पापा आ बाबूजी



तुफान'क बाद तऽ शाँति आबिते छैक मुदा ई शाँति एत्तेक दिन तक रहतैक से सुभाष केँ बुझल नहिँ छल. पिछला महीना जे हिनका अपन बाबुजीँ सँ बहस भ' गेलन्हि से आब हुनका खराब लागैत छलन्हि. मुदा ओ अपन बात पर एखनहुँ टीकल छलाह. ओहु मे हुनकर बाबूजी ओहि घटनाक्रम के बाद कहियो फोन नहि केलथिन्ह. आई काल्हुक समय मे किओ चिट्ठी पतरी लिखैत नहि छथि तेँ एहि बात'क आशे नहि करैत छलाह.





मुदा रहि रहि केँ हुनका अपन केलहा पर कोनो पछतावा नहि होइत छलन्हि. मोन मे हरदम होइत छलन्हि जे समय बदलल, लोक बदललाह मुदा हुनकर बाबूजी एखनो धरि १९वीँ शताब्दी मे जीवैत छथि. हुनकर बाबूजी हुनका अपन पुरखाहा खेत पथार बेचि एम.बी.ए तक के पढाई करौने छलाह. नहि तऽ एकटा प्राइमरी स्कूल'क शिक्षक कतओ एत्तेक महग पढाई अपन बेटा'क केँ करबा सकैत छलाह. आब सुभाष केँ बहुत बढ़ियाँ नौकरी भेटल छलन्हि. बहुत बढ़ियाँ घर मे विवाह भेल छलन्हि. आब हुनकर कहब छलन्हि जे अपन पुरखाहा खेत पथार बेच देने छलाह तेँ अपन गाम मे शुभाष हुनका दू बीघा खेत कीनि दैथि. कम सँ कम गाम'क लोक केँ ओ जवाब द; सकैत छलाह जे अपन बेटा मे जे खर्च केलहुँ ओ सूद सहित वापस भ' गेल.





मुदा शुभाष'क सोच अलग छल. हुनकर कहब छल जे आब गाम घर मे के रहैत छैक. गाम'क एत्तेक तरह'क राजनीति हुनका बुते पार नहि लागतन्हि. गाम घर मे जे पैसा खर्च कए जमीन लेब ओहि सँ बढियाँ शहर मे जमीन लेला पर ओकर मूल्य दिन दूना आ राति चौगूना होयत.





एहेन बात नहि छलैक जे शुभाष'क बात सँ हुनकर बाबूजी असहमति छलाह. मुदा हुनकर कहब छलन्हि जे गाम मे दू बीघा जमीन चारि लाख मे भ' जायत आ शुभाष केवल छओ महीना मे एत्तेक पैसा जमा कऽ सकैत छलाह. केवल दू बीघा जमीन सँ हुनकर प्रतिष्ठा बचि जाएत. अपन पुरखाहा जमीन बेचला सँ ओ समाज के के कहि अपन पूर्वज'क लाज'क तर मे दबल छलाह. ई सब सोचि हुनका लागैत छलन्हि जे ओ दस लोकन्हि मे मूड़ी नहि उठा सकैत छथि. सुभाष'क केवल छओ महिना के कमाई हुनका समाज मे एत्तेक इज्जत दऽ देतन्हि.





सुभाष'क कहनाई अलग छल. ओ अपन एम.बी.ए. डीग्री'क भूमिका दैत अपन बाबूजी केँ कहैत छलाह जे गाम मे चारि पाँच लाख इनवेस्ट करनाई कोनिओ बुद्धिमानी नहि. दुनू लोकनि अपन अपन जगह ठीक मुदा दुनू लोकनिक विचार मे सामजस्य नहिँ. आ ओहु सँ बढ़ि केँ दुनू लोकनि एक दोसर के बात के~म महत्वहीन बुझैत छलाह. एकर प्रतिफल भेल एहेन जे फोने पर एक सामान्य गप्प सप्प एक गरमा गरम बहस मेबदलि गेल. दुनू लोकनि मे गरमा गरम बहस भेलन्हि आ हुनकर बाबूजी कहि देलथिन्ह, "हम जे खेत पथार बेचि अहाँ केँ पढ़ेलहुँ ओकर फल अहाँ इएह दैति छी" सुभाषो जवाब द' देने छलाह, "अहाँ जे हमरा पढेलहुँ से कि अनुचित केलहुँ की? कोन बाप अपन बेटा केँ नहि पढ़बैत छथि ?"





मुदा एकर बाद सुभाष केँ खराब लागैत छल. मुदा ओ अपन बाबूजी'क नेचर सँ परिचित छलाह. हुनका नहि लागैत छलन्हि जे ओ यदि हुनका फोन करताह ते हुनकर बाबूजी हुनकर बात पर कान देताह. तेँ चाहियो को ओ पिछला एक महीना सँ फोन नहि केने छलाह. हुनका समझौता'क कोनो गुन्जाइस नहि बुझि आबैत छलन्हि. दुनू लोकनीक जीवन अपन अपन रास्ता पर चलैत छलन्हि. जतय सुभाष'क बाबूजी छओ हजार टाका'क अपन पेन्सन मे अपन जिन्दगी खुशी-खुसी बीतबैत छलाह ओतय सुभाष प्रति दिन शेयर मारकेट आ दोसर चीज सँ अपन पैसा केँ बढ़ेबाक हर सम्भव प्रयास करैत छलाह.





