एक पिता'क विलाप- कुन्दन कुमार मल्लिक


ढहल भीत, उजडल चार,
ताहि तर एकगोट वृद्ध ठाढ,
टूटल चश्मा, पथरायल आँखि,
निहारि रहल छथि रस्ता,
बाट तकैत अपन लाल सभ केँ,
जे छथि दूर कतओ कोनो शहर में,
मस्त अपन-अपन दुनिया में,
भुतियायल शहर’क चकाचौन्ध में,
छोडि अपन वृद्ध माय-बाप केँ,
एहि दीन-हीन हाल में,
आई छथि ओ मुँह ताकैत,
एकगोट रोटी’क टुकडा’क लेल,
ओहि वृद्ध’क आत्मा विलाप छन्हि कय रहल,
आई छथि ओ सोचि रहल,
ओs पोसलथि कोना के,
अपन चारि गोट धिया-पूता केँ,
अपन एक कोठलीक भीतक घर में,
आई छथि ओ प्रश्न कय रहल,
की हुनक चारि गोट पुत्र’क चारि टा मकान में,
छन्हि हुनका लेल एक्को टा कोना नहि?

नोट- पेशा सँ मेडिकल रिप्रेजेंटेटीव छी, दिन भरि अस्पताल आ डॉक्टर सभहक क्लिनिक'क चक्कर लगबैत रहैत छी। एहि क्रम में कतेको लोक सभ सँ जान-पहचान होयत रहैत अछि। गप्प'क क्रम में नव-नव अनुभव आ नव-नव बात सिखय के भेटैत अछि। किछु दिन पहिने बंगलोर'क एकटा अस्पताल में बैसल रही। बगल में बैसल एकगोट वृद्ध सँ गप्प कय रहल छलहुँ। हुनक डबडबायल आँखि आ जीर्ण-शीर्ण काया देखि के मोन द्रवित भs गेल। इ कविता ओहि वृद्ध सँ भेल वार्त्तालाप पर आधारित अछि। पाठक लोकनि सँ आग्रह जे एकरा मात्र एकटा पद्य नहिं बुझी। इ एकटा यक्ष प्रश्न अछि जे जाहि माता-पिता अपन धिया-पूता के पालि-पोसि के पैघ करय छथि आ एकदिन वैह धिया-पूता हुनक सुधि नहिं लय छन्हि। वृद्धाश्रम के की प्रयोजन? यदि हमर इ रचना कोनो एहन लोकनि केँ सोचय के लेल बाध्य करतन्हि तs हम अपन प्रयोजन सफल बुझब।
- क़ुन्दन कुमार मल्लिक

ग्राम- बलियारी, डाक- झंझारपुर,
जिला- मधुबनी (बिहार)- ८४७४०४,
ई-मेल- kkmallick@gmail.com
सम्पर्क-+९१-९७३९००४९७० (बंगलोर)

10 comments:

सुभाष चन्द्र said...

Kundan jee,
apnek bahuayami rachna ke dekhi bahut ras gapp furait achhi, muda nahi kahab... wohi bhavana ke sabadk bagebani dela sa bhavana ke mahatwa kam v jayat. ee kahan uchhit chhai je ek din Sringar ke roop dekhabait chhi ta dosre deen jeevan ke wohi yathartha ke sonjha rakhi dait chhi je satte humra sabhak sang ghati rahal achhi... appan gam sa sakro kilometer door Delhi mein roji-roti ke lel afsiyat rahait chhi ta eksari mein ma-pitaji ke smaran hoti achhi.... ki ahu sange hoit achhhi... hazaro lok ehan hetah....
ehi Rachnak lel hardik badhai aar aap Pravasi jeevan per likhi, se sadar agrah...

Subhash Chandra
New Delhi

Anonymous said...

Aadarniya Kundan Jee,

Apanek Rachna bahoot nik lagal. Akhnauk samayake je mag chhaik aa je akhan chail rahal chhi tahi chija ke samet ka je prastut kaelahun se jordar roop me ek ta shiksha pradan ka rahal aich.

ee betha sabhe bridh ma-bapka thika.

hamara bad nik lagal te apneka rachanake lel dhanyabad.

करण समस्तीपुरी said...

रचना मर्मस्पर्शी आ शब्द सुग्रहाय अछि मुदा किछु नव नै ! हमरा बुझने त ई प्रश्न कोनो आजु'क नै थीक ! कतेको युग सों चली आवि रहल अछि ! हाँ, ई कहि सकैत छी, जे वर्तमान "न्यूकिलियर फॅमिली" के'र अवधारणा एहि समस्या के किछु बेसी बढ़ा देने अछि !!! जतय धरि समाधान'क सम्बन्ध अछि, बेशक हमरे अहाँ के आगा आबय पडत !! ... की विचार ???

Kumar Padmanabh said...

कुन्दन जी,
एहि सँ पहिल रचना मे हम लिखने छलहुँ जे जेना अहाँ’क भावना ओहि मे अछि ओ कोनो यूवक सोचि सकैत अछि.

आइ हम लिखि रहल छी. जे अहाँ ई रचना अहाँक आइ तक के सबसँ बढ़ियाँ रचना अछि. हमरा लग शब्द नहि अछि वर्णन करबाक लेल. हम एक्के टा बात कहब अहाँक एहि प्रकारक रचना सब लोकनिक बस’क बात नहि अहाँ एहि रचना सँ अपन पूर्ण पेशेवर क्षमता देखा देलहुँ. कतेक रास बात धन्य भऽ गेल. "Simply hats off to you, sir"

Unknown said...

Sir,

E kavita bahut badiya chhal. Man hoit aichh je kavita lay o sab vyakti ke padha aibiton je ehan tarhak doshi chhaith.
E du panti jarur kahab je-
ekahi baat san niklait aichh,
put aa mut!
jan put kaput ho tan wo,
mut ke mut!!

Anargal Sabdk lel mafi chahait chhi

Bishesh Agila ber....
Rajesh Jha
rajesh90ranjan@gmail.com

Gajendra said...
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Gajendra said...
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कुन्दन कुमार मल्लिक said...

श्री गजेन्द्रजी,
अहाँ'क लेल हमरा शब्द नहिं भेट रहल अछि। अहाँ'क सुझाव के अनुसार हम एहि कविता में सुधार कय रहल छी। एहिना अहाँ'क मार्गदर्शन'क आस रहत।
धन्यवाद।

Gajendra said...
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Anonymous said...

ki kahu hamra upyukt shabd nahi bhet rahal aichh.....vartmaan samay mein ghar-ghar k yehe kahani chhai jekra kagaz par etek badhiya ja ka utaral gel chhai.ki sajeev prateet v rahal chhai...
Prashanshniya karya aichh...

Kundan G.
Keep it up...

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