दुनीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाडी़


कवि- श्री हरिश्चन्द्र झा





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श्री हरिश्चन्द्र झा ’हरि’श्री हरिश्चन्द्र झा ’हरि’ . दरभँगा जिला’क रहनिहार शिक्षक, सन १९९४ सँ सेवानिवृत भऽ गामे मे रहि रहल छथि. प्राचीन समय मे मिथिला मिहिर’क नियमित लेखक छलथिन्ह.

कतेक रास बात परिवार दिस सँ हिनकर स्वागत छन्हि.

--आदि यायावर



दुनीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी,

पारे कोना उतरतै चिन्तें शरीर कारी ।



धारा विलोकि विह्वल सुत वृन्द मातृ नोरक

वलिदान केरि वेदी, चढ़िगेल पुत्र कोरक।

प्रलयोक ज्वाल सहि कए दए गेल रत्न भारी,

दुनीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।



परतरि सभ कहईए हमही विशिष्ट चालक,

रासे धरैत दीरी कि ओ बनैछ घातक।

दिगभ्रान्ति जाल डारए रिपु चालि रुप धारी,

दुनीति केर पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।



गीता उठाय बाजए निर्माण नव करब हम,

पथ छोड़ि भऽ कए विचरल करइअए हरदम

रक्षक कहाय भक्षक बनबैत अए बिखारी

दुनीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।



तन केर चर्म-मान्सो सब खा गेल अछि विदेशी,

बचि गेल अस्थिपँजर चुड़ैत अए स्वदेशी ।

नहि जानि की करत गति स्वार्थ'क बनल पुजारी,

दुर्नीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।



नायक बनल कहइए बढ़ि केँ सजाऊ उपवन,

विष वृक्ष केँ उखारु रोपु अशोक चन्दन।

विरर्रो उठा अशान्तिक शान्तिक'क कटैछ झाड़ी,

दुनीति केर पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।



दए क्रान्ति केर शिक्षा पथ मे रखइ अए,

सुख शान्ति ज्ञानहुक गृह धू-धू शतत जरै अए।

जनु दूत भऽ विदेशी'क बनबए भविष्य कारी,

दुनीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ॥



हे माएक सपुते पुनि दान मा मँगै छथि,

दसकँध आओर कँसक बलिदान मा मँगे छथि ।

बनु चन्डिका बहिन सब घरि बन्धु मुन्ड्धारी,

दुनीति केर पक्ष मे अछि भाग्य केर गाड़ी ॥

8 comments:

मनोज कुमार said...

बड नीक लागल। भाषा, शैली, आ विचार, उत्तम अछि।

Rajeev Ranjan Lal said...

हरिश्चन्द्र जी,

अहाँ के कविता पढि यात्री जी के मोन पड़ि गेल। ओना तुलना त' केकरो केकरो से नीक नहि, मुदा हमरा हिसाब सँ अहाँ के कविता उच्च कोटि के मैथिली में लिखल गेल अछि। कविता के भाव सेहो मर्मान्तक अछि।

अहाँक स्वागत एहि मंच पर आ आशा जे अहाँ महान मैथिली परंपरा के नवयुवक में सफल संचार करी।

सादर,
राजीव रंजन लाल

मितेश मल्लिक said...

हम मैथिली के विशेष जानकार नै छि ,परंतु हमरा कविता के भाषा आ विचार बढ नीक लागल ..

सादर
,
मितेश मल्लिक

करण समस्तीपुरी said...

ह्रदय के पोर पोर गद गद भा' गेल. बड़ दिनक बाद एहन "वर्ण-अर्थ-छंद आ रसक" दर्शन भेल. एहि मंच पर श्री हरिश्चंद्र झा जीक स्वागत के संघ कोटिशः आभार ! एहन योग्य कवि के रचना प्रकाशित करबा हेतु आदि यायावर जी के बहुत बहुत धन्यवाद !!

Unknown said...

तन केर चर्म-मान्सो सब खा गेल अछि विदेशी,
बचि गेल अस्थिपँजर चुड़ैत अए स्वदेशी ।
नहि जानि की करत गति स्वार्थ'क बनल पुजारी,
दुर्नीति केरि पथ मे अछि भाग्य केर गाड़ी ।
-bahut nik
www.rkjteoth.blogspot.com

सुभाष चन्द्र said...

अद्भुत.

SANDEEP KUMAR said...

जीवन के गाड़ी के तय नै मालूम पर अहां के कविता के सन्देश पूरा विश्व बंधू जन के मिल गेलै... धन्य छी रचनाकार जी अहां....

arvind said...

दुनीति केर पक्ष मे अछि भाग्य केर गाड़ी ---shree harishachandra jha ke rachna badd neek lagal.hunka dirghayu bhay maithily ke rachnatmak shayog dait rahbaak subhakamna.

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