नांगट जमाय

- श्रीमती कामिनी कामायनी

हकासल पियासल लाल काकी दौडल अयलहि। भट-भट आँखि सँ नोर खसैत, "यै बहिन... कनि चलथुन्ह है... ओझा मौहक नहि करैत छथिन्ह", नूआक खूट सँ आँखि पोछैत बजलीह। त' बहिन आने की पुरैनिया वाली काकी तुरते पएर मे चप्पल पहिर संग धेलिह।

काजक आंगन... भरि आंगन लोक पसरल। सबहक मुँह पर परेशानी... नेना-भुटका के छोडि कय... ओ सब मिलि कय कलोल करय मे लागल छल।

"यै बडकी काकी... कनि अहीं देखियौक... ऊह एहने पर...। कियौ बजने छल...। बडकी काकी माने पुरैनिया वाली काकी... सीधा वर लग कोहबर मे पहुँचली... अन्हार घर मे कोठी लग परहक बिछौन... पटिया पर सतरंजी आ' एक गोट नव चादरि बिछैल... कोहबर मे पुडहैर मे जरैत दीपक मद्धिम सन ईजोत... वर दूहु हाथ सँ गेरुआ केँ करेज सँ दबौने कनी-कनी झूलैत पटिया पर बैसल छलाह। घरक दोसर कोन मे चंगेरा, डाला, पातिल सब राखल। ओसारा पर विधकरि माटिक चूल्हि पर खीर पका क' दूनू थारी मे निकालि नेने छलीह, पितियौत सारि ओहि सँ कनेक फराक ठाम करि क' पिठार आ' सिनूर सँ अरिपन बना कम्बल बिछबैत छल ।

लेखिका- कामिनी कामायनी,
मैथिली, हिन्दी आ अंग्रेजी मे नियमित आलेख आ कविता लेखन,
सम्पर्क- jk_kamayani@yahoo.in


दुनू थारी दुनू दिस राखल जा चुकल छल। गितहारि गीत गाबय लेल झुण्ड मे बैसल बेकल भए गोसाउनिक गीत शुरु कय देने छलीह 'अहिं के पूजन हम अयलहुँ भवानी.......'।

घरक चौखटि पर बैसल बडकी काकी एक नजरि सँ ओसारा आ आंगन दिस देखलन्हि.... आ दोसर नजर सँ वरक दिस। वर लग बैसल दू-तीन टा धिया-पूता केँ भगबैत बजलीह, "जो तू सभ बाहरि खेलि ग, कनि हमहूँ ओझा सँ गप करैत छी"। आ ससरि क' वरक पटिया लग आबि गेलिह।

"ओझा अहाँ कियैक एना घिनौने छी... कतेक बदनामी भए रहल अछि ।" बडकी काकी जे देखय सँ मातबर लागय छलीह, सोनक गहना पहिरने रंग-रूप सँ सेहो। वर कनेक हडबडेलाह... "नै काकी... हमरा ठकल गेल... लडकी बदलि देल गेल... हम त'... हम त'... ।

"की हम त'.. हम त' लगौने छी... आ' लडकी बदलि देल गे से शंका कोना... अहि टोल मे विवाहक जोगरि एक गोट यैएह टा कन्या छल... ओहो अहाँ सँ हजार कच्छ नीक छैक...।" काकी कनेक तमसा गेलीह... "परिछनो काल राति मे अहाँ अहिना घिनौने रही... पूरा समाज देखलक... कियो टीक नोचि लेलकै... कियो बरद कहि देलकै... विवाह करय लोक जायत अछि त' वर के बड बात-कथा सूनय पडैत छै... ई सभ शोभा-सुंदर होयत छै। मुदा अहाँ त' सभ गप पर मारि-पीट करय लेल फाँड बान्हि लैत छी... । अहाँ केँ माय किछु नहि सिखौलन्हि की... उठू.. मौहक करू... बेर शीतल जाय छैक...।

