राष्ट्र वन्दना- कुन्दन कुमार मल्लिक

(स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)

धन्य धरा हे भारतभूमि,
धन्य धरा हे मातृभूमि,
शस्य श्यामला, मातृ वत्सला,
हरित भरित धन्य धान्य,
हे जगत गुरु, हे शांतिस्वरुपिणी,
हे मातृरुपिणी, हे शक्तिरुपिणी,
जय, जय, हे भारतभूमि,
जय, जय, हे मातृभूमि,
शीश मुकुट पर हिमालय शोभे,
पद-पंकज अहाँक सागर पखारे,
कल-कल बहैत नदियाक धार,
मोन केँ दैत हर्ष अपार,
कर जोडि कुन्दन नमन करय,
माँ स्वीकार करु हमर प्रणाम।

- कुन्दन कुमार मल्लिक, सम्पादक, कतेक रास बात

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वँदे मातरम !

Rajiv Ranjan said...

कुन्दन जी,
रचना बढिया अछि आ विविधता सेहो लेने अछि.
अहिना विविध विषय पर लिखु. बहुत दिन स एकहुटा भजन नहि पढलहु से भजन सेहो लिखै के प्रयास करु. कैलखन कृष्णाअष्टमी छैलैह.
कृष्णाअष्तमी आ स्वतंत्रता दिवस के बहुत बहुत बधाई!!!!
बाकी अगिला पत्र में

अहांक
अमरजी

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