपर अछि आ कते'क रा'स बात में मील'क पत्थर सिद्ध होएत !! बेसब्री से अगिला किश्त'क प्रतीक्षा अछि !

Kumar Padmanabh said...

हमरा बुझल अछि जे ई उपन्यास समय समय पर बोरिँग होयत. यदि अपने लोकनि एकरा फौलो कऽ रहल छी तऽ बतेबाक प्रयास करब जे कतय बोरिँग भऽ रहल अछि.
@गजेन्द्र जी, अपनेक धैर्य’क लेल धन्यवाद
@केशव जी, अहाँ’क पारखी नजर केर प्रतीक्षा रहत (टाइपिँग गलती’क अलावा)

Rajiv Ranjan said...

अपने'क प्रयास सराहनिये अछि. आब उम्मिद जे उपन्यास चलैत रहत. हमरा एही भाग में लिखल

"बिहारी" शब्द स एतराज अछि. ई शब्द चूकि अपमान जनक शब्द के रूप में प्रयोग होयत अछि.

ताहि कारण एकरा जगह पर किछु और प्रयोग करु.
दोसर गप जे अहांक लिखल "ईजोरिया राति" टिप्पनि पढलहु. उचित नहिं लागल,
"आ आलोचना ई अछि जे एकटा उम्र होइत छैक जखन अहाँक कविता मे वर्णन भावना प्रत्येक यूवक मे उठैत छन्हि आ ओहेन बात कहनाय कोनो पैघ बात नहि.
अहाँक सृजनशील साहित्य विधा केर हम कायल छी. मुदा एहि रचना मे प्रतीत नहि भऽ रहल अछि.
दोसर रचना’क प्रतीक्षा रहत."
पैघ बात अछि, कियाक कि ई भावना हमरो मन में होयत अछि त कि, हम एते सुन्दर जेका लिख
सकैत छि. नहि, कथमप नहि, कियाकि हम कुन्दन जी जेका सामर्थवान नहि छि.
बचल प्रेम के बात, बिना प्रेम के त सुन्दरता त आबिये नहि सकैत अछि. प्रेम पर केकरो एकाधिकार त नहि अछि. शायद ई तुलसी दास के लिखल छैन जे "जाकि रहि भावना जैसि प्रभु मुरत तिन तैखि तैसि".
कोनो भुल चुक भेल हुवे त माफ़ी चाहैत छि!
बाकी अगिला पत्र में.....

अहांक
अमरजी

Kumar Padmanabh said...

अमर जी;
१. भऽ सकैत अछि अहाँके "बिहारी" अपमानजनक लागैत होमय, मुदा हमरा नहि लागैत अछि. हमरा लेल बिहारी ओहिना अछि जेना मराठी वा तमिल.

२. एहि (नीचाँ देल )टिप्पणी केँ कुन्दन जी’क रचना सँ जोड़ि केँ नहि देखल जाए: हम कुन्दन जी केँ सम्मान करैत छिअन्हि

प्रत्येक वेबसाइट आ ब्लोग केर अपन थीम होइत अछि. कतेक रास बात’क एकटा अलग थीम अछि. हमर प्रयास अछि जे एहि वेबसाइट पर आबयवाला कोनो व्यक्ति केँ कोनो वस्तु खराप नहि लागय. प्रेम पर लिखल कविता मे सीमा तय करब बहुत कठिन. कुन्दन जी’क कविता बढ़ियाँ अछि... मुदा एहि सँ पहिने एक सज्जन एकटा कविता लिखने छलाह "चलला मुरारी छौरी फ़ंसबय!" . हुनकर कहब छलन्हि जे एहि कविता मे चलला मुरारी छौरी फ़ंसबय! सेहो श्रृँगार रस अछि. हमरा बुझने ई कविता असभ्य आ चीप छल आ हम एकरा एतय एकोमोडेट नहि कऽ सकैत छी.
४. प्रश्न अछि जे के तय करत जे कोन नीक आ कोन खराप. हमरा लग टाइम नहि अछि. तेँ एहि तरह’क कविता केँ हम ताबय धरि प्रकाशिर करबाक अनुमति नहि देब जाबय धरि हमर व्यक्तिगत कसौटी पर खरा नहि उतरत.
५. जेना हम केने छी जे कतेक रास बात’क थीम सँ हँटि अलग तरीका’क पोस्ट हम दोसर ब्लोग पर करैत छी. http://maithili.wordpress.com
6. अहाँ लोकनि अलग ब्लोग बनाउ आ "चलला मुरारी छौरी फ़ंसबय! " वा कोनो दोसर कविता प्रकाशित करु हमरा कोनो आपत्ति नहि. मुदा हम अपन चारि साल’क मेहनत ओहिना खराप नहि होमय देब.


सँक्षेप मे: कोनो दोसर विवाद सँ बचबाक लेल आ "कतेक रास बात"’क स्टैण्डर्ड ऊँच रखाबाक लेल हम कतेक रास बात’क थीम सँ अलग रचना केँ प्रकाशित होयबाक अनुमति नहिँ देब

Kumar Padmanabh said...

अमर जी;
हम एहि बात केँ एतय खतम कऽ देबऽ चाहैत छी, एहि टोपिक पर हम दोसर टिप्पणी नहि चाहैत छी. एहेन तरह’क टिप्पणी डीलिट कऽ देल जायत.

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