एना कते दिन (कथा) - सतीश चन्द्र झा

- श्री सतीश चन्द्र झा

स्वच्छ आ निर्मल आँखिमे जेना नोर झिलमिलाए लगैत छैक अथवा ओसक बुन्न फूल पर चमकऽ लगैत छै, तहिना ओकर ठोरो पर मुस्की नुका नञि सकैत छलैक। कखनहु कोनो बात हो कोनो प्रसंग हो ओकर मुस्की सुहागिनक लाल-लाल सिन्दुर सँभरल सोउँथ जकाँ हरदम चमकैत रहैत छलैक। सैकड़ो युवतीक छटाक तुलना मे ओकर आकर्षक व्यक्तित्वक मुस्कीक कोनहु विकल्प नहि छलैक। किओ देखै वा नञि, हमर आँखि ई सुखक लेल सदैव उत्सुक रहैत छल।कक्षामे ओ हमरे पाँजरवला बेन्च पर बेसैत छल, दिनमे कइएक बेर ओकर आ हमर आमना-सामना होइत छल, जखन देखु प्रसन्न जखन गप्प करु वैह चंचलता सँ परिपूर्ण, अपन छटा केँ आवश्यकतासँ बेसी आकर्षक बनेबामे प्रयत्नरत, अनुभा हमरा लेल प्ररेणा छल। ओकर मुस्की हमरा एतेक प्रभावित केने छल जे हम एक दिन पुछिए देने छलियैक-

Satish Chandra Jhaलेखक- श्री सतीश चन्द्र झा,
म.न. 119, क्रॉस रोड, संत नगर
बुराड़ी, दिल्ली- 110084
सम्पर्क- 9810231588


अनुभा! एतेक मनमोहक मुस्की अहाँकेँ कतऽ सँ भेटल?
ओ हमरा दिस ताकि गंभीर भऽ गेल छल आ पुन: एकटा वैह आकर्षक छटावला मुस्की दऽ देने छल, बुझु जे ओ हमर उतर दऽ देने छल।

मुदा ओहिसँ हमरा संतोष कतऽ? हम तऽ ओकर चान एहन मुखमंडल सँ सुनऽ चाहैत छलहुँ। हमर बड़ जिद्द पर ओ कनेकालक वास्ते गुम्म भऽ गेल फेर कहलक-ई तऽ हमर स्वभाविक गुण अछि, ई नैसर्गिक अछि, कोना कहु जे कतऽ सँ भेटल।
बातो सत्ये छलैक, किञो कोना कहि सकैत अछि जे हँसब बाजब, कानव कखन ककरा कतऽ सँ भेटलै, हमहु केहन बातऽ करऽ लागल छलहुँ।
हमरा ओहिना स्मरण अछि जे परीक्षाक व्यस्त दिन छल, ओहि समय कखन साँझ होइत छल, कखन खेबाक बेर होइत छल, किछु पतो नहि रहैत छल, किताबक पन्ना आँखिमे, नचैत रहैत छल, नील रोसन इ सँ लिखल 'नोटक' वाक्य ओहिना दिमाग पर आच्छादित रहैत छल, एहने व्यस्तता सँ भरल दिनमे एक दिन एकाएक भेट भेल छल अनुभा सँ, कने ध्यान दऽ देखताहुँ तऽ उदास भऽ गेल छलहुँ-जगरना सन आँखि, ठोर पर पपड़ी जमल आ ओ मनमोहक मुस्की नहि जानि कतऽ हरा गेल छलैक, पूरा हालत अस्त-व्यस्त। ओकर एहन हालत देखि नहि जानि मनमे केहन-केहन बात आबि रहल छल, छातीक धड़कन अपन दैनिक गतिसँ तेज भऽ गेल छल-हम घवड़ायले भावे पुछलियैक-कि भेल अनुभा?
ओ चुप्प छल।
ओकरा चुप्प देखि हमरा रहल नहि भेल, ओकर दुनु कान्ह के डोलबैत पुछलियै-आखिर बात की अछि अनुभा? किएक ने बजैत छी? कहुने जे कि भेल?

