छौंकी भगवान

-मीनू राजीव लाल

कोनो गाम में एकटा ठकुरबाड़ी छल आ ओही में देवी-देवता सब स्थापित छलाह। ओकर देखभाल एकटा पंडितजी करैत छलाह। भोरे-भोर देवस्थल के साफ-सुथरा कऽ, भगवानक नुआ बदलि कऽ पूजा-पाठ केनाय आ ओकरा बाद भोग लगेनाय हुनकर प्रतिदिन के नियम छल। बड़ा निष्ठा से ओ एहि नित्यकर्म के संपादित करैत छलाह।

एक बेर पंडितजी के गाम से किछु दिनक लेल बाहर जेबा के छलैन्ह। से ओ अपन एकटा चेलवा चरवाहा के कहलखिन्ह जे ओ ठकुरबाड़ी के ओगरवाही कऽ देय। पंडितजी निश्चिन्त भऽ के चलि गेला।
छौंकी भगवान
पंडितजी के गेला के बाद चरवाहा प्राते ठकुरबाड़ी में गेल आ देखलक जे देवी-देवता सभ पर मैल बैसल छल। से ओ भगवान सभ के संबोधित क’ बाजल "बुझायत छै जे बभना तोरा सभ के ठीक से नहाबय नहि छौ। चलअ पोखरि में बढ़ियाँ से स्नान करा दियऽ।" भगवान सब से कोनो जवाब नहि भेटल। एहि पर ओ फेर बाजल "हौ, बड्ड असकतिया छहक तों सभ, चलै चलअ जल्दी..हमरा आरो बहुत रास काज अछि।" फेर कोनो जवाब नहि भेटल। एहि पर खिसियाएत चरवाहा जानवर सभ के हाँकय बला छौंकी दिखावैत कहलकै..."हे देखैत छहक सोंटा...एके बेर में सभ टा आसकत बाहर भऽ जेत’। चुपचाप चलै चलअ, नहि तऽ सभटा देहक मैल एहि ठाम छुड़ा देबौ।" भगवानो मोने मोन सोचलैथ जे केहन मनुक्ख से पाला पड़ल। एहि में भलाई जे चुपचाप जे कहैत अछि जे मानि ली। आब एकरा से छौंकी के खायत। छोट-छोट भगवान ढुनमुन-ढुनमुन करैत चरवाहा के पाँछा लागल लागल पोखरि पर गेलथि आ ओतहि डुबकी मारि कऽ स्नान केलैथ। नहेला के बाद चरवाहा फेर छौंकी देखौलक तऽ अपने अपने कपड़ो सभ बदलि लेलखिन। ओकर बाद फेर सब भगवान ढुनमुनाएत मंदिर एलाह।

चरवाहा सब भगवान के लेल खाना बनौलक आ हुनका सभ के खाय लेल कहलकै। आब भगवान भला कोना के खयता, से चुपचाप छलाह। एहि पर चरवाहा बाजल "हौ भगवान, एते मेहनत से खाना बना देने छियौक...आब ई ओम्मीद नहि राखिहँ जे कौर बान्हि के खुआ देबौ...बभना तोहर सभक चालि-चलन के बिगाड़ि के राखि देने छौ। आबऽ आ अपने खा लऽ, थाकि गेल छी तोरा सब के चरियाबऽ में।" भगवान के फेर किछु नहि करैत देख ओ चरवाहा फेर छौंकी लऽ के उठल कि सब हड़बड़ौने खाब’ लागलैथ। यैह प्रतिदिन के नियम भऽ गेल। चरवाहा के छौंकी देखाबैत भगवान सभ अपन-अपन काज कऽ लैत रहैथ। एहि बात के एकटा गौंआ देख लेलक।

पंडितजी अपन काज खतम केला के बाद घुरला। हुनका कान में भनक गेलै जे हुनक अनुपस्थिति में एहन एहन बात भेल छैक। हुनका सहजे विश्वास नहि भेलैक। जखन ओ मनसा जोर देबऽ लागल तऽ ई सोचलैथ जे जौं ई सत बात तखन तऽ भगवान हुनको बात के मानि लेथिन। ओ तऽ बहुते पूजा-पाठ करैत छैक आ चरवाहा तऽ किछो छै तऽ पंडितजी के चेला छै। जौं भगवान चेला के बात मानि सकैत छथिन तऽ गुरु के किएक नहि। पंडितजी भगवान लग गेलैथ आ बहुत अनुनय-विनय केलैथ। किछो फरक नहि पड़लै। आब चरवाहा के बजाओल गेल। चरवाहा के छौंकी देखैत भगवान सब सभटा बात मानय लगलाह आ जेना जे ओ चरवाहा कहय से करय लगलाह। ई देखैत पंडितजी ठामे चरवाहा के पैर पर खसि पड़लखिन ई सोचैत "पूजा-पाठ से बेसी महत्व श्रद्धा के छैक आ भगवान के ओही चरवाहा में श्रद्धा भेटलनि जे ओ ओकर गारि बात सुनियो के ओकर बात मानैत छलाह।"



2 comments:

गौरव गगन - Gaurav Gagan said...

"हे देखैत छहक सोंटा...एके बेर में सभ टा आसकत बाहर भऽ जेत’
ओनाहितो इ देखनुक कहानी य | हमर मन् त प्रसन भ गेल |

इ कहानी स बेसी महिला सब क सीखबा का चाही की बेसी उपवास रखइए स किछ नही होइए छै|बस शरीर क ख़राब करनैए| मन म शरधा रहिनई जरुरी छै ताखैन सब जगह भगवान् छथिन |


"लागल रहू "
अपनेक :
गौरव गगन ,बंगलोर

Gajendra said...
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