- श्री सतीश चन्द्र झा
जीवन केर विस्तृत नील पटलबादल बनि किछु हमहूँ लिखितौं।
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
छल उमर अबोधक कतेक नीक ,
संघर्ष कतहु, नहि कतहु द्वेष
सागर सन सौंसे पथ विशाल
जा सकी जतय, नहि कतहु शेष।
कवि- श्री सतीश चन्द्र झा,
व्याख्याता, दर्शन शास्त्र,
मिथिला जनता इंटर कॉलेज, मधुबनी,
सम्पर्क- +91-97087 15530
झम-झम बर्खा पडि रहल बून्द
अंगना-दलान भरि गेल पानि ।
कापी-किताब सँ बना-बना
छी बहा रहल हम नाव आनि।
चलितै जे नाव सरोवर ओ
किछु दूर कतहु हमहूँ बहितौं।
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
छल कतेक नीक गाछक झूला
उडि जायत छलहुँ मोनक अकाश ।
अमृत-विष, सुख-दुख, किछु भय नहि
चलि जाइत शून्यक आस-पास।
छी आइ कतेक निष्प्राण भेल
फँसि महासिन्धु केँ भँवर जाल ।
आशा-तृष्णा के मध्य कतौ
अछि झूला रहल इ समय काल।
रहितै जे गाछ कतौ ओहने
हम फेर आइ झूला झुलितौं।
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
छल कतेक नीक टुकलीक पाछाँ
उठि दौड लगाबी मस्त भेल ।
चलि रहल पएर पथ, नदी, धार
जा धरि नहि दिनकर अस्त भेल।
चलि पाबि रहल छी कहाँ आइ
अछि जतय सहटि क' भीड चलल।
दौडब जीवन के पकडि लेब
अछि कहाँ आब शक्ति बचल ।
चलितै जौं संग कियो हमरो
किछु सुखद लक्ष्य हमहूँ पबितहुँ।
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
10 comments:
bahut nik prastuti thik. apnek kavita bes gahirgar rahait achhi.
बड नीक लागल। बधाई।
कवि शतिश चंद्र झाँ को शत-शत नमन
प्रत्येक बंद इतने सुंदर इतने मोहक हैं
कि लगता है मैथली सीखनी पड़ेगी।
------
चलितै जे नाव सरोवर ओ
किछु दूर कतहु हमहूँ बहितौं।
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
-वाह!
उगितै जौं चान अमावसक
अपने अँगना हमहूँ नचितौं ।
वाह...वाह.... ! मोन गद-गद भ' गेल !
आब हमरा अमावासक चानक कोन प्रतीक्षा..... श्री सतीश चन्द्र जी कविताक एहन सुन्दर छटा बिखाराओल कि हम्मर मन-मयूर दुन्नु डैना फोलि नाचि रहल अछि ! बधाई !! बहुत-बहुत बधाई !!!
कविता के शैली अ प्रस्तुति बढ नीक लागल ..
सादर,
मितेश
rupesh jee,manoj, debendra,karan,mitesh jee kavita padhabak lel dhanyabad.
sadar ..... satish
bahut sundar lagal ahank kavita
ramesh kumar pandey,rajnagar,
कविता बड निक अछि, बधाई !
वाह.........वाह.......... मोन गदगद भ' गेल। शब्द, लय आ उपमाक माध्यम सँ जे अनुपम छटा बिखेरलहुँ तकर लेल उपयुक्त शब्द ताकय मे हम असमर्थ छी।
एहिना पाठकवृन्द अपनेक कविताक रसपान कय आनन्दित होयत रहताह तकरे अपेक्षा।
सतीश जी;
कविता नीक अछि. ओना कविता मे केवल तुकबन्दी रहैत छैक, मुदा अपनेक कविता मे भाव अछि, जे पाठक केँ पढ़ला’क बाद सँतुष्टि दैत छैक. इएह अपनेक लेखन केर सबसँ पैघ उपलब्धि अछि.
Post a Comment