लोक मरैत रहत सदैव, आतंकवादीक गोली सँ।
जनता ठकाइत रहत सदैव, क्रूर राजनेताक बोली सँ।
गरीब तंग रहत सदैव, पेटक किलकिलाइत भूख सँ।
स्त्री दबायल रहत सदैव, पुरुखक चमचमाइत बूट सँ।
सवर्ण डेराइत रहत सदैव, डोमक थूक सँ।
मिथिला दहाइत रहत सदैव, बेंगक मूत सँ।
बेटा बिकाइत रहत सदैव, मोटगर दहेज़ सँ।
बेटी जरइत रहत सदैव, आगिक लपेट सँ।
राशन घटल रहत सदैव, नहि होयत किछु भाषण सँ।
लोकतंत्र मे मारामारी रहत सदैव, हटय चाहत ने क्यो सिंघासन सँ।
देश सहमल रहत सदैव, कलियुगी रावण ओ कंस सँ।
किछु लोक चाहैत रहत सदैव, बचय समाज विध्वंस सँ।
अपने मे सब लड़ैत रहत सदैव, नहि होयत किछु झगरला सँ।
ई थेथर समाज एहने रहत सदैव, नहि बदलत बात छकरला सँ।
5 comments:
bahut sundar rupesh ji
रुपेश जी के कविता में समाज के सही हाल के वर्णन छै, ओना स्थिति में परिवर्तन भ रहल छै.
बढ़िया लेखन !
सादर,
मितेश
सामाजिक विद्रूप्तक चित्रण करबा में सफल भेल छैथ रुपेश जी..... बधाई...
यदि "कतेक रास बात" यूवा मैथिल केँ मैथिली साहित्य सृजन करबाक लेल एकटा प्लेटफार्म थीक तऽ कतेक रास बात टीम’क ई जिम्मेदारी जे "प्रशँशा आ आलोचना"’क सही उपयोग करबाक चाही. रुपेश जी’क नीक प्रयास, मुदा एकर ई मतलब नहि जे आवश्यक आलोचना नहि काएल जाए.
हमरा बुझना जाइत अछि जे जे बात कविता मे लिखल अछि ओ straight forward अछि. कोनो भी लाइन एहेन नहि जे कोनो महीन बात उजागर करने हो. author के authorship परिलक्षित नहि भऽ पाबि रहल अछि. जाहि सँ पाठक के मोन के उद्वेलित नहि कऽ रहल अछि.अन्त मे इएह लागि रहल अछि जे चलु "एकटा कविता आओर आबि गेल".
रुपेश जी, प्रस्तुत टिप्पणी हम अहाँक अन्दर मे छुपल कवि केँ बाहर निकाल्बाक लेल दऽ रहल छी. अन्यथा नहि लेब. हमर बुझल अछि जे ओ कवित्व जल्दीए बाहर आएत. हम बाट ताकि रहल छी.
ek dum satik tippni kael gel achhi yehi tatha kathit samaj par.
Dhanywad yehan baat karai ke lel.
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