जिनकर पति खटि रहल परदेस,
पैसा-कौडी के चक्कर मे,
कवि- श्री राजेश रंजन झा, जन्म- 31 जनवरी, 1980। पिता- श्री सुनील कुमार झा, ग्राम- महतबार, पोस्ट- घनश्यामपुर, जिला-दडिभंगा (बिहार)। वर्ष 2001 में ल. ना. मि. विश्वविद्यालय, दडिभंगा सँ भौतिकी विज्ञान में स्नातक। लेखनक शौक बच्चे सँ, एहि मंच पर हुनक दोसर प्रकाशित रचना। सम्प्रति I.T.C. में Logistic Executive के पद पर कार्यरत। सम्पर्क- +91-9818554046 (नई दिल्ली)
छोडल अपन स्वर्ग सन देश,
खेत पथार सँ की होमय बला,
बाढि डाकिनी करय संहार,
एहि सँ बढियाँ गर्दक नौकरी,
अंत मास मे भेटय पगार,
फोन-फान त' पसरि गेल छै,
भरि देहात मे गामे-गाम,
जकरा छन्हि सुविधा से,
तृप्त करय छथि अपन कान,
एखनो केओ छथि आस लगौने,
दोसरक आँगन मे बजतै घंटी,
कुशल समाचारो बुझितहुँ,
बात क' लैतय बबली-बंटी,
साल भरि पर गाम आबय छथि,
फगुआ, दशमी आ की छठि,
बरखक फल सन तृप्त होयत छन्हि,
नव जोडि के रकटल भेंट,
की बीतैत हेतन्हि हुनका पर,
सोचबय कने बैसि के भाय,
ढृढ निश्चय भ' मन करियौ,
एहि विरहा के कोन उपाय?
6 comments:
गाम घर मे कतेको एहेन कनिया हेतीह जिनक वर हुनका छोडि के परदेस कमाइत हेताह। कतेक एहेन विरहिन आ मिथिलांचलक गाम-गाम मे पसरल बाढि आ बेरोजगारी समस्याक सचित्र वर्णन। नीक प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामना।
कोना करी वर्णन, मोन रंजनक आखर सँ आर विरह मे डूबि गेल। इ विरह त' आर भारी जे गामे मे छुटि गेल हम हुनका छोरि के परदेसी भेल, अपन कलम सँ जीवंत कयला रंजनजी। इ पढि मोन त' गाम चलि गेल। अति सुन्दर, आशा जे हमरा एहिना जागृति करय बला रचना पढबा लेल भेटैत रहत। धन्यवाद।
गाम घरक एक गोट परिदृश्य के चित्रण करबा मे सफल भेल छथि राजेशजी। एहि रचनाक लेल हमर बधाई आ नवका के प्रतीक्षा बनल अछि।
सुभाष चन्द्र,
नई दिल्ली।
कुन्दनजी, प्रदीपजी आ सुभाषजी,
सभ गोटे केँ हमरा तरफ सँ धन्यवाद। परंतु इ हमर दोसर कविता छल। एकटा आस लगौने रही जे पुज्यनीय पद्मनाभजी के किछु कॉमेंट पढब मुदा एखन धरि ओ किछु टिप्पणी नहि देलाह।
सर, अगर कविता मे कोनो त्रुटि लागैत हुयै जे अहाँक हृदय नहि छुबि सकल तैयो अहाँ किछु कॉमेंत देब।
प्रिय केशवजी सँ सेहो आग्रह।
विशेष दोसर बेर......
राजेश रंजन झा
राजेश जी,
अपनेक रचनात्मकता निश्चय प्रसंशनीय अछि ! कविता में शास्त्रीयता अछि मुदा एक पाठक के रूप में अपनेक ई रचना हमरा एहि भांति प्रभावित नै केलक जे टिपण्णी देने बिना नै रहल जाए ! अहाँ में हमरा किछु स्वतःस्फूर्त सृजनशीलता लक्षित होयत अछि, तें अपनेक एक गोट प्रभावशाली रचनाक प्रतीक्षा में छी !
राजेश जी;
किछु कारणवश पिछला तीन दिन सँ घर पर इन्टरनेट काज नहि करैत छल तेँ टिप्पणी नहिँ दऽ सकलहुँ.
कविता मार्मिक अछि. भाव सेहो नीक उत्तपन्न करैत अछि. मुदा कालक्रम मे भाषा मे सुधार’क आशा. हमर सलाह के प्रसिद्ध लेखक के रचना पढ़ी. हमर व्यक्तिगत अनुभव जे एना करला सँ भाषा मे सुधार होइत अछि.
एक बात आओर. हमरा पूज्यनीय नहि बनाउ. दोस्त बुझव तऽ हमरा नीक लागत.
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