फुरसत- सुभाष चन्द्र

मकरा जाल बुनैत अछि फुरसत मे
ओ करैत अछि निढाल फुरसत मे
कथी लेल पूछैत छथि वो हमरा सँ
एहन-ओहन सवाल फुरसत मे

कवि- सुभाष चन्द्र.
सम्पादक, "कतेक रास बात"


लोक नीक जकां देख लिअ हमरा
अपना कें घर सँ निकालि फुरसत मे
लूटि लिअए हमर परछाईं हमरा
नहि त रहि जायत कचोट फुरसत मे
जिनक ठोर पर मुस्की छैन्हि
पूछिओन हुनक हाल फुरसत मे
फेर ककरो सम्हारब नहि
पहिने अपना कें सम्हारी फुरसत मे
धारक कात मे बैसि कय अहां
एना नहिं पानि उछेहु फुरसत मे।

7 comments:

करण समस्तीपुरी said...

hoon !
shabd-chhand ta neek lagaiye,
baanki bataayeb fursat me !!!

मनोज कुमार said...

आई त शनि अछि आ हम छी बैसल फुरसत में। अहांक सुझाव मानि क अपना कS सम्हार रहल छी।
तय दुआरे हमरा एखन बकस दिय, बेसी बात करब फुरसत में।

SANDEEP KUMAR said...

ati uttam koti ke kavy rachna... karal gel aichh fursat me...

Kumar Padmanabh said...

उपराग बहुते अछि,
कोना के ओ गप्प कही सभ’क बीच मे,
एखन चलय दिऔ अपन कलम केँ अहाँ,
सबटा हिसाब बराबर कऽ लेब हम फुरसत मे ।

बहुत सुन्दर दिव्य आ कविता’क अनुशासन मे.


मेरे बकवास का BETA-2.0 सँस्करण अब जारी हो गया है. आप उसको यहाँ पढ़ सकते हैँ.

मितेश मल्लिक said...

bahut neek lagal ....

Ramesh Kumar Pandey said...

bahut sundar

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

बड दिन पर बैसल छी आई फुरसत मे,
मुदा की कहू,
किछु नहि फुरायत अछि फुरसत मे.......!!

आबि रहल छी दिल्ली अगिला मास,
तखन गपियायब फुरसत मे ।

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