भरि माथ सिन्दूर

लेखक- आदि यायावर


गार्गी आई समय सँ पहिने उठि गेल छलीह, मुदा भोर’क दैनिक काज एखनो धरि खतम नहि भेल छलन्हि. राति सँ एक्के सोच मे बाझल छलीह. चारि दिन सँ प्रभाकर केँ ओ बस मे देखि रहल छलीह. एक बात बिल्कूल कनफर्म भऽ गेल छलन्हि जे हुनके कम्पनी मे ओ ज्वाइन केने छथि. कतेक दिन पहिने, से नहि कहि. हुनकर मोन मे अन्तर्द्वन्द्व चलि रहल छलन्हि जे भऽ सकैत छैक जे प्रभाकर हुनका देखने नहि होयत. एहेन नहि भऽ सकैत अछि जे ओ देखि केँ हुनका नहि टोकने बिना रहि जायत. पछिला चारि दिन सँ ओ ध्याने नहि देने होयत. फेर दोसर मोन कहैत छलन्हि जे "एहेन सम्भव नहि छैक". ओ बिल्कूल हुनकर आगू सँ निकलल छल. तऽ की हुनका प्रभाकर इग्नोर करैत छल? ओह नहि, प्रभाकर लऽग एत्तेक सामर्थ्य नहि, जे हुनका इग्नोर करैथ. मुदा पाँच साल मे समय बहुत बदैल गेल छल. प्रभाकर सेहो बदैल गेल होयत. राति भरि हुनकर आँखि सीलीँग फैन दिस देखैत रहलन्हि. एको क्षण’क लेल नीन्द नहि भेल छलन्हि. आ आई भोर सँ हुनका अन्दर मे तेसरे अन्तर्द्वन्द्व चलि रहल छलन्हि. जे यदि प्रभाकर नहि टोकलकन्हि तऽ हुनका टोकबाक चाही. हुनका आभास भेलन्हि जे प्रभाकर केँ नहि टोकब हुनकर अहँकार तऽ नहि. कम सँ कम एक बेर पुछबाक तऽ चाही जे ओ विवाह केलैथ वा नहि. मुदा प्रभाकर के प्रति ओ अपन व्यवहार सँ लज्जित छलीह, बहुते अपरतिव लागैत छलन्हि. एक बेर हुनका सँ हाल चाल पुछि लेतीह तऽ अपन प्रभाकर’क प्रति व्यवहार सँ प्रायश्चित भऽ जेतन्हि. मुदा दोसर मोन पुनः कहैत छलन्हि, आब ओ विवाहित जीवन मे छथि. प्रभाकर सँ बात केनाई पाप होयत. मुदा फेर अपना आप केँ बुझाबैत छलीह, जीवन मे बेसी अहँकार नीक नहि, आ प्रभाकर केँ टोकि देला सँ कोन पाप भऽ जायत?

ओ यथार्थ’क धरातल पर तखने वापस भेलीह जखन हुनकर आँखि देवाल घड़ी पर गेलन्हि. आठ बजे मे पाँच मिनट शेष छल. यदि आब ओ सब काज छोड़ि नहेबाक लेल नहि जेतीह तऽ हुनकर कम्पनी के अन्तिम बस छुटि जेतन्हि. सब किओ साढ़े आठ बजे वाला बस पकडे चाहैत छथि. तेँ एहि अन्तिम बस मे सबसँ बेसी भीड़ होइत छैक. यथार्थ’क दुनियाँ समस्या सँ भरल रहैत छैक. तेँ ओ कल्पना’क दुनियाँ के तुरन्ते खतम कऽ दैत छैक. हुनकर अन्तर्द्वद्व खत्म भऽ गेल छलन्हि. आब हुनका वास्तविक दुनियाँ सँ लड़बाक छलन्हि. आलू आ रामझिन्गनी’क भूजिया केँ छोलनी सँ चलबैत गार्गी ई आशा छोड़ि देने छलीह जे हुनका कोनो सीट भेटतन्हि. आब तऽ हुनका जल्दी एहि बात’क छलन्हि जे कोनो तरहेँ ओ अन्तिम बस पकड़ा जान्हि. अन्तिम बेर भूजिया केँ चला केँ, आँटा सानल हाथ केँ पानि सँ धो केँ, ओ झट सँ नहेबाक लेल चलि गेलीह. दुनियाँ मे के कतेक जल्दी नहा लैत छथि यदि एहि बात’क प्रतियोगिता हो तऽ ओहि मे गार्गी केँ आई सर्वप्रथम स्थान भेटल रैहतन्हि. झट सँ पूजा वाला घर मे दू टा अगरबत्ती जरा केँ, गौरी पूजा’क उपरान्त माथ मे सिन्दूर लगा केँ फेर सँ भनसा घर चलि गेलीह.

