द डायरी आफ अ यँग गर्ल

असल लेखिका- एन्न फ़्रैन्क,
मैथिली मे प्रस्तुति: डा० पद्मनाभ मिश्र


बहुत किछु एक साथ करबाक क्रम मे हम क्लासिकल अँग्रेजी साहित्य पढ़ैत रहैत छी. एहि क्रम मे मिस एन्न फ्रैँक द्वारा लिखित एवम हुनकर पिता श्री आटो फ्रैँक द्वारा सम्पादित द डायरी आफ अ यँग गर्ल’क कहानी लिखि रहल छी. वस्तुतः ई किताब जर्मन मे लिखल गेल छल ७० विभिन्न भाषा मे अनुवाद भऽ चुकल अछि. प्रकाशक’क दावा अछि जे बाइबिल के बाद अधिकतम भाषा मे अनुवादित ई दोसर पोथी थीक. हम किछु दिन पहिने ई किताब कीनि के आनने रही आ एखन धरि खत्मो नहि भेल अछि. मुदा मोन भेल जे कतेक रास बात मे एक बात आओर जोड़ि दी.

द्वितीय विश्व यूद्ध समय होयत. प्रत्येक देश कोनो कोनो तरहेँ ओहि विश्व यूद्ध मे शामिल छल. पश्चिमी यूरोप मे नाजीवाद पसरलल छल. जर्मनी मे हिटलर यहूदी लोकनि केँ प्रताड़ित करैत छलाह. ओहि समय मे एक सेना सँ रिटायर्ड यहूदी "मि० आटो फ्रैँक" के बेटी मिस० एन्न फ्रैँक नियमित रूप सँ डायरी लिखैत छलीह, ई किताब ओहि डायरी के सम्पादित प्रस्तुति थीक. हिस्ट्री चैनल पर एकर कतेक बेर नाट्य रुपान्तर भऽ चुकल अछि.



तेरह साल’क उम्र मे एन्न फ़्रैँक अपन माता-पिता आ बहिन मार्गोट फ़्रैँक’क साथ रहैत छ्लीह. हुनकर पिताजी आर्मी सँ लेफ़्टिनेन्ट पद पर सँ रिटायर्ड छलाह आ सुखी-पूर्वक परिवारिक जीवन व्यतीत करैत छलाह. हुनकर अपन बिजनेस छलन्हि आ ओ मसाला इत्यादि’क व्यपार करैत छलाह. मार्गोट, एन्न सँ दू साल पैघ छलीह आ एन्न केँ किशोरावस्था’क शारीरिक एवम मानसिक बदलाव सँ उत्तपन्न भावना केँ बुझबा मे मदद करैत छलीह. तेरह साल’क उम्र मे ओ प्रत्येक दिन अपन डायरी लिखैत छलीह.

उम्हर जर्मनी मे हिटलर नाजीवाद’क विचारधारा के प्रसारित करैत छलाह. नाजीवाद एक विचार-धारा सँ उठि केँ धर्म’क रुप लेने जा रहल छल. ओ एहेन प्रत्येक व्यक्ति के सजा दैत छलाह जे नाजीवाद मे विश्वास नहि करैत छल. हुनकर हिटलिस्ट मे यहूदी सबसँ उपर छल. तऽरे तऽर नाजीवाद सँ प्रत्येक यहूदी नफरत करैत छल मुदा खुलि केँ विरोध बहुत कम जगह भऽ रहल छल. उम्हर हिटलर अपन वाक-विद्या सँ प्रत्येक जर्मन के सेना बना देने छलाह. केवल एहेन यहूदी जे जर्मनी मे रहैत छल नाजीवाद सँ घृणा करैत छल. घृणा करबा मे रेडियो’क प्रमुख भूमिका छल. मित्र राष्ट्र नहुएँ-नहुएँ जर्मनी’क दिस बढि रहल छल. आ एहेन समाचार सुनि यहूदी जे कतओ कतओ नुकाएल छल ओ खुश होइत छलाह.