पता नहि की भेलय, जादू वा भूख लागल रहै, वर सत्ते मौहक करय पहुँचि गेलाह... आंगन मे स्त्रीगण सब जोर सँ ठहक्का लगौलक। मुदा वर मुँह नीचा गारने खीर खाइत रहलाह ' खीर खाइयो नै लजाईयो ओझा...' आ हँसी-ठठ्ठाक बीच मौहक भेल।

ई अजगुत वरक खिस्सा गरमी क' दुपहरिया मे खाली समय मे घरे-घर लागल... आ की कुमारि की बियाहल... सब एक-दोसर के कहनाय शुरु केलक ' हे गे अराधना... हे गे सपना, ममता चलबै ओहि टोल... पूनमी के वर देखय...। आ जे कहियो हुनक अंगना मे नहि आएल छल... सेहो सब आयल एहि अजगुत वर के देखए लेल...।

"सभा सँ भेल की घर कथा सँ... " मेहथ बाली जे बडका बेटा लग सँ काल्हिए आएल छलीह पुछलखिन्ह तए लाल काकी बड दुखी भ' बजलथि, "बहिन... घर कथे छै... पिण्डारुछ बला ओझा त' करबेलखिन्ह... लडका नौकरीहारा दिल्ली मे मनेजर छै... लाख टका मे... बेटी रानी बनि क' रहत... कियो मोडि नै दियै... ताहि लेल चुप्पे छलहुँ..."। कनिया के मायक आँखि सँ भट-भट नोर खसय लगलन्हि... त' अपन नवका नूआक खूट सँ आँखि पोछि लेलीह। मेहथ वाली धीरज धरैलन्हि "कथी लेल कानैत छी... आब धिया के जे कपार... जे विधि रचने होयथि... आब हिनके आसीरबाद दियौन्ह... सोना चाँदी त' फेरलो जाए छै मुदा सिन्दूर फेरलो नै जाए... ।"

मेहथ वाली काकी अपन घर आबि गेलीह मुदा मोन मे प्रश्न घुमैत रहलन्हि 'एक लाख मे एहने वर... एक त' कारी धुत्थूर... बडका टीक... नाक प तामस... बाजय के सबूर नहि... कोन मनेजर हेतैक। मोने मोन ओ तर्क वितर्क मे लागल छलीह। कतहुँ सँ बेसी पढल-लिखल नहि लागैत छल। बरातियो मे कोनो जान नै... जे गहना आ वस्त्र कनिया लेल आयल छै सेहो थर्ड किलास...। ओ अपन बहिन धी के फोन लगौलखिन्ह... पिण्डारुछ के छथि जमाय... दिल्ली मे पुलिसक बडका अफसर। अपने उठौलन्हि फोन। "कोन पिण्डारुछ बला के एहि गाम मे विवाह करौलियन्हि ओझा जी... कत्त' मनेजर छै.... । आ सब टा खिस्सा सुनि ओ गुम सुम रहि गेलीह।

दोसर दिन भेने फेर लाल काकी दौडल अयलीह... मुँह सुखैल... हकासल पियासल, "बहिन यै... कहै छैथ ओझा... बिन दुरागमने ल' जायब कनिया के... कनि चलथुन्ह... बडका नाटक शुरु केने छैथ फेर... अंगरेजी मे कीदन कीदन बाजैत छैथ।

लाल काकी के जखन कोनो मोसीबत पडैन्ह तए अपन एहि दुनु पडोसिया के घर जा क' मिनती करय लागथि। लाल कका कमाए लेल कलकत्ता जाए लगलाह त' अपन परिवार के एहि दुनु परिवारक भरोसे छोडने गेलाह। बडकी बेटी के विवाह मे जे कर्ज भेल छलैन्ह से आय पाँच बरखक उपरांत सेहो नै सधल छल। आ ओकरा बाद छोटकी बेटीक विवाहक कर्ज। ओतय हुनक माडवारी मालिक राति दिन खून चूसि चूसि ऋण सधबैन्ह। छोटकी के कन्यादानक पराते जखन बडका कका के दलान पर बरियाती पसरलै छल हुनका कलकता क' गाडी पकरबाक लेल मधुबनी टीसन दिस कएक मोनक पएर नेने प्रस्थान करय पडल छलैन्ह। बेटा सेहो ओहि ठाम काज करैत छल। ओकरा त' बहिनक विवाहक लेल छुट्टी सेहो नहि देलकैक।