आई सुभाष अपन डेढ़ साल'क बेटा केँ अपन कोरा मे नेने खेलाबैत छलाह वा खुदे खेलैत छलाह से नहि जानि. ओ पूर्ण रुप सँ व्यस्त छलाह से जानि पड़ैत छल. रहि रहि केँ दुनू लोकनि बारी बारी सँ किलकारी मारैत छलाह. ओहि दुनू लोकनि मे किनका अन्दर मे बेसी बचपन छल से पता नहि. सुभाष'क ध्यान तखने भँग भेल जखन हुनकर बौआ हुनकर मोँछ पकड़ि केँ जोर सँ खीचलकन्हि. अपना जानैत ओ सहज होयबाक हर सम्भव प्रयास केल्थिन्ह मुदा दर्द सँ आँखि सँ दू बुनि नोर अपने आप खसि पड़लन्हि. तैयो ओ अपना आप केँ इएह बुझाबैत रहलाह जे ओ ते डेढ़ साल'क बच्चा छथि ई नोर हुनका कारण नहि मुदा हमरा अपने कारणेँ खसल अछि.





बौआ हुनकर पत्नी'क केश कतेक बेर खीचने छलथि. मुदा हुनकर पत्नी बौआ केँ दोषी मानि कतेक बेर कहने छलथिन्ह, "जे ई छौड़ा बदमाश भ' गेल अछि". मुदा ओ ते पुरुष छलाह, ई बात केँ किएक लेल स्वीकार करताह जे हुनकर बेटा हुनकर मोछ खीचने छल जाहि सँ हुनका आँखि सँ नोर खसि पड़लन्हि. पुरुष'क इएह विधान, कहियो अपन गलती केँ स्वीकार नहि क' सकैत छथि. ओहु मे डेढ़ साल'क बच्चा यदि मोँछ पकड़ि के खीचन्हि आ हुनका आँखि सँ नोर खसि पडन्हि, एहि सँ पुरुष जाति'क स्वाभिमान केँ ठेस पहुँचैत छैक. बात किच्छो हो मुदा वास्तविकता इएह छल जे हुनका आँखि सँ जे दू बुनि नोर खसलन्हि, ई बात हुनकर बेटा देखि नेने छलथिन्ह. पहिने अपन पापा'क नोर पर तेँ खूब जोर जोर सँ हँसलाह मुदा पापा'क तरफ सँ कोनो प्रतिक्रिया नहि देखि ओ ठाढ़ भए एक हाथ हुनकर गरदनि मे लपैट दोसर हाथ सँ हुनकर नोर पोछे लगलाह, आ सुभाष केँ हारबाक दम्भ नहि छलन्हि अपितु अपन गतिविधि सँ साबित करय चाहैत छलाह जे हुनका किछु नहि भेलन्हि.





सुभाष बाहर सँ नहि हारल छलाह मुदा अन्दरे-अन्दर हुनका बुझल छलन्हि जे हुनका आँखि मे नोर किएक आयल. हुनका पूर्ण रुप सँ बुझल छल जे ओ अपन बौआ सँ हारल छलाह. मुदा हारि केँ एहनो नहि छल जे ओ हारि केँ दुःखी छलाह. ओ हारल छलाह मुदा हारि केँ खुश छलाह.आ इएह अन्तर छल हुनका मे आ हुनका कनियाँ मे. कनियाँ हारला'क बाद हारि स्वीकार करैत छलीह. मुदा हारलाक बाद दुःखी भ' छलीह. सुभाष बाहर सँ स्वीकार नहि करैत छलाह जे हारलाह. मुदा अन्दर सँ हुनका हारि केँ बढ़ियाँ लागैत छलन्हि. बल्कि एहेन हारि ओ कतेक बेर हारे चाहैत छलाह. भगवानो केँ ई बात नीक जेकाँ नहि बुझल अछि जे प्रत्येक बाप केँ अपन बेटा सँ हारबा मे नीक किएक लागैत छन्हि.




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एहि कथा’क बाँकी हिस्सा हमर पोथी "भोथर पेन्सिल सँ लिखल" मे देल गेल अछि. पोथी’क बारे मे विशेष जानकारी आ कीनबाक लेल प्रक्रिया निम्न लिन्क मे देल गेल अछि. http://www.bhothar-pencil.co.cc/ .
मैथिली भाषा’क उत्थान मे योगदान करु. पोथी कीनि साहित्य केँ आगू बढ़ाऊ.
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3 comments:

anand kumar said...

Bahoot badhiya laagal. Aai Kail ke samay ke vastvikta ke bad neek dhang san bujhaolaun.

Gajendra said...
This comment has been removed by the author.
करण समस्तीपुरी said...

bud neek !
shaayad aai je generation gap bha rahal aichhi waih mein ek setu ke kaaj kare !

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