एहेन परिस्थिति मे एन्न बचपन सँ किशोरावस्था मे आएल छलीह. एवम अपन घर मे अपन आस पास’क घटना केँ अपन डायरी मे लिखैत छलीह. मुदा बहुत दिन एहेन बात नहि चलल. एन्न’क पिता केँ आशँका छलन्हि जे यहूदी भेला’क कारणेँ हिटलर’क सेना हुनका परिवार’क सँग उठा केँ लऽ जेतन्हि. तेँ आटो फ्रैँक अपन आफिस’क पास मे एक तहखाना मे अपन परिवार सँग नुका केँ रहबाक लेल व्यवस्था करबा नेने छलाह. हुनकर अधिकतम स्टाफ गैर-यहूदी छल जिनका हिटलर’क सेना’क कोनो भय नहि छलन्हि. अपन पूरे व्यपार केँ अपन स्टाफ पर छोड़ि अपन आफिस’क तहखाना मे अपन किछु मित्र’क परिवार’क सँग हमेशा’क लेल नुका गेलाह. ओहि छोट सन शहर मे हिटलर’क सेना’क चढ़ाई भेल सब यहूदी केँ पकड़ि केँ लऽ गेल मुदा ओहि तहखाना मे एन्न फ्रैँक दू साल धरि अपन परिवार’क सँग सुरक्षित छलीह.

हमरा बुझल अछि जे एहि शीर्षक देखि पाठक लोकनि अचम्भित हेताह. मुदा जहिया सँ हम कतेक रास बात शुरु केलहुँ अछि बहुत किछु सीखबाक मौका भेटल अछि. दिन मे एगारह घँटा अँग्रेजी सँ सामना करए पड़ैत अछि(०८:३० घँटा काज आ ०२:३० घँटा कम्यूटिँग). हृदय सँ हम मैथिली साहित्य’क लेल समर्पित छी. मुदा हमर इतिहास बेसी काल हिन्दी के इर्द गिर्द छल. एकर असर एहेन भेल जे मैथिली, अँग्रेजी आ हिन्दी तीनो मे सँ कोनो मे महारथ नहि हाँसिल भेल अछि. ओना ई बात बहुत प्रमाणिक थीक जे तीन टा चीज मे महारथ हासिल केनाय आसान काज नहि अछि, मुदा ओतैये ईहो बात सत्य थीक जे मानव मे उर्जा अपरम्पार अछि. कोनो चीज असम्भव नहि. तेँ तीनो चीज मे महारथ हासिल करबाक कोशिश जारी अछि.

हमर विश्वास अछि जे साहित्य भाषा’क मोहताज नहि भऽ सकैत अछि. भाषा केवल एक जरिया थीक साहित्यिक विधा केँ विभिन्न वर्ग’क पाठक केँ साहित्य’क रसानुभूति करेबाक लेल. ई प्रस्तुति एक प्रमाण थीक एहि बात लेल कि साहित्य भाषा’क मुहताज नहि थीक.