मेहथ वाली काकीक बहिनधी सुगन्धाक विवाह पिण्डारुछे भेल छल। ससुर गामक मुखिया छलखिन्ह। चतुर्थीक परात मेहथ बाली काकी जे डील-डौल सँ बेस लमगर आ कनि भारी भरकम छलीह, माथ पर नुआ राखि पान खाइत दुपहरिया मे लाल काकी के आंगन पहुँचल छलीह। असगर घर मे वरक समक्ष बैसि बड महीन स्वर मे पुछलखिन्ह, "ओझा... मधुकर बाबू के चिन्हय छियैक..."।

"हँ काकी, कियैक नहि ओ त' हमर सबहक दियादे छथि। हमर परदादा पाँच भाय आ ओहि मे एकटा ओ सब छथि ।"

"हमर सबहक बड पुरान कुटुम छथि, कनकपुर विवाह छन्हि हमर बहिनक बेटी सँ। मुदा ओहि खानदान मे त' कियो नहि सासुर मे जा क एना उधम मचौने छल। बड भलमानुष लोक सब छथि।" वर एकदम चुप। 'आय धरि कियो वर एहि गाम सँ कोनो बेटी के जबरदस्ती बिन दुरागमन के नहि ल' गेलैए... अहाँ कोना ल' जेबए, उचित लगतैक... । एक सँ एक जमाय अयलाह एहि गाम मे।'

'उचित वा अनुचित की... ।' वर अपन औकात पर उतरि कुतर्क करय लागल 'हमरा संग... ।' "ओझा अहाँ केँ शिक्षा नहि भेटल अछि की बुजुर्ग सँ कोना व्यवहार करबाक चाही... । कनिया के पिता परदेस मे छथि... अडोसिया-पडोसिया संग द' रहल छैन्ह... आ' हुनक माता के अहाँ एना परेसान केने छी... ।"

धड आ माथ झुकौने वर पलथा मारने गुमसुम बैसल छल। वर के पस्त देखैत काकी के मनोबल बढलैन्ह। ओ अपन माथ पर सँ ससरैत नुआ के संभारैत बजलीह, "सब खिस्सा करैत अछि जे वर भंगतडाह छै... कखनो ठक बक चिन्हबा काल मे बकझक... कखनो पान सँ नाक पकरबेबा मे इंकार... ई लच्छन दिल्ली मे मनेजर लडका के लगैत छै। हमरा त' लगैत अछि लडकी बला नीक जेंका ठका गेलाह... कोन कम्पनी मे अहाँ मनेजर छी। की अहाँ के एक लाख दहेज लेबाक चाही।

वर के माथा ठनकलै। ओ माथा उठौलक, 'की हम मनेजर नहि छी...।' लाल टरेस आँखि सँ हुनका घुरैत कनि कडगर आवाज मे बाजल।

"अहाँ मनेजर नहि छी, छोटका-मोटका सेठक फैक्टरी मे चौकीदार छी। हमरा मधुकर बाबू... बहिन जमाए... सबटा कहलन्हि जे अहाँ के नौकरी लगौने छथि... आईये फेल कतओ मनेजर होयत छैक....।" काकी एक-एक शब्द पर अटकैत बजलीह।

आब तए ओकर सिट्टी-पीट्टी गुम। वर टुनटुन बाबू घिघियाय लगलाह, 'काकी गोर लागैत छियैन्ह... हिनक पएर छूबि सप्पत खाय छी... जेना इ कहथिन्ह सैह हेतैक'