ओ मुस्कीक व्यर्थ प्रयास करैत कहलक-संजू! हमर परीक्षा खराब भऽ गेल अछि, हम ठीक सँ लिखि नहि सकलहुँ अछि, एहि वर्ष पासो होयब असंभव बुझाइत अछि, आ ओकर आँखि सँ नोर खदसि पड़ल छलैक।
सान्त्वना दैत हम कहलियै-केहन बात करैत छी अनुभा, ई कोनो एहन बात तऽ नहि जाहि लेल अपन जीवने बदलि देल जाए, आदमी अपन स्वभाविक स्वभाव बिसरि खंडहर बनि जाए। अहाँ बताहि तऽ नहि भऽ गेलहुँ अछि अनुभा? देखु तऽ अपन हालत कि सँ की भऽ गेलहुँ अछि। देखु अनुभा, मेहनति करब हमर कर्तव्य थीक, सफलता, असफलता ई तऽ हमर हाथमे नहि अछि, तखन एतेक चिन्तित हैब व्यर्थ थीक। ई तऽ सर्वविदित छैकने, जे महाभारतक युद्ध मे श्री कृष्ण जनैत छलथिन्ह जे अभिमन्यु जे युवावस्थाकेँ प्राप्ते केने छल, चक्रव्यूहमे मारल जायत, यद्यपि ओ बचा सकैत छलथिन्ह तथापि ई कहि जे होबाक छैक से भइए कऽ रहैत छैक आ अभिमन्यु अपन कर्तव्यकेँ खूब नीक जकाँ निमाहलक। हुनक आँगा तऽ हम अहाँ...।
अनुभा बाजल-नहि संजू! अहाँ नहि जनैत छी, एहि वर्ष पास होयब हमरा लेल बड़ आवश्यक अछि, बेर-बेर असफलता सँ हमर स्थिति केहन भऽ गेल अछि से अहाँ जनैत छी?
हम उदास भऽ कहलियै-कि करबै अनुभा, जे होबाक रहैत छैक से तऽ भइएकऽ रहैत छैक।
प्रयास करितो ओ मनमोहक मुस्की अनुभाक मुख पर नहि आबि सकल छलै आ ओ विदा भऽ गेल छली।
किछुक दिन बाद ओ आयल छली, वैह हालति, ओहिना खिन्न, वैह उदासीक रुप।
हम पुछलियै-अहाँक भूत एखनधरि नहि उतरल अछि कि?
ओ मन्हुआयले मोन सँ कहलक-उतरि जायत। जे होबाक छल से तऽ भऽ गेल, आब कथिक लेल कानब आ कथीक भूत। ई किताब अनालहुँ अछि से लऽ लिअ।
हम आश्चर्य भऽ पुछलियैक-की अहाँ आगू नहि पढ़व? पढ़ाई-लिखाइ तऽ भागयक खेल अछि-किछु दिनक बाद हमर विवाह भऽ रहल अछि फेर केहन पढ़ब लिखब ओकर उत्तर छल। मुदा?
मुदा कि संजू? जँ किछ, कहबाक हो तऽ कहि दिअ, नञि जानि फेर भेट हैत कि नहि। हम तऽ अपन मनक गप्प कहबा लेल छलहुँ कि बीचहि मे...जै अहाँके किछु कहबाक हो तऽ कहि दिअ....लेकिन हमहु किछु कहि नहि सकल छलियैक।

हमरा लागल जेना ओ विवश छली आ विदा भऽ गेल छली मुदा एक तुफान सन बिहाडि़ छोडि़ गेल छली जाहिसँ हमर अन्त: करण आन्दोलित भऽ गेल छल, जे आइयो शांत नहि भऽ सकल छल आ कतेको प्रश्र हमर मनमे अउनाइत रहल हम किछु कऽ नहि सकलहुँ।
आब हमहुँ बैकक नौकरी करऽ लागल छलहुँ, एहि वर्ष गृहस्थी जीवन मे प्रवेश केने छलहुँ। आफिस जयबाकाल पत्नी कहने रहथि-हे सुनै छी, आइ कने जल्दी चलिआयब आइ साँझमे अस्पताल जयबाक अछि। से किएक? कि अपस्तालक....

