गरिमा आओर पलास

कथा, भाग-2: लेखक:- राजीव रंजन लाल, मोडेरेटर: केशव कर्ण (समस्तीपूरी)

करण समस्तीपुरी द्वारा लिखल पहिल भाग मे पढ़लौंह, "बचपन से तरुनाई धरि संग चलनिहार गरिमा आ पलासक सतत प्रेम, तमाम वर्चस्व आ विषमताक कात करैत जीवन पथ मे दुन्नु लोकनिक संग आनि देल्कैन्ह. मुदा भावनात्मक द्वन्दक नहि रोकि सकल !" एक पुरुषक अहम् आ नारिक स्वाभिमानक टकराव कोना होएत छैक...., राजीव रंजन लाल जी द्वारा लिखल कथाक एहि भाग मे पढू !!
पलास के गरिमा के प्रति प्रेम अगाध छल आ ओ गरिमा के कष्ट बुझय छलखिन। से ओ जहिया जरूरत होय, गरिमा के मदद करय छलखिन्ह। विवाहोपरांत पलास निश्चय केलैथ जे ओ अपन आलस्य के छोड़ि किछ काज धंधा के अपना के लगौता। गाम में बैस गेला से किछ अकर्मण्यता सेहो आबि गेल छल पलासक जीवन शैली में मुदा ओ कृतसंकल्प भ’ एकटा प्राइवेट नौकरी ज्वॉइन क लेलैथ। ओ एकटा फर्टिलाइजर बनाबय बला फैक्टरी में सुपरवाइजर पोस्ट पर नियुक्त भेलाह। किछ दिन त’ सभ किछ ठीक चलल मुदा एहि काज में दिन राति के ठिकाना नहि छल आ बहुत माथापच्ची बुझेलैन पलास के। हुनका अंदर से लागैत छल जे हुनका भेटल काजक स्तर हुनक योग्यता से बहुत कम छैक। गाम बला बाबूशाही सेहो खतम छल। कोनो मैनेजर आबि के दु बात कहि देय आ पलास के खून के घूंट पीबय पड़य। डेरा पर अयला पर फैक्टरी के तामस कपार पर रहय छलैन्ह। गरिमा सेहो एहि बात के बुझैत रहथिन्ह आ पलास के बहुत हिसाब से शांत राखय के कोशिश करय छलखिन्ह। गरिमा पलास के नीक बेजाय के ख्याल राखय के कोशिश करय छलैथ आ एहि से पलास के धधकैत दिमाग के किछ शांति भेटैन्ह। क्रमश: पलास पर ऑफिस के बात बेसी हावी होयत गेलय आ गरिमा के समझाबै के असर क्षीण। आब पलास के लागैत छल जे गरिमा के हुनक स्वाभिमान के कोनो चिंता नहि छैन्ह। पलास के गरिमाक तुलना में आधो से कम तनख्वाह भेटैत छल। हुनक दिमाग पता नहि कोना, एहि बात के तुलना करय लागल। पलास के इहो लागय लागल जे शायद गरिमा हुनका एहि कारणे कम योग्य बुझैत छथिन्ह आ एहेन तुच्छ नौकरी के तरफदारी करैत छथिन्ह। मानव मन के बुझनाय बहुत कठिन होयत अछि आ ओ कखन कोन बात पर विचलि जेतै सेहो अनुमान लगेनाय कठिन।

सात–आठ दिन पहिने कोनो बात पर पलास मैनेजर से मुँहा-मुँही भ’ गेल आ ओ नौकरी के लात मारि आबि गेलखिन्ह। दुपहरिये में घर पहुँच गेलैथ। दिमाग में दस तरह के बात घुरिया रहल छल। कखनो अफसोस होय जे बेकारे नौकरी छोड़ि देलिये आ कखनो हुनकर मोन कहय जे भ’ गेलै सैह उचित छल। घर अचानक से खाली लागय लागल। हुनका कहियो एतैक खालीपन महसूस नहि भेल छल। गरिमा साँझ में ऑफिस सँ आबैत रहथिन्ह। पलास के अचानक महसूस भेल खालीपन में गरिमा के कमी खलल। पलास के वैचारिक मतभेद हुनका गरिमा से बहुत दूर क देने छल। गरिमा के सेहो एहि बात के अनुमान लागि गेल छल आ एम्हर किछ दिन से ओ पलास के नौकरीक विषय में किछ नहि पूछय छलखिन्ह। पलास के मन में कतओ दुविधा आ अंतर्द्वंद चलि रहल छल। गरिमा नीक आ कि पलास नीक। पलास के लेल दुनु दु विचारधारा के प्रतीक छल आ कतओ से हुनक मोन बारंबार हुनका से कहि रहल छल कि गरिमा के विचार हुनक अपन विचार से नीक छल। किछ देर आउर बीतला पर ई विचार एतैक हावी भ’ गेल पलास के दिमाग में जे ओ प्राय: स्वीकार क’ लेने छलैथ जे एहि प्रकरण में ओ गलत छैथ। दिमाग किछ शांत भेल आ ओ गरिमा के इंतजार करय लागलाह।

