गरिमा आओर पलास

कथा, भाग-3: लेखक:- सुभाष चन्द्र, मोडेरेटर: केशव कर्ण (समस्तीपूरी)

एखन धरि पढ़लौंह, "बचपन से तरुनाई धरि संग चलनिहार गरिमा आ पलासक सतत प्रेम, तमाम वर्चस्व आ विषमताक कात करैत जीवन पथ मे दुन्नु लोकनिक संग आनि देल्कैन्ह! फेर अहम् आ स्वाभिमानक द्वंद, दाम्पत्य जीवन मे करवाहट आ एक छत कें नीचा एकाकी जीवैत दू प्राणी जे, जिनगी भरि संघ चलबाक शपथ नेने छथि... आब आगा पढ़ल जाऊ, सुभाष जीक शब्द मे... !!


घर मे बीमार पत्नी आ हुनकर सेवा-सुश्रुषाक लेल आयल सास-ससुर, पलासक लेल दूनू पटुआक साग जेकाँ। शरीरक लेल जहिना पटुआक साग शीतलता प्रदान करैछ ओहिना सासुरक माहौल नीक लगैत अछि, मुदा ई साग कनी अधखाइन (तीत) लगैत अछि। एखनुका समय मे पलासक लेल गरिमा आ हुनक माय-बाप सेहो ओहिना लगैत छलखिन्ह। जाधरि सास-ससुर नहि छलाह, कम सँ कम गरिमा के ऑफिस गेलाक बाद पलास घर मे एकसरि बैसि अपन संताप त' मिटाबैत छलाह। मुदा आब... कतय जेताह? कोनो ठेकान कहां छैन्हि? घर मे भरि दिन रहताह त भरि दिन गरिमा हुनक सामने रहथीन्ह। आ सास-ससुर के कि जबाव देताह? एहि गुन-धुन मे पलास भोरे नियत समय पर घर सँ विदा भ जाइत छलाह आ साँझ भेला पर घुरैत छलाह।

दिन पर दिन बीति रहल छल। मनुष्य के स्वभाविक गुण होइत छै जे जाहि सुख के ओ एक बेर प्राप्त कय लैत अछि, ओकर पुनरावृत्ति बेर-बेर चाहैत अछि। संगहि समाजक ताना-बाना एहि प्रकारक अछि जे पुरूष सहजहिं महिला कें अपना सँ आगां बढैत नहि देखि सकैत अछि। पलासक संग सेहो इएह कारण छल। पुरूष होबाक दंभ मे ओ गरिमा के कतेको नीक-बेजाय कहि देलखिन। गरिमा सेहो भावावेश मे उच्छट बात सुना देलखिन्ह। गरिमा के स्वास्थ्य ठीक नहि भ रहल छल। शारीरिक सँ बेसी मनक संताप घर कय चुकल छल। संगहि गरिमा-पलासक बीच गप्प सेहो कम होइत छल। हुनक माय एकरा भाँपि चुकल छलखिन्ह। जहन नहि रहल भेलैन्ह त गरिमा सँ पूछि बैसलिखन्ह, 'तोरा दूनू मे किछु खटपट भेल छौ कि?'नहि त'

'तहन दूनू के बीच एतेक संवादहीनता कियैक? पहिने त तौं हमरा भरि-भरि दिन पलासक बारे मे चर्च करैत छलैंह। मुदा जहिया सँ हम सब इलाहाबाद अयलौं, कोनो चर्च नहि। कि हमर सभक एतय ऐनाय पलास के पसिन्न नहि ?
'नहि... नहि... एहन कोनो गप्प नहि छैक। पलास भरि दिन काज पर झमारल रहैत छथि आ घर मे हमर जहिया सँ मौन खराब भेल, हुनक परेशानी बढि़ गेल छैन्ह ने।

