कत्ता दिन भेल हमरा अहि ब्लोग पर पोस्ट केला, हमरा अपनो नहि मोन अछि. सान्सारिक मोह माया में ओझरा गेल छलहु हम :). मुदा अपेक्षा अछि जे अपने लोकनि हमर ई दोख माफ़ करब. प्रस्तुत खिस्सा हम अप्पन पुरनके शैली में लिखनहु अछि. जों बसिया लागै त अपने लोकनि टिप्पनि जरूर करि. हम किछु अलग लिखबाक चेष्टा करब. 
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प्रस्तुत अछि "श्राद्ध" 
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मोन विषाक्त हुए त सगरो फुलैल बारी सेहो कंटगर लगैत अछि. फरवरीक फगुआ बयाइर आइ सुइ जकां गरि रहल छल. रोडक काते काते खेत में फुलायल सरिसो जुनि अगिलग्गि बुझि परैत छल. कचनारक सुगंध फेर कोनो बिसरल बियोग मोन पारि रहल छल. जों जों गाडी गामक सिमान दिस बढि रहल छल, करेज पर मोन भरि बोझ पडल जा रहल छल. सान्झु पहर गाम पहुचलहु. खट्टर काका हौआ दोकान पर चाह सुरकति भेट भेलाह. हौआक बाबु त नाम धेने रहथिन "बिसरन", मुदा बिसरन बच्चे स तोतराइथ आ सदिखन "हौ" पर अटकि जाइ छलथि, तैं गौआ सभ हौआ कहै लगलन्हि. हौआ त हमरा नहि चिन्हल मुदा खट्टर काका चिन्ह गेलाह. काका लपकि क गाडी रुकवौलन्हि. "की हौ राजेश, आबि गेलहऽ" अप्पन ओहि तीरल बोली मे काका बजलाह. गाडी स उतरि प्रणाम केलियन्हि तऽ काका रुद्ध स्वर मे बजलाह, "ई तऽ अपरिहार्य थिक बौआ, हम तु की करबै? झटकि क जा, दलान पर बैसार शुरुए भेल हेत." हम निरुत्तर मुरि डोला पुनि गाडि चढि घरक खरंजा धेलहु. 

दलान में नहि किछु त ३०-४० गोटेक बैसार चलि रहल छल. चिर परिचित मुदा अखनहि बिसरल सन मुह-कान सभ. आन त कात जाउ, पाकल केश आ बढल दाढि मे भैयो नहि चिन्हार बुझि पडैत छलाह. भैया, काका सभ के गोर लगैत हम एक कोन्ह में बैसलहु. श्राद्धक चर्चा तऽ भ चुकल छलैह, बात भोज पर बढि चलल. भैया बस गौआंके खुएबाक पक्ष मे छलाह मुदा रमेश भाइ जवारक प्रोत्साहन मे लागल छलथि. हुनक तर्क छलनि जे ५-७ बरख पहिले जै खोर दही अपन गाम मे खप‍इ छल, ओतबे में आइ काल्हि जवार भ जाइत छैक. तहि पर बाबुजी के अहि ब्लोक के सभ गाम मे जानल जाइ छलाह. ३५ साल स लोक हुनका मास्टर साहेब या पन्डिजी के रूप मे जनै छलनि. भैया हमरा स पुछलन्हि, हम तऽ अखनो धरि सपने देख रहल छलहु. स्वप्न्लोक स निकलि हम जवारक पक्ष में मुरि डोलेलहु. 
जी! बाबुजीक देहान्त भऽ चुकल छलन्हि. हमरा अपनो अखन धरि विश्वास नहि भेल अछि, हम अपने लोकनि के केना विश्वास दियाउ? सत्त कहल जाय त हम विश्वस्तो नहि होबै चाहैत छी. चिरै-जानवरक दुनिया में धिया-पुता के शिकार सिखेलाक बाद माई-बाप स कोनो विशेष सम्पर्क नहि रहैत अछि. अप्पन खेबा खर्चा जखन चलै लगैत छै त कोनो चिरै या जानवरके बाप के मरला या जीला स की सरोकार? मनुष्य जन्म अपनापन आ सिनेहेक कारण मृग जन्म सऽ पृथक थिक, मुदा आजुक सन्सार में ई अन्तर सेहो विलुप्त भऽ गेल अछि. बाबुजीके देहान्त्क सम्बन्ध में हमर इ उदासीनता कदाचित ओइ मनुष्य-मृग द्वन्द्वक प्रतिध्वनि थिक जाहि मे मृग विजयी भ रहल अछि. घर मे हम सभसऽ छोट छी, भैया पटना में प्रोफेसर छथि आ दीदी सपरिवार दरिभंगा रहैत छथि. पटना में जाबेत हम कालेज करैत रहि, ताबेत तक घर घर जकां छल. तीनु भै-बहिन में स क्यो-ने-क्यो लगभग हर तेसर महिना गाम जाइत छलहु आ मा-बाबुजी सेहो बेसिकाल पटना अबैत-जाइत रहै छलथि. बाबुजी के ओ अन्तिम किछु साल छलनि स्कूल में. जहि साल बाबुजी रिटायर्ड भेलथि, ताहि साल हम पटना छोरि बम्बई धेलहु. दु साल में वियाह भेल आ तेकरा बाद जेना दुनिये बदलै लागल. परिवार स एकमात्र जोड टेलिफोनक तार आ फ़ेर मोबाइलक घन्टी रहि गेल. भैया-भौजी के बोली में कटुता, दीदीक बोली में उदासीनता, हमर बोली में चिरचिरापन आ बाबुजी के बोली में आर्द्र दयनीयता एके अनुपात में बढैत चलि गेल. 
हम त बुझलहु जे भैया सभ-किछु देखैत हेथिन. ओ त पटने में छलथि. मानल जे बाबुजी घर छोरबाक विरोध में छलाह, मुदा भौजी तऽ आबि सकै छल्खिन्ह!! पहिले नहि त कम स कम पछिला हफ़्ता जखन बाबुजी के मलेरिया भेलनि!! किछु नहि त भैया हमरे कहितथि, हमहि आबि गेल रहितहु. हम सोम दिन फ़ोन केने रहियनि त कहलाह जे जगऽत डाक्टर सऽ गप भेलनि आ सभ ठीक भऽ जेतै. आइ शुक्र थिक आ बाबुजी के देहान्तक पूरा १२ घन्टा बीत चुकल अछि. 
बैसारक बाद हम आन्गन में गेलहु. माइ के देखि विश्वास नहि भ रहल छल. हुनक पैर छुब निहुरलहु तऽ ओ लिपटि कऽ कानै लगली. हमरो नहि रहल गेल. आन्खिक नोर सन्ग बाबुजी के कन्हा बैसि घुमल मेला, छोंकिक मारि, प्रसंशा, परिहास, नेहौरा आ हमर अपने जीवनक कुन्ठा सभ बाहर निकलि अनन्त में विलीन भऽ गेल. आब हमरा आभास भऽ रहल छल जे बाबुजी दुनिया छोरि चुकल छथि. 
आन्गन में कोलाहल बढल, तखन हम काना-खिजिके शुन्य स बहार भेलहु. भैया लगे में छलाह, अपन नोरक बान्ह के अनिच्छाक बल स रोकने. रोषक भाव में हम पुछि देलियन्हि "अहान्के नहि एबाक दर छल तऽ हमरे कहितहु!" भैया हमरा दिसि देखि बजलाह "हमरा कोनो भविष्यवणी थोडे भेल छल. डाक्टर साहेब त कहलनि जे ठीक भऽ जेथिन." कनि कालक विराम के बाद ओ पुछलन्हि "तु हमरा कहै छ! तु तऽ अखनो असगरे एलह!! कनिया आ बच्चा सभ कहां छथुन??" "नेहा के मैट्रिक के परिक्षा छै काल्हि सऽ, ओ सभ तैं रुकि गेलहि." हम अपन स्थिति समझाबैत जबाब देलियन्हि. "मनोज के सेहो काल्हि सऽ परिक्षा छै." भैया अन्यमनस्क भऽ बजलाह.....
मोन मे क्षोभक एक लहरि दौरल. ई कहिया भेल जे अप्पन घर में बाबुजी आ मां के गिनति बन्द भ गेलै?? आइ धरि एहेन एहसास नहि भेल छल. 
दूरी अखनहु बढि रहल अछि, हमर मोन के कोनो कोन्ह में जेना अहि पछिला पीढि बला रिश्ता सभ के श्राद्ध भऽ रहल छल आ ओइ आगिक धाह मे बाबुजी स्वाहा भ चुकल छथि.
 


