यूरेका समाधि (काका उवाच:)


लेखक: खट्टर काका


यूरेका समाधि’क नाम कहियो सुनने छी. नहि ने? चलु आई हम बुझाबैत छी. दू साल धरि अन्डरग्राउण्ड रहलाक बाद पुनः अपन तरँग लऽ के वापस भेलहुँ. आशा अछि सम्पादक लोकनि द्वारा तय "कतेक रास बात"क अनुशासन’क सीमा केँ सम्मान करैत यथा-सम्भव हिलकोर मचाएब. यदि भातीज लोकनि केँ एहि हिलकोर सँ हिचकी उठए तऽ टिप्पणी लिखि सूचित करी.

चलु विषय पर आबैत छी जे यूरेका समाधि की होइत छैक. ओहु सँ पहिने प्रश्न अछि जे "आखिर आर्कमीडिज नङटे किएक भागल?". भातिज लोकनि जे आठवाँ कक्षा’क कहानी बिसरि गेल छी तऽ हम मोन पाड़ि दैत छी. आर्कमीडिज प्राचीन यूनान मे पदार्थ विज्ञान’क महान वैज्ञानिक छलाह. हुनका समय के राजा किन्ग हिरो-द्वितीय’क लऽग एक अद्भूत समस्या आबि गेल रहन्हि. ओ एकटा सोनार लऽग अपना लेल एकटा मुकुट बनेबाक लेल देलथिन्ह. ओ सोनार मुकुट बना केँ देलक जे राजा केँ बहुत नीक लागलन्हि, मुदा हुनका शक भऽ गेलन्हि जे कहीँ सोना मे मिलाबट तऽ नहि छैक. राजा केँ मुकुट बहुत पसन्द छलन्हि आ ओकरा तोड़बाक लेल किन्नहुँ ने तैयार छलाह. राजा अपना हिसाब सँ सब सँ पुछि लेलथिन्ह मुदा मुकुट केँ बिना तोड़ने मिलाबट के पता लगाबैक लेल किओ नहि तैयार भेल. राजा निराश भऽ चुकल छलाह कि दरबारी लोकनि हुनका आर्कमीडिज के बारे मे कहलथिन्ह. आर्कमीडिज केँ बजा केँ समस्या देल गेल, जे बिना तोड़ने पता लगेबाक लेल कि मुकुट मे शुद्ध सोना’क अछि वा नहि, आ यदि मिलाबट छैक तऽ कतेक.
आर्कमीडिज अपन काज मे लागि गेलाह. दिन बीतल, सप्ताह बीतल, मास बीतल मुदा हुनका बिना तोड़ने मुकुट मे मिलाबट के पता लेगेबाक विधि नहि सुझि रहल छलन्हि. ओ निराश भऽ चुकल छलाह आ एहि काज केँ लगभग छोड़ि चुकल छलाह. मुदा एक दिन जेना प्रत्येक वैज्ञानिक’क जीवन मे होइत छैक हुनका जीवन मे एकटा अप्रत्याशित घटना घटल. ओ एकटा टब मे नहाइत छलाह आ उपर सँ टब मे किछु समान खसि पड़ल. ओ समान केँ खसिते किछु देर ओ सोच मे पड़ि गेलाह आ ओकर बाद नङटे "यूरेका, यूरेका.." कहैत राजमहल दिस दौगए लगलाह. हलाँकि प्रत्यक्षर्शी हुनका देखि हँसय लागल, मुदा यूनान’क जनता बाद मे डायमेज कन्ट्रोल मे लागि गेल. यूनान’क जनता के कहब छल जे ओहि समय मे यूनान मे नङटे रहनाय खराप नहि मानल जाइत छल. औ जी, ओ सिकन्दर’क समय’क गप्प थीक, यूनान यूरोप’क शीत प्रदेश मे आबैत छैक. ई घटना सिकन्दर के भारत आक्रमण के १०० साल बाद’क थीक. कहए के मतलब ई मानव जाति एतेक सभ्य भऽ चुकल छल जे प्रत्येक जगह मे कपड़ा पहिरनाय एक सभ्य समाज’क लक्षण छल. ओतैये आर्कमीडिज सन प्रसिद्ध वैज्ञानिक नङटे भागए लागलाह से छोट घटना कोना भऽ सकैत अछि.