तीन टा सोहारी आ भूजिया लन्चबाक्स मे पैक कऽ लेलथिन्ह. दू टा सोहारी थारी मे लऽ ओ सोफा पर बैसि गेलीह. डायनिँग टेबुल केवल घर’क शोभा बढ़ेबाक लेल छलन्हि. जलखई आ खाना हरदम सोफा पर बैसि करैत छलीह. कखनहुँ कखनहुँ सोचैत छलीह, डायनिँग टेबुल मे ओतेक टाका बेकार मे खर्चा केलथिन्ह दरभन्गा सँ बँगलोर आनबा मे. खैर आब ओ बिल्कूल तैयार भऽ चुकल छलीह. देवाल घड़ी पर पुनः आँखि देलथिन्ह, साढ़े आठ बजबा मे एखनहुँ दस मिनट बचले छलन्हि. समय सँ पहिने तैयार भऽ गेलाक कारणे हुनका बहुत आत्मविश्वास भेटलन्हि. बेडरुम मे जा केँ ड्रेसिँग टेबुल’क सामने मे ठाढ़ भऽ गेलीह. केवल अपन आत्मविश्वास केँ आओर बेसी मजगूत करबाक लेल. अपन प्रतिबिम्ब देखि आत्मविश्वास आओर बेसी भेलन्हि. एत्तेक जल्दी मे एत्तेक नीक सँ सब काज सम्पन्न. अपन प्रतिबिम्ब मे अपन पैघ पैघ आँखि सँ हुनकर ध्यान दोसर दिस गेलन्हि. ओढ़नी बिल्कूल सही सलामत. ओह मुदा माथ दिस ध्यान जैते ओ चौँकि गेलीह. हरबड़ी मे गरबड़ी भऽ गेल रहन्हि. माथ मे सिन्दूर बेसी लागि गेल छलन्हि. आ आवश्य़कता सँ बेसी पसरल छलन्हि. रुमाल’क कोन सँ पसरल सिन्दूर केँ पोछि देल गेल. एक बेर फेर सँ अपना आप केँ निहारऽ लागलथिन्ह. ओएह पैघ पैघ आँखि, भरल भरल गाल, पाँच फुट चारि इन्च’क कद काठी, बिना लिपिस्टिक के लाल लाल ठोर, खुजल, आधा-छीधा भीजल आ पँखा’क हवा लहराबैत केश. बुझि मे एलन्हि पाछु सँ किओ हिन्दी मे टोकि रहल छन्हि, "गार्गी तुम बहुत सुन्दर हो, सच्ची, कसम से". कखनो कखनो लोक अपने आप सँ चौँकि जैत छैक. ओ एना चौँकि गेल छलीह जे पाछु घुमि केँ देखए पड़लन्हि. मुदा हुनकर ध्यान टुटि गेलन्हि. कल्पना लोक सँ यथार्थ’क दुनियाँ मे पदार्पण केलैथ तऽ ध्यान देवाल घड़ी पर फेर सँ जा टिकलन्हि, आ यथार्थ मे बुझि एलन्हि जे आब तुरन्ते जँ घर सँ नहि निकलथि तऽ साढ़े आठ बजे वाला अन्तिम बस सेहो छुटि जेतन्हि. सरपट भागए लगलथिन्ह आ दू मिनट बाद बस स्टैण्ड पर छलथिन्ह. एखन प्रभाकर वाला कोनो अन्तर्द्वन्द्व नहि भऽ रहल छलन्हि.

एहि कथा’क बाँकी हिस्सा हमर पोथी "भोथर पेन्सिल सँ लिखल" मे देल गेल अछि.
पोथी’क बारे मे विशेष जानकारी आ कीनबाक लेल प्रक्रिया निम्न लिन्क मे देल गेल अछि. http://www.bhothar-pencil.co.cc/ .