मेहथ वाली काकी सहृदय स्त्री छलीह। हुनका व्यर्थ खिस्सा, परनिन्दा करय के आदत नहि छलन्हि। आब वर सरकसक जानवरक जेकां हुनक आदेश पर नाचय लेल तैयार छल। हुनका बड प्रसन्नता भेलन्हि। चलू केकरो कन्या के जीवन सुखी करबा मे किछु त' सहायक भेलहुँ।

"ठीक छै, विवाहक साल भरिक भीतर दुरागमन करब, ता धरि हमरो गाम पर पक्का मकान बनि जायत आ बाबूजी सेहो गामे मे रहताह। बड नीक जेकाँ बोल भरोस दए क' वर टुनटुन बाबू सौसक पएर छुबि विवाहक पन्दरहम दिनक बाद दिल्लीक लेल प्रस्थान करए सँ पहिने अपन गाम जा रहल छलाह।

लाल काकी निश्चिंत आ बेटी सुनन्दा बड प्रसन्न लागि रहल छलीह। सुनन्दा बड सुन्नर त' नहि मुदा अधलाह सेहो नहि छलीह... नव उमरि... नव-नव सिन्नूर माथ पर एकटा विशेष आभा देने छलैन्ह। कनिया सँ विदा होमय काल वरक मुँह पर सेहो विह्वलताक भाव छलैन्ह। कनिया कोठीक पाछां जाकय कानय लागल छलीह।

सौंसे टोल मे की पूरे गाम मे एकटा मेहथ वाली काकी के घर मे फोन छलैन्ह। परदेसिया बेटा सब लगा देने छल। आ' सब किओ अपन फोन सुनए लेल आबैत छल, खास करि क' टोलबईया। वरक पहिल फोनक खबरि सुनि सुनन्दा बिहाडि जेकां दौडल आयल छलीह। मेहथ वाली काकी ओहि कोठरी सँ हटि जाए छलीह... जखन-जखन फोन आबय। बड काल धरि गप्प चलै। किछु चिठ्ठीयो आबय लगलै... एहिना कए दिन बीतैत रहलै। काकी के सब धिया-पूता परदेसिये छलन्हि। बेटी सब अडोस-पडोसक गाम मे नीक घर मे बियाहल गेल छलीह। मुदा सब किओ आब कलकत्ता, बम्बई रहनिहार भ' गेल छलीह। काकी कने व्यापक लोक छलीह। कका जे सदिखन बेरामे रहैत छलाह... हुनक सेवा-सुश्रुषा करैत दिन बड नीक जेकां बीतैत छल। उमिर सेहो पचपन-छप्पन सँ बेसी नहि छलैन्ह। मुदा विधि के विधान की कहल जाए। एक राति सुतलीह त' सुतले रहि गेलीह। भोरे सोर होमय लगलै। बेटा-बेटी हवाई जहाज सँ पटना पहुँचि जेना-तेना जल्दी-जल्दी गाम पहँचलाह। समय पर सबटा काज बड्ड नीक जेकां सम्पन्न भए गेलए।

एम्हर सुनन्दाक विवाहक साल भरि होएबा मे डेढ मास रहि गेल रहै। चिठ्ठी पर चिठ्ठी पठाओल गेल तए सुनन्दाक सासुर सँ दिन सेहो आबि गेल। फगुआ सँ दस दिन पहिने के।

वर टुनटुन बाबू दिल्ली सँ अपन गाम आ गाम सँ दोसरे दिन सासुर। ससुर आ सार सेहो कलकत्ता सँ आबि गेल छलाह। घर मे खूब चुहचुही छलैक। भनसा घर मे तरुआ-तिलकोर छना रहल छल। टुनटुन बाबू के जहिना खबर भेटलन्हि मेहथ वाली काकी गत भ' गेलीह ओ गँहीर स्वांस लैत एकदम्मे चुप भ' गेलाह। कनिया बुझलखिन्ह दुखी भए गेल छथि। काकी छेबो केलखिन्ह बड नीक... केकर नै मददि केने होयतीह... हुनका लग जे अपन परेशानी लए क' जाय... जौं हुनका वश मे होइन्हि तए अवस्से दूर करए के कोशिश करतथि। आ सुनन्दा के त' कतेक बेर अपना ओतए सँ फोन सेहो करए देने छलखिन्ह। कनि काल मे वर घर सँ उठि क' बाहर चलि गेलाह।

