एहि शहर मे- सुभाष चन्द्र

एहि शहर मे
इजोरिया राति मे
एकसरि बैसला पर
मोन पड़ैत अछि अपन गाम
आन गामक चभच्चा पोखरि
प्राय: हमर नेनपनक कोनो संगी
एहि इजोरिया मे नाओ पर घूमैत होयत

Subhash Chandraकवि- श्री सुभाष चन्द्र,
युवा पत्रकार सुभाष जी पत्रकारिताक संग हिन्दी आ मैथिली दुहू साहित्य मे सक्रिय छथि। संगे एकगोट नव मैथिली पत्रिका निकालबा लेल सेहो प्रयासरत छथि। सम्प्रति "प्रथम इम्पैक्ट" नामक पाक्षिक पत्रिका मे कार्यरत आ दिल्ली मे निवास।
सम्पर्क-+91-98718 46705

- सम्पादक।


गबैत होयत कोनो फिल्मी प्रेमगीत
आ,
बसबिट्टी सँ उड़ल होयत कोनो चिड़ै
उडि़ क' गेल होयत आमक गाछी दिस
एहि शहरक धारक कात
हम एकसरि बैसल छी

मौन पड़ैत अछि बेर-बेर अपन गाम
एहि शहर मे दस वर्ष रहलो पर हम
एहि शहर मे नहि छी
मोहल्ला मे छी मात्र एक 'किराएदार'
किराएदारक कोनो अस्तित्व नहि होइत अछि
कोनो शहर मे
चिड़ैए जकां किराएदार
एहि मोहल्ला सँ ओहि मोहल्ला मे चलि जाइत अछि
अथवा
चलि जयबाक लेल बाध्य कय देल जाइत अछि
हम छी, नहि छी
कोनो अस्तित्व नहि रखैत अछि एहि शहर मे
मुदा,
शहर मे रहब लाचारी अछि हमरा लेल
चिड़ैए जकां चाहे बसबिट्टी मे रही
अथवा आमक गाछी मे
हमरे जेकाँ शहर मे रहितो एकसरि अछि
यमुना
आओर, धीरे-धीरे जा रहल अछि
थाकल, ठेहिआयल, हमरे जकाँ।

4 comments:

Unknown said...

neek rachna.. humro sabhak aih soch, muda okra shabd nahi day saklon. Rachnakar ke badhai.

SANDEEP KUMAR said...

Ahan ke samaran pura ee kavita me najar aayal hamra. bahut badhiya baat likhlaun ahan. ahan aapna tulna ek chirai san kay ka sab ke dukh sukh sanjha kay delaun je sab aapna gaam san door Kirayedar ke roop me pardes me rahai chhatin.

Kumar Padmanabh said...

कविता बहुत नीक. हृदय के छुबए वाला. लेखन मे नियमितता केर आओर बेसी आशा.

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

अपन माटि-पानि सँ दूर होयबाक दर्द आ प्रवासी जीवनक दर्दक वर्णन करैत एकटा नीक प्रस्तुति।

बेसी की कहू अपनेक सहभागिता "कतेक रास बात" मे एकटा नव आयाम जोडत तकर विश्वास अछि।

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