माय, बेटीक गप्प के सुनि चुप्प त भ गेलीह, मुदा हुनक आत्मा एहि गप्प कें स्वीकार नहि कय रहल छल। दोसर दिस गरिमा के मौन सेहो ठीक नहि भ रहल छल। माय-बाप चिंतित होमय लगलाह। मुदा, पलासक लेल धनि सन। अपन दिनचर्या कें अलावे ओकरा जेना किछु आओस सँ सरोकार नहि होइहि...। गरिमाक हालत देखि पिता सेहो दुखी भ रहल छलाह। संगहि गरिमाक माय सँ भेल गप्पक सार बुझलाक बाद हुनक मौन कोनादन होमय लागल रहन्हि। निश्चित केलाह जे आई साँझि मे पलास सँ सोझां-सोझी गप्प करब। कियैक गरिमा कें मौन नहि ठीक भ रहल छै? डॉक्टर कि कहि रहल छै? जदि इलाहाबादक डॉक्टरक बूता मे नहि छै त लखनऊ दूरे कतेक छै? लोक त जरूरति परला पर दिल्ली धरि ल पड़ाईत अछि। कहि पाय-कौड़ीक दिक्कत त नहि... एहने कतेको रास सवाल हुनक दिमाग मे घुमि रहल छल। तखने पलास अयलाह। एकटा बाप के सब्रक बांध जेना टूटि गेल होई। तुरत पूछि बैसलाह, 'गरिमा 'एतेक दिन सँ बीमार ओछाओन पर पड़ल अछि। हिनका त जेना कोनो मतलब नहि होइन्हि। आखिर डॉक्टर कि कहैत छै? कोनो गप्प के दिक्कत अछि त बताऊ, ओकर व्यवस्था कयल जेतै?Ó
एक्केबार एहि तरहक सवाल कें अंदाजा पलास के नहि छल। आई नियत समय सं पहिने घर घुरला पर ससुरक सवालक बौछार अप्रत्याशित छल। ससुर के कि कहतैथ? वियाहक एक्को बरख नहि बीतल आ हमरा दूनूक बीच मनमुटाव भ गेल। गरिमा मनक संताप सँ ओछाओन ध लेलीह। हम नौकरी नहि करैत छी। जदि नौकरी नहि करैत छी त भरि दिन कतय बौआइत छी? एहने बहुतो रास सवाल जन्म ल सकैत छल, जकर उचित जबाव पलास लग नहि छल। से, ससुर के मात्र एतबै कहलाह, ' नहि.. कोनो घबराय वला गप्प नहि छै। गरिमा कें नीक डॉक्टर सँ देखेबाक लेल आई जल्दी अयलौं।

ठीक गदहबेरे मे ... लुकझुक करैत छलैक दिन आ' संध्या ओकरा पछुअओने अबैत छलैक ...। तहने पलास गरिमा के ल क डॉक्टर ओतय बिदा भेलाह। जहिना पलास गरिमा के चलय लेल कहलखिन्ह, बिना कोनो राग-लपेट, उलाहना के गरिमा बिदा भ गेल छलीह। घर मे हुनक माय-बाप। किछुए समय आर बीतल हेतैक ता' रातिक आगमन भऽ गेल रहैक ... अन्हरिया राति रहैक ... घुप्प अन्हरिया ... जाड़क राति ... हार कँपाबऽ वला राति ... आ' सेहो अमावसक ... हाथ-हाथ नहि सुझैत ...। सब अपन-अपन काज मे लागल छल। ... दिन भरि काज मे व्यस्त ... हाट-बाजार ... खेती पथारी ... पौनी पसारी ... नौकरी चाकरी ... मर-मोकदमा ... अस्पताल ओ थानाक चक्कर ... खैरातक खातिर अंचल-प्रखंडक दौड़ आ' कि आस्तिक भक्त-वृंदक मंदिरे-मंदिर भगवत् दर्शन-पूजन आदि ... भिन्न-भिन्न कार्य-व्यवसाय मे लागल ... एमहर-ओमहर जाइत-अबैत ... सर्वत्र चहल-पहल ... वातावरण मे शब्दक टोप-टहंकार जनता-जनार्दन श्रीमुख सँ निकलि चलैत-फिरैत लोको केँ आ' कि जाड़ सँ कठुआइत घर मे दुबकलो केँ ध्यान-भंग करैत ...।