कनि देर दलान पर बुलैत-टहलैत टुनटुन बाबू अंगना एलाह। तए सौस के बजा के कहलखिन्ह "विवाह मे तए ई सब ठकबे केलथि... की दुरागमन मे सेहो ठकती...। रंगीन टीवी.. मिक्सी.. स्कूटर.. फर्नीचर.. कत्तो देखाए नहि पडि रहल अछि। दुरागमन मे तए ई सब चीज अवस्से हेबाक चाही नै। बिना एहि वस्तु के दुरागमन केहेन।

लाल काकी अकबकाएल सन रहि गेलीह। दस दिन मे एतेक चीजक जोगाड कोना भ' सकैत अछि। अखने लाल कका कहुना क' किछु पैसा एडभांस लए के कलकत्ता सँ दुरागमन के लेल आएल छलाह। ई साठि-सत्तर हजारक आओर पैंच उधार के देत।

काकी चुपचाप धड खसौने लाल कका लग अपन छोटका दलान पर आबि बैसि रहलीह। कका के ई सब सुनि जेना हाथक तोता उडि गेलन्हि। बड फज्जति करि क' हुनक मालिक पच्चीस हजार अगेवार देने छलैन्ह। अथाह चिंता मे डूबल... जेहो... दू-तीन बीघा खेत छलैक... पहिने सँ भरना छलैक। आब लोक केबाला सेहो करबा नेने छल। बचल घडारी, पैंतालीस धूर.. ईहो बन्धकी लेनिहार एतए के। जौं लईयो लैत अछि तए एतेक पाय कत्त सँ देत। कका कतेक काल धरि दलान पर राखल चौकी पर बैसल रहि गेलाह। बेटा मधुबनी गेल छलैन्ह चीज वोस्त सब बैसाहय। बेर खसैत देखि काकी भानस बनबय लेल आंगन जाय लगलीह तए देखैत छथि... बाडी मे ठाढ बड बेकल भ' मुँह पर नुआ राखि सुनन्दा कानि रहल छलीह। मोन पहिने सँ दुखी... आओर घबरा गेलन्हि। बड्ड सप्पत्त दय पुछलखिन्ह त' बजलीह 'ओ अपन गाम चलि गेलाह, कहलथि जे जा धरि हमरा सबटा सामान नहि भेटत ता' हम दुरागमन नहि करब।'

ओहि राति मे घर मे भानस नहि बनलै। पानिए पीबि कए सब लोक सूति रहल छलाह। एकर बाद कतेक परात भेलए... कतेक दुपहरिया आ राति भेलए...। अनका केकरो सँ एक दिन खबरि भेटलै... टुनटुन बाबू रुसिकए दिल्ली चलि गेलाह। आब नै कोनो चिठ्ठी.. नै फोन...। सुनन्दाक आँखि कनैत-कनैत सदिखन लाल टरेस भेल रहैत छै। मुँह पर जे हरीयरी आयल छलैक सेहो उडि गेलए... मुरझायल सन।

आ बड्ड सोचि विचारि क ' बेटी के दुख देखबा मे असमर्थ बाप एक दिन फेर कलकत्ता दिस पएर बढा चुकल छलाह। सोचने छलथि आब गामे मे रहब। बेटा मुरली सएह ऋण सधौत... मुदा विधिक विधान... टाकाक इंतजाम मे बीमारी आ बुढापा मे हुनका फेर चाकरी करय लेल परदेस जाय पडि रहल छल।

- श्रीमती कामिनी कामायनी
12 अप्रैल, 2009

12 comments:

मनोज कुमार said...