ओहि तहखाना मे तीन टा रुम छल. आफिस आ तहखाना केँ जोड़’ वाला रास्ता बहुत पातर छल आ ओ एकटा कब्जा पर इम्हर उम्हर घुमए वाला किताब’क अलमारी सँ ढँकल छल. ओहि तीन टा रुम मे सँ एन्न केँ, अपन रुम मे दोसर यहूदी परिवार’क एकटा बुजूर्ग सँग शेयर करए पड़लन्हि. शुरु मे एन्न’क माँ अपन पति सँ आपत्ति दर्ज केने रहैथि जे एकटा बूजूर्ग सँग किशोरावस्था-वाली एन्न कोना रहतीह. मुदा ओहि बुजूर्ग’क बढ़ियाँ चरित्र’क वास्ता दऽ औटो फ्रैन्क अपन पत्नी केँ बुझा देलथिन्ह. एन्न प्रत्येक दिन डायरी लिखैथि रहैथि. दोसर यहूदी परिवार मे एकटा किशोर "पीटर" आओर रहैथ छल जिनकर उम्र पन्द्रह साल’क छल. शुरुआत मे ओ हुनका नीक नहि लागैत छलाह. मुदा एक दिन ओ किशोर एन्न केँ साहित्यिक अन्दाज मे ई कहलथिन्ह जे, "एन्न! अहाँक मुस्की हमरा बहुत नीक लागैत अछि, अहाँ ज बजैत छी तऽ हमरा लागैत अछि जे चान्द लऽग मे आबि केँ हमरा सँग कानाफूसी कऽ रहल अछि". एन्न सहित्यिक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति छलीह आ पीटर के साहित्यिक अन्दाज हुनका नीक लागए लागलन्हि. नीकटता आ सहजता प्रेम मे बदलए मे देर नहि लागल. मुदा किछुए दिन मे एन्न’क माए हुनका पीटर केँ किस करैत देख लेलीह आ औटो-फ्रैन्क’क सँग मे हुनका ई बुझेबाक प्रयास केलीह जे एन्न एखन छोट छथि. आ "मेरा नाम जोकर" मे रिशी कपूर सन हुनकर जवाब छलन्हि, "आई एम नोट अ किड". ओ दू साल धरि प्रत्येक पल’क जानकारी अपन डायरी मे लिखैत जा रहल छलीह. एक लड़की जे तुरन्ते किशोरावस्था’क ड्योढ़ी पार केने छलीह, अपना सँ दू साल पैघ एक दोसर लड़का’क सँग मे रहय के मौका भेटल छलन्हि आ जे ओहि किशोरावस्था मे उच्च कोटि’क सहित्य सृजन करैत छलीह. एक एक पल’क वर्णन एना केने छथि जे दोसर कोनो साहित्य मे पढ़बाक हेतु नहि भेटि सकैत अछि. एन्न फ्रैक’क जीवन’क सबसँ बेसी उर्जा वाला समय, एक महान साहित्य’क सृजन मे जा रहल छल. एहेन साहित्य जे कञ्चन, कमनीय अ कल्पना लोक मे विचरण करए वाला काल्पनिक कथा सदृश्य हकीकत केँ वर्णन करय वाला एक कहानी छल जाहि मे ओ मुख्य पात्र’क रोल अदा कऽ रहल छलीह.

नीक क्षण बहुत कम देर’क लेल होइत अछि. ओहि मुहल्ला मे किछु नाजीवादी स्त्री केँ शक भेलन्हि जे एहि घर मे एकटा तहखाना अछि जाहि मे किछु यहूदी परिवार रहि रहल अछि. ओहि समय मे यहूदी लोक’क जानकारी देला सँ हिटलर’क सेना पुरस्कार दैत छल. ओ स्त्री सेना केँ फोन कए सूचित कऽ देलक. किछुए देर मे सेना ओहि घर’क तलाशी लेनाई शुरु कऽ देलक. किताब’क अलमारी’ मे कब्जा लागल देखि शक भेलन्हि. खोलि के देखल गेल. ओहि पातर रास्ता भऽ केँ सेना एन्न’क परिवार’क लऽग पहुँचि गेल. औटो फ्रैन्क केँ सँरक्षण देबाक कारणेँ सेना हुनकर सँरक्षक सँ मारि पीटि भेल.

सेना औटो फ्रैन्क केँ परिवार सहित तुरन्त अपन समान बँधबाक लेल आदेश देलक. पूरा परिवार अपन एक एक समान बाँन्हि लेलक. एन्न फ्रन्क केँ बुझल छल जे ओ आब एक यूद्ध बन्दी’क तरहेँ प्रताड़ित काएल जायत. बहुत सम्भव छल जे ओ लोकन्हि फेर सँ जिन्दा नहि रहतीह. तेँ अपन लिखल डायरी आ दू सय लूज पन्ना जाहि मे अपन विशेष साहित्य सृजन केने छलीह ओ ओहि ठाम छोड़ि केँ चलि एलीह. जे हुनका लोकनि केँ शरण देने रहैथि हुनकर पत्नी एन्न सँ विशेष स्नेह राखैत छलीह. आ हुनका विश्वास छलन्हि जे मित्र राष्ट्र’क सेना हिनका लोकनि केँ शीघ्रे छोड़ा कँ लऽ एतन्हि. ओ एन्न केँ सान्त्वना देलथीन्ह जे वापस एला तक ओ डायरी केँ सरिया के राखने रहती. ई ओएह समय छल जकर बाद एन्न’क साहित्य सृजन बन्द भऽ गेल.