गरिमा आ पलास एखनधरि घर नहि पहुंचलाह। माय-बाप के अंदेशा भ रहल छलैन्ह। घरक बरामदा सँ उतरि सड़क पर बाट जोहैत छलाह। तहने एकटा पड़ोसी हाल-चाल पूछलखिन्ह। मौन अफस्यांत देखि पड़ोसी कहलखिन्ह, 'जुनि चिन्ता करू। संभव जे डॉक्टर ओतय बेस भीड़-भरक्का होइहि। नहि त ट्रैफिक जाम मे सेहो फंसल भ सकैत छथि।' मोन बहलेबाक लेल पड़ोसीक गप्प ठीक छल। कि तखने घरमे फोनक घंटी बाजल।

ट्रिन...ट्रिन...ट्रिन...ट्रिन...
'हेलौ...'
'गरिमा घर पर है क्या?'
'नहीं, डॉक्टर के पास गई है। इम्हर सँ हुनक माय जबाव देलखिन्ह। 'आप कौन?'
'मैं गरिमा की सहेली बोल रही हूँ, उसके साथ ऑफिस में काम करती हूँ।'
गप्प होइते छल कि घरक मेन गेट खुजल आ गरिमा-पलास अयलाह। गरिमा माय सँ फोन थामैत बाजि उठलीह, 'मैं तुम से कल बात करती हूँ। अभी घर में सारे लोग हैं। अच्छा... तुमने माँ से पलास के बारे में कुछ बताया तो नहीं?'
ओम्हर सँ की जबाव देल गेलै, से त माय नहि सुनलखिन्ह, मुदा एतय जरूर बुझलखिन्ह जे गरिमा-पलासक बीच किछु गड़बड़ छै।

(क्रमशः..............)


कहानी’क अगिला भाग लिखबाक लेल टिप्पणी द्वारा सूचित करु. पहिने आऊ पहिने पाऊ सिद्धान्त लागू...

कथा'क      प्रथम भाग ।  दोसर भाग  । तेसर भाग  ।  चारिम आ अंतिम भाग

9 comments:

करण समस्तीपुरी said...

धन्यवाद सुभाष जी,
अपन कल्पनाक उड़ान सँ अहाँ त' कथाक बड़ रोमांचक मोड़ पर आनि देने छी. शैली मे उदीयमान साहित्यकारक झलक सेहो बुझना रहल अछि. सांच पुछू त' एहने रोमांचक उम्मीद छल हमरा लोकनिक एहि कथाक आरम्भ मे. आब अगिला लेखक कुंदन जी छथि.... देखू ओ अपनेक कथाक कोन रंग दैत छथि.
एक बहर फेर सँ धन्यवाद !!!

Rajeev Ranjan Lal said...

अहाँक लेखन शैली साधल अछि। बहुत सावधानी सँ तारतम्य बनाबैत अहाँ कहानी के एहन आयाम देलिए जे एहि कहानी में अखन तक के सर्वश्रेष्ठ कड़ी बुझायल। कोटिशः धन्यवाद आ प्रतीक्षा अगिला कड़ी के।

सुभाष चन्द्र said...

केशव जी आ राजीव जी
अपने दुनु के हमर होसला बढेबाक लेल धन्यवाद

arvind said...

kahaani badd badhiya aagaa badhi rahal achhi, shree subhashji ekra atyant ramanchak sthiti me aani delah---aabhaar.

Kumar Padmanabh said...