चलु तऽ प्रश्न अछि जे आर्कमीडिज नङटे किएक भागलाह. विश्लेषण काएल जाए. हमर खोज ई कहि रहल अछि जे आदमी’क पागलपन दू तरह सँ भऽ सकैत अछि. पहिल बहुत दुखित भेला पर मानव मे पागलपन’क लक्षण देख’ मे आबि सकैत अछि. दुखक पराकाष्ठा लऽग पहुँचलाक बाद लोक केँ ज्ञान नहि रहि जाइत छैक जे कोन बात नीक आ कोन बात खराप, तेँ एहेन स्थिति मे लोक उटपटाँग काज कऽ सकैत छैक. मुदा हमर अनुसँधान इएह कहैत छैक जे आदमी यदि सुखक पराकाष्ठा पर पहुँच जाथि तऽ ओ ओहिना उटपटाँग काज करताह. मतलब ई जे अत्यधिक खुश भेलाक बाद आदमी मे किछु पागलपन के लक्षण देखबा मे आबि जाइत छैक.
टब मे नहाइत काल आर्कमीडिज केँ सोना’क मुकुट मे बिना तोड़ने मिलाबट केर पता लगेबाक गुड़ भेट गेलन्हि, हुनकर मासक मास काएल गेल मेहनत जे व्यर्थ होइत छल ओ एक्के झटका मे सुधरि गेल. ओ आनन्द’क पराकाष्ठा पर पहुँचि गेलाह तेँ नियमानुसार हुनका पागलपन के दौरा पड़लन्हि आ ओ नङटी राजमहल दिस भागलाह.
सामन्य जीवन मे ई तेसर तरह’क पागलपन’क दौरा पड़ैत रहैत छैक. उदाहरण’क रुप मे कोनो क्रिकेट के बालर केँ कोनो रोमाँचक मैच मे विकेट लैत देखने छी. ओ कोना कोना करैत छैक. कोनो यूरोपीयन लीग मे गोल करए वाला फुटबाल’क खिलाड़ी के देखने छी ओ कोना दौगैत छथि. यदि साधारण परिस्थिति मे कोनो आदमी एहेन हरकत करए लागए तऽ हुनका लोक बताहे बुझत की नहि? मुदा एक बात आओर सत्य थीक. एहेन तरह बतहपन समाज’क लेल नीक. ओशो’क फलसफा केँ सीधे सीधे चुनौती दैत यदि हम ई कही जे एहि तरह’क बतहपन एक समाधि थीक. जाहि मे आदमी अपना आप केँ बिसरि केवल एक दिशा मे ध्यान केन्द्रित कए अपन सम्पूर्ण उर्जा लगा दैत छथि. क्रिकेट बाउलर कोनो एल.बी.डब्ल्यू’क लेल अपील करबा काल मे चीकरे मे जे उर्जा लगबैत अछि ओ अर्जून’क माँछ’क आँखि सन केन्द्रित रहैत अछि. एक्के दिशा मे अपन सम्पूर्ण उर्जा लगा देबा’क प्रक्रिया केँ समाधि तऽ कहल जाइत छैक.
तऽ आर्कमीडिज’क नँङटे एहि लेल भागल जे ओ ओहि समय मे ओ एक समाधि मे छलाह. अपन मेहनत सफल हेबाक खुशी मे ओ अपना आप केँ बिसरि गेल छलाह. ओ समाधि मे छलाह. एकरा हम नाम दऽ रहल छी "यूरेका समाधि". प्रत्येक आदमी’क जीवन मे एहेन समय आबैत छैक जे ओ यूरेका समाधि सँ गुजरैत छथि.