बड नीक लागल। घर-गाम में पहुंचि गेलौं। आ ऊ फकरा याद आबि गेल ... भेल बियाह आब करता की, धिया छोड़ि कै लेता की...

अजय कुमार झा said...

बाह बाह मजा आईब गेल , मोन प्रसन्न भ गेल , हम त सो्चैत छलौं जे आब जमाय सबके ई नंगंटई कम भ गेल होयत मुदा अहां के पढि क त ......बहुत रास ....नहिं नहिं कतेक रास बात मोन पडि गेल ॥धन्यवाद ॥

अहि ब्लोग के पूरा परिवार के विशेष धन्यवाद ...मां मैथिली के एतेक सेवा करय लेल ।

अजय कुमार झा

Bibhash Mishra said...

Ki Abayo ahain ghatna hoiet achi ki ie akta kahani achi?padhi kai man khush bhel muda chinta saho yadi akhno dher yadi ahen ghtana hoiet achi mithila mai ta sharm bat

Rajeev Ranjan Lal said...

ई वरक खिस्सा सचमुच अजगुते छल। आ कामिनी जी अहाँक लेखनी सेहो। "कतेक रास बात" मंच पर अहाँक हार्दिक स्वागत आ आशा जे एहेन सूक्ष्म विषय वा गाम घरक परिवेश के बहुतेक पहलू पर अहाँक रचना के माधयम से साक्षात्कार होयत।

धन्यवाद,
राजीव रंजन लाल

सुभाष चन्द्र said...

एही स पहिनेहो कामिनी जी के कतेको कथा पढने छि... हुनक कथा शिल्प आ कथानक के संधर्भ में कहब हमरा लेखे सहज नहीं...
'नगट जमाय' आदि स अंत धरी आपन लय में अछि. लेखिका के बहुत बधाई, एक नीक कथाक लेल.

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

जतय वरक खिस्सा अजगुत ओतय श्रीमती कामिनी जीक लेखन शैली अद्भुत। विषय-वस्तु किछु नव नहि मुदा सशक्त लेखनी आ प्रस्तुतिकरण एहि कथा केँ अनुपम बना रहल अछि। "कतेक रास बात" धन्य भेल।

धन्यवाद।

करण समस्तीपुरी said...

कामायनी जी कें लेखनीक ई विशेषता हम परिलक्षित केने छी जे सजीव परिवेश-चित्रण आ संवाद मे हिनक कुनो जोर नहि. अहि बेर कथानक सेहो जोरगर अछि ! साधु-साधु !!

Manish Mishra said...

Kahani atisunder lagal, Muda varnan likhabak lel shabd nahi Juta pa rahal chhi.
Kahani padhik kichhu sikhabak lel seho bhetal, jahilel hamara Keshav aa Kundan Bhaiya bar - bar Kahait chhaith.
Aasha nahi purn umid karaiy chhik ki katek ras bat ker sang, kichhu sikhab m ahan ahina nirantar banal rahab.

Namaskar

Kumar Padmanabh said...

kathaa ati uttam. ek paripakva lekhika'k poornataya chhap chhorne. muda kathaa'k vishay vastu me kono anveshan nahi. dosar tippani phursat me deb. laptop me kichhu kharaapee achhi

JAGDAMBA DEVI THAKUR said...

बहुत निक लागल , लागैत अछि जे ई वास्तविक कहानी अछि , अहिना सब जमाए सबक भेटबाक चाही ताकि अगु पीढ़ी में कुन्नु कस्ट नहीं होय ,
जय मैथिल जय मिथिला

Rajiv Ranjan said...

बढिया अछि। अहि स बेसी नहीं कहि सकैत छि।

अहांक
राजीव

डॉ॰ शशिधर कुमर "विदेह" said...

सही चित्रण ।

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