जिनगी कोना भेंटत ?

दुख:क ठोर पर हंसी कोना भेंटत ?
जेकरा भाग्ये में अछि दुःख,
ओकरा ख़ुशी कोना भेंटत ??
जे नहि बेचलक अप्पन आत्मा कें,
ओकरा नौकरी कोना भेंटत ??
गामो कए रहल अछि शहरक देकसी,
आब कतहु सादगी कोना भेंटत ?
चान पर बढि रहल अछि प्रदुषण,
भला कहू ! चांदनी कोना भेंटत ??
ओना त' मोन सबहक होएत छैक,
मुदा सबहक "परी" कोना भेंटत ?
हाट पसरल अछि मौअतिक सभ तर ,
एहि में जिनगी कोना भेंटत ??
दुख:क ठोर पर हंसी कोना भेंटत ??

- करण समस्तीपुरी

4 comments:

Rachna Karna said...
This comment has been removed by the author.
Rachna Karna said...

दुख:क ठोर पर हंसी कोना भेंटत ?जेकरा भाग्ये में अछि दुःख,ओकरा ख़ुशी कोना भेंटत ??

Karan Samastipuri g..kaha to sahi hai apne..aur apki sari bate b sahi hai is poem me..aur apki rachna kafi achi hai..
mujhe bahot achi lagi apki ye nai kavita...ap aise he achi achi kavita likha kare...ahan ke jaldi milat paree....
dhero subhkamnao ke sath..
Rach

सुभाष चन्द्र said...

वाह. मार्मिक आ यतार्थवादी रचना.

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

"गामो कए रहल अछि शहरक देकसी,आब कतहु सादगी कोना भेंटत ?"

तथाकथित आधुनिकता पर व्यंग्यक संग एकटा यथार्थवादी रचना।

अंतिम फेसबुक अपडेट

लेखक: आदि यायावर मूलनाम: डा. कुमार पद्मनाभ पीयूस आफिस पहुँचि गेल छलाह. सबसँ पहिने अपन लैपटॉप खोलि फेसबुक में स्टेटस अपडेट केलाह आ ...