भातिज लोकनि कनि रुकु हम किछु आओर बात स्पष्ट कए देबऽ चाहैत छी. यूरेका समाधि सँ भऽ केँ निकलए वाला लोक नँङटे भागि सकैत छथि, मुदा एकर मतलब किन्नहुँ नहि अछि जे "राखी साँवत" आ "मल्लिका शेरावत" सेहो यूरेका समाधि मे रहैत छथि. ह्म्म..म्म.. किओ एहेन तर्क हुनका लोकनि केँ नहि बुझा दैथि....

अपने लोकनिक
खट्टर काका

5 comments:

करण समस्तीपुरी said...

आदरणीय काका जी,
अत्तेक दिन बीतल अपनेक कतेक रास बात पर पावि मोन मुदित भय गेल ! हमहु यूरेका समाधि लागेबाक प्रयास मे छी ! भातीज सभ पर अहिना नजरि देइत रहियौक !

Kumar Padmanabh said...

काका जी;
अपनेक दर्शन सँ कतेक रास बात धन्य भेल.
अपनेक "यूरेका समाधि" सँ याद आबि गेल चारि साल पहिलुका घटना. ओहि समय मे हम आई.आई.टी मे रही. साँझ'क आठ बजल होयत. हम जल्दी खाना खऽ केँ हास्टल सँ अपन लैब आबि गेलहुँ. पूरे डिपार्टमेन्ट मे किओ नहि छल. वास्तव मे साढ़े सात बजे सँ साढ़े आठ बजे धरि डिनर केर समय होइत छल, तेँ सब किओ हास्टल मे छलैथ. हमर ध्यान दू-मँजिला'क कारिडोर दिस गेल.

हमर एकटा सँगी लगभग एक सय मीटर वाला कारिडोर मे एक दिस सँ दोसर दिस जोर जोर सँ चलैत रहैथि. एहि क्रम मे कखनो ओ अपन बामा हाथ एक्सरसाइज'क बहाना कऽ गोल गोल घुमाबैत रहैथि तऽ कखनो दाहिना हाथ. कखनो ओ सीटी बजाबैथ तऽ कखनो गाना गाबय लागैथ. हम स्थिति केँ बुझि गेलहुँ. मोन मे भेल जे ई स्थिति सँ परिचित नहि हेताह हमर सँगी केँ निच्छछ बताह बुझि लेताह. एहेन हरकत काइयो के सकैत छथि. उपर जा केँ पुछलहुँ, "क्योँ बे, अकेले चहलकदमी, क्या बात है? आज खाना नही खाओगे?"

हमर बात सँ हमर सँगी'क ध्यान भँग भेल. ओ कहलैथ जे पिछला एक साल सँ जाहि चीज मे लागल छी आई ओहि पर कोनो इन्टरनेशनल लेवल के पेपर एक्सेप्ट भऽ गेल. तेँ एहेन बतहपन.
काकाजी हमरा आई बुझि मे आयल, "हमर ओ सँगी ओहि समय मे "यूरेका समाधि मे छल".
आशा अछि अपनेक तरँग जारी रहत.


डा० पद्मनाभ मिश्र

सुभाष चन्द्र said...

kaka jee, pranam
hum pahil ber apne ke padhi rahal chhi. mud nik etak lagal je pahine dohra ka padhlon takar baar likh rahal chhi. maun gad-gad v gel. kosis mein lagal chhi je UREKA samadhi mein safal hoi.
pher kahiya apne sa sampark hoyat ? tahan ne bata sakab je ureka samadhi ke anubhav kehan rahal...
subhash chandra
new delhi

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

काकाजी,
देखि के नीक लागल जे अहाँ अपन अज्ञातवास खतम कय के एक फेर हिलकोर मचाबय के लेल अयलहुँ। हमर त' एतबे प्रार्थना अछि जे अहाँ एहिना हिलकोर मचबैत रही आ पाठक लोकनि केँ हिचकी उठैत रहन्हि। किछु दिन पहिने सेहो अपनेक टिप्पणी सँ किछु महानुभाव गोटे केँ हिचकी उठल छलन्हि। मुदा विश्वास करु जे ओ "कतेक रास बात"क भविष्य के लेल बड नीक रहल।

अपनेक भातीज-
कुन्दन कुमार मल्लिक

Khattar Kaka said...

कुन्दन जी,
पिछला बेर उठल हिचकी उचित नहि छल. बल्कि ओहेन तरह'क हिचकी करए वाला आ उठबए वाला दुनू नहि नीक. हम आलोचनात्मक टिप्पणी देने रही मुदा बाद मे लागल जे ओकर गलत मतलब लगाएल गेल. हमर बात किनको खराप लागल होइन्हि तऽ क्षमा प्रार्थी छी ओना माहौल केँ अपन तरँग सँ सहज केनाई हमर लक्ष्य, अप्राकृतिक हिचकी उठेनाई हमर योजना मे कखनो नहि रहैत अछि.
दुर्गा भगवती'क विसर्जन भऽ चुकल अछि. भातिज लोकनि! सुनु! बिना हिचकी माँछ खेबाक फेर सँ समय आबि गेल अछि. इम्हर उम्हर'क बात छोड़ि कियो निमन्त्रण दऽ माँछ खुआबी तऽ कहु?

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