एन्न केँ पूरे परिवार सँग ट्रेन मे बैसा केँ अन्जान जगह मे आनल गेल. ओहि अन्जान स्टेशन पर दोसर यूद्ध बन्दी बाट ताकैत छल. ओ एहेन यूद्ध बन्दी छल जे सेना मे नहि अपितु सब सिविलियन छल. ओतय बाँकी बन्दी’क सँग हिनका लोकनि केँ मालगाड़ी वाला डिब्बा मे एना ठुसि देल गेल जेना खोभाड़ी मे सुगर सब रहैत अछि. दू दिन’क यात्रा आ विषम परिस्थिति, विशेष केँ हड्डी मे कम्पकम्पी घुसबए वाला ठण्डी मे, बहुत लोक अपन प्राण त्याग देलैथि. मुदा एन्न पूरे परिवार’क साथ सौभाग्यशाली छलीह जे मृत्यु लऽग मे आबि केँ वापस भऽ गेल.

अन्तत: ओ मालगाड़ी एहेन ठाम पहुँचल जतय नाजीवादी हिटलर’क कन्सन्ट्रेशन कैम्प चलैत छल. कुल मिला केँ पचास हजार स्त्री पुरुष आ बच्चा लोकनि ओहि मे छल. पहुँचला’क बाद पुरुष लोकनि केँ अलग काएल गेल. बच्चा लोकनि केँ से अलग काएल गेल. एन्न’क माए एन्न आ हुनकर जेठ बहिन मार्गोट केँ कहि देने छलीह जे उम्र पुछला पर सोलह साल कहबाक लेल. एहेन केला पर एन्न, हुन्कर माए आ मार्गोट के एक्के बैरक मे राखल गेल. बाद मे एन्न केँ बुझबा मे आएल जे बच्चा लोकनि के गैस चैम्बर मे पठा देल गेल. गैस चैम्बर एक एहेन जगह होइत छल जाहि मे एकटा बहुत बड़का एयर टाइट हाल रहैत छल. ओहि हाल मे एक बेर मे हजारोँ बच्चा लोकनि केँ बन्द कऽ देल जाइत छल आ छत’क उपर वाला चिमनी सँ रसायनिक प्रक्रिया द्वारा कार्बन मोनोआक्साइड गैस छोड़ल जाइत छल. बच्चा सब घुटि-घुटि केँ मरि जाइत छल. एक बैच’क हजारोँ बच्चा मरलाक बाद दोसर बैचक हजारो यहूदी बच्चा केँ फेर ओहिना काएल जाइत छल. एन्न केँ बुझि मे आएल जे पुरुष लोकनि केँ सेहो एहिना गैस चैम्बर मे हिटलर’क सेना मारि देलक. हिटलर’क सेना केवल पुरुष आ बच्चा केँ गैस चैम्बर मे किएक मारैत छल से नहि बुझि मे आयल. एकटा तर्क ई भऽ सकैत अछि जे हजारोँ जिन्दा आदमी एक सँग रहला सँ विद्रोह कऽ सकैत छल. आ बच्चा सब जिन्दा रहला सँ भविष्य मे बदला’क नियत सँ काज कए सकैत छल.

हिटलर’क सेना स्त्री लोकनि केर सँग अजीब सन व्यवहार केलन्हि. पहिने बैरक मे जाइते देरी सभक केस छीलवा देल गेल. सबटा कपड़ा छीनि लेल गेल. आत्मविश्वास कमेबाक लेल ओहि बर्फीला ठँड मे नँग्टे दू तीन दिन राखने रहल. ओकर बाद विशेष कपड़ा देल गेल. प्रत्येक स्त्री सँ दिन मे अठारह-अठारह घँटा रेलवे ट्रैक बनेबा मे खटाएल जा रहल छल. काज मे मुख्यतः कोदारि पाड़व छल. एन्न’क माए सबसँ बेसी डिप्रेशन मे छलीह. अठारह घँटा कोदारि पाड़ला’क एवज मे पहिने दू दिन मे एक बेर खाना भेटैत छल आ ओकर बाद समयान्तराल बढ़ा केँ एक एक सप्ताह कऽ देल गेल. एन्न’क माए भूख सँ सबसँ पहिने मरि गेलीह. मुदा एन्न बहुते साहसिक छलीह. ओ बेसी सँ बेसी काज करैथि आ हिटलर’क सेना ओहि एवज मे हुनका किछु बेसीए खान दैत छलन्हि.

