फेर सब बिसरि जायब

-डॉ० धनाकर ठाकुर

आइ मुरी अबए में
मुड़ी सीधा भए गेल
मुड़ी लग मुड़ी
देह सऽ सटल देह
मन रहितो टिकस नहि लए पएलहुँ
कारण ओतहु छल ठेलमठेल
बीस सीट लेल बीस हजार
राजधानीक स्टेशन पर
अजब माहौल छल
देखल एक नवसृजित
राज्य झारखंडक
बेहाल बेरोजगार नवयुवक केँ
कतेक के गाड़ी छूटल
कतेक के छूटत जीवन
एतेक पढ़ि-लिखि जँ
गैंगमैनहुँ नहि हेताह तऽ
कोनो गैंग में जेताह
नक्सल कहेताह
कहियो मुठभेड़में मारल जेताह
मगर एकर के जिम्मेवार
एकर जे जिम्मेवार
ओ सभ एताह
अप्पन-अप्पन टोपीक रंग
गिरगिटिया लेने
मैदान मोराबादी में
अहुँ देखब, हमहुँ देखब
फेर सब बिसरि जायब
फेर सब बिसरि जायब।

(9 नवम्बर 2003 के राँची-मुरी रेल यात्रा के दौरान रचित)

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