अपेक्षा

---अल्पना मिश्रा
हमर पहिल प्रयास, प्रोत्साहन’क निवेदन


मोकड़ा केँ देखलहुँ जाल बुनैत
एक बिन्दु’क चारु कात
अपना, बिना ओहि मे फँसैत
अनवरत गोल गोल घुमैत
बिना कोनो अपेक्षा आ थकान सँ ।


खजूर’क फुनगी पर बैसल
चोँचा के सेहो देखलहुँ खोता बुनैत
सहस्र काठी परिश्रम केर जुटबैत,
एहि पार सँ ओहि पार करैत
डेढ़ कनमा’क चोँचा तीन सेर’क खोता बनबैत ।



आ हम देखलहुँ चितकबरी कुतिया केँ,
पूस’क महीना मे,
एक सँग अपन तीन बच्चा केँ,
अपने मुँह मे उठाए टहलैत,
एक ठाम सँ दोसर ठाम राखैत ।


आ देखलहुँ ओहि तीनोँ केँ एक सँग
भरि दुपहरिया मे हमरा मुँह दूसैत,
हमर प्रत्येक यत्न
सुखल बालु’क तरहेँ आँजुरि सँ बहि गेल,
इर्ष्या द्वेष हमरा मोन मे
खीचैत चलि गेल एकटा पैघ लक्ष्मणरेखा,
आ भरैत गेल हमरा मोन केँ एकाकी आ अवसाद सँ ॥

6 comments:

सुभाष चन्द्र said...

पहिल प्रयास एतेक सुन्नर ता दोसर के सहज अनुमान लगायल जा सकत अछि. भाव गहिर अछि. वर्तनी ठीक कायल जा सकैत अछि. सुभाष

अजित कुमार झा said...

अतेक नीक प्रयास अछि जे स्वभाविक रूपे प्रोत्साहन आ धन्यबादक काबिल छि । बहुत निक । फेर फेर पढ्बाक मौका देबै ।

करण समस्तीपुरी said...

"आ हम देखलहुँ चितकबरी कुतिया केँ,
पूस’क महीना मे .............."
अल्पना जी,
प्रथम दृष्टया त' विश्वास नहि होयत अछि जे ई अपनेक पहिल प्रयास छी ! आ जौं एहि पर विश्वास करी त' आंगल भाषाक एकगोट कहावत मोन पडैत अछि, "First impression is the last impression !" ओना त' कविता-कहानी मे छिद्रान्वेषण करब हमर आदत मे सुमार अछि, पुनश्च प्रस्तुत रचना के हम एक वाक्य मे एना परिभाषित करय चाहब,"अभिनव विम्ब मे गंभीर भावक तीक्ष्ण अभिव्यक्ति!" मुदा एक बात मोन राखब जे अपनेक अपेक्षा से हमरा लोकनिक अपेक्षा बड बढ़ी गेल अछि !!

Anonymous said...

alpanaji,
apnek pahil prayas bahut neek lagal. yadi pahine nahi likhitu t hamra pata nahin chlait je e apnek pahil rachna chi.
baharhal, ahina prayas jari rakhoo, jaina o chiraiya lagatar prayasrat rahai ...

Anonymous said...

इर्ष्या द्वेष हमरा मोन मे
खीचैत चलि गेल एकटा पैघ लक्ष्मणरेखा,
आ भरैत गेल हमरा मोन केँ थकान, बोरियत आ अवसाद सँ ॥

Congratulation to Katek Raas Baat and convey Best of Luck to Alpana Mishra for good piece of thoughts in APEKSHA.

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

अहाँ अपन "अपेक्षा" सँ हमर सभहक अपेक्षा बढा देलहुँ। सूक्ष्म सोच आ उत्कृष्ट शब्द-संयोजन कविता के अद्वितीय बना रहल अछि।
हमर विचार मे अहाँ केँ प्रोत्साहनक कोनो आवश्यकता नहि अछि कियैक जे एहि लेल माननीय आदि यायावर जी छैथे।

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