सांझ भेला पर गरिमा अपन समय से आबि गेलखिन्ह। घर में पहिने से पलास के देखि हुनका मोन में शंका भेलनि मुदा मुसका के पुछलखिन “कि बात, आय पहिने आबि गेलियै”।
“अहाँ के बेजाय लागल कि, हमर घर पहिने एनाय?” पता नहि पलास कोना अचानक से उखड़ि के जवाब देलखिन।

“नहि-नहि, से किया कहैत छी? ओनाही पुछलौं, जे मोन ठीक अछि कि नहि।” गरिमा के जवाब छल। ”आय मैनेजर से बाता-बाती भ’ गेल छलै। नौकरी छोड़ि के आबि गेलियअ। पता नहि अपना के कि बुझय जायत छैक। जेना लागय छै ओकर बाप के कर्जा धारणे छियै।” पलास अपन बात गरिमा से कहलखिन। हुनका मोन में छलैन जे गरिमा हुनक विचार के ऊपर राखैत हुनक समर्थन में बाजथिन। मुदा गरिमा के जवाब छल “आय काल्हि कतेक मुश्किल से नौकरी भेटय छै आ सौंसे ई परेशानी त’ रहबे करैत छै। अहाँ के नौकरी नहि छोड़बा के चाही छल।”
एतबा सुनैत पलास के स्वाभिमान जागि उठल आ ओ गरिमा के कठुआयल बात कहय लागलखिन्ह। कहैत काल हुनका विचार नहि रहि गेलैन जे गरिमा हुनका सँ वियाह करय ल’ तखन तैयार भेल रहथिन्ह जखन पलास गाम में बैसल रहैथ। गरिमा के माँ-बाबूजी के कनेक आपत्ति सेहो छल, मुदा गरिमा के खुशी के कारणे एहि प्रस्ताव के स्वीकार केने छलखिन। “अहाँ के ई चिंता नहि अछि जे हमरा के गारि बात कहैत अछि, मुदा अहाँ के एहि बात के बड्ड अफसोस अछि जे घर में पैसा एनाय कम भ’ जेतय। बाहर त’ मजदूर जकाँ पेड़ैबे करय छी, अहुँ के लेल हम एकटा पैसा छापय बला मशीन भ’ गेल छी। अहाँ के की भेटय यै आ की नै भेटय यै से हम कहियो हिसाब किताब नहि करय गेलौं। आय अहाँ कमबै छी त’ हमरा गुलाम नहि बुझु आ कनेक हिसाबे से बाजू, नहि त’ ठीक नहि होयत।”

गरिमा स्तब्ध छलीह। एहेन प्रत्युत्तर के परिकल्पना गरिमा के नहि छल। हुनको स्वाभिमान जागि गेल छल आ सब किछ बुझैतो ओ अपना के काबू में नहि राखि सकलखिन आ ठोकले जवाब देलखिन। “हमहीं छलहुँ जे माँ-बाबूजी के नहियो पसंद भेला पर अहाँ संग वियाह केलौं। तखन अहाँ कोन कमबै छलियै आ हमरा कोन पैसा के मोह छल। ना हम अहाँ के नौकरी करय ल’ कहलौं ना छोड़य ल’। हम किया अहाँ के पैसा छापय के मशीन बुझब। हमरा कोन खगती अछि पैसा के। अहीं झखै छी पैसा के लेल आ नौकरी के लेल। आब हमरा बुझा रहल अछि जे अहाँ के हमरा से नहि, हमर नौकरी से प्यार अछि। अहाँ के नौकरी नहि, लाटसाहबी चाही, से त’ कतओ भेटय बला नहि अछि। कनिये के पाय पर गुलछर्रा उड़ाबय चाहैत छी त उड़ाउ। हम त कहियो नहि रोकलौं अहाँ के।”
“हम कि शराब, सिगरेट में पैसा फेकैत छी। अखन एको दिन नौकरी छोड़ला नहि भेल हमर आ अहाँ अपन पैसा दिखा रहल छी। हम अहाँ के भरोसे जिनगी नहि काटि रहल छी। एहेन एहेन बहुत पाय बला देखने छी हम। पाय कमाबै छी त’ अहाँ नाँगड़ि बला नहि भ गेलौं से नाचि रहल छी।” पलास के बाजय में सम्हार नहि छल।
बात बिगड़ैत गेल आ गरिमा कानय लागलखिन्ह। पलास के अचानक बोध भेलनि जे ओ बहुत किछ अनर्गल कहि देलखिन्ह जेकर जरूरत नहि छलय। ओ चाहैत रहथिन्ह जे गरिमा के जा के सम्हार लैथ मुदा स्वाभिमानवश ओ उठि नहि सकलाह। फूसि अहंकार के अधीन भ’ गेल छलैथ पलास। अचानक सँ युगल जोड़ी के केकरो नजरि लागि गेल छलय। एक छत के नीचा रहितो अनजान भ’ गेलैथ गरिमा आ पलास।

