विद्यापति समारोह'क स्मृति मे

अविनाश

कहबाक कला होइ छई
हिसाब-दौड़ी कहियो ने भेल
आंगुरक बीच मे भूर अछि
जे अरजल सभटा राइ-छित्ती भेल
छिपली मे बांचल कनखूर अछि

हमर गाम मे छल एकटा चौंसठ
कहैत छल,
अरजबाक कला होइ छई

जेना बिदापति मंच सं कहय छथिन कमलाकांत
कहबाक कला होइ छई

कलाजीवी झाजी आ कलाजीवी कर्णजी!
कलाजीवी
हुकुमदेव आ कलाजीवी फातमी!

बाढ़ि मे दहा गेलनि जिनकर गाम
सुन्न छैन्ह जिनकर कपार
गुम्म छैन्ह मुह मे बकार

नचारी मे नहि ल' पओता आनंद

केओ उदघाटन बाती जरओता
केओ देता अध्यक्षीय भाखन
जाड़-बसात मे चमक चांदनी देखि
दुखित जन पीयर पुरान कागत पर लिखबे टा करत,
मुह के सी'बाक कला होइ छई

कतबो कहथु कमलाकांत
सुनबाक कला होइ छई
हल्ला-गुल्ला जुनि मचाउ बाउ
छी संस्कारी लोक

कहबाक कला होइ छई!

हम छी कमलाकांत
भरि राति खसल सीत
चंद्रमणि गबैत रहला गीत
केओ थोपड़ी केओ चुटकी सं दैत रहल जोश
मुदा जे देलक टिहकारी कनखिया क'
उ छल सभ सं फर्रोश

एमेलेकेडमी´क पंडाल मे पसरल अछि पुआर
मुदा जिनकर पैंसब छैन्ह प्रतिबंधित से छथि गुआर

तें जखन बदलल जमाना
बदलि गेल रामकथा ससि किरन समाना
आब अछि पासमानक भरनी दुसाधक ताना

संकल्पलोकक बैसि गेल भट्ठा
गुदड़ी मे बिका गेल सोन सन इतिहास कट्ठा पर कट्ठा

आब एमएलएसएम मे होइत अछि बिदापति समारोह
आह, की आरोह-अवरोह!
मंच सं बाजि रहला अछि संचालक,

'हारमोनियम पर छथि शिशकांत
तबला पर छथि चंद्रकांत
झालि बजओता उदयकांत
गओता हेमकांत
आ हम छी कमलाकांत!'

अहियो पर थोपड़ी!

मुदा सुनय बला सुनि रहल अछि
संस्कृतिक ओसारा पर बड़का लोकक कोरस
गांती मे केओ नहि अछि गुआर
चौबगली पसरल अछि पावन-पवित्र पुआर

मिथिलाक पोखरि बाभनक बंसी सं डेराएल
संस्कृति मे सामाजिक न्याय एखनो अछि हेराएल

तें कतबो कहथु संचालक, हम छी कमलाकांत
लोकबेद करबे टा करत टोंट जे अदौ सं अछि आक्रांत!
अदौ सं अछि श्रोताकांत!

6 comments:

Kumar Padmanabh said...

"हिसाब-दौड़ी कहियो ने भेल
आंगुरक बीच मे भूर अछि
जे अरजल सभटा राइ-छित्ती भेल
छिपली मे बांचल कनखूर अछि"
"

अविनाश जी;

अहाँक उपर लिखल लाईन'क कीमत हम एक लाख लगाबैत छी...
कतय नुकायल छलहुँ यौ. अहीँ सन सन लोकनिक जरूरत अछि. एतय हम अहाँ'क हम प्रशँशा नहि करब. प्रशँशा'क जिम्मेदारी बाँकी लोकनिक उपर मे छोड़ि हम केवल शिकायते टा करब. आ शिकायत अछि जे "एहेन बढियाँ कविता लिखि केँ फेर सँ निपत्ता नहि भ' जायब. अहाँ सन लोकनि के एहि ब्लोग पर पाबि धन्य भेलहुँ अहा कलम के लगाम नहि लगायब इएह टा आशा आ अपेक्षा...

पद्मनाभ मिश्र

Anonymous said...

धन्‍यवाद पद्मनाभ जी, उत्‍साहवर्द्धनक लेल हम अहांक कृतज्ञ छी।

Rajeev Ranjan Lal said...

मैथिली मैथिली केनाय आ मैथिली के ओकर वास्तविक स्वरूप में परोसनाय दु टा फराक चीज अछि। हमर सभक प्रयास में लेखन तऽ छल मुदा स्तर नहि...कोशिश तऽ छल मुदा ओ दम नहि। अहाँ के छोट कविता हमरा सब के निश्चित रूपेन हमर सभक निम्न स्तरीय लेखन के बोध करा रहल अछि आ अहाँ के पाबि उत्साहित छी जे अहाँ के लेखन स्तर के देखैत देखैत नहि मामा से कन्हा मामा तऽ जरूर भऽ जायब। एनाही अपन उपस्थिति के आभास कराबै रहु जे हमरो सभक कल्याण होय।

बहुत बहुत धन्यवाद।

Anonymous said...

राजीव जी, कतेक रास बात नीक मंच बनि क' उभरल अछि। एहि सं जुडि क' हम गौरवान्वित छी।

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

अहाँ'क रचना पढैत जे पहिल बात मोन में आयल ओ छल "एकटा प्रगतिवादी कवि'क प्रगतिशील सृजन"। एहि कविता के आधार बना केँ यदि हम अपने'क केँ "प्रगतिशील कविक" श्रेणी में राखी तs अतिश्योक्ति नहिं हेतैक। एहि कविता के माध्यम सs जे अहाँ पाठक लोकनि'क प्यास बढा देलियैन्हि ओकरा देखैत यदि अहाँ अपन नव रचना हमरा सभहक लेल प्रस्तुत नहिं करब तs ओहि के लेल अपने'क केँ क्षमा नहिं कयल जायत।

अपने'क-
कुन्दन कुमार मल्लिक, बंगलोर (भारत)
सम्पर्क- +91-9740166527
E-mail- kkmallick@gmail.com

Gajendra said...
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