ओकर बाद कोनो आन ठाम सँ यूद्ध बन्दी आनल गेल. एक हजार क्षमता वाला बैरक मे पचीस हजार स्त्री रहैत छलीह. खाना पीना धीरे धीरे कम भेल जाइत छल. एन्न आ हुनकर जेठ बहिन मार्गोट केँ बुझल छल जे हुनकर माए हुनके समाने मे प्राण त्यागने रहैथि कतओ सँ खबरि आयल जे हुनकर पिता औटो फ्रैन्क केँ गैस चैम्बर मे मारि देल गेल. मार्गोट पहिने सँ कमजोर छलीह. एन्न सप्ताह मे एक दिन भेटए वाला अपन खाना से हुनके देबए लागलीह. बैरक के दोसर दिस एक दिन एन्न केँ अपन पुरान सहेली अपने सन परिस्थिति मे भेटलन्हि. हुनकर स्थिति अपेक्षाकृत नीक छलन्हि. हुनका सप्ताह मे तीन दिन खाना भेटैत छलन्हि. मार्गोट केर स्थिति जानि ओ अपना दिस सँ किछु खाना देबाक प्रयास केलन्हि. अपन बहिन’क लेल जखन ओ "बन" वगैरह लऽ जाइत छलीह तऽ दोसर बन्दी लोकनि हुनका सँ छीन्हि लेलन्हि. अन्त मे मार्गोट जीबि नहि सकलीह.
वास्तविकता मे आटो फ्रैन्क मरल नहि छलाह. गैस चैम्बर मे लऽ गेल छलन्हि मुदा मित्र राष्ट्र’क सेना हुनका छुड़ा लेलकन्हि. किछु दिन अस्पताल मे राखला बाद स्वस्थ्य रुप सँ अपन घर वापस भऽ गेलाह. ताबय धरि हिटलरक प्रत्येक कन्सेन्ट्रेशन कैम्प के उपर मे मित्र राष्ट्र’क कब्जा भऽ चुकल छल. औटो फ्रैन्क केँ अपन बेटी आ पत्नी’क बारे मे किछु नहि बुझल छलन्हि. बहुत दिन धरि ओ बाट ताकैत छलाह. फेर ओएह तहखाना वाला घर मे गेलाह. हुनकर स्त्री एन्न’क लिखलाहा डायरी आ दू सय पन्ना वाला खुला कागज सब दऽ देलकन्हि. बहुत दिन बाद ओ एन्न’क ओ दोस्त लऽग गेलाह जे एन्न केँ कन्सेन्ट्रेशन कैम्प वाला बैरक मे खाना दैत छलीह. सँयोग वश ओ जीवित रहि गेल छलीह आ औटो फ्रैन्क के समाचार देलीह जे मित्र राष्ट्र’क सेना आबय सँ दू सप्ताह पहिने भूख आ टायफस’क [typhos]बीमारी सँ एन्न फ्रैन्क मारल गेलीह.

द्वितीय विश्वयूद्ध खत्म भऽ चुकल छल. औटो फ्रैन्क पहिने अपन बेटी एन्न’क लिखल गेल डायरी कहियो ने पढ़ने छलाह. आब ओ अकेले रहि गेल छलाह. एन्न’क लिखल एक एक पन्ना पढ़य लागलाह. पहिने जे बेटी हुनका एक छोट सन बच्ची बुझाइत छलन्हि, हुनकर डायरी पढ़ि केँ लागलन्हि जे ओ एक महान साहित्यकार छलीह. एक लेखिका, एक कवि, एक उपन्यास्कार नहि जानि आओर कोन कोन.

औटो फ्रैन्क ओहि डायरी केँ प्रकाशित करबाक लेल ठानि लेलाह. डायरी प्रकाशित भेल, पहिल बेर मे एक लाख सँ बेसी प्रति बेचल गेल. ओ डायरी आई धरि सत्तरि भाषा मे प्रकाशित भऽ चुकल अछि. १९८० मे ९१ साल’क उम्र मे औटो फैन्क मरि गेलाह. ओहि सँ पहिने ओ डायरी के प्रकाशन सँ आयल रोयाल्टी सँ एक "एन्न फ्रैन्क फाउन्डेशन" नामक चैरिटी सँस्था बना देने छलाह. ओ स्त्री, जे एन्न’क डायरी सम्हारि के राखने छलीह आई ९२ साल’क उम्र मे हालैण्ड’क एम्सटर्डम शहर मे रहि रहल छथि.