मैथिली भाषा’क उत्थान मे योगदान करु. पोथी कीनि साहित्य केँ आगू बढ़ाऊ.

6 comments:

सुभाष चन्द्र said...

हमरा जनिताबे कहानी के नाम सिनेह रखल जा सकैत अछि. कारन गार्गी के एक दिस आपण घर स सिनेह चैंह त दोसर दिस प्रभाकर के प्रति पुरनका सिनेह के कारन फेरो आसक्ति के भाव उत्तपन भैलैंह
कहानी निक अछि, मुदा पहिने जानकर सुस्पेंस नहीं देखबा में आबी रहल अछि..

Nearly Man said...

Kathak naam upyukta chaik.Gargi jindagi men prabhakrak parao paar ko chukalchthi muda prabhakar sa puran sneh ohi sambandh ka pher sa hunkar vartman men aani dene chanhi.Bhral mathak sindoor kathak anupasthit patra Gargik pati ka poora samay upasthit rakhait chanhi.Aa pati ehan je patni ke paryapt aadar aa prem dait chatinh.Kaniya bina uthainah chali gelain ta kono khaas pareshani nahi muda atbo begarta nahi je o uthalak baad patni ka nahi yaad karthinh.neek katha.

Kumar Padmanabh said...

श्रीमान "नीयरली मैन", हमरा एकटा बात बुझल अछि जे अपने व्यवसायिक कारण सँ अपन असल नाम सँ टिप्पणी नहि करैत छी. हम अपनेक एहेन फैसला केँ आदर करैत छी. ताहू सँ बेसी हम अपनेक एहि लेल सम्मान करैत छी जे अपन व्यस्ततम समय निकालि "कतेक रास बात" पढ़ैत छी. यदि सम्भव होमए तऽ कृपया अपन परिचय एहि ई-मेल padmanabh[at]padmanabh.org पर पठा दी. अपनेक बारे मे बुझि केँ हमरा नीक लागत आओर बेसी उत्साह बढ़त.

Manish Mishra said...

Bhaiya hamara vichar sa katha k naam atisundar achhi, Bhari Math Sindur, ekta jivan rekha k samna ae katha m chhaik.jakar dono taraf gargi k jivan k ullekh achhi. sindue karne Prabhakar bisair gelkhin.
Kani Gargi k math m sindur per sa pahile k charch or bhela sa rochakat m mithans aabitai,

AHANK LIKHAL KATHA SHURU M BAR SANDEH M DIAL DAIY.
PRANAM

करण समस्तीपुरी said...

आदि यायावर जी,
नहि जानि हम जे कहए जा रहल छी ओहि ले ई मंच उपयुक्त अछि वा नहि मुदा निःसंकोच हम ई कहब जे जतेक रचनाकार से हमरा व्यक्तिगत परिचय अछि हुनका सभ मे कथा सूत्र समन्वय आ ओकरा मुखर अभिव्यक्ति प्रदान करबा मे अहाँ बेजोर छी !! शीर्षक से हमरा कोनो शिकायत नहि वरण कथा पढ़ला उपरांत ई संगते जानि परल मुदा शिकायत अछि एही शीर्षक कें "चीप" विशेषण से विभूषित केला सों !! शीर्षक उपयुक्त वा अनुपयुक्त भए सकैत अछि ! अस्तु ! कथाक आदि सामान्य आ अंत मार्मिक अछि मुदा बीच मे किछु ठहराव लागि रहल अछि ! व्यक्तिगत रूप सों हमरा लागल जे बस के गार्गी वाला स्टाप सों इलेक्ट्रॉनिक सिटी पहुंचबा मे किछु बेसी समय लागी गेल. होई छैक ! शहरक ट्रैफिक जाम के प्रभाव कथा पर सेहो पड़ैत छैक ने !! मुदा एक बात नोट करए वाला ई अछि, जे कथा मे ठहराव बुझाएल, भटकाव नहि !

Rajiv Ranjan said...

namste padhmanavji,
badhiya rachana achhi. "anterdwandh" naam kehan lagatai. una hum ahi shirshak k uchit bujhait chhi.
kahani badhiya achhi. kahani me kani thahraw bus wala prasang me achhi. muda tahiyo hum ahank 10 me sa 9 ank dait chhi.

hamara ahank mail ke pratikchha rahat.

ahank
amarji

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