6 comments:

Rajeev Ranjan Lal said...

पढ़ि के किछु नहि फुरायल। रचना के नीक कही कि अप्पन बदलैत परिवेश आ चरित्र के दोष दी। रचना मर्मांतक छल लेकिन खुशी भेल अहाँ के वापस एहि मंच पर लिखैत देख के। मनुष्य आ मृग के द्वन्द के यथार्थ चित्रित कयलहुँ अहाँ।

Kumar Padmanabh said...

हम राजीव जी’क बात सँ सहमत छी. अहाँक घिसले पीटले मैथिली हमरा नीक लागैत अछि. कहल गेल अछि जे जत्तेक घिसल पीटल रहैत छैक ओ ओत्तेक स्थाई होइत अछि. अपने सँ निरँतरता’क अपेक्षा अछि

करण समस्तीपुरी said...

बड नीक! आधुनिक चकाचौंध मे अप्पन मूल बिसरल मनुखक आंतरिक द्वंद के सूक्ष्म चित्रण हृदयग्राही अछि! आब हम बुझलौंह जे किए लोक कहै छै कि "पुराने चाउर पंथ परै छैक" !! दोसर रचनाक प्रतीक्षा मे छी !

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

कतहु पढने रही-
"पहिने सम्बन्ध समुद्र होयत छल, कतबो लहर उठय मुदा अपन किनारा नहि छोडति छल, मुदा आब सम्बन्ध गिरगिट होयत अछि जे प्रतिपल रंग बदलति रहैत अछि।"

आजुक बदलैत परिवेशक यथार्थ चित्रण करैत एकटा अनिवार्य प्रस्तुति।

सुभाष चन्द्र said...

kahani ke made kichhu kahnay asaan nahi ? kahani jena appan lagal.. humho ta wohi gam sa door delhi mein chhi, jatay mata-pita gamak ghar nahi chhodbak jeed mein chhaith aa hum sab roji-roti ke lel Delhi mein affsiyant rahait chhi.. ki ekra niyati kahbe ki kichu aar ?

Subhash chandra
New Delhi

सुमित ठाकुर said...

कहानी मर्मान्तक छल, मुदा सत्य केते कटु होई छै एकर एहसास सेहो करौलक |
सुमित ठाकुर

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