जँ मौका लागय, आ फुर्सत होमय, आ ई जानबाक इच्छा होमय जे कोना एक साहित्य कोनो भाषा’क जागिरदारी मे नहि अपितु देश काल आ बोली सँ दूर अपन अलग सम्राज्य बनबैत अछि तऽ २२० टाका खर्च कए पेन्गुइन पब्लिकेशन के ई किताब जरूर पढ़ी.

9 comments:

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

कहल गेल छैक,
"भिन्नरुपता विरहित जीवन दुर्गम कंटक वन है,
किंतु विविधता पाकर बन जाता वह सुरकानन है!"

अहाँक इ प्रयास एहि मंच पर विविधता आनि देलक। निसन्देह इ प्रस्तुति एहि मंचक निरंतर सृजनताक परिचायक आ सुखद भविष्यक प्रतीक अछि।
हार्दिक शुभकामना।
अपनेक-
कुन्दन कुमार मल्लिक

सुभाष चन्द्र said...

neek sahitya kono bhasha mein hoi,padhbak chahi.aa kono dosar bhasha ke prati duragrah nahi hobak chhahi. hindi ke lekhak sh. prempal sharma ke kahab chhain je- anushashan racnatmakta ko khatm kar deta hai.
tanhi, yahi manch per ek ta neek anudit racna ke lel apne ke badhai. hamar sadar anurodh je ehi silsila ke banene rahi, karan kichu apadh rachna ke padhbak shoubhagya bhetat....

subhash chandra, new delhi

Kumar Padmanabh said...

शुभाष जी;
हमर इएह प्रयास रहत जे साहित्य के समृद्ध करी, विसेष रुप सँ मैथिली साहित्य केँ.

Rajeev Ranjan Lal said...

अहाँक ई कहानी बहुत व्यवस्तता रहला के बादो पढ़लहुँ ई बुझबा के लेल जे कोनो दोसर भाषा के रूपांतर मैथिली में कतेक सहज आ रोचक हेतैक। आशातीत खुशी भेल आ अहाँक प्रति जे श्रद्धाभाव पहिने से छल ओहि में किछु बढ़ोतरी भ' गेल।

अहाँक दूरदर्शिता, जे मैथिली के मिथिला में खोयल सम्मान वापस दिलाबी, आब बेसी दूर नहि लागि रहल अछि। अहाँ अपन प्रयास के एकतरफा नहि बना सब तरफ से जोर डालि रहल छी। कखनो त' परिणाम निकलबे करितैक आ हम सब सफल होयब।

बहुत नीक प्रयास। पढ़ैत काल कखनो ई नहि बुझा पड़ल जे कोनो दोसर भाषा के कहानी पढि रहल छी, सिवाय कहानी के परिवेश के।

धन्यवाद,
राजीव रंजन लाल

Kumar Padmanabh said...

राजीव जी;
धन्यवाद. हम कोशिश करब जे एहि शुरुआत केँ आगू लऽ जाइ.

पद्मनाभ मिश्र

Kumar Padmanabh said...

ठाकूर जी;

अपने सँ बहुत अपेक्षा अछि. यदि अपनेक रचना एहि ब्लोग पर आबए तऽ एकर सुन्दरता बहुत बढि जायत. एहि बात'क बहुत दिन सँ बाट ताकि रहल छी.

करण समस्तीपुरी said...

अपनेक ई प्रयास कतेक रास बातक एक गॉट नव अध्याय थीक ! आ बांकी सभ टा बात राजीव जी कहिए देने छथि ! एहि प्रयासक लेल हम अपनेक व्यक्तिगत आभार मानैत छी !

Anonymous said...

durbhagya vas eah dayree ke pachas pej ke hamee anuvad english se hindee me karlahun chaal. muda paisa tai milal lekin kagajee kaj nahi haik karan kato bhee nam nahee chhal.

Kumar Padmanabh said...

विनीत जी;
अहाँके एकटा ई-मेल पठेने छी. कृपया जवाब देल जाए
डा० पद्मनाभ मिश्र

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लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...