गरिमा के हृदय के आघात पहुँचल छल आ ओ अंदरे-अंदर घुलय लागलखिन। शरीर क्षीण होयत गेलैन आ ओ अखन बीमार छलीह। पलास के लेल ई विकट अवस्था आबि गेल। ओ कि करौथ। अपन प्यार के देखौथ की स्वाभिमान के। ताहि पर आय सांझ में गरिमा के माँ-बाबूजी शादी के बाद पहिल बेर इलाहाबाद आबि रहल छथिन्ह। हुनका सभ के किछियो भनक नहि छैन्ह एहि सप्ताह बीतल बात सभक। गरिमा सेहो नहि चाहय छलखिन्ह जे अखन हुनक माँ-बाबूजी इलाहाबाद आबैथ। ओ हुनका सभ के दुखी नहि देखय चाहैत रहथिन। एक-दु बेर त’ मना केलखिन, लेकिन गरिमा के माँ नहि मानलखिन जे पाहुन सेहो ऑफिस चलि जायत छथिन्ह त’ तोहर सेवा-सुश्रुषा के करतौ। पलास केना ई सभ के मैनैज करथिन्ह से कठिन प्रश्न छल हुनका लेल।
(क्रमशः..............)

कहानी’क अगिला भाग लिखबाक लेल टिप्पणी द्वारा सूचित करु. पहिने आऊ पहिने पाऊ सिद्धान्त लागू रहत.

कथा'क      प्रथम भाग ।  दोसर भाग  । तेसर भाग  ।  चारिम आ अंतिम भाग

8 comments:

Rachna Karna said...

STORY KAFI INTERSTING HOTI JA RAI HAI...KEHSAV JI N RAJEEV JI AP DONO KO BAHOT BHAOT BADHAI ...KAFI ACHA LIKHA HAI DONO NE...HOPE AAGE AUR BHI INERESTING HOGI...

करण समस्तीपुरी said...

धन्यवाद राजीव जी,
केकरो आनक विचारक आगा बढेनाई हमारा बुझने आसान नहि थीक मुदा जहि चमत्कारक उम्मीद छल ओ सही दिशा मे बढ़ी रहल अछि. हम त' टकराव के बाते कहि के छोरि देल मुदा आहां स्थिति स्पष्ट कए देने छी... आब आगा सुभाष चन्द्र जीक नंबर छैन्ह... देखबा चाही जे ओ अहि ठाम से कोना आगे बढबैत छथि. सुभाष जी तैयार रहू !
आदरणीय पाठक लोकनि,
ई एक गोट अभूतपूर्व प्रयास अछि जे सब केओ मिली जुली कए कहानी लिखी अहि मे आहांक एक्कहि कथा मे अलग-अलग लेखकक दृष्टिकोण भेंटत. ई प्रेरणा छलैन्ह श्री आदि यायावर जी कें... सभ लोकनि हुनका धन्यवाद दियौन्ह जे ओ मैथिली लेखन मे एक नव अध्याय आनलथि. आ हाँ... जा धरि कथा पूर्ण नहि होएत ता धरि कुनो निष्कर्ष पर पहुंचनाई त' बड़ कठिन मुदा हम्मर सहयोगी वृन्द अपनेक रोमांच बढबैत रहताह !
एक बात आओर,
एहि सामूहिक कथा लेखन मे कोनो पाठक भाग ल' सकैत छथि... कथाक अगिला भाग लिखबाक लेल टिपण्णी अथवा maithili.editro@gmail.कॉम पर संपर्क करू ! "पहिने आऊ, पहिने पौ" सिद्धांत लागू !!

arvind said...

e nav prayash etaik badhiya bha rahal achhi je kii kehal jaay,aai hamara purn viswas achhi--- e rachna creativity ke aadhar per aitihasik hoyat.

SANDEEP KUMAR said...

badhiya prayas.......

Kumar Padmanabh said...

राजीव;
कथा केँ नव आयाम देबाक लेल धन्यवाद. महीन विश्लेषण दोसर भाग’क मुख्य आकर्षण थीक.आशा अछि अगिला लेखक किछु आओर उठा-पटक कऽ कहानी केँ रोमाँचक बना देताह.

पद्मनाभ मिश्र

Kumar Padmanabh said...

फेर सँ पढ़लहुँ. हम जहिना सोचने छलहुँ ओहिना बढ़ि रहल अछि. कथा मे रोमान्चक मोड़ एखनहि आबि गेल अछि. दोसर लेखक के बाट ताकि रहल छी.

Rajeev Ranjan Lal said...

प्रोत्साहन के लेल धन्यवाद।

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

कथाक एहि भाग केँ पढैत निदा फाजलीक एकटा शे'र मोन पडि गेल

"देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती"

राजीव जी त' एहि कहानी केँ त' एकटा नव आ रोचक आयाम पर आनि के छोडि देलथि। आब अगिला रचनाकारक प्रस्तुतिक प्रतीक्षा रहत।

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