ठीक गदहबेरे मे ... लुकझुक करैत छलैक दिन आ' संध्या ओकरा पछुअओने अबैत छलैक ...। तहने पलास गरिमा के ल क डॉक्टर ओतय बिदा भेलाह। जहिना पलास गरिमा के चलय लेल कहलखिन्ह, बिना कोनो राग-लपेट, उलाहना के गरिमा बिदा भ गेल छलीह। घर मे हुनक माय-बाप। किछुए समय आर बीतल हेतैक ता' रातिक आगमन भऽ गेल रहैक ... अन्हरिया राति रहैक ... घुप्प अन्हरिया ... जाड़क राति ... हार कँपाबऽ वला राति ... आ' सेहो अमावसक ... हाथ-हाथ नहि सुझैत ...। सब अपन-अपन काज मे लागल छल। ... दिन भरि काज मे व्यस्त ... हाट-बाजार ... खेती पथारी ... पौनी पसारी ... नौकरी चाकरी ... मर-मोकदमा ... अस्पताल ओ थानाक चक्कर ... खैरातक खातिर अंचल-प्रखंडक दौड़ आ' कि आस्तिक भक्त-वृंदक मंदिरे-मंदिर भगवत् दर्शन-पूजन आदि ... भिन्न-भिन्न कार्य-व्यवसाय मे लागल ... एमहर-ओमहर जाइत-अबैत ... सर्वत्र चहल-पहल ... वातावरण मे शब्दक टोप-टहंकार जनता-जनार्दन श्रीमुख सँ निकलि चलैत-फिरैत लोको केँ आ' कि जाड़ सँ कठुआइत घर मे दुबकलो केँ ध्यान-भंग करैत ...।

एक एक शब्द अपने-आप मे सजीव, कहानी केँ जीवन प्रदान कऽ रहल अछि.

कतेक रास बात, साधारण मैथिल केँ साहित्यकार’क रुप मे समाज केँ प्रस्तुत करबाक लेल बनाएल गेल छल. एक सम्पूर्ण कथाकार सुभाष जी’क रुप मे निकलल. . इतिहास रचल गेल आ एहि रुप मे?हम प्रयास’क प्रतिफल देखि केँ सँतुष्ट, गौरवान्वित, उत्साहित एवम निरुत्तर छी. आब एहि सँ बेसी की कहब.

बहुत दिन सँ pending काज पुरा भऽ रहल अछि...सुभाष जी केँ सम्पादक मण्डली मे शामिल काएल जा रहल अछि. सुभाष जी, बधाई स्वीकार हो।

सुभाष चन्द्र said...

अपनेक बधाई स्वीकार करैत छि.
संपादक मंडली के दावित्य के निर्वहन .. ओकर पूर्ण कोशिश करब...

Udayesh Ravi said...

kathak saar neek hobak aasha kareit achhi. Subhash jee je samvad aaro prasang jodalkhinh se uddaharan pesh karbak visay achhi.
Neek lagal Subhash aahank aaro aagu badheik kamna kareit achhi.

करण समस्तीपुरी said...

जय हो... !
सुभाष जी, आस अछि जे सम्पादक मंडली मे अपनेक उपस्थिति "कतेक रास बात" कें कतेक रास बल प्रदान करत !!
मित्र गण !
संपादक मंडली मे सुभाष जीक स्वागता कएल जाऊ !!!
धन्यवाद !!!!

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

सधल लेखनीक आ पिछला भाग के तालक संग ताल जोडैत सुभाष जी एहि कहानी के जाहि रोचक मोड पर छोडलथि यै ताहि लेल सुभाष जी केँ धन्यवाद।

एहि मंच पर सुभाष जीक पहिल प्रस्तुति सँ लय के एहि प्रस्तुति तक एकटा रचनाकार के रुप मे जे गुणात्मक प्रगति भेलन्हि यै से निःसन्देह प्रशंसनीय अछि। संगहि संग सम्पादक मण्डली मे सम्मिलित भेला पर हार्दिक बधाई।

धन्यवाद !!!

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