धूर जाऊ-अहाँके तऽ हरदम हँसीए मजाक बुझाइत अछि, हमर गामक जे फुचाइ बाबू छथिन ने, तिनके बेटी अनुभा अस्पतालमे भर्ती छैक, कने जिज्ञासा कऽ लेनाइ जरूरी ने छैक-हँ...हँ अवश्य, यैह सब तऽ समाज में, परिवारमे नाम रहि जाइत छैक, मुदा अनुभाक नाम सुनितहि हमर मन डरा गेल छल, मनमे एक अजीब सन भयक संचार होमऽ लागल छल, मुदा मन के सम्हारैत ऑफिस विदा भऽ गेलहुँ।

साँझ मे अस्पतालक वास्ते विदा भेलहुँ, मुदा रिक्सा पर मन घ बड़ा रहल छल आ रहि-रहि कऽ एक्के बातक डर भऽ रहल छल जे बैह अनुभा तऽ नहि अछि। एहि बात सँ भरि देहमे पसेनाक बुन्न छोडि़ देने छल, जेबी सँ रूमाल बहार कऽ हम पोछ लागल छलहुँ। जाड़ोमे पसेना छुटि गेल, कि अस्पतालक डर होइत अछि? नहि...नहि एहन बात नहि छैक, ऑफिस सँ अएलाक बाद तुरन्ते विदा भऽ गेलहुँ अछि ताहि कारण मन कने थाकल बुझाइत अछि-हम पत्नीक बातकेँ अनठियबैत कहने रहियैन्ह।

अस्पताल पहुंचलहु तऽ ओहिठाम हड़बिरड़ो उठल छल, डाक्टर, नर्स आ कम्पाउण्डर सब किञो इम्हर सँ ओम्हर दौड़-बरहा कऽ रहल छल। ऑपरेशन घरक एक कोनमे बैसल शोक संतप्त परिवार दिस हमर पत्नी चलि गलीह आ गप्प केलाक बाद ओहो उदास भऽ गेल छलीह, एहि सबटा घटनाक हम मूक दर्शक बनल रहलहुँ जेना एही वास्ते आयल रहि।

ओहिठाम कातमे बैसल एकटा अति शोक संतप्त युवक दिस हम बढि़ गेल छलहुँ, हुनकहि सँ ज्ञात भेल जे हुनकहि पत्नीक आपरेशन भऽ रहल छनि, संगहि इहो कहलनि जे जहिया सँ हुनक विवाह भेलनि अछि तहिया सँ पत्नी अस्वस्थे रहैत छथिन आ ताहिमे दोसर बेर माँ बनि रहल छथि। डाक्टर लोकनिक कहब छनि जे बच्चा तऽ बाँचि जायत मुदा...

नहि...नहि...एहन बात नहि बाजू सभक रक्षा भगवान करैत छथिन, ऐना जँ अहिँ करब तऽ फेर....
एहि बीच कन्नारोहट उठि गेल छलै, ओहो युवक आम्हरे दौड़ गेल छलाह मुदा पत्नी सदाक लेल संग छोडि़ गेल छलथिन। हमरो आँखि सँ नोर टघरऽ लागल छल आ धीरे-धीरे हमहु ओम्हरे डेरा बढ़ा देने छलियैक।

अनुभा...! एकाएक ओकर शव देखि हमर बढ़ल डेग रूकि गेल छल। हमरा जकर अनुमान भेल छल ओ साक्षात सामने छल, वैह अनुभा जे कहियो हमर प्रेरणा छल। हम तऽ कल्पना मे नहि सोचने रहि जे अनुभा सँ फेर भेट हैत मुदा बिडम्बना देखु जे भेट भेवो कयल तऽ लाशक रुप मे। ओकरा संग बीतल युवावस्थाक दिन हमिरा ओहिना स्मरण आबऽ लागल छल, देह थरथराए लागल छल, कहुनाकऽ अपनाकेँ सम्हारैत कहुना कऽ डेग आगू बढ़ेने छलहुँ। डाक्टर लोकनि सँ ज्ञात भेल जे एकर मुख्य कारण जल्दीए दोसर बेर माँ बनब अछि कारण एक बच्चाक बाद शारीरिक रुपँ ओ ततेक ने कमजोर भऽ गेल रहथि जे दोसर बेरक हेतु ओ एखन तीन-चारि वर्ष धरि माँ नहि बनि सकैत छलीह, मुदा से नहि भऽ सकल छलनि...। बादमे हमरा दुखो भऽ रहल छल जे ओहि युवक केँ हम बहुत बातो कहि देने रहियैन जे पढि़-लिखि गेलाक बादो अहाँलोकनि भावुकताक प्रवाह मे ऐना ने बहि जाइत छी जे भविष्यक कोनो चिन्ते नहि। जँ आइ उचित परिवार नियोजनक कार्य प्रणाली पालन केने रहितहु तऽ आइ एहन परिस्थिति नहि अबैत, हमर बात पर ओ कानऽ लागल छलाह आ हमरो आँखि सँ नोर खसि पड़ल छल।

6 comments:

SANDEEP KUMAR said...

Sir bahut nik pryas aichh ahan ke...... bahut man me baat lagal...
ehina likhait rahu... sabke ahan ke ee prayas pasand ayal hoyat..

Sandeep

बालचन said...

यथार्थवादी विषय पर अपनेक ई रचना अवश्ये प्रशंसनीय आ सराहनीय थिक| कथा प्रसंगके मुदा किछू और विस्तृत केनाइ हमरा विचारे ठीक रहितई|

Kumar Padmanabh said...

सतीश जी;
अपनेक स्वागत अछि एहि वेबसाइट पर. एक कहानीकार’क रुप मे अहाँ पूर्ण सफल भेलहुँ. कहानी मे प्रत्येक व्यँजन/अवयव उपस्थित अछि, जे अहाँक कहानी लिखबाक प्रौढ़ता के प्रदर्शित करैत अछि. तरकारी मे यदि प्रत्येक मर-मसाला देल गेल हो, आ बनबय वाला यदि पाक विद्या मे निपुण हो, तँ कोन चीज’क तरकारी बनल अछि ओकर मतलब नहि रहि जैत छैक.
कहानी लिखय मे अहाँ योग्य छी, तेँ अहाँक कथानक पर चर्चा हम उचित नहि बुझैत छी.

Unknown said...

Mubarok ho Satisji,
Ahan ke kahani 'Ena katek din'parh lahun. Bahut neek chchal. Ahank lekhniye shaili aur kahani prastut kareye ke andaaz hamara bahut sundar lagal. Asa karait chi je ahan hum pathak lokeni ke aur gyanvardhak kahani parhai ke mauka deb.
Chandan

करण समस्तीपुरी said...

यथार्थ आ मर्मस्पर्शी !
एहि मंच पर अपनेक स्वागत अछि आ आस जे अपनेक निरंतर लेखन सँ "कतेक रास बात" समृद्ध होएत रहत !!!

Vijay Kumar Thakur said...

padhi ka mon chtpata uthal lagal kich hera gel........samajak yatharth s jural e katha purn rupe prsansniye aich

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